tag:blogger.com,1999:blog-71292812773858640072024-03-13T17:35:15.991+05:30RAHUL MAHIPATRAM PANDYARAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.comBlogger927125tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-29442929746996870312021-05-13T17:01:00.004+05:302021-05-13T17:01:47.854+05:30।।#वैशाख_अक्षय_तृतीया।।<p> </p><p><br /></p><p>मां रेणुका के स्तोत्र पाठ के उपरांत भगवान् परशुरामजी के ध्यान में मन लीन हो गया।</p><p>इसी अक्षय तृतीया को ही तो भगवान् परशुराम प्रकट हुए थे।</p><p>जो अक्षय रूप में आज भी विद्यमान हैं।</p><p>उनकी पूजा स्थली महेंद्र पर्वत का ध्यान आते ही विराट तेज पुंज विलसित हो गया।</p><p>दंडवत प्रणाम के उपरांत मैने प्रश्न किया भगवन्! वैशाख मास का महत्व बताएं।</p><p>तो भगवान् ने पुरातन इतिहास बताया कि वेद के वैशाख मास को #माधव मास कहते हैं। यह साक्षात् माधवस्वरूप है।</p><p>इसमें जप,स्नान होमादि का अनन्त फल है---</p><p><br /></p><p>#सर्व्वेषामेव मासानां वैशाखः प्रवरः स्मृतः । तत्र स्नानं जपो होमः श्राद्धं दानादि यत् कृतम् । तत् सर्व्वं भूपतिश्रेष्ठ सत्यमक्षयमुच्यते ॥ एकतः सर्व्वतीर्थानि सर्व्वे यज्ञाः सदक्षिणाः । भूप वैशाखमासाद्य कोट्यंशेनापि नो समाः ॥ मेरुतुल्यानि हेमानि सर्व्वदानानि चैकतः ।</p><p><br /></p><p>असंख्य पाप भी माधव पूजा से दूर हो जाते हैं---</p><p><br /></p><p> एकतः सर्व्वदा भूप माधवो माधवप्रियः ॥ असंख्यानि च पापानि वहुजन्मार्ज्जितानि च । निमेषार्द्धेन राजेन्द्र विलयं यान्ति माधवे ॥</p><p><br /></p><p>यह मास में पितृप्रसन्नता के लिए भी विशेष फलदायी है,क्योंकि पितृस्वरूपी जनार्दन भी मैं ही हूँ---</p><p> वैशाखमागतं दृष्ट्वा पितॄणामुत्सवो भवेत् । पुत्त्रो नियममाचर्य्य अस्मभ्यमुद्धरिष्यति ॥</p><p><br /></p><p>वैशाख मास को आता देखकर पाप कांपने लगते हैं कि अब हमारा सफाया हो जाएगा-</p><p><br /></p><p>आगतं माधवं दृष्ट्वा कम्पन्ते पापसञ्चयाः । अस्माकं नाशकालोऽयं भूपते ध्रुवमागतः ॥ वैशाखं परमं मासं माधवस्येति ह प्रियम् । नियमेन समाचर्य्य न भूयो जायते नरः ॥ मनसा संस्मरेद्यस्तु नियमं माधवोद्भवम् । पूयते पातकैः सर्व्वैः शक्रेण सह मोदते ॥ वचसा यो वदेद्भूप वैशाखं माधवप्रियम् । अहं समाचरिष्यामि स गच्छेद्ब्रह्मणः पुरम् ॥ यः समाचरते भूप नियमेन तु माधवम् । स विष्णो रूपमासाद्य विष्णुना सह मोदते ॥ नियनेन समाचर्य्य एकाहमपि भूपते । पितरस्तारितास्तेन यास्यन्ति परमां गतिम् ॥ तस्मिन् स्नात्वा विशुद्धात्मा दम्भमात्सर्य्यवर्ज्जितः । ईप्सितान् लभते कामान् श्रीविष्णोर्दयितो भवेत् ॥ ब्रह्मघ्नो वा कृतघ्नो वा मित्रघ्नस्त्रीविघातकः । नियमेन नयेन्मासं स मुक्तः सर्व्वपातकात्</p><p><br /></p><p>सांख्य और योग क्या करेगा यदि मुक्ति चाहिए तो वैशाख मास में माधव का पूजन करें--</p><p><br /></p><p>#किं करिष्यति सांख्येन योगेन नरनायक । मुक्तिमिच्छसि चेद्राजन् माधवं माधवेऽर्च्चय ॥</p><p><br /></p><p>संन्यासी, विधवा,वानप्रस्थी को तो वैशाख मास में कोई न कोई शुभ नियम अवश्य लेना चाहिए अन्यथा नरकवास हो सकता है--</p><p><br /></p><p>#यतिश्च विधवा चैव विशेषेण वनाश्रमी । वैशाखे नरकं याति ह्यकृत्वा नियमं नरः ॥</p><p><br /></p><p>इस मास में अणुमात्र दान भी करोडों गुना बढ़ जाता है--</p><p><br /></p><p>#अणुमात्रन्तु यत्किञ्चिद्यो ददाति च माधवे । काले वा यदि वाकाले कोटिकोटिगुणं भवेत् ॥</p><p><br /></p><p>इस मास में विष्णु पूजा करने वाले को कोई भय नहीं रहता है--</p><p>#न पीडयन्ति ग्रहराक्षसा गणा यक्षाः पिशाचोरगभूतदानवाः । यो माधवे मासि नरेन्द्रवर्य्य ध्रुवं मुरारेर्व्रतमाचरन्ति ह ॥ “</p><p><br /></p><p>वैशाख शुक्ल तृतीया को सतयुग का आरम्भ हुआ था इसलिए यह तिथि युगादि है--</p><p><br /></p><p>#वैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां कृतं युगम् ।</p><p><br /></p><p>अतः इस तिथि में विष्णु याग,स्नान आदि </p><p>यवादि दान , शंकर पूजा,गंगादि स्नान, विष्णु जी को गंधादि से लेपित अवश्य करें--</p><p>#तस्यां कार्य्यो यवैर्होमो यवैर्विष्णुं समर्च्चयेत् । यवान् दद्यात् द्बिजातिभ्यः प्रयतः प्राशयेद्यवान् ॥ पूजयेच्छङ्करं गङ्गां कैलासञ्च हिमालयम् । भगीरथञ्च नृपतिं सागराणां सुखावहम् ॥ “ * ॥ स्कान्दे । “ वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयाक्षयसंज्ञिता । तत्र मां लेपयेद्गन्धैर्लेपनैरतिशोभनैः ॥</p><p>या शुक्ला नरशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः तृतीया साक्षया ख्याता गीर्व्वाणैरपि वन्दिता ॥ योऽस्यां ददाति करकान् वारिवाजसमन्वितान् । स याति पुरुषो वीर लोकान् वै हेममालिनः ॥</p><p><br /></p><p>दुष्ट क्षत्रियों के संहारक और दशरथ जनकादि सद् क्षत्रियों के पालक भगवान् परशुराम जी को कोटि कोटि प्रणाम।</p><p><br /></p><p>कृष्ण चंद्र शास्त्री</p><p>१३.५.२१</p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-81314834088825066312021-05-13T16:36:00.003+05:302021-05-13T16:36:25.857+05:30*अक्षय तृतीय का महत्व*<p> </p><p>*“न क्षयति इति अक्षय” *</p><p>अर्थात जिसका कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं और वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। </p><p>इसी दिन भगवान परशुरामका जन्म होनेके कारण इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा-स्नान करने एवं भगवान श्री कृष्ण को चंदन लगाने से है।मान्यता है कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान करने, श्री सूक्त के पाठ के साथ हवन करने का भी विधान है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा करने से माँ अवश्य ही कृपा करती है जातक को अक्षय पुण्य के साथ उसका जीवन धन-धान्य से भर जाता है।</p><p>जानिए क्या है </p><p>अक्षय तृतीया का महत्व, </p><p>अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है,</p><p> *अक्षय तृतीया के दिन क्या करें,*</p><p> जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान/ पवित्र नदियों में स्नान करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यदिघर पर ही स्नान करना पड़े तो सूर्य उदय से पूर्व उठ कर एक बाल्टी में जल भर कर उस में गंगा जल मिला कर स्नान करना चाहिए । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण / श्री विष्णु जी की पूजा , होम-हवन, जप, दान करने के बाद पितृतर्पण भी अवश्य ही करना चाहिए। इस दिन जल में तिल, अक्षत, गंगा जल, शहद, तुलसी डाल कर देवताओं और पितरो का तर्पण करने से पितृ अति प्रसन्न होतेहै, उनका आशीर्वाद मिलता है। तिल अर्पण करते समय भाव रखना चाहिए कि ‘हम यह ईश्वर द्वारा सद्बुद्धि देने, कृपा के कारण ही कर पा रहे है। अर्थात तर्पण के समय साधक के मन में किसी भी तरह अहंकार नहीं आना चाहिए।अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु को सत्तूका भोग लगाया जाता हैऔर प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है। इस दिन प्रत्येक मनुष्य सत्तू अवश्य खाना चाहिए।आज के दिन भगवान विष्णु को मिश्री और भीगी हुई चने की दाल का भोग लगया जाता है ।इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था।श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था।वृंदावन के श्री बांकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढंके रहते हैं।</p><p>शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीय के दिन ही भगवान कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ था और सुदामा का भाग्य बदल गया था।ब्रह्मा जी के पुत्र श्री अक्षय कुमार का आज ही के दिन अवतरण हुआ था ।आज ही के दिन कुबेर देव को अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई थी वह देवताओं के कोषाध्यक्ष बने थे ।इस दिन गंगा-स्नान /नदी सरोवर में स्नान करने तथा भगवान श्री कृष्ण को चंदन लगाने का विशेष महत्व है।अक्षय तृतीया के दिन ही गणेश जी ने भगवान व्यास के साथ इसी दिन से महाभारत लिखना शुरू किया था।इस दिन महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान किये जाते है। इस दिनश्री सूक्त , लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करने से माँलक्ष्मी यथाशीघ्र प्रसन्न होती है, जातक धन-धान्य से परिपूर्ण हो ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।शास्त्रों के अनुसार आज अक्षय तृतीय के दिन ही महाभारतका युद्ध समाप्त हुआ था ।शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहाहै कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।इस दिन भगवान बद्रीनाथ को अक्षय (साबुत ) चावल चढ़ाने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।इस दिन अपने सामर्थ के अनुसार अपने माता पिता ,बड़े बुजुर्ग और अपने गुरु को उपहार देकर उनका आशीर्वाद अवश्य ही लेना चाहिए ,उनके साथ कुछ समय भी बिताना चाहिए । इस दिन मिला हुआ आशीर्वाद वरदान साबित होता है , और जीवन में सच्चे ह्रदय से मिले आशीर्वाद का कोईभी मोल नहीं है ।</p><p>*अक्षय तृतीया पर यह ना करें*</p><p>भविष्य पुराण में बताया गया है कि अक्षय तृतीया के दिन व्यक्ति जो भी काम करता है उसका परिणाम इस जन्म में ही नहीं बल्कि कई-कई जन्मों तक प्राप्त होता है।इसलिए अक्षय तृतीया के दिनकुछ भी करने से पहले यह सोच लेंकि आप जो कर रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा।अक्षय तृतीया के दिन लालच के कारण किसी को आर्थिक नुकसानपहुंचाते हैं,क्रोध या हिंसा करते है किसी का तिरस्कार करतेहै या काम वासना से पीड़ित होकर कोई गलत काम करते है तो इसका कष्टकारी परिणाम भी आपको कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है।</p><p>श्रीविष्णु भगवान की पूजा और दान का विशेष महत्व है। 🙏🙏</p><p>सौजन्य</p><p>श्री रसीक दवे, जुनागढ़ गुजरात</p><p>🙏🙇♂🙏💐💐</p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-42596937102630381602021-05-12T21:30:00.001+05:302021-05-12T21:30:43.373+05:30स्त्रीओ के सोलह श्रृंगार<p> #स्त्रियों के #सोलह_श्रृंगार और उनका #महत्व।</p><p><br /></p><p>दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥</p><p>कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥</p><p><br /></p><p>श्री राम चरित मानस के अनुसार माता अनसूया ने माता जानकी को ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए, जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं और फिर माता अनसूया ने अपने मधुर और कोमल वाणी से स्त्रियों के गुण धर्म का बखान किया।। </p><p><br /></p><p>हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। हर स्त्री चाहती थी की वे सज धज कर सुन्दर लगे यह उनके रूप को ओर भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है।</p><p><br /></p><p>यहां इन सोलह श्रृंगार के बार मे विस्तृत वर्णन किया गया है।</p><p><br /></p><p>पहला श्रृंगार:👉 बिंदी</p><p>संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>बिंदी को त्रिनेत्र का प्रतीक माना गया है. दो नेत्रों को सूर्य व चंद्रमा माना गया है, जो वर्तमान व भूतकाल देखते हैं तथा बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के रूप में भविष्य में आनेवाले संकेतों की ओर इशारा करती है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>विज्ञान के अनुसार, बिंदी लगाने से महिला का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है. यह महिला को आध्यात्मिक बने रहने में तथा आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने में सहायक होता है. बिंदी आज्ञा चक्र को संतुलित कर दुल्हन को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होती है।</p><p><br /></p><p>दूसरा श्रृंगार: सिंदूर</p><p>उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है और विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, सौभाग्यवती महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर भरती है. लाल सिंदूर महिला के सहस्रचक्र को सक्रिय रखता है. यह महिला के मस्तिष्क को एकाग्र कर उसे सही सूझबूझ देता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है. सिंदूर महिला के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उसे ठंडक देता है और शांत रखता है।</p><p><br /></p><p>तीसरा श्रृंगार: काजल</p><p>काजल आँखों का श्रृंगार है. इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन और उसके परिवार को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र का कुप्रभाव नहीं पड़ता. काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव होता है. काजल से भरी आंखें स्त्री के हृदय के प्यार व कोमलता को दर्शाती हैं।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, काजल आंखों को ठंडक देता है. आंखों में काजल लगाने से नुक़सानदायक सूर्य की किरणों व धूल-मिट्टी से आंखों का बचाव होता है।</p><p><br /></p><p>चौथा श्रृंगार: मेंहदी</p><p>मेहंदी के बिना सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के वक्त दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने पैरों और हाथों में मेहंदी रचाती है। ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मानयताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है. मेहंदी का रंग जितना लाल और गहरा होता है, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही गहरा होता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मेहंदी दुल्हन को तनाव से दूर रहने में सहायता करती है. मेहंदी की ठंडक और ख़ुशबू दुल्हन को ख़ुश व ऊर्जावान बनाए रखती है।</p><p><br /></p><p>पांचवां श्रृंगारः शादी का जोड़ा</p><p>उत्तर भारत में आम तौर से शादी के वक्त दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा (घाघरा, चोली और ओढ़नी) पहनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में फेरों के वक्त दुल्हन को पीले और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है। इसी तरह महाराष्ट्र में हरा रंग शुभ माना जाता है और वहां शादी के वक्त दुल्हन हरे रंग की साड़ी मराठी शैली में बांधती हैं।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लाल रंग शुभ, मंगल व सौभाग्य का प्रतीक है, इसीलिए शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर, कुमकुम, शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>विज्ञान के अनुसार, लाल रंग शक्तिशाली व प्रभावशाली है, इसके उपयोग से एकाग्रता बनी रहती है. लाल रंग आपकी भावनाओं को नियंत्रित कर आपको स्थिरता देता है।</p><p><br /></p><p>छठा श्रृंगार: गजरा</p><p><br /></p><p>दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार फीका सा लगता है।दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां प्रतिदिन अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताज़गी देता है. शादी के समय दुल्हन के मन में कई तरह के विचार आते हैं, गजरा उन्हीं विचारों से उसे दूर रखता है और ताज़गी देता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>विज्ञान के अनुसार, चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. चमेली की ख़ुशबू तनाव को दूर करने में सबसे ज़्यादा सहायक होती है।</p><p><br /></p><p>सातवां श्रृंगार: मांग टीका</p><p>मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, मांगटीका महिला के यश व सौभाग्य का प्रतीक है. मांगटीका यह दर्शाता है कि महिला को अपने से जुड़े लोगों का हमेशा आदर करना है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मांगटीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।</p><p><br /></p><p>आठवां श्रृंगारः नथ</p><p>विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि सुहागिन स्त्री के नथ पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है। उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है। नथ आकार में काफी बड़ी होती है इसे हमेशा पहने रहना असुविधाजनक होता है, इसलिए सुहागन स्त्रियां इसे शादी-व्याह और तीज-त्यौहार जैसे खास अवसरों पर ही पहनती हैं, लेकिन सुहागिन स्त्रियों के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। इसलिए आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जो देखने में लौंग की आकार का होता है। इसलिए इसे लौंग भी कहा जाता है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>हिंदू धर्म में जिस महिला का पति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, उसकी नथ को उतार दिया जाता है। इसके अलावा हिंदू धर्म के अनुसार नथ को माता पार्वती को सम्मान देने के लिये भी पहना जाता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>जिस प्रकार शरीर के अलग-अलग हिस्सों को दबाने से एक्यूप्रेशर का लाभ मिलता है, ठीक उसी प्रकार नाक छिदवाने से एक्यूपंक्चर का लाभ मिलता है। इसके प्रभाव से श्वास संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। कफ, सर्दी-जुकाम आदि रोगों में भी इससे लाभ मिलते हैं। आयुर्वेद के अनुसार नाक के एक प्रमुख हिस्से पर छेद करने से स्त्रियों को मासिक धर्म से जुड़ी कई परेशानियों में राहत मिल सकती है। आमतौर पर लड़कियां सोने या चांदी से बनी नथ पहनती हैं। ये धातुएं लगातार हमारे शरीर के संपर्क में रहती हैं तो इनके गुण हमें प्राप्त होते हैं। आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म और रजत भस्म बहुत सी बीमारियों में दवा का काम करती है।</p><p><br /></p><p>नौवां श्रृंगारः कर्णफूल</p><p>कान में पहने जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है। विवाह के बाद स्त्रियों का कानों में कणर्फूल (ईयरिंग्स) पहनना जरूरी समझा जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, कर्णफूल यानी ईयररिंग्स महिला के स्वास्थ्य से सीधा संबंध रखते हैं. ये महिला के चेहरे की ख़ूबसूरती को निखारते हैं. इसके बिना महिला का शृंगार अधूरा रहता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्णपाली (ईयरलोब) पर बहुत से एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर सही दबाव दिया जाए, तो माहवारी के दिनों में होनेवाले दर्द से राहत मिलती है. ईयररिंग्स उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं. साथ ही ये किडनी और मूत्राशय (ब्लैडर) को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।</p><p><br /></p><p>दसवां श्रृंगार: हार या मंगल सूत्र</p><p>गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है। हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसी हार को सौंदर्य का रूप दे दिया गया है और श्रृंगार का अभिन्न अंग बना दिया है। दक्षिण और पश्चिम भारत के कुछ प्रांतों में वर द्वारा वधू के गले में मंगल सूत्र पहनाने की रस्म की वही अहमियत है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है. मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फ़ायदेमंद होगा. मंगलसूत्र के काले मोती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करते हैं।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है और सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है, इसलिए मंगलसूत्र शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकता है।</p><p><br /></p><p>ग्यारहवां श्रृंगारः बाजूबंद</p><p>कड़े के सामान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बाहों में पूरी तरह कसा जाता है। इसलिए इसे बाजूबंद कहा जाता है। पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना</p><p>जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती</p><p>है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद महिलाओं के शरीर में ताक़त बनाए रखने व पूरे शरीर में उसका संचार करने में सहायक होता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद बाजू पर सही मात्रा में दबाव डालकर रक्तसंचार बढ़ाने में सहायता करता है।</p><p><br /></p><p>बारहवां श्रृंगार: कंगन और चूड़ियां</p><p>सोने का कंगन अठारहवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से ही सुहाग का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बड़ी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुख और सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती थी, जो पहली बार ससुराल आने पर उसे उसकी सास ने उसे दिये थे। इस तरह खानदान की पुरानी धरोहर को सास द्वारा बहू को सौंपने की परंपरा का निर्वाह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। पंजाब में स्त्रियां कंगननुमा डिजाइन का एक विशेष पारंपरिक आभूषण पहनती है, जिसे लहसुन की पहुंची कहा जाता है। सोने से बनी इस पहुंची में लहसुन की कलियां और जौ के दानों जैसे आकृतियां बनी होती है। हिंदू धर्म में मगरमच्छ,हांथी, सांप, मोर जैसी जीवों का विशेष स्थान दिया गया है। उत्तर भारत में ज्यादातर स्त्रियां ऐसे पशुओं के मुखाकृति वाले खुले मुंह के कड़े पहनती हैं, जिनके दोनों सिरे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। पारंपरिक रूप से ऐसा माना जात है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। यहां तक की सुहागन स्त्रियां चूड़ियां बदलते समय भी अपनी कलाई में साड़ी का पल्लू कलाई में लपेट लेती हैं ताकि उनकी कलाई एक पल को भी सूनी न रहे। ये चूड़ियां आमतौर पर कांच, लाख और हांथी दांत से बनी होती है। इन चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है।नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है। होली के अवसर पर पीली या बंसती रंग की चूड़ियां पहनी जाती है, तो सावन में तीज के मौके पर हरी और धानी चूड़ियां पहनने का रीवाज सदियों से चला आ रहा है। विभिन्न राज्यों में विवाह के मौके पर अलग-अलग रंगों की चूड़ियां पहनने की प्रथा है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियां पति-पत्नी के भाग्य और संपन्नता की प्रतीक हैं. यह भी मान्यता है कि महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है. चूड़ियों का सीधा संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियों से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि महिलाओं की हड्डियों को मज़बूत करने में सहायक होती है. महिलाओं के रक्त के परिसंचरण में भी चूड़ियां सहायक होती हैं।</p><p><br /></p><p>तेरहवां श्रृंगार: अंगूठी</p><p><br /></p><p>शादी के पहले मंगनी या सगाई के रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, अंगूठी पति-पत्नी के प्रेम की प्रतीक होती है, इसे पहनने से पति-पत्नी के हृदय में एक-दूसरे के लिए सदैव प्रेम बना रहता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली की नसें सीधे हृदय व दिमाग़ से जुड़ी होती हैं, इन पर प्रेशर पड़ने से दिल व दिमाग़ स्वस्थ रहता है।</p><p><br /></p><p>चौदहवां श्रृंगार: कमरबंद</p><p>कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती हैं, इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई पड़ती है। सोने या</p><p>चांदी से बने इस आभूषण के साथ बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने</p><p>घर की स्वामिनी है।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, महिला के लिए कमरबंद बहुत आवश्यक है. चांदी का कमरबंद महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं को माहवारी तथा गर्भावस्था में होनेवाले सभी तरह के दर्द से राहत मिलती है. चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं में मोटापा भी नहीं बढ़ता।</p><p><br /></p><p>पंद्रहवाँ श्रृंगारः बिछुवा</p><p>पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कह जाता है। पारंपरिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण में छोटा सा शीशा लगा होता है, पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों में नववधू सबके सामने पति के सामने देखने में भी सरमाती थी। इसलिए वह नजरें झुकाकर चुपचाप आसपास खड़े पति की सूरत को इसी शीशे में निहारा करती थी पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का विछुआ पहना जाता है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पेर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>महिलाओं के लिए पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनना शुभ व आवश्यक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि बिछिया पहनने से महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में संपन्नता बनी रहती है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी होती हैं, बिछिया पहनने से उन्हें गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है. बिछिया पहनने से महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।</p><p><br /></p><p>सोलहवां श्रृंगार: पायल</p><p>पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है। पुराने जमाने में पायल की झंकार से घर के</p><p>बुजुर्ग पुरुष सदस्यों को मालूम हो जाता था कि बहू आ रही है और वे उसके रास्ते से हट जाते थे। पायल के संबंध में एक और रोचक बात यह है कि पहले छोटी उम्र में ही लड़िकियों की शादी होती थी। और कई बार जब नववधू को माता-पिता की याद आती थी तो वह चुपके से अपने मायके भाग जाती थी। इसलिए नववधू के पैरों में ढेर सारी घुंघरुओं वाली पाजेब पहनाई जाती थी ताकि जब वह घर से भागने लगे तो उसकी आहट से मालूम हो जाए कि वह कहां जा रही है पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते</p><p>हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता हैं।</p><p><br /></p><p>धार्मिक मान्यता</p><p>मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है. घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है।</p><p><br /></p><p>वैज्ञानिक मान्यता</p><p>वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी की पायल महिला को जोड़ों व हड्डियों के दर्द से राहत देती है. साथ ही पायल के घुंघरू से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।</p><p><br /></p><p>जय अंबे जय गुरुदेव।🙏🏻</p><p>--- शास्त्री श्री राजेश आचार्य</p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-66158161301332741172021-05-12T13:22:00.002+05:302021-05-12T13:22:43.761+05:30चूडामणि रहस्य :---------<p> </p><p><br /></p><p>सागर मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ –</p><p>१– रत्नाकर नन्दिनी</p><p>२– महालक्ष्मी</p><p>रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया ! जब उनसे मिलने के लिए आगे बढीं तो सागर ने अपनी पुत्री को विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रत्न जटित चूडा मणि प्रदान की ( जो सुर पूजित मणि से बनी) थी।</p><p><br /></p><p>इतने में महालक्षमी का प्रादुर्भाव हो गया और लक्षमी जी ने विष्णु जी को देखा और मनहीमन वरण कर लिया यह देखकर रत्नाकर नन्दिनी मन ही मन अकुलाकर रह गईं सब के मन की बात जानने वाले श्रीहरि रत्नाकर नन्दिनी के पास पहुँचे और धीरे से बोले ,मैं तुम्हारा भाव जानता हूँ, पृथ्वी को भार- निवृत करने के लिए जब – जब मैं अवतार ग्रहण करूँगा , तब-तब तुम मेरी संहारिणी शक्ति के रूपमे धरती पे अवतार लोगी , सम्पूर्ण रूप से तुम्हे कलियुग मे श्री कल्कि रूप में अंगीकार करूँगा अभी सतयुग है तुम त्रेता , द्वापर में, त्रिकूट शिखरपर, वैष्णवी नाम से अपने अर्चकों की मनोकामना की पूर्ति करती हुई तपस्या करो।</p><p><br /></p><p>तपस्या के लिए बिदा होते हुए रत्नाकर नन्दिनी ने अपने केश पास से चूडामणि निकाल कर निशानी के तौर पर श्री विष्णु जी को दे दिया वहीं पर साथ में इन्द्र देव खडे थे , इन्द्र चूडा मणि पाने के लिए लालायित हो गये, विष्णु जी ने वो चूडा मणि इन्द्र देव को दे दिया , इन्द्र देव ने उसे इन्द्राणी के जूडे में स्थापित कर दिया।</p><p><br /></p><p>शम्बरासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने स्वर्ग पर चढाई कर दी इन्द्र और सारे देवता युद्ध में उससे हार के छुप गये कुछ दिन बाद इन्द्र देव अयोध्या राजा दशरथ के पास पहुँचे सहायता पाने के लिए इन्द्र की ओर से राजा दशरथ कैकेई के साथ शम्बरासुर से युद्ध करने के लिए स्वर्ग आये और युद्ध में शम्बरासुर दशरथ के हाथों मारा गया।</p><p>युद्ध जीतने की खुशी में इन्द्र देव तथा इन्द्राणी ने दशरथ तथा कैकेई का भव्य स्वागत किया और उपहार भेंट किये। इन्द्र देव ने दशरथ जी को ” स्वर्ग गंगा मन्दाकिनी के दिव्य हंसों के चार पंख प्रदान किये। इन्द्राणी ने कैकेई को वही दिव्य चूडामणि भेंट की और वरदान दिया जिस नारी के केशपास में ये चूडामणि रहेगी उसका सौभाग्य अक्षत–अक्षय तथा अखन्ड रहेगा , और जिस राज्य में वो नारी रहे गी उस राज्य को कोई भी शत्रु पराजित नही कर पायेगा।</p><p><br /></p><p>उपहार प्राप्त कर राजा दशरथ और कैकेई अयोध्या वापस आ गये। रानी सुमित्रा के अदभुत प्रेम को देख कर कैकेई ने वह चूडामणि सुमित्रा को भेंट कर दिया। इस चूडामणि की समानता विश्वभर के किसी भी आभूषण से नही हो सकती।</p><p>जब श्री राम जी का व्याह माता सीता के साथ सम्पन्न हुआ । सीता जी को व्याह कर श्री राम जी अयोध्या धाम आये सारे रीति- रिवाज सम्पन्न हुए। तीनों माताओं ने मुह दिखाई की प्रथा निभाई।</p><p><br /></p><p>सर्व प्रथम रानी सुमित्रा ने मुँहदिखाई में सीता जी को वही चूडामणि प्रदान कर दी। कैकेई ने सीता जी को मुँह दिखाई में कनक भवन प्रदान किया। अंत में कौशिल्या जी ने सीता जी को मुँह दिखाई में प्रभु श्री राम जी का हाथ सीता जी के हाथ में सौंप दिया। संसार में इससे बडी मुँह दिखाई और क्या होगी। जनक जीने सीता जी का हाथ राम को सौंपा और कौशिल्या जीने राम का हाथ सीता जी को सौंप दिया।</p><p><br /></p><p>राम की महिमा राम ही जाने हम जैसे तुक्ष दीन हीन अग्यानी व्यक्ति कौशिल्या की सीता राम के प्रति ममता का बखान नही कर सकते।