Tuesday, August 30, 2016

दमण के रिक्शावाले

मित्रो आज अखबार मे पढा के रीक्शा एसोसिएशन और मिनीबस एसोसिएशन ने मिलकर सारथी बस सेवा के सामने विरोध जताया और एक स्थानीय अग्रणी नेता से इसे नये प्रशासक महोदय तक ले जाने की गुहार लगाई है।
मै व्यक्तिगत तौर पर ऐसा समझता हूं ये दोनो एसोसिएशन मिलकर पहले वापी गुजरात की तरफ से आते रीक्शा वाले धड़ल्ले से दमण तक पेसेन्जर ले आते है और वे जाते है उस संपूर्ण बंध करवाए। मुझे विश्वास है उनका सबसे बडा धंधा वे वापी और गुजरात से आनेवाले रीक्शा वाले ले जाते है। एक बार पुछने यही रिक्शेवाले कहते भाई हम तो थक गये है। कितना मारा पीटा फिर भी वो आते है।
आपकी तकलीफ का निराकरण वापी गुजरात से आनेवाले रिक्शा को बंध करने मे है अथवा आप भी उनकी तरह वापी गुजरात तक जाओ। अथवा वापी सिलवासा के रिक्शेवालो की तर्ज पर बाकायदा दैनिक परमिट चेकपोस्ट से ली जाये।
बाकी सारथी बस सेवा का विरोध करना तो एसा है जैसे एक घरमे तीन भाई बडा मीनीबस वाला, मजा रिक्शावाला और छोटा सारथी बस तो बडे दो अपनी कमजोरी और गलती सुधारना नही चाहते और मन मे हमेशा छोटा जो इन दो बडे भाई की गलती को देख उस हिसाब धंधा करे और ज्यादा कमाये तो वो बडे दोनो को अखरता है।
वास्तविकता यही है के आपकी तकलीफ सिर्फ और सिर्फ वापी गुजरात से आनेवाले रिक्शा वाले है। उसे बंध कराओ आपका काम बन जायेगा।
वापी के रिक्शावाला की कितनी दादागिरी सोमनाथ जो दमण का भाग वहां उनका बाकायदा स्टेन्ड और दमण मे ही दमण के रिक्शा वाले इधर उधर जहां जगह मिले खडे हो जाये।

Thursday, August 25, 2016

रीमा एक छोटी बच्ची थी। उसे खाना पकाने का बडा शौख था। जब भी मा खाना पकाती वो आहिस्ते से जाकर देख लेती के मम्मी के हाथ खाना इतना स्विदिष्ट होता था की पिताजी उँगली चाटते रह जाते। जो मेहमान आते वो भी मम्मी के हाथो बने खाने की तारीफ करते है।

रीमा देखती, मम्मी के पास ऐक डीब्बा है। हर बार खाना बनाते समय मम्मी उस डीब्बे से कुछ निकाल कर अवश्य डालती थी। रीमा को लगा जरूर उस डीब्बे मे कुछ है जिसे मिलाने से खानेका स्वाद दुगुना हो जाता है। मा उस डीब्बे को बडा सम्हाल कर रखती थी। रीमाने मा को ऐसा कहते सुना था की यह डीब्बा उसे उसकी मा ने दिया था।

एक दिन रीमा की मम्मी बीमार हो गई। रीमाने हिम्मत कर कहा, कोई तकलीफ नही, अब मम्मी आराम करेगी और खाना खुद रीमा पकायेगी।
जब रीमा कीचन मे खाना बनाने पहोची खानेकी सभी तैयारीया कर लेने बाद उसे याद आया मा के हाथ बनी सभी डीश इतनी स्वादिष्ट बनाने के लिए उपर रखे उस डब्बे से कुछ डालती थी। रीमाने एक टेबल के सहारे से वो डीब्बा उतार लिया। उसने वो स्टीलका छोटासा डीब्बा खोलके देखा तो डीब्बे मे कुछ नही था। बस, पुराने कागज की एक छोटी सी चिठ्ठी रखी थी।

