Tuesday, January 17, 2017

*भाषा की उत्पत्ति के विषय में वैदिक धारणा*
-- श्री पी एन ओक
3)
वेद संस्कृत-भाषा मे होने के कारण वही संस्कृत-भाषा सारी मानवता की प्रथम ईश्वर-प्रदत्त भाषा हुई। वेद उपेक्षित और अज्ञात न पडे रहे--इसलिए वेदों के आनुवंशिक गायकों की एक परंपरा प्रारंभ की गई। संस्कृत शब्द का निहितार्थ है कि यह एक सु-नियोजित भाषा है। इसके सभी पर्यायवाची  (यथा देव भाषा,गीर्वन वाणी, सुर-भारती आलि) भी ईश्वर-प्रदत्त भाषा होवे के संकेतक, द्योतक है। इसकी सर्वाधिक व्याप्त 'देवनागरी' लिपि भी इसी तथ्य की परिचायक है कि यह लिपि ईश्वर/देवताओं के घर की, उन्हीं की लिपि है। एक अन्य प्राचिन लिपि, जिसमें संस्कृत-भाषा कुछ अन्य शिलालेखों मे लिखी मिलती है, ब्राह्मी लिपि है जिसका निहितार्थ यह है कि इसे ब्रह्मा द्वारा सृजित किया गया था। वह धारणा सत्य नहीं है कि देवनागरी लिपि पर्याप्त बाद के काल की सृष्टि ही है। इस धारणा को कुछ आधुनिक-कालीन पुरातत्वशास्त्रियो ने सर्वप्रथम काल के उपलब्ध देवनागरी-शिलालेखो के आधार पर प्रचारित कर दिया था। इस धारणा के विपरीत यह स्मरण रखना चाहिए कि एक पीढी से दुसरी पीढ़ी द्वारा नकल किए गए लगभग सभी संस्कृत-ग्रंथ मात्र देवनागरी में ही है। अतः प्रस्तर-शिलालेखों के आंकड़ो से यह निष्कर्ष निकाला शायद गलत है कि देवनागरी लिपि तुलनात्मक रूप मे आधुनिक काल की सृष्टि है। देवनागरी लिपि तुलनात्मक रूप मे आधुनिक काल की सृष्टि है। देवनागरी लिपि ही उतनी ही प्राचीन समझी, मानी जानी चाहिए जितने प्राचीन स्वयं वेल है, क्योंकि सभी संस्कृत-ग्रंथ सारे भारत के लाखों-लाखो घरों मे , एक पीढ़ी से दुसरी पीढी को, हाथ से नकल करके, देवनागरी लिपि मे ही अधिकतर, चिर- अनादि, अविस्मरणीय काल से दिए जाते रहे है।

इस प्रकार वैदिक परंपरा की मान्यतानुसार  (या कम-से-कम इसका कुछ भाग) ने अपना जीवन क्रम एक दैवी सर्वज्ञ अवस्था से प्रारंभ किया, जबकी प्रचलित पश्चिमी धारणा इसे एक जंगली, पाशविक-स्तर से शुरू हुइ समझती है।

उक्त तथ्य हमारे इस अनुभव से भी मेल खाता है कि जब कभी एक चिकित्सा अथवा प्रौद्योगिकी जैसे किसी संस्थान के रूप में ज्ञान की किसी शाखा को प्रारंभ करना होता है तो उसके शिक्षण-प्रबंध के लिए पूर्णरूपेण प्रशिक्षित विशेषज्ञ कर्मचारी वर्ग प्रदान करना होता है।