</p><p>सीताहरण के पश्चात माता का पता लगाने के लिए जब हनुमान जी लंका पहुँचते हैं हनुमान जी की भेंट अशोक वाटिका में सीता जी से होती है। हनुमान जी ने प्रभु की दी हुई मुद्रिका सीतामाता को देते हैं और कहते हैं –</p><p><br /></p><p>मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा</p><p>जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा</p><p><br /></p><p>चूडामणि उतारि तब दयऊ</p><p>हरष समेत पवन सुत लयऊ</p><p><br /></p><p>सीता जी ने वही चूडा मणि उतार कर हनुमान जी को दे दिया , यह सोंच कर यदि मेरे साथ ये चूडामणि रहेगी तो रावण का बिनाश होना सम्भव नही है। हनुमान जी लंका से वापस आकर वो चूडामणि भगवान श्री राम को दे कर माताजी के वियोग का हाल बताया।</p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-87837593258574266212021-05-12T12:46:00.002+05:302021-05-12T12:46:42.939+05:30अष्ट-दिक्पाल..👑👑👑👑👑👑👑👑<p> अष्ट-दिक्पाल..👑👑👑👑👑👑👑👑</p><p>अष्ट-दिक्पाल..👑👑👑👑👑👑👑👑</p><p><br /></p><p>पुराणानुसार दसों दिशाओं का पालन करनेवाला देवताओं को #दिक्पाल की संज्ञा दी गई है। भगवान ब्रह्मा जी के द्वारा ८ दिशाओं का कार्य-संचालन भिन्न देवताओं व यक्षों को दिया गया तो २ दिशा का दायित्व स्वयं रख लिया गया, इसलिये इन्हें "अष्ट-दिक्पाल" के रूप में संज्ञा दी गई है। यथा-पूर्व के इन्द्र, अग्निकोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्यकोण के नैऋत, पश्चिम के वरूण, वायु कोण के मरूत्, उत्तर के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधो दिशा के अनंत (शेषनाग) दिक्पाल सुनिश्चित किऐ गए।</p><p><br /></p><p>दिक्पाल की संख्या ८ ही मानी गई है, शेष दो दिशा का स्वामित्व ब्रह्मा जी के अधिकार में है। वाराह पुराण के अनुसार इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है। सृष्टि रचना काल प्रथम स्वयंभू मन्वंतर से पूर्व भगवान विष्णु के आदेशानुसार जिस समय भगवान ब्रह्मा सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे उस समय उनके कान से दस कन्याएँ -</p><p><br /></p><p>(1) पूर्वा, (2) आग्नेयी, (3) दक्षिणा, (4) नैऋती, (5) पश्चिमा (6) वायवी, (7) उत्तरा, (8) ऐशानी, (9) ऊद्ध्व और (10) अधस्</p><p><br /></p><p>उत्पन्न हुईं जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं। सभी कन्याओं ने ब्रह्मा का नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की। ब्रह्मा ने कहा तुम सभों को जिस ओर जाने की इच्छा हो जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को अनुरूप पति भी दूँगा। इसके अनुसार उन कन्याओं ने एक एक दिशा की ओर प्रस्थान किया। </p><p><br /></p><p>१. पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।</p><p>२. आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।</p><p>३. दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।</p><p>४. नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।</p><p>५. पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।</p><p>६. वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।</p><p>७. उत्तर: जो उत्तर दिशा कहलाई।</p><p>८. ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।</p><p>९. उर्ध्व: जो उर्ध्व दिशा कहलाई।</p><p>१०. अधस्: जो अधस् दिशा कहलाई।</p><p><br /></p><p>इसके पश्चात् ब्रह्मा ने आठ दिक्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक दिक्पाल को एक एक कन्या प्रदान कर दी। इसके बाद वे सभी दिक्पाल उन कन्याओं में दिशाओं के साथ अपनी दिशाओं में चले गए। इन दिक्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है</p><p><br /></p><p>(1) पूर्व के #इंद्र देव, (2) दक्षिणपूर्व के #अग्नि देव, (3) दक्षिण के #यम, (4) दक्षिण पश्चिम के #सूर्य देव, (5) पश्चिम के #वरुण देव, (6) पश्चिमोत्तर के #वायु देव, (7) उत्तर के #कुबेर और (8) उत्तरपूर्व के #सोम देव। (कुछ पुराणों में इनके नामों में थोड़ी भिन्नता भी पायी जाती है।) शेष दो दिशाओं अर्थात् ऊर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयम् चले गए और नीचे की ओर उन्होंने शेष या अनंत को प्रतिष्ठित किया।</p><p><br /></p><p>दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं।</p><p><br /></p><p>हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिक्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।</p><p><br /></p><p>१० दिशा के १० दिग्पाल : उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।</p><p><br /></p><p>१. उर्ध्व दिशा : उर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है। आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति उर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगें, किसी और से नहीं। उससे मांगने से सब कुछ मिलता है।</p><p><br /></p><p>वास्तु : घर की छत, छज्जे, उजालदान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है। इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या उर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।</p><p><br /></p><p>२. ईशान दिशा : पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। वास्तु अनुसार घर में इस स्थान को ईशान कोण कहते हैं। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं।</p><p><br /></p><p>वास्तु अनुसार : घर, शहर और शरीर का यह हिस्सा सबसे पवित्र होता है इसलिए इसे साफ-स्वच्छ और खाली रखा जाना चाहिए। यहां जल की स्थापना की जाती है जैसे कुआं, बोरिंग, मटका या फिर पीने के पानी का स्थान। इसके अलावा इस स्थान को पूजा का स्थान भी बनाया जा सकता है। इस स्थान पर कूड़ा-करकट रखना, स्टोर, टॉयलेट, किचन वगैरह बनाना, लोहे का कोई भारी सामान रखना वर्जित है। इससे धन-संपत्ति का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है।</p><p><br /></p><p>३. पूर्व दिशा : ईशान के बाद पूर्व दिशा का नंबर आता है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है, पूर्व से नहीं। इस दिशा के देवता इंद्र और स्वामी सूर्य हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है।</p><p><br /></p><p>वास्तु : घर की पूर्व दिशा में कुछ खुला स्थान और ढाल होना चाहिए। शहर और घर का संपूर्ण पूर्वी क्षेत्र साफ और स्वच्छ होना चाहिए। घर में खिड़की, उजालदान या दरवाजा रख सकते हैं। इस दिशा में कोई रुकावट नहीं होना चाहिए। इस स्थान में घर के वरिष्ठजनों का कमरा नहीं होना चाहिए और कोई भारी सामान भी न रखें। यहां सीढ़ियां भी न बनवाएं।</p><p><br /></p><p>४. आग्नेय दिशा : दक्षिण और पूर्व के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा के अधिपति हैं अग्निदेव। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं।</p><p><br /></p><p>वास्तु : घर में यह दिशा रसोई या अग्नि संबंधी (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। आग्नेय कोण का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। आग्नेय कोण में शयन कक्ष या पढ़ाई का स्थान नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का द्वार भी नहीं होना चाहिए। इससे गृहकलह निर्मित होता है और निवासियों का स्वास्थ्य भी खराब रहता है।</p><p><br /></p><p>५. दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा के अधिपति देवता हैं भगवान यमराज। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख, संपन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।</p><p><br /></p><p>वास्तु : वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा में दरवाजा और खिड़की नहीं होना चाहिए। यह स्थान खाली भी नहीं रखा जाना चाहिए। इस दिशा में घर के भारी सामान रखें। शहर के दक्षिण भाग में आपका घर है तो वास्तु के उपाय करें। </p><p><br /></p><p>६. नैऋत्य दिशा : दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य कहा गया है। यह दिशा नैऋत देव के आधिपत्य में है। इस दिशा के स्वामी राहु और केतु हैं।</p><p><br /></p><p>वास्तु : इस दिशा में पृथ्वी तत्व की प्रमुखता है इसलिए इस स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। नैऋत्य दिशा में द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में गड्ढे, बोरिंग, कुएं इत्यादि नहीं होने चाहिए। इस दिशा में क्या होना चाहिए, यह किसी वास्तुशास्त्री से पूछकर तय करें।</p><p><br /></p><p>७. पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा के देवता, वरुण देवता हैं और शनि ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति की प्रतीक है। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार होना चाहिए।</p><p><br /></p><p>वास्तु : पश्चिम दिशा में द्वार है तो वास्तु के उपाय करें। द्वार है तो द्वार को अच्छे से सजाकर रखें। द्वार के आसपास की दीवारों पर किसी भी प्रकार की दरारें न आने दें और इसका रंग गहरा रखें। घर के पश्चिम में बाथरूम, टॉयलेट, बेडरूम नहीं होना चाहिए। यह स्थान न ज्यादा खुला और न ज्यादा बंद रख सकते हैं। </p><p><br /></p><p>८. वायव्य दिशा : उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान है। इस दिशा के देव वायुदेव हैं और इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है।</p><p><br /></p><p>वास्तु : यह दिशा पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों से आपके रिश्तों पर प्रभाव डालती है। वास्तु ज्ञान के अनुसार इनसे अच्छे और सदुपयोगी संबंध बनाए जा सकते हैं। इस दिशा में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं होना चाहिए। इस दिशा के स्थान को हल्का बनाए रखें। खिड़की, दरवाजे, घंटी, जल, पेड़-पौधे से इस दिशा को सुंदर बनाएं।</p><p><br /></p><p>९. उत्तर दिशा : उत्तर दिशा के अधिपति हैं रावण के भाई कुबेर। कुबेर को धन का देवता भी कहा जाता है। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है।</p><p><br /></p><p>वास्तु : उत्तर और ईशान दिशा में घर का मुख्य द्वार हो तो अति उत्तम होता है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धिकारक है। इस दिशा में शौचालय, रसोईघर बनवाने, कूड़ा-करकट डालने और इस दिशा को गंदा रखने से धन-संपत्ति का नाश होकर दुर्भाग्य का निर्माण होता है।</p><p><br /></p><p>१०. अधो दिशा : अधो दिशा के देवता हैं शेषनाग जिन्हें अनंत भी कहते हैं। घर के निर्माण के पूर्व धरती की वास्तु शांति की जाती है। अच्छी ऊर्जा वाली धरती का चयन किया जाना चाहिए। घर का तलघर, गुप्त रास्ते, कुआं, हौद आदि इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं।</p><p><br /></p><p>वास्तु : भूमि के भीतर की मिट्टी पीली हो तो अति उत्तम और भाग्यवर्धक होती है। आपके घर की भूमि साफ-स्वच्छ होना चाहिए। जो भूमि पूर्व दिशा और आग्नेय कोण में ऊंची तथा पश्चिम तथा वायव्य कोण में धंसी हुई हो, ऐसी भूमि पर निवास करने वालों के सभी कष्ट दूर होते रहते हैं।</p><p><br /></p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-2759337484334854822021-05-12T11:43:00.002+05:302021-05-12T11:43:29.783+05:30बिल्व वृक्ष<p> बिल्व वृक्ष-</p><p>1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l</p><p>2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है l</p><p>3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है l</p><p>4. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है l </p><p>5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।</p><p>6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।</p><p>7. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है।</p><p>8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।</p><p>9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।</p><p>10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l</p><p>11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।</p><p>कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं l</p><p><br /></p><p>शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात l </p><p><br /></p><p>शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से मिलता है क्या फल - </p><p>किसी भी देवी-देवता का पूजन करते समय उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। प्रायः भगवान को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है की भगवान शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग चीज़ों का क्या फल होता है। शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है:</p><p>1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।</p><p>2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।</p><p>3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।</p><p>4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।</p><p><br /></p><p>शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है -</p><p>1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।</p><p>2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।</p><p>3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।</p><p>4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।</p><p>5. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।</p><p>6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।</p><p>7. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।</p><p><br /></p><p>शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है -</p><p>1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।</p><p>2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।</p><p>3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।</p><p>4. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।</p><p>5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।</p><p>6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।</p><p>7. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।</p><p>8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।</p><p>9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर</p><p> सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।</p><p>10. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।</p><p>11. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।💐💐</p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-6555114710162992972021-05-12T11:38:00.000+05:302021-05-12T11:38:52.207+05:30शुकदेव जी के जन्म की कहानी<p> शुकदेव जी के जन्म की कथा</p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ मिलती हैं। कहीं इन्हें व्यास की पत्नी वटिका के तप का परिणाम और कहीं व्यास जी की तपस्या के परिणामस्वरूप भगवान शंकर का अद्भुत वरदान बताया गया है। विरजा क्षेत्र के पितरों के पुत्री पीवरी से शुकदेव का विवाह हुआ था।