रीमा उस चिठ्ठी को खोले देखा उसमे लिखा था - बेटा तु जो भी कुछ खाना पकाये, उसमे एक चुटकी प्रेम जरूर डालना जिससे तेरे हाथो बना पुरा खाना सबको पसंद आये।
रीमा को यह बात समजते देर नही लगी…
कितनी अच्छी बात है आपके द्वारा किये हर कार्य मे थोडा प्रेम मिला दिया जाये तो वो सामने वाले व्यक्ति को जरूर प्रभावित करता है।
प्रेम हर दर्द की दवा है।

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आज मेरे एक मित्र मिला वो कभी बना हजामत किये नही रहता है पर आज जब वो सामने आया तो उसकी दाढी और बाल बढे हुए थे। पुन पर उसने कहा 'भाई ये श्रावण मास के कारण।
लोग अपने हिन्दू धर्म की परंपराओ को कितना गलत तरीके से लेते है। जहां तक मेरी मान्यता है श्रावण मास इश्वर के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य, समर्पण और भक्ति के लिए है, इसलिए इसे श्रावण मास को वर्ष का सबसे पवित्र महिना कहा जाता है। शास्त्रो मे भी इसका समर्थन प्राप्त है।
ब्रह्मचर्य -
दुनिया की सभी इतर बातो से मन हटाकर केवल इश्वर मे मनको केन्द्रित करना। उस उसके लिए सबसे पहले मीताहार और सात्विक भोजन होना चाहिए, हो सके तो एक हीरा भोजन ग्रहण करे। आहार का मनकी प्रकृति से सिधा संबंध है। कहते है जैसा अन्न वैसा मन। आप जैसा भोजन ग्रहण करोगे आपके विचार ऐसे ही होगे।
काम वासना से अपने को दुर रखे, इससे अपने को इश्वर स्मरण मे लीन कर सको।
भूमी शयन या धर्म से बने बिछौने पर रात को सोये।
और अंत मे इन सब बातो मे लीन रहने से बाल दाढी और मुख की तरफ बेध्यान हो जाना।
अब इन सब भावनाओ को भुलाकर लोग मीताहार की सही परिभाषा को भुलाकर बडे अभियान से कहते सुनाई देंगे "मै तो इस पुरे श्रावण मास मे सिर्फ एक समय ही खाता हूअं। लेकिन उस एक समय मे हर प्रकार के व्यंजन थाली मे लेकर आरोगे जाते है जिसका मीताहार से कोइ लेना देना नही होता।
इसी तरह जो मन मे आया का लिया पी लिया जब चाहा खाया पीया लेकिन वो श्रावण मास के दरमियान दाढी, मुख और बाल बढा दिया तो हो गया श्रावण महिने का व्रत।
मित्रो यह सब गलत तरीके है यह केवल दिखावा है। अगर सही अर्थ मे श्रावण मास का व्रत करना चाहते हो ईश्वर कृपा प्राप्त करना चाहते हो तो सही तरीके से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करो और संपूर्ण भक्ति और समर्पण से ये हो पायेगा। बाकी सब व्यर्थ आडंबर है दिखावा है।
🚩🚩🕉 नमः शिवाय 🕉🚩🚩