अतः यह अनुमान-जन्य आवुई, पश्चिमी विश्वास अ-युक्तियुक्त है कि मनुष्य पहले संस्कृत, असभ्य वनवासी रहा होगा और फिर उसने पक्षीयो से तथा जंगली पशुओं की ध्वनियो का अनुसरण कर एक भाषा का निर्माण, विकास कर लिया होगा । यदि सभी पक्षीयो और पशुओं को ईश्वर द्वारा उनकी सृष्टि, उनके जन्म से ही उनको अपनी-अपनी ध्वनि प्राप्त है और परस्पर संवाद, संपर्क हेतु कोई 'भाषा' दैवी रूप में उपलब्ध है, तो मानवता को भी ईश्वर-प्रदत्त भाषा के रूप में संस्कृत-भाषा प्राप्त हुई थी।
--- सावशेष
*भाषा की उत्पत्ति के विषय में वैदिक धारणा*
--- श्री पी एश ओक
2)
वैदिक ग्रंथ सृष्टि के पूर्व से ही अपना वर्णन करते है। ब्रह्माण्ड पुराण हमें बताता है कि प्रारंभ मे सर्वत्र अंधकार था और स्थिरता, ठहराव था। कोई ध्वनि नहीं थी और किसी प्रकार की गति भी नहीं थी।
अकस्मात् भगवान् विष्णु एक विशाल सर्पराज की कुंडलियों पर लेटे, टिके हुए दुग्ध-धवल, फेन-युक्त महासागर के तैरते गगन पर अवतरित हुए। और उच्च आकाशों के माध्यम से 'ओं' का महा-स्वर गुंजरित होने लगा।

विष्णु की नाभी से निकली कमल-नाड पर ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ। तत्पश्चात प्रजातियों के रूप मे संस्थापक  जनको और मातृकाओ के नाम से ज्ञात संस्थापक माताओं की सृष्टि हुई। मानवता की यह पहली सीढी थी। उन सभी मे दैवी गुण विद्यमान थे।

उनको वेद प्रदान किए गए थे जो पृथ्वी पर मानव-जीवन के अनिवार्य मौलिक प्रारंभिक मार्गदर्शन के लिए विज्ञानों, कलाओं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन, प्रशासन आदि से सम्बंधित समस्त ज्ञान का सार-संग्रह है।
--- सावशेष
*भाषा की उत्पत्ति के विषय वैदिक धारण*
--- श्री पी एन ओक
1)
यदि मुस्लिम और ईसाई लोग अपने-अपने मतों को मौलिक, आदि-कालिन, प्रारंभिक बताने के छद्मरूप को कुछ त्याग ले और अहंकार, स्वार्थ का परित्याग कर दें तो वे मानव-जाती की आदि-उत्पत्ति के बारे मे कोई भी आविष्कृत सिद्धांत, चाहे अपनी और से हो या फिर चार्ल्स डारविन जैसे किसी जीवशास्त्रीयो की उपलब्धियों को ही उन्होंने स्वीकार, शिरोधार्य किया हो, प्रस्तुत करने के लिए धृष्ट, हठी न रह पाएंगे ।

चुकी इस्लाम और ईसाइयत विगत कालखण्ड के मात्र छोटे-छोटे बच्चे ही हैं, इसलिए अच्छा हो कि वे वैदिक संस्कृति द्वारा दिये गए ज्ञान और अनुभव की धरोहर को मान्य कर ले और इसे ग्रहण करें, क्योंकि मानव-प्राणियों की प्रथम पीढी से अस्तित्व मे रहनेवाली संस्कृति यहीं है ।  वे वैदिक संस्कृति  (अर्थात हिन्दू-धर्म) को एक समकालीन प्रतियोगी के रूप मे न देखें, क्योंकि वैदिक  संस्कृति समुचि मानवता का श्रीगणेश करनेवाला मौलिक धर्म है। अतः उन लोगों को चाहिए कि वे वैदिक संस्कृति को अपने पूर्वजों की परंपरा के रूप मे मुक्त-कंठ से स्वीकार व ग्रहण कर लें। बजाय इसके कि इसे एक प्रतिद्वंद्वी मानकर इसकी निन्दा या तिरस्कार करें या फिर इससे मुंह मोड ले, क्योंकि इस्लाम और ईसाई-मत की परंपराएं और शब्दावली अतिसुदृढ रूप मे वैदिक संस्कृति मे जडे जमाए हैं। इसलिए आइए, हम देखें कि मानवता के प्रारंभ  और इसकी भाषा के बारेमें वैदिक परंपरा का कहना क्या है ।
--- सावशेष