</p><p><br /></p><p>एक कथा ऐसी भी है कि जब जब इस धराधाम पर भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधिका जी का अवतरण हुआ, तब श्रीराधिकाजी का क्रीडाशुक भी इस धराधाम पर आया। उसी समय माता पार्वती ने भगवान शिव से ऐसे गूढ़ ज्ञान देने का अनुरोध किया जो संसार में किसी भी जीव को प्राप्त न हो. वह अमरत्व का रहस्य प्रभु से सुनना चाहती थीं।</p><p><br /></p><p>अमरत्व का रहस्य किसी कुपात्र के हाथ न लग जाए इस चिंता में पड़कर महादेव पार्वती जी को लेकर एक निर्जन प्रदेश में गए।</p><p><br /></p><p>उन्होंने एक गुफा चुनी और उस गुफा का मुख अच्छी तरह से बंद कर दिया. फिर महादेव ने देवी को कथा सुनानी शुरू की. पार्वती जी थोड़ी देर तक तो आनंद लेकर कथा सुनती रहीं।</p><p><br /></p><p>जैसे किसी कथा-कहानी के बीच में हुंकारी भरी जाती है उसी तरह देवी काफी समय तक हुंकारी भरती रहीं लेकिन जल्द ही उन्हें नींद आने लगी।</p><p><br /></p><p>उस गुफा में तोते यानी शुक का एक घोंसला भी था. घोसले में अंडे से एक तोते के बच्चे का जन्म हुआ. वह तोता भी शिव जी की कथा सुन रहा था।</p><p><br /></p><p>महादेव की कथा सुनने से उसमें दिव्य शक्तियां आ गईं. जब तोते ने देखा कि माता सो रही हैं. कहीं महादेव कथा सुनाना न बंद कर दें इसलिए वह पार्वती की जगह हुंकारी भरने लगा।</p><p><br /></p><p>महादेव कथा सुनाते रहे. लेकिन शीघ्र ही महादेव को पता चल गया कि पार्वती के स्थान पर कोई औऱ हुंकारी भर रहा है. वह क्रोधित होकर शुक को मारने के लिए उठे.</p><p>शुक वहां से निकलकर भागा. वह व्यास जी के आश्रम में पहुंचा. व्यास जी की पत्नी ने उसी समय जम्हाई ली और शुक सूक्ष्म रूप धारण कर उनके मुख में प्रवेश कर गया।</p><p><br /></p><p>महादेव ने जब उसे व्यास की शरण में देखा तो मारने का विचार त्याग दिया. शुक व्यास की पत्नी के गर्भस्थ शिशु हो गए. गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो प्राप्त था।</p><p><br /></p><p>शुक ने सांसारिकता देख ली थी इस लिए वह माया के पृथ्वी लोक की प्रभाव में आना नहीं चाहते थे इसलिए ऋषि पत्नी के गर्भ से बारह वर्ष तक नहीं निकले. व्यास जी ने शिशु से बाहर आने को कहा लेकिन वह यह कहकर मना करता रहा कि संसार तो मोह-माया है मुझे उसमें नहीं पड़ना. ऋषि पत्नी गर्भ की पीड़ा से मरणासन्न हो गईं.</p><p>भगवान श्री कृष्ण को इस बात का ज्ञान हुआ. वह स्वयं वहां आए और उन्होंने शुक को आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा.</p><p>श्री कृष्ण से मिले वरदान के बाद ही शुक ने गर्भ से निकल कर जन्म लिया. जन्म लेते ही शुक ने श्री कृष्ण और अपने पिता-माता को प्रणाम किया और तपस्या के लिये जंगल चले गए।</p><p><br /></p><p>व्यास जी उनके पीछे-पीछे ‘पुत्र !, पुत्र कह कर पुकारते रहे, किन्तु शुक ने उस पर कोई ध्यान न दिया. व्यास जी चाहते थे कि शुक श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्राप्त करें. किन्तु शुक तो कभी पिता की ओर आते ही न थे. व्यास जी ने एक युक्ति की. उन्होंने श्री कृष्ण लीला का एक श्लोक बनाया और उसका आधा भाग शिष्यों को रटा कर उधर भेज दिया जिधर शुक ध्यान लगाते थे.</p><p>एक दिन शुकदेव जी ने भी वह श्लोक सुना. वह श्री कृष्ण लीला के आकर्षण में खींचे सीधे अपने पिता के आश्रम तक चले आए.</p><p>पिता व्यास जी से ने उन्हें श्रीमद्भागवत के अठारह हज़ार श्लोकों का विधि वत ज्ञान दिया. शुकदेव ने इसी भागवत का ज्ञान राजा परीक्षित को दिया, जिस के दिव्य प्रभाव से परीक्षित ने मृत्यु के भय को जीत लिया।</p><p><br /></p><p>शुकदेव मुनि का परिवार एवं जीवनी</p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>मुनिश्रेष्ठ शुकदेव जी महर्षि वेदव्यास जी के पुत्र थे। आपने प्रारंभिक अध्ययन अपने पिताश्री वेदव्यासजी से ही उनके आश्रम में किया। कालांतर में वेदाध्ययन के लए देवगुरु बृहस्पति जी के पास उनको भेजा गया, जहां उन्होंने वेदशास्त्र, इतिहास आदि का अध्ययन पूर्ण किया।</p><p>विद्याध्ययन के पश्चात आप पिताश्री के आश्रम में आकर रहने लगे। सांसारिक बंधन एवं जीवों के जन्म-मरण से आपका मन व्यथित रहने लगा। आप सांसारिक बातों से उदासीन रहने लगे। अपनी अप्रतिम प्रतिभा के कारण प्रारंभ से ही आप देवताओं एवं ऋषियों एवं मानव मात्र के श्रद्धापत्र हो गये। अपका गृहस्थाश्रम के प्रति विमोह देखकर व्यासजी चिंतित होने लगे, तथा विवाह बंधन में आबद्ध करने हेतु व्यास जी इन्हें समझाने एवं प्रेरित करने लगे। इस प्रसंग में पिता पुत्र के मध्य विचार विमर्श भी होता। व्यास जी जहां गृहस्थाश्रम से श्रेष्ठ कोई दूसरा धर्म नहीं मानते वहीं शुकदेव जी गृहस्थाश्रम के कष्ट गिनाते। व्यास जी शुकदेव को समझाते ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी, संन्यासी तथा गृहस्थी सभी गृहस्थाश्रम से ही पैदा होते हैं। वेद और स्मृतियों के विधानानुसार भी गृहस्थाश्रम ही श्रेष्ठ है तथा तीनों अन्य आश्रम वालों का पोषणकर्ता भी गृहस्थाश्रम है, यहां तक कि देवता भी अपना पोषण गृहस्थाश्रम से ही पाते हैं। व्यास जी उन्हें समझाते कि मनुष्य के चार ऋण होते हैं। पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण और मनुष्य ऋण। इन ऋणों की मुक्ति गृहस्थाश्रम से ही संभव है। जहां वह माता-पिता की सेवा व भरण-पोषण कर पितृ ऋण से, यज्ञादि सम्पन्न कराकर देव ऋण से, वेदों का अध्ययन और तपस्या कर ऋषि ऋण से तथा दान, दया, सहायता आदि द्वारा मनुष्य ऋण से उऋण हो सकता है।</p><p><br /></p><p>विभिन्न उदाहरण देकर व्यास जी जब शुकदेव जी को गृहस्थाश्रम के लिए तैयार नहीं कर सके तो उन्होंने शुकदेव जी को अपने यजमान मिथिलापुरी नरेश राजा जनक के पास धर्म और मोक्ष का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने हेतु भेजा। राजा जनक गृहस्थ होते हुए भी प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग के पूर्ण और मुमुक्षु थे। सही नहीं वे शास्त्र मर्यादानुसार- रहकर गृहस्थी ही नहीं अपितु सुचारू रूप से राज्य संचालन भी करते थे। वे अपने को राजा नहीं बल्कि प्रजा का प्रतिनिधि मानते थे। उनमें न राजमद था न ही राज के प्रति लिप्सा। वे देह में रहकर भी विदेह कहलाते थे।</p><p><br /></p><p>राजा जनक ने शुकदेव जी की अनेकानेक विधियों से परीक्षा ली और अन्त में राजा ने उनकी गृहस्थाश्रम की शंकओं का समाधान किया तथा यह भी बताया कि सभी आश्रमों में गृहस्थाश्रम ही सबसे बड़ा आश्रम है। राजा के उपदेशों से शुकदेव मुनि की शंकओं का सामधान हो गया और वे अपने पिता के आश्रम में आ गये।</p><p>शुकदेव जी का विवाह वहिंषद जी, जो स्वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया थे, की पुत्री पीवरी से हुआ। विवाह के समय शुकदेव जी 25 वर्ष के थे। गृहस्थाश्रम में रहकर भी शुकदेव जी योग मार्ग का अनुसरण करने लगे। उन्होंने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई जिसके श्रवण फल से सर्पदंश-मृत्यूपरांत भी परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई।</p><p><br /></p><p>पीवरी से शुकदेव जी के 12 महान तपस्वी पुत्र हुए जिनके नाम भूरिश्रवा, प्रभु, शम्भु, कृष्ण और गौर, श्वेत कृष्ण, अरुण और श्याम, नील, धूम वादरि एवं उपमन्यु थे। जिनके गुरुकृत नाम क्रमश: भारद्वाज, पराशर(द्वितीय), कश्यप, कौशिक, गर्ग, गौतम, मुदगल, शाण्डिल्य, कौत्स, भार्गव, वत्स एवं धौम्य हुए और कीर्तिमती नामक एक योगिनी पतिधर्म पालन करने वाली कन्या। कीर्तिमती का विवाह भारद्वाज वंशज काम्पिल्य नगर के राजा अणुह से हुआ। महान योगी ब्रह्मदत्त जी को कीर्तिमती ने जन्म दिया। हरिवंश पुरण में शुकदेव जी का वंश विस्तार बताया गया है। शुकदेव जी के संतान होने के सम्बंध में भ्रांति है।</p><p><br /></p><p>शुकदेव जी के विवाह एवं उनकी संतान के सम्बंध में देवी भागवत का वृत्तांत</p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>"पितरों की एक सौभाग्यशाली कन्या थी। इस सुकन्या का नाम पीवरी था। योग पथ के पथिक होते हुए भी शुकदेव जी ने उसे अपनी पत्नी बनाया। उस कन्या से उन्हें चार पुत्र हुए कृष्णख् गौर प्रभ, भूरि और देवश्रुत। कीर्ति नाम की एक कन्या हुई। परम तेजस्वी शुकदेव जी ने विभ्राज कुमार महामना अणुह के साथ इस कन्या का विवाह कर दिया। अणुह के पुत्र ही ब्रह्मदत्त हुए। शुकदेव जी के दोहित्र ब्रह्मदत्त बड़े प्रतापी राजा हुए। साथ ही ब्रह्म ज्ञानी भी थे। नारद जी ने उन्हें ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया था।</p><p><br /></p><p>हरिवंश पुरण में शुकदेव जी की संतान के सम्बंध में जो वर्णन किया गया है उसके अनुसार-</p><p><br /></p><p>स तस्यां पितृकन्यायां पीवयां जनयिष्यति। </p><p>कन्यां पुत्रांश्च चतुरो योगाचार्यान महाबलान।।52।। </p><p><br /></p><p>कृष्णं गौरं प्रभुं शम्भुं कृत्वीं कन्यां तथैव च। </p><p>ब्रह्मदत्तस्य जननीं महिर्षी त्वणुहस्य च।।53।।</p><p><br /></p><p>अर्थ: - वे ही शुकदेव पितरों की कन्या पीवरी में कृष्ण, गौर, प्रभु और शम्भु इन चार महाबली योगाचार्य पुत्रों तथा ब्रह्मदत्त की जननी और अणुह की पत्नी कृत्वी नामवाली कन्य को उत्पन्न करेंगे।"</p><p>पुराणें में यह आख्यान भी आता है - वृहस्पति जी ने ब्रह्मा जी के पास जा शुकदेव जी का किसी योग्य कन्या से विवाह करने की प्रार्थना की। उन्होंने वर्हिषद की कन्या पीवरी को, इनके योग्य मान इसके साथ विवाह करने की आज्ञा दी। वर्हिषद "स्वर्ण" में वभ्राज नाम के सुंदर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया थे, जिनकी पूजा सभी देवगण, राक्षस, यक्ष, गन्धर्व, नाग, सुपर्ण और सर्प भी करते हैं।" वर्हिषद को ऋषि पुलस्त्य के आशीर्वाद से एक पुत्री प्राप्त हुई थी। जिसका नाम पीवरी रखा गया। इस कन्या ने ब्रह्माजी की तपस्या की थी और ब्रह्माजी से उसने वेदों के ज्ञाता, ज्ञानी, योगी और अपने योग्य वर पाने का वरदान पाया था। ब्रह्माजी की आज्ञा से इसी पीवरी नामक कन्या के साथ शुकदेवजी ने ब्राह्म विधि से विवाह किया। इस पीवरी को योग-माता और धृतवृता (पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली) शब्दों से भी पुकारा जाता है। विवाह के समय शुकदेव जी की आयु 25 वर्ष की थी। शुकदेव जी गृहस्थ आश्रम में रहकर तपस्या और योग मार्ग का अनुसरण करने लगे।</p><p>राजा परीक्षित को अपने श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई व उसका उद्धार किया। वेदों के प्रचार के साथ-साथ शुकदेव जी युगद्रष्टा भी थे। वे गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए पत्नी, पुत्रों के भी सम्यक रूप से पालक थे। </p><p><br /></p><p>कूर्म पुराण के अनुसार शुकदेव जी </p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>शुकस्याsस्याभवन् पुत्रा: पञ्चात्यन्ततपस्विन:। </p><p>भूरिश्रवा: प्रभु: शम्भु: कृष्णो गौरश्च पण्चम:। </p><p><br /></p><p>कन्या कीर्तिमतती चैव योगमाता धृतवृता।।(कूर्म पुराण)</p><p>शुकदेव जी के महान तपस्वी पांच पुत्र थे। जिनके नाम भरिश्रवा, प्रभु, शम्भु, कृष्ण और गौर थे और एक कन्या जिसका नाम कीर्तिमती था जो योगिनी और पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली थी।</p><p><br /></p><p>सौर पुराण के अनुसार</p><p>~~~~~~~~~~~~~~</p><p>भूरिश्रवा: प्रभु: शम्भु: कृष्णो गौरश्च पण्चम:। </p><p>कन्या कीर्तिमती नाम वंशायैते प्रकीर्तिता:।। (सौर पुराण)</p><p><br /></p><p>भूरिश्रवा, प्रभु, शम्भु, कृष्ण और गौर नाम के पांच पुत्र थे। तथा कीर्तिमती नामक एक कन्या थी। ये सब ही अपने वंश की कीर्ति बढ़ाने वाले थे।</p><p>कन्या कीर्तिमती भारद्वाज वंश काम्पिल्य नगर के नृप अणुह जी को ब्याही गई थी। महान योगी और सब जीवों को बोली समझने वाले ब्रह्मदत्त जी का जन्म इसी कीर्तिमती के उदर से हुआ था।</p><p><br /></p><p>ब्रह्माण्ड पुराण अनुसार शुकदेव जी पुत्र-पुत्री </p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>श्लोक-</p><p>काल्यां पराशराज्जज्ञे कृष्णद्वैपायन: प्रभु:। </p><p>द्वैपायनादरण्यां वै शुको जज्ञे गुणान्वित।। </p><p><br /></p><p>भूरिश्रवा प्रभु: शम्भु: कृष्णौ गौरश्च पण्चम:। </p><p>कन्या कीर्तिमती चैव योगमाता धृतव्रता।। </p><p><br /></p><p>जननी ब्रह्मदत्तस्य पत्नी सात्वणुहस्य च। </p><p>श्वेता कृष्णाश्च गौराश्च श्यामा धूम्रास्तथारुणा।। </p><p><br /></p><p>नीलो वादरिकश्चैव सर्वे चैते पराशरा:। </p><p>पाराशराणामष्टौ ते पक्षा: प्रोक्ता महात्मनाम्।। </p><p> </p><p>ब्रह्माण्डपुराण पाद 3 अध्याय 9 अनुसार</p><p>पाराशर मुनि से काली (सत्यवती) में कृष्ण- द्वैपायन उत्पन्न हुए। कृष्णद्वैपायन से आरणी में सर्वगुण सम्पन्न शुकदेव उत्पन्न हुए। शुकदेव से पीवरी से भूरिश्रवा, प्रभु, शम्भु, कृष्ण, गौर और कीर्तिमती कन्या जो अणुह ऋषि को ब्याही थी; जिसके ब्रह्मदत्त उत्पन्न हुआ (जो योग शास्त्र का प्रधान आचार्य था) और श्वेत, कृष्ण, गौरश्याम, धूम्र, अरुण, नील बादरि ये पुत्र और उत्पन्न हुए। </p><p><br /></p><p>लिंग पुराण में अनुसार 12 पुत्र एवं एक कन्या होने का प्रमाण </p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>श्लोक-</p><p>द्वैपायनोह्यरण्यां वै शुकमुत्पादयत्सुतम्। </p><p>उपमन्यू च पीवर्यां विद्धी मे शुक सूनव:।। </p><p>भूरिश्रवा: प्रभु: शम्भु: कृष्णो गौरस्तु पञ्चम:। </p><p>कन्या कीर्तिमती चैव योगमाता धृतव्रता।। </p><p>श्वेत: कृष्णश्च गौरश्च श्यामो धूम्रस्तथारुण:। </p><p>नीलो वादरिकश्चैव सर्वे चैते पाराशरा:।।</p><p> </p><p>अर्थ लिंग महापुराणे अध्याय 65</p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>व्यास द्वैपायन से अरणी में शुक उत्पन्न हुए। शुक से पीवरी से 1. उपमन्यू 2. भूरिश्रवा, 3. प्रभु, 4. शम्भु 5. कृष्ण 6. गौर 7. कीर्तिमती कन्या और श्वेतकृष्ण, 8. गौरश्याम, 9. धूम्र, 10. अरुण, 11. नील, 12. बादरि ये पुत्र उत्पन्न हुए। इसी प्रकार अन्य पुराणों में भी लिखा है। </p><p><br /></p><p>श्लोक-</p><p>ये तानुत्पाद्य धर्मात्मा ये योगाचार्यान्महाब्रतान्। </p><p>श्रुत्वा स्वजनकाद्धर्मान् व्यासादमितबुद्धिमान।।</p><p><br /></p><p>महायोगी ततो गन्ता पुनर्नावर्तिनीं गतिम्। </p><p>यत्तत्पदमनुद्विग्नमव्ययं ब्रह्म शास्वतम्।। ।। </p><p> </p><p>हरिवंशोपपुराणे पर्व 1 अध्याय 18</p><p>इस प्रकार महायोगी शुकदेव जी पूर्वोक्त 12 पुत्र और एक पुत्री को उत्पन्न करके अपने पिता वेदव्यास से मोक्ष धर्मों को सुनकर उस वैकुण्ठ लोक में जाएंगे, जिसमें जाकर कभी नहीं लौटते और जिसमें जाकर नित्य सुख के भागी होकर मुक्त हो जाते हैं।</p><p><br /></p><p>ऊपर लिखे हुए प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि शुकदेव जी के 12 पुत्र और 1 कन्या कीर्तिमती उत्पन्न हुई। कन्या का तो विभ्राज के पुत्र अणुह के साथ विवाह कर दिया और 12 पुत्रों को विद्या पढ़ाने के लिए 12 ऋषियों के पास भेज दिया। जिन ऋषियों के पास विद्या पढ़ने के लिए शुकदेव जी ने अपने 12 पुत्रों को भेजा था, </p><p><br /></p><p>पारीक्ष संहिता(पृ. 