Thursday, August 18, 2016

विश्व के समस्त सनातनियों को रक्षा सूत महा पर्व की अनंत शुभकामनाएं,,,
समस्त बहनों को ढेरों खुशिया मिलें,,,
बाबा विश्वनाथ सब का कल्याण करें,,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,,,
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित,सुखी संवतसरे भवेत्।।
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।
रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं।
प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना।
इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह,शांति और रक्षा का बंधन है।
इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है।
सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी।
पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षा सूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो
सकता है।
धागा केवल उसका प्रतीक है।
येन बद्धो बलिराजा,दानवेन्द्रो महाबलः
तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे,माचल-माचलः'
अर्थात दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे,उसी से तुम्हें बांधता हूं।
हे रक्षे ! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो,चलायमान न हो।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे,उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं,यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना,स्थिर रहना।
इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े परिचायक हैं हमारे पर्व और त्यौहार।
यहां हर महीने और हर मौसम में कोई ना कोई ऐसा त्यौहार होता ही है जिसमें देश की संस्कृति की झलक हमें देखने को मिलती है।
त्यौहारों का यह देश अपनी विविधता में एकता के लिए ही विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए है।
रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्यौहार है तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं।
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है।
रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं,उनका तिलक करती हैं और उनसे  अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं।
हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है।
राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप  नहीं रह गया है।
राखी देश की रक्षा,पर्यावरण की रक्षा,हितों की रक्षा  आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग-भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।
--- रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है।
वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।
कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर  स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया,तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।
वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया।
उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय  अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई।
नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बाधकर उसे अपना भाई बना लिया।
बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई।
उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
---महाभारत में राखी
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है।
जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं,तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई,तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी।
यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा
और सहयोग की भावना निहित है।
---ऐतिहासिक महत्व
इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं।
मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी।
हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था।
पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
आज यह त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्यौहार पर गर्व है।
लेकिन भारत जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं।
आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्यूंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं।
यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश में कन्या- पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं।
यह त्यौहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।
अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी।
भाई-बहनों के इस त्यौहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का विरोध करें और महिलाओं पर हो रहे शोषण का विरोध करें।
अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि राह चलते वह जिस महिला या लड़की पर फब्तियां कस रहे हैं वह भी किसी की बहन होगी और जो वह दूसरों की बहन के साथ कर रहे हैं वह कोई उनकी बहन के साथ भी कर सकता है।

Wednesday, August 17, 2016

वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि

*वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि :*

जानिए कैसे मनाए रक्षा बंधन का पर्व
इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है -

1⃣ दूर्वा (घास)
2⃣ अक्षत (चावल)
3⃣ केसर
4⃣ चन्दन
5⃣ सरसों के दाने ।

इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में
लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें,
फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस
प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।

इन पांच वस्तुओं का महत्त्व -
1⃣ *दूर्वा - जिस प्रकार*
दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से
फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास
तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बदता जाए ।
दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए ।

2⃣ *अक्षत* - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।

3⃣ *केसर* - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो ।

4⃣ *चन्दन* - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है ।
उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।

5⃣ *सरसों के दाने -*
सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है
अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान -चित्र पर अर्पित करें ।
फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने
बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं तो हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।

*राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र बोले*

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल
मा चल ||

और चाकलेट ना खिलाकर भारतीय
मिठाई या गुड से मुहं मीठा कराएँ।

अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव
वन्दे मातरम

🎄🕉रहस्यमयी हिमालय - 16🕉🎄
दीक्षांत समारोह समाप्त हुआ
महायोगी अभेदानन्द ने बोलना प्रारम्भ किया
“ तंत्र कल्याण का विज्ञान है स्व कल्याण का | तन्त्र के माध्यम से योगी विभिन्न बिजमन्त्रों के द्वारा कुल कुण्डलिनी शक्ति को मूलाधार से उठा कर सहस्त्रार तक ले जाते हैं फिर सहस्त्रार से पुन : मूलाधार पर ले आते हैं | तंत्र में पञ्च मकार सेवन का विधान है | ये पञ्च मकार हैं – मांस , मध् , मीन , मुद्रा और मैथुन |”
वहां उपस्थित सभी साधक बहुत हीं तल्लीनता से योगी बाबा की बातें सुनते हुए किसी दुसरे हीं लोक में खो गये थे ऐसी ओजस्विता थी उनकी वाणी में |
महायोगी ने आगे कहना प्रारम्भ किया |
"सोमधारा क्षरेद या तु ब्रह्मरंध्राद वरानने|
पीत्वानंदमयास्तां य: स एव मद्यसाधक:|| ”
महायोगी ने रुद्रयामल तन्त्र का ये श्लोक सुनाया | फिर इसके बाद इसका अर्थ उन्होंने इस प्रकार बताया |
“जिह्वा मूल या तालू मूल में जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को सम्यकृत करके ब्र्ह्मारंध्र ( सिर के चोटी से ) से झरते हुए आज्ञा (भ्रू मध्य ) चक्र के चन्द्र मंडल से हो कर प्रवाहमान अमृतधारा को पान करने वाला मद्य साधक कहा जाता है |”
जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को तालू में लगाना हीं खेचरी मुद्रा कहलाता है ( साधक बिना किसी योग्य गुरु के इस अभ्यास को न करें क्योंकि अमृत के साथ विष का भी स्त्राव उसी स्थान से होता है इसमें गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए )
यह वास्तविक मद्यपान कहलाता है |”
एक साधक ने पूछा
“ आज कल के साधक जो बाहरी मदिरा पान करते हैं क्या ये उचित है मेरे प्रभु |”
महायोगी ने कहना प्रारम्भ किया
“ बाहरी मदिरा पान का भी एक साधक के दृष्टिकोण से महत्व है | कुण्डलिनी शक्ति के उर्ध्वगमन होने पर भारी मात्रा में उर्जा का बहाव शरीर में होता है जो कभी कभी सच्चे साधकों के लिए असहनीय हो जाता है इसी उर्जा के वेग का प्रभाव कम मह्शूश हो इसलिए मदिरा के माध्यम से मस्तिष्क को शिथिल करने के लिए यदा कदा उच्च किस्म के साधकों को मदिरापान करना पड़ता है | स्मरण रहे भोग के लिए मदिरापान करना पाप है | औषध रूप में इसका प्रयोग किया जाता है |
सभी तन्त्र साधकों को ये स्मरण रखना चाहिए देखा देखी बिना सोचे समझे तन्त्र मार्ग का हावाला दे कर कभी भी मदिरापान न करें हाँ जब साधना के क्रम में आवश्यकता मह्शूश हो तब गुरु आज्ञा से हीं बाहरी मदिरा का पान करें |
किन्तु फिर भी साधक को ये प्रयास करना चाहिए कि बाहरी मदिरापान की आवश्यकता न हीं पड़े |
वास्तविक मदिरापान तो ब्रह्मारन्ध्र से गिरते हुए अमृत को पीना हीं है इस मदिरापान के आनन्द को वर्णन नहीं किया जा सकता |”
योगी बाबा ने समझाया |
आगे योगी बाबा ने कहा
“ आम व्यक्ति एवं सभी जीवों में जो अमृत ब्रह्मरन्ध्र के बिंदु से क्षरित होता है वही मूलाधार में आ कर काम उर्जा का निर्माण करता है जिससे सृष्टि के सृजन का कार्य होता है | किन्तु हमारे पूर्वज योगियों ने ध्यान के द्वारा अपने स्वयं के शरीर में प्रवेश कर इसके मर्म को इसके विज्ञान को समझा और युक्तिपूर्वक एक नए विज्ञान का आविष्कार किया | योगियों के स्व साधना के क्षेत्र में जो भी अविष्कार हुए वे सभी ध्यान की गहरी अवस्था में हुए इसलिए वर्तमान विज्ञान को इसे पकड पाना कठिन है |”
महा योगी के इस ओजमयी ज्ञान का पान वहां उपस्थित सभी साधक तल्लीनता पूर्वक कर रहे थे |
नोट* इस लेख का उदेश्य मदिरापान को बढ़ावा देना कतई नहीं है |
*मदिरापान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
तन्त्र के सम्बन्ध में कोई प्रश्न हो तो टिप्पणी करें |