24) के अनुसार शुकदेव जी के पुत्रों के नाम</p><p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</p><p>शुकस्याप्यभवान्पुत्रा द्वादशैव महातपा:। </p><p>पीवर्यां पितृकन्यायां द्वादशादित्यसन्निभा:।। </p><p><br /></p><p>भूरिश्रवा प्रभु: शंभु: कृष्णो गौरश्च पंचम: ब्रह्माण्ड। श्वेत: कृष्णश्च गौरश्च श्यामो धूम्रस्तथैवच।। </p><p><br /></p><p>वादरिश्चोपन्युश्च सर्वे चैते पाराशरा:। </p><p>कन्या कीर्तिमती चैव योगमाता धृतव्रता।। </p><p><br /></p><p>शुकदेव जी के पितृ - कन्यापीवरी नाम की स्त्री से द्वादश पुत्र उत्पन्न हुए। (1) भूरिश्रवा (2) प्रभु (3) शंभु (4) कृष्ण (5) गौर (6) श्वेत (7) कृष्ण (8) गौर (9) श्याम (10) धूम्र (11) बादरि (12) उपमन्यु। ये सब पराशर के वंश में है।</p><p><br /></p><p>जननी ब्रह्मदत्तस्य पत्नी सा त्वणुहस्य च। </p><p>नामान्तरणि चैतेषां कृतानि गुरुभिस्तदा।। </p><p><br /></p><p>भारदाजस्तु प्रथमो द्वितीयस्तु पराशर:। </p><p>तृतीय: कश्यपो नाम्ना कौशिकस्तु चतुर्थक:।। </p><p><br /></p><p>गर्गश्च पंचमो ज्ञेय उपमन्युस्तु षष्ठक:। </p><p>सप्तमों वत्स नामावै शाण्डिल्यश्चाष्टम: स्मृत:।। </p><p><br /></p><p>भार्गवों नवमो नाम मुद्गलो दशम: स्मुत:। </p><p>एकादशों गौतमश्च द्वादश: कौत्सनामक:।। </p><p><br /></p><p>अध्यापयञ्छिष्यगणान् व्यास: पौत्रांश्च वीर्यवान्। </p><p>उवास हिमवस्पृष्ठे पारार्श्यो महामुनि:।। </p><p><br /></p><p>कीर्तिमती नाम की कन्या योग विद्या की ज्ञाता और पतिव्रता धर्म को धारण करने वाली थी। इसका विवाह अणुह नाम के ऋषि के साथ हुआ था। जिसके ब्रह्मदत्त नाम का योगविद्या का ज्ञाता पुत्र हुआ। पितृकन्या पीवरी से शुकदेव क पूर्वोक्त द्वादश पुत्र हुए। इनके गुरुओं ने इनके जो दूसरे नाम रखे वे इस प्रकार हैं-</p><p><br /></p><p>(1) भरद्वाज (2) पराशर (3) कश्यप (4) कौशिक (5) गर्ग (6) उपमन्यू (7) वत्स (8) शाण्डिल्य (9) भार्गव (10) मुद्गल (11) गौतम (12) और कौत्स।</p><p>शुकदेव जी ने गुहस्थाश्रम में रहकर चारों ऋणों से मुक्ति प्राप्त की तथा पिताजी की आज्ञा से सुमेरू पर्वत पर गये जहां जप, ध्यान करते हुए मोक्ष को प्राप्त हुए। </p><p>इस प्रकार उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि शुकदेव जी के 12 पुत्र एवं कन्या हुई।</p><p>#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||</p><p><br /></p>RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-18361386898929378752018-06-23T12:58:00.001+05:302018-06-23T12:59:05.077+05:30जल संचयन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ॐ<br />
23/6/2018<br />
<br />
नमस्कार<br />
कल मध्यरात्री से जो बरसात हो रही है उससे आज कह सकते है के बरसात का मौसम शुरु हो गया।<br />
आजतक अनेकबार लिख चुका हूँ के पानी की किल्लतसे बचना हो भले ही वो पीने के लिए या सामान्य उपयोग के लिए हो।<br />
तो अपने घरमे आसपास, फ्लेट में रहते हो तो अपार्टमेंट, साथ ही महोल्ले या सोसायटी में आप व्यक्तिगत या सब मिलकर बरसात का अधिकांश पानी बचा सको ऐसी व्यवस्था नही करी है तो कृपा करके करवा लीजिए।<br />
यह आपके हित के लिए है, इसका एक उदाहरण अमदावाद की कुछ सोसायटी है जहा आज से दो या तीन वर्ष पहले सोसायटी/अपार्टमेंट के सभी परिवार मिलकर सोसायटी के हर एक अपार्टमेंट मे एक सामूहिक वोटर हारवेस्टींग (जल संचयन) सिस्टम बनमाली। जिससे अब मौसम की कुल बरसात का सर्वाधिक पानी भूगर्भ में संचयित (इकट्ठा) होता है जिससे भूगर्भ जलस्तर उपर आ गया और आज यह स्थिति है के पूरे अमदावाद मे जब पानी की क़िल्लत होती है तब ये सोसायटी वाले बीना किसी तकलीफ के पूरे सालभर आलम से बीना तकलीफ के पानी का उपयोग करते है।<br />
एकबार थोडा तकलीफ होगी लेकिन फिर हमेशा के लिए आराम हो जायेगा। यह पद्धति मे कोई बडी मेन्टेनन्स भी नही आती।<br />
आशा है जिसने नही करवा है जल्दी से करवा ले। व्यक्तिगत करने मे भी कोई इतना खर्च नहीं आता है, यह करने से हम अपने लिए तो सुविधा करते है साथ ही भूगर्भ जलस्तर बढने से हम प्रकृति का संवर्धन तो करते ही है।<br />
<br />
आओ कहे-<br />
*जल ही कृष्ण*<br />
<br />
--रा. म. पं</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-22949364199764487712018-06-20T11:12:00.001+05:302018-06-20T11:12:52.650+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ॐ<br />
20/6/2018<br />
<br />
नमस्कार,<br />
आपने देखा होगा की कपडे के फैशन में जब कभी कोई नई फैशन आती है तो वो हकिकत में नई नहीं होता लेकिन आज से 20-25 वर्ष पहले जो फैशन आउट डेटेड हो जाती है उसे फिर अपग्रेड करके कुछ थोडा बदलाव के साथ पुनः लाया जाता है। फैशन को नया करनेवाले वही होते है जिनके जन्म से पहले वो फैशन आउट डेटेड हुआ।<br />
अब आते है असली मुद्दे पर कुछ वर्ष पहले तक जब बूफेट खाना चलन मे नही था तब तक सभी प्रकार के सामाजिक समुह भोज पत्तल से बनी थाली मे खाया जाता था। उस समय भी स्टील की थुलियम होती थी पर पत्तल से बनी थाली मे ही भोजन लिया जाता। इसका मुख्य कारण हमारे पूर्वज ये जानते थे के ये पत्तल एक बाय वेस्ट है और इसे एक गड्ढा करके उसमे गाड देने से ये पत्तल कुछ दिन मे डी-कम्पोझ हो जायेगा और पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा।<br />
अब तमिलनाडु के एक पर्यावरण प्रेमी ने फिर से नया चलन शुरु किया, उसने काले के पेड़ की छाल को सुखाकर पतला बनाकर फिर मशीनमे प्रेस कर उसे कटोरी और थाली का आकार देकर बाज़ार में रखा लोगो ने इसके फायदे को समझा यह एक अच्छा गृहउद्योग है अनेक लोगो को रोजी देता है इसके खाने के वैज्ञानिक फायदे है सबसे बडी बात ये पर्यावरण को थोडा भी नुकसान नहीं करता। यह देख अब मुंबई जैसे बडे शेहरो मे भी इसका चलन बढा है। या यू कहो फैशन हो गई है, इन्हे उपयोग करनेका।<br />
कहने का तात्पर्य है हम भी इसे अपनाकर अपना सामाजिक दायित्व निभाये।<br />
आज से 20 वर्ष पहले तक विदित होगा के धर्मपुरी, कपराडा, खानवेल जैसे आदिवासी क्षेत्रों से लोग कपडे मे लपेट कर एक बडा बंडल बनाकर *पलाश* के पत्ते बेचने आते थे। या उन्होने हाथ से बनाई पलाश के पत्तों की कोरिया और थाली बेचने आते थे और हमारे घर मे हमारी माता-बहने उसे खरीदी थी।<br />
यह एक अच्छा गृह उद्योग था जो बुफेट ने और तथाकथित आधुनिकता ने नष्ट कर दिया।<br />
मुंबई में ज्यादातर नमस्ते के ठेलेवाले अब इन्ही पत्तो से बनी कटोरी मे चटनी या जो प्रवाही खाना हो वो, और छोटी पत्तल की प्लेट मे सुखा नास्ता।<br />
पहले पेपर डिश होती थी अब ये पत्तल की डिश।<br />
क्यों न दमण मे भी सब नास्ता वाले ऐसी पत्तल की डिश में नास्ता देना शुरु करें !!???<br />
<br />
-रा. म. पं<br />
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<a href="https://1.bp.blogspot.com/-4kpP57BEZow/WynpSJmGtwI/AAAAAAAAAy0/KDSqMVMZ2boE781zXKhhkXjy2UOsHTx5gCLcBGAs/s1600/FB_IMG_1529470305631.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="384" data-original-width="384" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-4kpP57BEZow/WynpSJmGtwI/AAAAAAAAAy0/KDSqMVMZ2boE781zXKhhkXjy2UOsHTx5gCLcBGAs/s320/FB_IMG_1529470305631.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-moRbaC1gLt4/WynpSJzu-sI/AAAAAAAAAy4/AVkvz8d4oyEaS4AvH-nngrowuWhuoJgzwCLcBGAs/s1600/FB_IMG_1529470310430.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="422" data-original-width="348" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-moRbaC1gLt4/WynpSJzu-sI/AAAAAAAAAy4/AVkvz8d4oyEaS4AvH-nngrowuWhuoJgzwCLcBGAs/s320/FB_IMG_1529470310430.jpg" width="263" /></a></div>
</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-41875234024099128282018-06-18T20:44:00.001+05:302018-06-18T20:44:55.446+05:30पर्यावरण 18/6/18<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ॐ<br />
18/6/2018<br />
<br />
नमस्कार,<br />
कुछ दिनों पहले गर्मी की छुट्टी खत्म हुई, और सभी माननीय शिक्षकगण ने जो कुछ छुट्टियाँ मिली उसका आनंद लिया होगा, *जो कुछ छुट्टियाँ मिली..*लिखने के पीछे हेतु यह कहने का था आजकल शिक्षकों को भी नोन टीचिंग स्टाफ की तरह ट्वीट किया जाता है।<br />
अपनी बात पर आते हैं,<br />
गुजरात के एक कब्जे में एक शिक्षक दंपति श्री भरत मकवाणा और श्रीमती जागृति मकवाणा ने<br />
अपनी छुट्टियाँ जंगल मे धधकती गर्मी मे वनस्पतीयों के बीज इकट्ठा करने में बताया।<br />
आओ जानते है उन्होने क्या कहा-<br />
इन छुट्टियों मे हम पति-पत्नी ने 11 लाख बीज इकट्ठा किये है, इह कार्य मे हमारे साथ कुछ मजदूर भी थे।<br />
मेरा नियम है हर वर्ष एक महीने की वेतन (30000 ₹) पर्यावरण के लिए खर्च करता हूँ। इस वर्ष मेरी पत्नी ने 21000 ₹ दिये जिससे कुल राशि 30000+21000=51000 ₹ हुए।<br />
इस राशि से 11 लाख बीज (खरखोडी, अगथीयो, गुलमोहोर, घरमे, गंदी, चिनौठी, सर्वो (सहजन), बडी इमली, मैलो, टिकोमा, करंज, पीपल, कंकोडा इत्यादि) के बीज इकट्ठा किये और साथ ही इनके पौधे तैयार कर<br />
सब को मुफ्त बाटे जायेंगे। જ્યાંરે जब डोडी के बीज और पौध बनाने हेतु एक मामुली राशि ली जायेगी उस राशि को डोडी और गुग्गुल के संवर्धन मे ही उपयोग किया जायेगा।<br />
-Bharat Makwana (9429281448)<br />
<br />
क्या आप जानते हैं कि सूखे की वजह से पिछले कुछ सालो में पर्यावरण की रक्षा के प्रतीक जैसे बडे पेड़ों को खत्म किया गया?<br />
<br />
जिसमें पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया<br />
<br />
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% आब्जरबर है, बरगद़ 80% और नीम 75 %।<br />
<br />
अब तथाकथित कुछ सेकुलरवादी लोगो ने सेकुलरवाद चक्कर में इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है<br />
<br />
आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली।<br />
<br />
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही।<br />
<br />
हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त भारत होगा।<br />
<br />
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए<br />
<br />
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।<br />
<br />
जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे तब मंत्रियों और सांसदों के आवास के अंदर से सभी नीम और पीपल के पेड़ कटवा दिए थे<br />
<br />
कम्युनिस्ट कितने मानसिक रूप से पिछड़े हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की तब लोक सभाध्यक्ष पीपल और नीम के पेड़ कटवाने का कारण बताये थे कि इन पेड़ों पर भूत निवास करते हैं।<br />
<br />
मिडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बना, क्यूँकि यह पेड़ हिन्दू धार्मिक आस्था के प्रतीक थे।<br />
<br />
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-<br />
<br />
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,<br />
सखा शंकरमेवच।<br />
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,<br />
वृक्षराज नमस्तुते।<br />
<br />
इन जीवनदायी पेड़ो को ज्यादा से ज्यादा लगाये तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया जाय।<br />
<br />
जिसके पास इतनी जग़ह न हो वह तुलसी जी का पौधा लगाये। हरसिंगार का वृक्ष लगाये। नियम बना लीजिये कि जहाँ कहीं भी वृक्ष लगाने की जगह मिले जन्मदिन पर एक वृक्ष जरूर लगायें।<br />
<br />
आइये हम सब मिलकर अपने "हिंदुस्तान" को प्राकृतिक आपदाओं से बचाये।<br />
<br />
-- रा. म. पं</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-90003643038585696192017-01-17T20:55:00.001+05:302017-01-17T20:55:17.109+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*भाषा की उत्पत्ति के विषय में वैदिक धारणा*<br />
-- श्री पी एन ओक<br />
3)<br />
वेद संस्कृत-भाषा मे होने के कारण वही संस्कृत-भाषा सारी मानवता की प्रथम ईश्वर-प्रदत्त भाषा हुई। वेद उपेक्षित और अज्ञात न पडे रहे--इसलिए वेदों के आनुवंशिक गायकों की एक परंपरा प्रारंभ की गई। संस्कृत शब्द का निहितार्थ है कि यह एक सु-नियोजित भाषा है। इसके सभी पर्यायवाची (यथा देव भाषा,गीर्वन वाणी, सुर-भारती आलि) भी ईश्वर-प्रदत्त भाषा होवे के संकेतक, द्योतक है। इसकी सर्वाधिक व्याप्त 'देवनागरी' लिपि भी इसी तथ्य की परिचायक है कि यह लिपि ईश्वर/देवताओं के घर की, उन्हीं की लिपि है। एक अन्य प्राचिन लिपि, जिसमें संस्कृत-भाषा कुछ अन्य शिलालेखों मे लिखी मिलती है, ब्राह्मी लिपि है जिसका निहितार्थ यह है कि इसे ब्रह्मा द्वारा सृजित किया गया था। वह धारणा सत्य नहीं है कि देवनागरी लिपि पर्याप्त बाद के काल की सृष्टि ही है। इस धारणा को कुछ आधुनिक-कालीन पुरातत्वशास्त्रियो ने सर्वप्रथम काल के उपलब्ध देवनागरी-शिलालेखो के आधार पर प्रचारित कर दिया था। इस धारणा के विपरीत यह स्मरण रखना चाहिए कि एक पीढी से दुसरी पीढ़ी द्वारा नकल किए गए लगभग सभी संस्कृत-ग्रंथ मात्र देवनागरी में ही है। अतः प्रस्तर-शिलालेखों के आंकड़ो से यह निष्कर्ष निकाला शायद गलत है कि देवनागरी लिपि तुलनात्मक रूप मे आधुनिक काल की सृष्टि है। देवनागरी लिपि तुलनात्मक रूप मे आधुनिक काल की सृष्टि है। देवनागरी लिपि ही उतनी ही प्राचीन समझी, मानी जानी चाहिए जितने प्राचीन स्वयं वेल है, क्योंकि सभी संस्कृत-ग्रंथ सारे भारत के लाखों-लाखो घरों मे , एक पीढ़ी से दुसरी पीढी को, हाथ से नकल करके, देवनागरी लिपि मे ही अधिकतर, चिर- अनादि, अविस्मरणीय काल से दिए जाते रहे है।<br />
<br />
इस प्रकार वैदिक परंपरा की मान्यतानुसार (या कम-से-कम इसका कुछ भाग) ने अपना जीवन क्रम एक दैवी सर्वज्ञ अवस्था से प्रारंभ किया, जबकी प्रचलित पश्चिमी धारणा इसे एक जंगली, पाशविक-स्तर से शुरू हुइ समझती है।<br />
<br />
उक्त तथ्य हमारे इस अनुभव से भी मेल खाता है कि जब कभी एक चिकित्सा अथवा प्रौद्योगिकी जैसे किसी संस्थान के रूप में ज्ञान की किसी शाखा को प्रारंभ करना होता है तो उसके शिक्षण-प्रबंध के लिए पूर्णरूपेण प्रशिक्षित विशेषज्ञ कर्मचारी वर्ग प्रदान करना होता है।<br />
<br />
अतः यह अनुमान-जन्य आवुई, पश्चिमी विश्वास अ-युक्तियुक्त है कि मनुष्य पहले संस्कृत, असभ्य वनवासी रहा होगा और फिर उसने पक्षीयो से तथा जंगली पशुओं की ध्वनियो का अनुसरण कर एक भाषा का निर्माण, विकास कर लिया होगा । यदि सभी पक्षीयो और पशुओं को ईश्वर द्वारा उनकी सृष्टि, उनके जन्म से ही उनको अपनी-अपनी ध्वनि प्राप्त है और परस्पर संवाद, संपर्क हेतु कोई 'भाषा' दैवी रूप में उपलब्ध है, तो मानवता को भी ईश्वर-प्रदत्त भाषा के रूप में संस्कृत-भाषा प्राप्त हुई थी।<br />
--- सावशेष</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-38674745401349412782017-01-17T20:54:00.004+05:302017-01-17T20:54:50.784+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*भाषा की उत्पत्ति के विषय में वैदिक धारणा*<br />
--- श्री पी एश ओक<br />