जारी .......16
साभार...👣🙏🏻🌟🎄

Monday, August 15, 2016

समस्त देशवासीओ को राहुल पंड्या की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये।
मित्रो मन मे प्रश्न उठता है, क्या सही अर्थ मे हम भारतवासी स्वतंत्र है?
सन 1840 मे लोर्ड मोरे ने भारतवासी को लंबे समय तक गुलाम रखने के लिए जो शिक्षा पद्धति लागु करवाई थी वो आज भी चालु है।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत गणतंत्र बना उस समय हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया। और तब से लेकर आज तक उसके विकास के लिए अलग से राजभाषा विभाग कार्यरत है।
विडंबना ये है के राजभाषा विभाग आजतक हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के रूप मे स्थापित नही कर सका। आज के दिन स्वतंत्रता दिवस की जितनी भी शुभकामनाये मिली उसमे से 80% से अधिक अंग्रेजी मे थी।
आज भी तमाम सरकारी कामकाज को हिन्दी मे करने के लिए उस संबंधित विभाग या अधिकारी को प्रोत्साहन के लिए इनाम दिया जाता है।
आज समग्र भारतवर्ष मे यह स्थिति है की स्थानीय भाषा की प्राथमिक पाठ शाला सब धिरे धिरे बंध होने के कगार पर है कारण सब के सब अभिभावक अपने बच्चे को अंग्रेजी मे शिक्षण देने पर उतारू है।
अब कोई मा डोक्टर के पास अपने 5 वर्ष के बच्चे को लेके जाती है तब डोक्टर कहे जीभ दिखाओ तो बच्चा नही समझता और मा कहती है बेटा टंग दिखाओ डोक्टर दखल को।
कारण आज भी हम वही अंग्रेजो वाली मानसीकता मे जी रहे है।
मित्रो आओ सही अर्थ मे स्वतंत्र बने अपनी मातृभाषा और राजभाषा का सम्मान करे ऐसा करने हम सही अर्थ मे अपने देश को स्वतंत्र बनाए।
जय हिन्द ।।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये ।।

Sunday, August 14, 2016

श्रावण मास हिन्दुओं के लिए पवित्र मास है। और इसी महिने मे अनेक त्योहार आते है। और आजकल अधर्मी या विधर्मी कहो हिन्दुओं की सहिष्णुता की परिक्षा लेते है और विडंबना ये है की हर हिन्दू सेक्युलरवाद का चोला पहनकर इस परिक्षा मे हमेशा विफल हो जाता है।
अब रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार आ रहा है और इन तुच्छ लोगो ने सोशीयल मिडिया पर कुछ भद्दे मजाक शुरू कर दिये है और हिन्दू बीना सोचे समझे इस मे खुद जाता है, धड़ल्ले से उस मजाक भरे मेसेज को भेजता रहता है। सोचता नही इसमे वो खुद का ही मजाक उठा रहा है।
पढो ये मेसेज .....

शमॅ करो!!!!! ...आजकल कुछ हिंदू भाई ऐसी पोस्ट डाल रहे है...

सभी शादी शुदा भाइयों के अच्छे दिन आने वाले हैं..

बीवियां मायके जाने वाली है..

राखी आने वाली है..

और....!
मोहल्ले की पुरानी सेटिंग आने वाली है..

उन सबसे एक सवाल..??

तुम्हारी बहन भी आएगी वो भी किसी सेटिंग होगी फिर..??

बीबी भी जायेगी अपने मायके वो भी वहाँ किसी की सेटिंग होगी..??

और....!
मम्मी भी मामा के घर जायेगी
वो भी सेटिंग होगी क्या..??

अरे मूर्खो कब अक्ल आएगी तुम्हे..??

अपने ही धर्म और अपने ही त्यौहार का मजाक उड़ाते हुए तुम्हे तनिक भी शर्म नहीं आती है..??

अगर आप किसी का सम्मान नहीं कर सकते है,,

तो....!

अपमान करने का भी आपको कोई हक नहीं है,, 🚩धर्म और धार्मिक परम्पराओ का सम्मान करे🚩 🚩अपने हिन्दूत्व और हिन्दु होने पर गरव करो।🚩

मेरी बात सही हो तो इस मेसेज को वोट्स एप फेसबुक और अन्य सोशीयल मिडिया पर भरपुर शेयर करे।
आज के अखबारो मे पढा भाजपा युवा मोर्चा दमण ने सरकारी महाविद्यालय दमण मे अंग दान (ऑर्गन डोनेशन) को लेकर एक सेमिनार किया। यह प्रशंसनीय कार्य है।
आशा करता हूँ की दमण मे कुछ समय पहले रक्त दान के लिए राजी होनेवालो ने रक्तदान नही सिर्फ रक्तदान के लिए राजी हूँ ऐसा पंजीकरण करवाने के कार्यक्रम ने एक रेकॉर्ड बनाया था, उसकी तरहा कोई संस्था ऊधमपुर के संकल्प के साथ पंजीकरण कराने वालो के लिए भी एक कार्यक्रम रखे और उसका भी रेकॉर्ड बने।
नही जानता कल के सेमिनार मे वक्ताओ ने क्या कहा, पर अफसोस एक बात का जरूर है के हम अपने आप से कुछ नही सोचते या अमल मे लाते। अंगदान के लिए माननीय प्रधानमंत्री महोदय ने अपने भाषण मे कहा और सब चल पडे। यही बात मैने दमण मे रक्तदान पंजीकरण के लिए रेकॉर्ड बनाने के लिए लोगो से आह्वान किया जा रहा था उस समय ईसी दमण वोईस गृप के माध्यम से लिखा था कि दमण मे अंगदान जागृत के लिए भी काम होना चाहिए। तब मेरी बात को डो. बीजल कापडीया और डो. मयुर मोडासीया ने प्रतिउत्तर मे बताया था यह बडा नेक कार्य होगा इसमे हमसे हर मुमकिन सहाय हम प्रदान करेगे।
ऐसा क्यों?  हमेशा ऐसा क्यों ?
उचित जवाब की अपेक्षा है।

Saturday, August 13, 2016

बहन याद आ गईR ??

इसे जरूर पढेR  !!

गरमीओ के मौसम मे आग निगलती दोपहर को एक ठंडा बेचनेवाले की दुकान पर भीड लगी थी। गरमीR से राहत पाने सब अपने मनपसंद ठंडे पेय का लुत्फ उठा रहे थे।एक फटे कपडे और बिखरे बालोवाली लडकी अपने अपने मनपसंद पेय का मजा ले रहे लोगो की और देखती रहीR।
उसमे से एक व्यक्ति का ध्यान उस लडकी की तरफ गया। लडकी दुर थी इस लिए उस व्यक्ति ने उसे पास बुलाया, पर वो लडकी पास आने मे संकोच का अनुभव कर रही थीR।
शायद उसके गंदे और फटे कपडे वहां खडे सज्जनो के पास जाते हुए रोक रहे थे, फिर भी थोडी हिम्मत करके वो पास गई। उस व्यक्ति ने पुछा,
" तुझे लस्सी पीनी है ?
" लडकी ने 'हां' कहा, साथ ही मुह मे पानी आ गयाR।   लडकी के लिए ड्रायफ्रुट स्पेशीयल लस्सी का ऑर्डर दिया गया।
लस्सी का गीलास लडकी के हाथ मे आया, वो फटी आंखो से गीलास मे लस्सी के उपर काजुबादाम को देखती रही। उसने उस व्यक्ति की तरफ आभार व्यक्त करते हुए कहा,
" शेठ, जीन्दगी मे कभी ऐसा पीया नही है, सुगंध भी अच्छी आ रही है।"
इतना बोलते उसने गीलास को मुंह से लगाया, गीलास होठों को स्पर्श करे उससे पहले उसने हटा लियाR।
गीलास दुकानवाले भाई को देते हुए उसने कहा, "भाई, मुझे यह लस्सी पैक कर दोना। कोइ भी थैली मे होगा चलेगा।"
दुकानवाले को लडकी पर थोडा गुस्सा आया वो बोला, यहां खडी पी ले इसे पैक करवाकर तुझे क्या करना है?"
लडकी ने रोतीसी आवाज मे दुकानवाले से कहा, "भाई, आपकी लस्सी कितनी अच्छी है, घरपे मेरा छोटा भाई है उसे ऐसी लस्सी पीने कोR कब मिलेगी?
मेरे भाई के लिए ले जाना है मुझे पैकिंग कर दोना भाई !"
लडकी के इन शब्दो ने वहां खडे सभी पुरूषो की आँख नम कर दी कारण सबको अपनी बहन याद आ गई।
मित्रो, अपने भाग का या अपने नसीब का जो है वो एक बहन अपने भाई के लिए कुर्बान कर देती है, ऐसी प्यार की साक्षात देवी समान बहन का हम कुछ दबा तोR नही रहे?
थोडा ध्यान करना।

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-सभी प्यारी बहनो को रक्षाबंधन पे तोहफा
    राहुल पंड्या, दमण