2)<br />
वैदिक ग्रंथ सृष्टि के पूर्व से ही अपना वर्णन करते है। ब्रह्माण्ड पुराण हमें बताता है कि प्रारंभ मे सर्वत्र अंधकार था और स्थिरता, ठहराव था। कोई ध्वनि नहीं थी और किसी प्रकार की गति भी नहीं थी।<br />
अकस्मात् भगवान् विष्णु एक विशाल सर्पराज की कुंडलियों पर लेटे, टिके हुए दुग्ध-धवल, फेन-युक्त महासागर के तैरते गगन पर अवतरित हुए। और उच्च आकाशों के माध्यम से 'ओं' का महा-स्वर गुंजरित होने लगा।<br />
<br />
विष्णु की नाभी से निकली कमल-नाड पर ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ। तत्पश्चात प्रजातियों के रूप मे संस्थापक जनको और मातृकाओ के नाम से ज्ञात संस्थापक माताओं की सृष्टि हुई। मानवता की यह पहली सीढी थी। उन सभी मे दैवी गुण विद्यमान थे।<br />
<br />
उनको वेद प्रदान किए गए थे जो पृथ्वी पर मानव-जीवन के अनिवार्य मौलिक प्रारंभिक मार्गदर्शन के लिए विज्ञानों, कलाओं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन, प्रशासन आदि से सम्बंधित समस्त ज्ञान का सार-संग्रह है।<br />
--- सावशेष</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-79990598106935848102017-01-17T20:54:00.002+05:302017-01-17T20:54:24.531+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*भाषा की उत्पत्ति के विषय वैदिक धारण*<br />
--- श्री पी एन ओक<br />
1)<br />
यदि मुस्लिम और ईसाई लोग अपने-अपने मतों को मौलिक, आदि-कालिन, प्रारंभिक बताने के छद्मरूप को कुछ त्याग ले और अहंकार, स्वार्थ का परित्याग कर दें तो वे मानव-जाती की आदि-उत्पत्ति के बारे मे कोई भी आविष्कृत सिद्धांत, चाहे अपनी और से हो या फिर चार्ल्स डारविन जैसे किसी जीवशास्त्रीयो की उपलब्धियों को ही उन्होंने स्वीकार, शिरोधार्य किया हो, प्रस्तुत करने के लिए धृष्ट, हठी न रह पाएंगे ।<br />
<br />
चुकी इस्लाम और ईसाइयत विगत कालखण्ड के मात्र छोटे-छोटे बच्चे ही हैं, इसलिए अच्छा हो कि वे वैदिक संस्कृति द्वारा दिये गए ज्ञान और अनुभव की धरोहर को मान्य कर ले और इसे ग्रहण करें, क्योंकि मानव-प्राणियों की प्रथम पीढी से अस्तित्व मे रहनेवाली संस्कृति यहीं है । वे वैदिक संस्कृति (अर्थात हिन्दू-धर्म) को एक समकालीन प्रतियोगी के रूप मे न देखें, क्योंकि वैदिक संस्कृति समुचि मानवता का श्रीगणेश करनेवाला मौलिक धर्म है। अतः उन लोगों को चाहिए कि वे वैदिक संस्कृति को अपने पूर्वजों की परंपरा के रूप मे मुक्त-कंठ से स्वीकार व ग्रहण कर लें। बजाय इसके कि इसे एक प्रतिद्वंद्वी मानकर इसकी निन्दा या तिरस्कार करें या फिर इससे मुंह मोड ले, क्योंकि इस्लाम और ईसाई-मत की परंपराएं और शब्दावली अतिसुदृढ रूप मे वैदिक संस्कृति मे जडे जमाए हैं। इसलिए आइए, हम देखें कि मानवता के प्रारंभ और इसकी भाषा के बारेमें वैदिक परंपरा का कहना क्या है ।<br />
--- सावशेष</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-70002299521363889312016-09-22T15:25:00.002+05:302016-09-22T15:25:34.749+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रातो 11-11:30 का समय है, बीजली चमकती है भारी बारिश है,<br />
आपका 20-22-25 वर्ष का पुत्र दोस्तो के साथ night out करने, गाडी लेकर गया है, अभी तक आया नही है ...<br />
<br />
आपके पुत्र का फोन आता है, घर से लगभग 10 कीमी की दुरी पर हाईवे पर, सभी दोस्तो को उनके घर उतार देने के बाद... अचानक गाडी बंध हो गई है.... वो अकेला है.... <br />
अब आप रात को चैन से सो पायेंगे? ....<br />
<br />
अब आप कल्पना करे.... ऐसे परिवार की.... जिनका आपके बेटे की उम्र का बेटा जो गत 5-6 महिने से घर नही आ पाया है। कारण उसे नोकरी मे से छुट्टी नही मिल पाती है।<br />
<br />
वो नौकरी करता है इस लिए आपका पुत्र नाईट आउट करने बाहर जा सकता है।<br />
<br />
वो 15-17 किलो का बोझ उठाकर दिन रात देखे बीना..... कश्मीर मे पत्थर खाता है.... इसी लिए आप पिकनिक कर पाते है.....<br />
<br />
वो बेटा माईनस शून्य तापमान मे कारगिल मे पेट्रोलिंग करता है तो आप रात मे घरमे बैठकर टाईम पास करने वोट्स एन पर दुनिया भर की तेरी मेरी कर सकते हो....<br />
<br />
आपके बेटे का फोन आया गाडी बीगड गई है... तो आपकी एक दो घंटे की नींद बीगड गई ....<br />
<br />
कल्पना करे उस परिवार की जे सोता नही है.... महिनो से जब से उनका बेटा फौज की नौकरी मे लगा है....<br />
<br />
कल्पना करो उस दृश्य की.....<br />
जब 5 साल का बेटा 30 वर्ष के पिता की चिता को आग देता है....<br />
<br />
एक 55 वर्ष के पिता अपने 30 वर्ष के बेटे की अर्थी को कंधा देते है.....<br />
<br />
क्या... हमारी संवेदनशीलता मर चुकी है ?<br />
<br />
देश .... राष्ट्र के लिए अभिमान, आजादी ये सभी शब्द मात्र शब्द बनकर रह गये है ?<br />
<br />
पांच वर्ष मे एकबार समय मिले तो वोट देने के अलावा सोशल मिडिया पर कोपी पेस्ट करने के शिवा हमने और क्या किया ?<br />
<br />
भ्रष्टाचार की बाते करने के अलावा हमने 50% भी सही टेक्श भरा ? या फिर इधर उधर की सेटीन्ग की और बचा लिया ?<br />
<br />
ट्राफिक सिग्नल के पास हवलदार खडा हो तो.... ना होने पर हम कभी रूके ?<br />
<br />
ट्रेन मे बीना टिकट पकडे जाने पर पेनल्टी भरी या TC को पटा लिया?<br />
<br />
पराये देशो की स्वच्छता सफाई की भरपुर बाते की...<br />
पर खुद का कचरा कभी उठाया है ?<br />
<br />
वो हक जो राष्ट्र से हमे मिला है उसके प्रति अपने फर्ज अदा कया ?<br />
<br />
अहिंसा के लिए बडा भोग दिया लेकिन हम अहिंसक रह पाये.... ? वो किसके कारण.... थोडा सोचो....<br />
<br />
ईजरायल और अमरीका की बाते की...<br />
वहा प्रत्येक नागरिक को कम से कम दो वर्ष राष्ट्र सेवा हेतु फौज मे देने पडते है... कम्पल्सरी।<br />
हमने यहां अपने आपको सक्षम करने के लिए भी ज्युडो, कराटे शीखने का प्रयत्न किया ?<br />
<br />
सरकार मतलब 66 वर्ष का वृध्द ... जिसने वर्षो से कोई छुट्टी नही ली है, जो आज भी 24×7×14 घंटे अपने से जो सर्वोत्तम हो शके वो राष्ट्र के लिए करता है।<br />
<br />
उसकी 56 की छाती की चर्चा छोडो अपनी छाती को 42 की तो बनाओ !!<br />
<br />
एक सुंदर वाक्य है....<br />
<br />
Dont say..what the nation can do for u...<br />
Think what u can do for your nation...</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-9881617365508225492016-09-21T08:23:00.002+05:302016-09-21T08:23:12.493+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुलसी के पौधे से आसन्न विपत्ति का<br />
भान होता है !!<br />
<br />
क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया<br />
कि आपके घर,परिवार या आप पर कोई<br />
विपत्ति आने वाली होती है तो उसका असर<br />
सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के<br />
पौधे पर होता है।<br />
<br />
आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें,<br />
धीरे-धीरे वह पौधा सूखने लगता है।<br />
<br />
तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले<br />
ही बता देगा कि आप पर या आपके घर<br />
परिवार को किसी मुसीबत का सामना<br />
करना पड़ सकता है।<br />
<br />
पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए<br />
तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर<br />
मुसीबत आने वाली होती है,<br />
उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी<br />
चली जाती है।<br />
<br />
क्योंकि दरिद्रता,अशांति या क्लेश जहां<br />
होता है वहां लक्ष्मी जी का निवास नही<br />
होता है।<br />
<br />
अगर ज्योतिष की माने तो ऐसा बुध के<br />
कारण होता है।<br />
बुध का प्रभाव हरे रंग पर होता है और<br />
बुध को पेड़ पौधों का कारक ग्रह माना<br />
जाता है।<br />
<br />
ज्योतिष में लाल किताब के अनुसार बुध<br />
ऐसा ग्रह है जो अन्य ग्रहों के अच्छे और<br />
बुरे प्रभाव जातक तक पहुंचाता है।<br />
<br />
अगर कोई ग्रह अशुभ फल देगा तो उसका<br />
अशुभ प्रभाव बुध के कारक वस्तुओं पर<br />
भी होता है।<br />
<br />
अगर कोई ग्रह शुभ फल देता है तो उसके<br />
शुभ प्रभाव से तुलसी का पौधा उत्तरोत्तर<br />
बढ़ता रहता है।<br />
बुध के प्रभाव से पौधे में फल फूल लगने<br />
लगते हैं।<br />
<br />
प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह<br />
खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह,रक्त<br />
विकार,वात,पित्त आदि दोष दूर होने<br />
लगते है।<br />
<br />
मां तुलसी के समीप आसन लगा कर यदि<br />
कुछ समय हेतु प्रतिदिन बैठा जाये तो श्वास<br />
के रोग अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा<br />
मिलता है।<br />
<br />
घर में तुलसी के पौधे की उपस्थिति एक<br />
वैद्य समान तो है ही यह वास्तु के दोष भी<br />
दूर करने में सक्षम है हमारें शास्त्र इस के<br />
गुणों से भरे पड़े है।<br />
<br />
जन्म से लेकर मृत्यु तक काम आती है<br />
यह तुलसी....<br />
कभी सोचा है कि मामूली सी दिखने वाली<br />
यह तुलसी हमारे घर या भवन के समस्त<br />
दोष को दूर कर हमारे जीवन को निरोग<br />
एवम सुखमय बनाने में सक्षम है माता के<br />
समान सुख प्रदान करने वाली तुलसी का<br />
वास्तु शास्त्र में विशेष स्थान है।<br />
<br />
हम ऐसे समाज में निवास करते है कि<br />
सस्ती वस्तुएं एवम सुलभ सामग्री को<br />
शान के विपरीत समझने लगे है।<br />
<br />
महंगी चीजों को हम अपनी प्रतिष्ठा<br />
मानते है।<br />
कुछ भी हो तुलसी का स्थान हमारे<br />
शास्त्रों में पूज्यनीय देवी के रूप में है।<br />
<br />
तुलसी को मां शब्द से अलंकृत कर हम<br />
नित्य इसकी पूजा आराधना भी करते है।<br />
<br />
इसके गुणों को आधुनिक रसायन शास्त्र<br />
भी मानता है।<br />
<br />
इसकी हवा तथा स्पर्श एवम इसका भोग<br />
दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य विशेष रूप से<br />
वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम<br />
होता है।<br />
<br />
शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार<br />
के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी,<br />
लक्ष्मी तुलसी,राम तुलसी,भू तुलसी,नील<br />
तुलसी,श्वेत तुलसी,रक्त तुलसी,वन तुलसी,<br />
ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है।<br />
<br />
सबके गुण अलग अलग है शरीर में नाक<br />
कान वायु कफ ज्वर खांसी और दिल की<br />
बिमारियों परविशेष प्रभाव डालती है।<br />
<br />
वास्तु दोष को दूर करने के लिए तुलसी के<br />
पौधे अग्नि कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व से<br />
लेकर वायव्य उत्तर-पश्चिम तक के खाली<br />
स्थान में लगा सकते है यदि खाली जमीन<br />
ना हो तो गमलों में भी तुलसी को स्थान<br />
दे कर सम्मानित किया जा सकता है।<br />
<br />
तुलसी का गमला रसोई के पास रखने<br />
से पारिवारिक कलह समाप्त होती है।<br />
<br />
पूर्व दिशा की खिडकी के पास रखने से<br />
पुत्र यदि जिद्दी हो तो उसका हठ दूर<br />
होता है।<br />
<br />
यदि घर की कोई सन्तान अपनी मर्यादा<br />
से बाहर है अर्थात नियंत्रण में नहीं है तो<br />
पूर्व दिशा में रखे।<br />
<br />
तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते किसी ना<br />
किसी रूप में सन्तान को खिलाने से<br />
सन्तान आज्ञानुसार व्यवहार करने<br />
लगती है।<br />
<br />
कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो<br />
तो अग्नि कोण में तुलसी के पौधे को<br />
कन्या नित्य जल अर्पण कर एक<br />
प्रदक्षिणा करने से विवाह जल्दी<br />
और अनुकूल स्थान में होता है।<br />
सारी बाधाए दूर होती है।<br />
<br />
यदि कारोबार ठीक नहीं चल रहा तो<br />
दक्षिण-पश्चिम में रखे तुलसी के गमले<br />
पर प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध<br />
अर्पण करे व मिठाई का भोग रख कर<br />
किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने<br />
से व्यवसाय में सफलता मिलती है।<br />
<br />
नौकरी में यदि उच्चाधिकारी की वजह<br />
से परेशानी हो तो ऑफिस में खाली<br />
जमीन या किसी गमले आदि जहाँ<br />
पर भी मिटटी हो वहां पर सोमवार<br />
को तुलसी के सोलह बीज किसी<br />
सफेद कपडे में बाँध कर सुबह<br />
दबा दें।<br />
सम्मान में वृद्धि होगी।<br />
<br />
नित्य पंचामृत बना कर यदि घर कि महिला<br />
शालिग्राम जी का अभिषेक करती है तो घर<br />
में वास्तु दोष हो ही नहीं सकता।<br />
<br />
अति प्राचीन काल से ही तुलसी पूजन<br />
प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर पर होता आया है।<br />
<br />
तुलसी पत्र चढाये बिना शालिग्राम पूजन<br />
नहीं होता।<br />
<br />
भगवान विष्णु को चढायेप्रसाद,श्राद्धभोजन,<br />
देवप्रसाद,चरणामृत व पंचामृत में तुलसी<br />
पत्रहोना आवश्यक है अन्यथा उसका भोग<br />
देवताओं को लगा नहीं माना जाता।<br />
<br />
मरते हुए प्राणी को अंतिम समय में गंगा<br />
जल के साथ तुलसी पत्र देने से अंतिम<br />
श्वास निकलने में अधिक कष्ट नहीं सहन<br />
करना पड़ता।<br />
<br />
तुलसी के जैसी धार्मिक एवं औषधीय गुण<br />
किसी अन्य पादप में नहीं पाए जाते हैं।<br />
<br />
तुलसी के माध्यम से कैंसर जैसे प्राण घातक<br />
रोग भी मूल से समाप्त हो जाता है।<br />
<br />
आयुर्वेद के ग्रंथों में ग्रंथों में तुलसी की बड़ी<br />
भारी महिमा का वर्णन है।<br />
<br />
इसके पत्ते उबालकर पीने से सामान्य ज्वर,<br />
जुकाम,खांसी तथा मलेरिया में तत्काल राहत<br />
मिलती है।<br />
<br />
तुलसी के पत्तों में संक्रामक रोगों को रोकने<br />
की अद्भुत शक्ति है।<br />
<br />
सात्विक भोजन पर मात्र तुलसी के पत्ते<br />
को रख देने भर से भोजन के दूषित होने<br />
का काल बढ़ जाता है।<br />
<br />
जल में तुलसी के पत्ते डालने से उसमें लम्बे<br />
समय तक कीड़े नहीं पड़ते।<br />
<br />
तुलसी की मंजरियों में एक विशेष सुगंध<br />
होती है जिसके कारण घर में विषधर सर्प<br />
प्रवेश नहीं करते।<br />
<br />
यदि रजस्वला स्त्री इस पौधे के पास से<br />
निकल जाये तो यह तुरंत म्लान हो जाता है।<br />
<br />
अतः रजस्वला स्त्रियों को तुलसी के निकट<br />
नहीं जाना चाहिए।<br />
<br />
तुलसी के पौधे की सुगंध जहाँ तक जाती<br />
है वहाँ दिशाओं व विदिशाओं को पवित्र<br />
करता है।<br />
<br />
उदभिज,श्वेदज,अंड तथा जरायु चारों प्रकार<br />
के प्राणियों को प्राणवान करती हैं अतःअपने<br />
घर पर तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं तथा<br />
उसकी नियमित पूजा अर्चना भी करें।<br />
<br />
आपके घर के समस्त रोग दोष समाप्त होंगे।<br />
<br />
पौराणिक ग्रंथों में तुलसी का बहुत महत्व<br />
माना गया है।<br />
जहां तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पाप<br />
नाशक समझा जाता है,वहीं तुलसी पूजन<br />
करना मोक्षदायक माना गया है।<br />
<br />
हिन्दू धर्म में देव पूजा और श्राद्ध कर्म में<br />
तुलसी आवश्यक मानी गई है।<br />
<br />
शास्त्रों में तुलसी को माता गायत्री का<br />
स्वरूप भी माना गया है।<br />
<br />
गायत्री स्वरूप का ध्यान कर तुलसी पूजा<br />
मन,घर-परिवार से कलह व दु:खों का अंत<br />
कर खुशहाली लाने वाली मानी गई है।<br />
<br />
इसके लिए तुलसी गायत्री मंत्र का पाठ<br />
मनोरथ व कार्य सिद्धि में चमत्कारिक भी<br />
माना जाता है।<br />
<br />
तुलसी गायत्री मंत्र व पूजा की आसान<br />
विधि -<br />
<br />
- सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या<br />
देवालय में लगे तुलसी के पौधे को गंध,<br />
फूल,लाल वस्त्र अर्पित कर पूजा करें।<br />
फल का भोग लगाएं।<br />
<br />
धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक<br />
बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी<br />
गायत्री मंत्र का श्रद्धा से सुख की कामना<br />
से कम से कम 108 बार स्मरण करें।<br />
<br />
अंत में तुलसी की पूजा करें -<br />
<br />
<br /></div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-66788473159027998532016-09-21T08:18:00.002+05:302016-09-21T08:18:37.569+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वास्तव में अब देश को मोदी और डोभाल की जरूरत नहीं रही। सोशल मीडिया पर ही कई धुरंधर हैं, जो युद्ध नीति, कूटनीति, राजनीति, राष्ट्रनीति, सैन्य संचालन आदि आदि सभी मामलों के जानकार, अनुभवी और विशेषज्ञ हैं।<br />
<br />
ये वही लोग हैं जो लाहौर में एक हमला होने पर पाकिस्तान से सहानुभूति जताने के लिए अपना प्रोफ़ाइल फोटो काला कर रहे थे, और फिर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद पाकिस्तान के उकसाने पर भारतीय सेना के समर्थन में भी प्रोफ़ाइल फोटो बदल रहे थे। ये वही लोग हैं, जो आज पकिस्तान को गालियां देते हैं और कल भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के टिकट खरीदने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं या सोशल मीडिया पर लाइव स्कोर बताते रहते हैं। ये वही लोग हैं, जो २ रूपये बचाने के लिए चीनी सामान खरीदते हैं, लेकिन सरकार को सिखाते हैं कि चीन भारत के बाज़ार को निगल रहा है। ये वही लोग हैं, जो सरदेसाई और बरखा को रोज़ सुबह गालियां देते हैं, लेकिन रोज़ शाम को उन्हीं के चैनल देखकर उनकी टीआरपी भी बढ़ाते हैं। ये वही लोग हैं, जो अंडरवर्ल्ड के पैसों से बनी फ़िल्में देखने के लिए हर वीकेंड पर मल्टीप्लेक्स के बाहर कतार लगाते हैं और सोशल मीडिया पर सरकार से पूछते हैं कि सरकार दाऊद को खत्म क्यों नहीं कर रही है। ये वही लोग हैं जो किंगफिशर की बीयर खूब शौक से खरीदकर पीते हैं और फिर ये सवाल भी पूछते हैं कि सरकार माल्या को भारत कब लाएगी। ये वही लोग हैं, जो एक दिन गृहमंत्री को कोसते हैं, फिर अगले दिन पैलेट गन चलाने के लिए तारीफ़ भी करते हैं। और ये वही लोग हैं, जो दिन-रात मीडिया चैनलों की निंदा करते हैं, लेकिन उन्हीं चैनलों द्वारा सेट किए जाने वाले एजेंडा का भी रोज शिकार बनते हैं।<br />
<br />
अपनी सुख-सुविधाओं में एक कतरा भी कटौती नहीं करना चाहते, ५० पैसे टैक्स बढ़ जाए तो छाती पीटने लगते हैं और ऐसे लोग आज युद्ध की भाषा बोल रहे हैं! पहले अपने कम्फर्ट ज़ोन से तो बाहर निकलिए, उसके बाद युद्ध के उपदेश दीजिए। खुद को राष्ट्रवादी बताने वाले लोग सबसे ज्यादा कन्फ्यूज दिखते हैं। मैंने वामपंथियों को कभी अपनी विचारधारा और एजेंडा के बारे में कन्फ्यूज नहीं देखा, मैंने भारत-विरोधियों को कभी अपनी विचारधारा और एजेंडा के बारे में कन्फ्यूज नहीं देखा, लेकिन राष्ट्रवादी टोली मुझे वैचारिक धरातल पर सबसे ज्यादा कन्फ्यूज दिखती है क्योंकि बुद्धि और विवेक को परे रखकर हर बात में भावनाओं के अनुसार बहते रहते हैं। एक दिन का उफान होता है, दूसरे दिन सब भूल जाते हैं।<br />
<br />
मेरा सुझाव है कि इस कन्फ्यूजन से बाहर निकलिए। मुझे नहीं पता कितने लोग मीडिया चैनलों और प्रचलित अख़बारों की खबरों के अलावा कुछ पढ़ते हैं। मुझे नहीं पता सोशल मीडिया पर भावनाओं का उबाल सिर्फ एक-दूसरे की पोस्ट पढ़कर ही उफनता है या उसके पीछे कोई ठोस अध्ययन, संबंधित मामलों की समझ आदि भी है या नहीं। मुझे नहीं पता मीडिया में शोर सुनकर यहां चिल्ला रहे कितने लोगों को याद है कि कुछ ही दिनों पहले वायुसेना का जो विमान अंडमान जाते समय लापता हो गया, उसमें कितने सैनिक थे? मैंने संकेत दे दिया है, बाकी आप समझदार हैं।<br />
<br />
जब कोई हम पर हमला करने आता है, तो बेशक पहला समझदारी का काम उस पर जवाबी हमला करना ही होता है। भारतीय सेना ने वो किया है, तभी चारों आतंकियों को मार गिराया गया। लेकिन जब सामने वाला हमला करके जा चुका है, और अब आपको जवाब देना है, तो वह ठंडे दिमाग से, सोच-समझकर और योजना बनाकर ही दिया जाना चाहिए, न कि उकसावे में आकर। पाकिस्तान ने हमला करके आपको उकसा दिया है, इसलिए ये ज़रूरी नहीं कि भारतीय सेना तुरन्त अपने टैंक और मिसाइलें लेकर पाकिस्तान में घुस जाए। मुझे कोई शक नहीं कि जिस दिन भारतीय सेना उचित समझेगी, उस दिन ये काम भी अवश्य हो जाएगा, लेकिन अभी नहीं हो रहा है, इससे स्पष्ट है कि सेना के पास शायद उससे बेहतर कोई तरीका मौजूद है।<br />
<br />
कुछ लोगों को लगता है कि भारत सरकार सो रही है या सिर्फ कड़ी निंदा के बयान दे रही है। गृहमंत्री ने अपनी रूस और अमेरिका की यात्रा कल रद्द कर दी। क्या आपको लगता है कि सरकार ने सिर्फ कड़ी निंदा वाले बयान देने के लिए यात्रा रद्द की है? अजीत डोभाल ने अपनी पूरी ज़िंदगी ऐसे ही उच्च-स्तरीय मिशन और सीक्रेट ऑपरेशन पूरे करने में बिताई है। जो आदमी जासूस बनकर ६ साल लाहौर में अंडरकवर एजेंट रहा है, क्या आपको लगता है कि इस मामले की समझ आप में उससे ज्यादा है? ये कॉमन सेन्स की बात है कि उच्च-स्तर पर प्लानिंग हो रही होगी, हर विकल्प पर विचार हो रहा होगा, और हर मोर्चे पर हमले की रणनीति बन रही होगी। ये भी कॉमन सेन्स की बात है कि इसकी जानकारी न किसी सरकारी बयान में दी जाएगी, न सोशल मीडिया पर पोस्ट और ट्वीट में। अपनी भावनाओं को अपने विवेक और बुद्धि पर हावी मत होने दीजिए। ये जरूरी नहीं है कि कश्मीर के जवाब में हमला कश्मीर वाली सीमा से ही हो। हमला अफगानिस्तान की तरफ से भी हो सकता है, हमला बलूचिस्तान से भी हो सकता है, हमला चीन के इकोनॉमिक कॉरिडोर की तरफ भी हो सकता है। इसलिए जिस मामले की समझ जिन लोगों को हमसे ज्यादा है, उनको उनका काम उनके ढंग से करने दीजिए। उनको पता है क्या परिणाम चाहिए और वो कैसे मिलेगा। उनको ये भी पता है कि आप सिर्फ एक दिन चिल्लाएंगे और दूसरे दिन भूल जाएंगे क्योंकि सबसे सरल काम यही है।<br />
<br />
जो लोग टीवी पर क्रिकेट देखते समय घर बैठे-बैठे चिल्लाते रहते हैं कि कप्तान को कौन-सा फील्डर कहां खड़ा करवाना चाहिए और किस बॉलर को पहला ओवर देना चाहिए, वो जरा ये समझें कि कप्तान में क्रिकेट की समझ आपसे ज्यादा है और मैदान की परिस्थिति को भी वह आपसे बेहतर समझता है क्योंकि वह मैदान में खड़ा है और आप घर में बैठे हैं। अगर उसको कप्तान मानते हैं, तो उसको निर्णय लेने दीजिए और उसके निर्णय पर भरोसा कीजिए। आपसे ज्यादा कन्फ्यूज लोग दुनिया में कोई दूसरे नहीं हैं क्योंकि आप किसी विषय में पूरी जानकारी नहीं लेना चाहते और न किसी बात को शुरू करने पर आखिरी तक ले जाना चाहते हैं। आप में और मीडिया चैनलों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, दोनों को ही अपना समय काटने के लिए रोज एक नया मुद्दा चाहिए होता है। बेहतर है कि दूसरों को आईना दिखाने की कोशिश करने वाले एक बार खुद भी आईना देखें।<br />
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जितने लोग जापान और वियतनाम और इज़राइल जैसे देशों के उदाहरण देते रहते हैं, वे उपदेशक का चोला उतारें और जरा यह भी देखें कि वहां की सफलताओं में जनता की कितनी बड़ी भूमिका और योगदान रहा है। फिर भारत में खुद से उसकी तुलना करें। कोई देश सिर्फ सरकार के भरोसे इजरायल और जापान नहीं बन जाता, वह तब इजराइल और जापान बनता है, जब लोग अपने देश के लिए त्याग करने को तैयार होते हैं, जब लोग अपने देश के लिए कष्ट उठाने को तैयार होते हैं, जब लोग अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर देश के लिए कुछ करते हैं। पहले वह काम कीजिए और भारत में वैसा माहौल बनाने में कुछ योगदान दीजिए, उसके बाद ही समस्या जड़ से मिटेगी, वरना पाकिस्तान को आप चाहे पूरा साफ़ कर दीजिए, पर समस्या कहीं और से सिर उठाती रहेगी क्योंकि समस्या की जड़ बाहर नहीं है, भीतर ही है।<br />
<br />
मेरी बातें अक्सर ही कड़वी लगती हैं क्योंकि मैं लहर देखकर नहीं बहता और न किसी को खुश करने के लिए लिखता हूं। मुझे अफ़सोस तब नहीं होता, जब लोग मेरी बातों से असहमत होते हैं, बल्कि अफ़सोस तब होता है, जब आगे चलकर मेरी बातें और चेतावनियां सही साबित होती हैं। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत की सबसे बड़ी कमजोरी राष्ट्रवादियों का कन्फ्यूजन और अस्थिरता ही है। जिस दिन यह ठीक हो जाएगा, उस दिन सारे समीकरण बदल जाएंगे। सादर!<br />
जय हिन्द !!🇮🇳</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-36516072343546739862016-09-14T07:15:00.003+05:302016-09-14T07:23:47.858+05:30Mrutyu Baad Angdaan <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मित्रो आज टी वी समाचारो मे देखा के पांचवी बार ग्रीन कोरीडोर बनाकर ब्रेन डेड व्यक्ति का हृदय सफलता पूर्वक दुसरे शहर भेजा गया प्रत्यारोपण के लिए, प्रत्यारोपण भी सफल रहा।<br />
<br />
क्यो न हम भी सपथ ले की "मृत्यु बाद मेरा हृदय, कीडनी, लीवर, आँखे वगैरह अंग को योग्य समय पर निकाल कर किसी जरूरतमंद के शरीर मे प्रत्यारोपित किया जाये।<br />
<br />
अंदाजा करो कितने लोगो की जान बच जायेगी इससे, कितने परिवार उजडने से बच जायेगे।<br />
वैसे भी मृत्यु के बाद अपना शरीर हिन्दु होगे तो अग्नि के समर्पित किया जायेगा, क्रिस्टियन और मूसलमान होगा तो दफन होगा। इससे वे सारे अंग या तो जलकर राख हो जायेगे या मिट्टी मे गल जायेगे।<br />
<br />
आओ मेरे मित्रो आज के बाद हम प्रण करे मृतयु बाद अपने अंगो का दान कर किसीको नवजीवन देगे।<br />
<br />
मेरी इस अपील से सहमत हो तो अपने परिवार, मित्रो, समाज, गाव, शहर मे इस बात का प्रचार करे और लोगो को ऐसा करने के लिए जागृत करे। दमण मे भी लोग इस बात के तैयार हो यह आशा।<br />
<br />
इस संदेश को अधिक से अधिक लोगो तक पहोचे इस शेयर जरूर करे।</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-16562266569808562802016-09-14T07:15:00.002+05:302016-09-14T07:22:13.805+05:30Mrutyu Baad Angdaan <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मित्रो आज टी वी समाचारो मे देखा के पांचवी बार ग्रीन कोरीडोर बनाकर ब्रेन डेड व्यक्ति का हृदय सफलता पूर्वक दुसरे शहर भेजा गया प्रत्यारोपण के लिए, प्रत्यारोपण भी सफल रहा।<br />
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क्यो न हम भी सपथ ले की "मृत्यु बाद मेरा हृदय, कीडनी, लीवर, आँखे वगैरह अंग को योग्य समय पर निकाल कर किसी जरूरतमंद के शरीर मे प्रत्यारोपित किया जाये।<br />
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अंदाजा करो कितने लोगो की जान बच जायेगी इससे, कितने परिवार उजडने से बच जायेगे।<br />
वैसे भी मृत्यु के बाद अपना शरीर हिन्दु होगे तो अग्नि के समर्पित किया जायेगा, क्रिस्टियन और मूसलमान होगा तो दफन होगा। इससे वे सारे अंग या तो जलकर राख हो जायेगे या मिट्टी मे गल जायेगे।<br />
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आओ मेरे मित्रो आज के बाद हम प्रण करे मृतयु बाद अपने अंगो का दान कर किसीको नवजीवन देगे।<br />
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मेरी इस अपील से सहमत हो तो अपने परिवार, मित्रो, समाज, गाव, शहर मे इस बात का प्रचार करे और लोगो को ऐसा करने के लिए जागृत करे। दमण मे भी लोग इस बात के तैयार हो यह आशा।<br />
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RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-70344808858628834912016-08-30T10:12:00.001+05:302016-08-30T10:12:01.929+05:30दमण के रिक्शावाले <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मित्रो आज अखबार मे पढा के रीक्शा एसोसिएशन और मिनीबस एसोसिएशन ने मिलकर सारथी बस सेवा के सामने विरोध जताया और एक स्थानीय अग्रणी नेता से इसे नये प्रशासक महोदय तक ले जाने की गुहार लगाई है।<br />
मै व्यक्तिगत तौर पर ऐसा समझता हूं ये दोनो एसोसिएशन मिलकर पहले वापी गुजरात की तरफ से आते रीक्शा वाले धड़ल्ले से दमण तक पेसेन्जर ले आते है और वे जाते है उस संपूर्ण बंध करवाए। मुझे विश्वास है उनका सबसे बडा धंधा वे वापी और गुजरात से आनेवाले रीक्शा वाले ले जाते है। एक बार पुछने यही रिक्शेवाले कहते भाई हम तो थक गये है। कितना मारा पीटा फिर भी वो आते है।<br />
आपकी तकलीफ का निराकरण वापी गुजरात से आनेवाले रिक्शा को बंध करने मे है अथवा आप भी उनकी तरह वापी गुजरात तक जाओ। अथवा वापी सिलवासा के रिक्शेवालो की तर्ज पर बाकायदा दैनिक परमिट चेकपोस्ट से ली जाये।<br />
बाकी सारथी बस सेवा का विरोध करना तो एसा है जैसे एक घरमे तीन भाई बडा मीनीबस वाला, मजा रिक्शावाला और छोटा सारथी बस तो बडे दो अपनी कमजोरी और गलती सुधारना नही चाहते और मन मे हमेशा छोटा जो इन दो बडे भाई की गलती को देख उस हिसाब धंधा करे और ज्यादा कमाये तो वो बडे दोनो को अखरता है।<br />
वास्तविकता यही है के आपकी तकलीफ सिर्फ और सिर्फ वापी गुजरात से आनेवाले रिक्शा वाले है। उसे बंध कराओ आपका काम बन जायेगा।<br />
वापी के रिक्शावाला की कितनी दादागिरी सोमनाथ जो दमण का भाग वहां उनका बाकायदा स्टेन्ड और दमण मे ही दमण के रिक्शा वाले इधर उधर जहां जगह मिले खडे हो जाये।</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-64250888250174138252016-08-25T21:22:00.001+05:302016-08-25T21:22:59.820+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रीमा एक छोटी बच्ची थी। उसे खाना पकाने का बडा शौख था। जब भी मा खाना पकाती वो आहिस्ते से जाकर देख लेती के मम्मी के हाथ खाना इतना स्विदिष्ट होता था की पिताजी उँगली चाटते रह जाते। जो मेहमान आते वो भी मम्मी के हाथो बने खाने की तारीफ करते है।<br />
<br />
रीमा देखती, मम्मी के पास ऐक डीब्बा है। हर बार खाना बनाते समय मम्मी उस डीब्बे से कुछ निकाल कर अवश्य डालती थी। रीमा को लगा जरूर उस डीब्बे मे कुछ है जिसे मिलाने से खानेका स्वाद दुगुना हो जाता है। मा उस डीब्बे को बडा सम्हाल कर रखती थी। रीमाने मा को ऐसा कहते सुना था की यह डीब्बा उसे उसकी मा ने दिया था।<br />
<br />
एक दिन रीमा की मम्मी बीमार हो गई। रीमाने हिम्मत कर कहा, कोई तकलीफ नही, अब मम्मी आराम करेगी और खाना खुद रीमा पकायेगी।<br />
जब रीमा कीचन मे खाना बनाने पहोची खानेकी सभी तैयारीया कर लेने बाद उसे याद आया मा के हाथ बनी सभी डीश इतनी स्वादिष्ट बनाने के लिए उपर रखे उस डब्बे से कुछ डालती थी। रीमाने एक टेबल के सहारे से वो डीब्बा उतार लिया। उसने वो स्टीलका छोटासा डीब्बा खोलके देखा तो डीब्बे मे कुछ नही था। बस, पुराने कागज की एक छोटी सी चिठ्ठी रखी थी।<br />
<br />
रीमा उस चिठ्ठी को खोले देखा उसमे लिखा था - बेटा तु जो भी कुछ खाना पकाये, उसमे एक चुटकी प्रेम जरूर डालना जिससे तेरे हाथो बना पुरा खाना सबको पसंद आये।<br />
रीमा को यह बात समजते देर नही लगी…<br />
कितनी अच्छी बात है आपके द्वारा किये हर कार्य मे थोडा प्रेम मिला दिया जाये तो वो सामने वाले व्यक्ति को जरूर प्रभावित करता है।<br />
प्रेम हर दर्द की दवा है।<br />
<br />
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मित्रो कहानी पसंद आये तो अवश्य शेयर करो .......</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-58929966713273733842016-08-25T15:05:00.000+05:302016-08-25T15:05:09.613+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज मेरे एक मित्र मिला वो कभी बना हजामत किये नही रहता है पर आज जब वो सामने आया तो उसकी दाढी और बाल बढे हुए थे। पुन पर उसने कहा 'भाई ये श्रावण मास के कारण।<br />
लोग अपने हिन्दू धर्म की परंपराओ को कितना गलत तरीके से लेते है। जहां तक मेरी मान्यता है श्रावण मास इश्वर के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य, समर्पण और भक्ति के लिए है, इसलिए इसे श्रावण मास को वर्ष का सबसे पवित्र महिना कहा जाता है। शास्त्रो मे भी इसका समर्थन प्राप्त है।<br />
ब्रह्मचर्य -<br />
दुनिया की सभी इतर बातो से मन हटाकर केवल इश्वर मे मनको केन्द्रित करना। उस उसके लिए सबसे पहले मीताहार और सात्विक भोजन होना चाहिए, हो सके तो एक हीरा भोजन ग्रहण करे। आहार का मनकी प्रकृति से सिधा संबंध है। कहते है जैसा अन्न वैसा मन। आप जैसा भोजन ग्रहण करोगे आपके विचार ऐसे ही होगे।<br />
काम वासना से अपने को दुर रखे, इससे अपने को इश्वर स्मरण मे लीन कर सको।<br />
भूमी शयन या धर्म से बने बिछौने पर रात को सोये।<br />
और अंत मे इन सब बातो मे लीन रहने से बाल दाढी और मुख की तरफ बेध्यान हो जाना।<br />
अब इन सब भावनाओ को भुलाकर लोग मीताहार की सही परिभाषा को भुलाकर बडे अभियान से कहते सुनाई देंगे "मै तो इस पुरे श्रावण मास मे सिर्फ एक समय ही खाता हूअं। लेकिन उस एक समय मे हर प्रकार के व्यंजन थाली मे लेकर आरोगे जाते है जिसका मीताहार से कोइ लेना देना नही होता।<br />
इसी तरह जो मन मे आया का लिया पी लिया जब चाहा खाया पीया लेकिन वो श्रावण मास के दरमियान दाढी, मुख और बाल बढा दिया तो हो गया श्रावण महिने का व्रत।<br />
मित्रो यह सब गलत तरीके है यह केवल दिखावा है। अगर सही अर्थ मे श्रावण मास का व्रत करना चाहते हो ईश्वर कृपा प्राप्त करना चाहते हो तो सही तरीके से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करो और संपूर्ण भक्ति और समर्पण से ये हो पायेगा। बाकी सब व्यर्थ आडंबर है दिखावा है।<br />
🚩🚩🕉 नमः शिवाय 🕉🚩🚩</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-43897820942187058862016-08-18T09:40:00.002+05:302016-08-18T09:42:44.307+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px;">
विश्व के समस्त सनातनियों को रक्षा सूत महा पर्व की अनंत शुभकामनाएं,,,<br />
समस्त बहनों को ढेरों खुशिया मिलें,,,<br />
बाबा विश्वनाथ सब का कल्याण करें,,,,<br />
सदा सर्वदा सुमंगल,,,,,</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।<br />
स सर्वदोष रहित,सुखी संवतसरे भवेत्।।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं।<br />
प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह,शांति और रक्षा का बंधन है।<br />
इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है।<br />
सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षा सूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो<br />
सकता है।<br />
धागा केवल उसका प्रतीक है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
येन बद्धो बलिराजा,दानवेन्द्रो महाबलः<br />
तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे,माचल-माचलः'</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अर्थात दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे,उसी से तुम्हें बांधता हूं।<br />
हे रक्षे ! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो,चलायमान न हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे,उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं,यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना,स्थिर रहना।<br />
इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े परिचायक हैं हमारे पर्व और त्यौहार।<br />
यहां हर महीने और हर मौसम में कोई ना कोई ऐसा त्यौहार होता ही है जिसमें देश की संस्कृति की झलक हमें देखने को मिलती है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
त्यौहारों का यह देश अपनी विविधता में एकता के लिए ही विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्यौहार है तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं,उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है।<br />
राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
राखी देश की रक्षा,पर्यावरण की रक्षा,हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग-भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
--- रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है।<br />
वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया,तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।<br />
विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।<br />
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।<br />
वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। <span style="line-height: 21.4667px;">लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बाधकर उसे अपना भाई बना लिया।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई।<br />
उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
---महाभारत में राखी</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है।<br />
जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं,तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई,तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा<br />
और सहयोग की भावना निहित है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
---ऐतिहासिक महत्व</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
आज यह त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्यौहार पर गर्व है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
लेकिन भारत जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्यूंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश में कन्या- पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
यह त्यौहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
भाई-बहनों के इस त्यौहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का विरोध करें और महिलाओं पर हो रहे शोषण का विरोध करें।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि राह चलते वह जिस महिला या लड़की पर फब्तियां कस रहे हैं वह भी किसी की बहन होगी और जो वह दूसरों की बहन के साथ कर रहे हैं वह कोई उनकी बहन के साथ भी कर सकता है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
--- <span aria-hidden="true" style="color: #90949c; font-weight: bold; line-height: 1.38;"></span><a aria-controls="js_5x" aria-describedby="js_5y" aria-haspopup="true" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100002115155073&extragetparams=%7B%22hc_ref%22%3A%22NEWSFEED%22%2C%22fref%22%3A%22nf%22%2C%22directed_target_id%22%3A589226491209584%7D" href="https://www.facebook.com/bijaykrishna.pandey1?hc_ref=NEWSFEED&fref=nf" id="js_5z" role="null" style="color: #365899; cursor: pointer; font-weight: bold; line-height: 1.38; text-decoration: none;">विजय कृष्ण पांडेय</a><br />
<div class="_6a _5u5j _6b" style="display: inline-block; font-size: 12px; line-height: 17.8667px; vertical-align: middle; width: 427.795px;">
<h5 class="_5pbw _5vra" data-ft="{"tn":"C"}" id="js_5e" style="font-size: 14px; font-weight: normal; line-height: 1.38; margin: 0px 0px 2px; overflow: hidden; padding: 0px 22px 0px 0px;">
<i class="mhs img sp_BNBd3m8xN0K sx_bd5cd7" style="background-image: url(https://www.facebook.com/rsrc.php/v2/yN/r/-BU-kqxCOf-.png); background-position: -64px -294px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; color: #90949c; display: inline-block; font-weight: bold; height: 9px; line-height: 1.38; margin-left: 5px; margin-right: 5px; width: 11px;"><u style="display: inline !important; left: -999999px; position: absolute;">t</u></i></h5>
</div>
</div>
</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-33299336406617267062016-08-17T20:09:00.000+05:302016-08-17T20:09:37.207+05:30वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि :*<br />
<br />
जानिए कैसे मनाए रक्षा बंधन का पर्व<br />
इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है -<br />
<br />
1⃣ दूर्वा (घास)<br />
2⃣ अक्षत (चावल)<br />
3⃣ केसर<br />
4⃣ चन्दन<br />
5⃣ सरसों के दाने ।<br />
<br />
इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में<br />
लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें,<br />
फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस<br />
प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।<br />
<br />
इन पांच वस्तुओं का महत्त्व -<br />
1⃣ *दूर्वा - जिस प्रकार*<br />
दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से<br />
फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास<br />
तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बदता जाए ।<br />
दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए ।<br />
<br />
2⃣ *अक्षत* - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।<br />
<br />
3⃣ *केसर* - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो ।<br />
<br />
4⃣ *चन्दन* - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है ।<br />
उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।<br />
<br />
5⃣ *सरसों के दाने -*<br />
सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है<br />
अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।<br />
<br />
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान -चित्र पर अर्पित करें ।<br />
फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने<br />
बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।<br />
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं तो हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।<br />
<br />
*राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र बोले*<br />
<br />
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |<br />
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल<br />
मा चल ||<br />
<br />
और चाकलेट ना खिलाकर भारतीय<br />
मिठाई या गुड से मुहं मीठा कराएँ।<br />
<br />
अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव<br />
वन्दे मातरम</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-3851827972370751712016-08-17T20:01:00.002+05:302016-08-17T20:01:48.871+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
🎄🕉रहस्यमयी हिमालय - 16🕉🎄<br />
दीक्षांत समारोह समाप्त हुआ<br />
महायोगी अभेदानन्द ने बोलना प्रारम्भ किया<br />
“ तंत्र कल्याण का विज्ञान है स्व कल्याण का | तन्त्र के माध्यम से योगी विभिन्न बिजमन्त्रों के द्वारा कुल कुण्डलिनी शक्ति को मूलाधार से उठा कर सहस्त्रार तक ले जाते हैं फिर सहस्त्रार से पुन : मूलाधार पर ले आते हैं | तंत्र में पञ्च मकार सेवन का विधान है | ये पञ्च मकार हैं – मांस , मध् , मीन , मुद्रा और मैथुन |”<br />
वहां उपस्थित सभी साधक बहुत हीं तल्लीनता से योगी बाबा की बातें सुनते हुए किसी दुसरे हीं लोक में खो गये थे ऐसी ओजस्विता थी उनकी वाणी में |<br />
महायोगी ने आगे कहना प्रारम्भ किया |<br />
"सोमधारा क्षरेद या तु ब्रह्मरंध्राद वरानने|<br />
पीत्वानंदमयास्तां य: स एव मद्यसाधक:|| ”<br />
महायोगी ने रुद्रयामल तन्त्र का ये श्लोक सुनाया | फिर इसके बाद इसका अर्थ उन्होंने इस प्रकार बताया |<br />
“जिह्वा मूल या तालू मूल में जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को सम्यकृत करके ब्र्ह्मारंध्र ( सिर के चोटी से ) से झरते हुए आज्ञा (भ्रू मध्य ) चक्र के चन्द्र मंडल से हो कर प्रवाहमान अमृतधारा को पान करने वाला मद्य साधक कहा जाता है |”<br />
जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को तालू में लगाना हीं खेचरी मुद्रा कहलाता है ( साधक बिना किसी योग्य गुरु के इस अभ्यास को न करें क्योंकि अमृत के साथ विष का भी स्त्राव उसी स्थान से होता है इसमें गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए )<br />
यह वास्तविक मद्यपान कहलाता है |”<br />
एक साधक ने पूछा<br />
“ आज कल के साधक जो बाहरी मदिरा पान करते हैं क्या ये उचित है मेरे प्रभु |”<br />
महायोगी ने कहना प्रारम्भ किया<br />
“ बाहरी मदिरा पान का भी एक साधक के दृष्टिकोण से महत्व है | कुण्डलिनी शक्ति के उर्ध्वगमन होने पर भारी मात्रा में उर्जा का बहाव शरीर में होता है जो कभी कभी सच्चे साधकों के लिए असहनीय हो जाता है इसी उर्जा के वेग का प्रभाव कम मह्शूश हो इसलिए मदिरा के माध्यम से मस्तिष्क को शिथिल करने के लिए यदा कदा उच्च किस्म के साधकों को मदिरापान करना पड़ता है | स्मरण रहे भोग के लिए मदिरापान करना पाप है | औषध रूप में इसका प्रयोग किया जाता है |<br />
सभी तन्त्र साधकों को ये स्मरण रखना चाहिए देखा देखी बिना सोचे समझे तन्त्र मार्ग का हावाला दे कर कभी भी मदिरापान न करें हाँ जब साधना के क्रम में आवश्यकता मह्शूश हो तब गुरु आज्ञा से हीं बाहरी मदिरा का पान करें |<br />
किन्तु फिर भी साधक को ये प्रयास करना चाहिए कि बाहरी मदिरापान की आवश्यकता न हीं पड़े |<br />
वास्तविक मदिरापान तो ब्रह्मारन्ध्र से गिरते हुए अमृत को पीना हीं है इस मदिरापान के आनन्द को वर्णन नहीं किया जा सकता |”<br />
योगी बाबा ने समझाया |<br />
आगे योगी बाबा ने कहा<br />
“ आम व्यक्ति एवं सभी जीवों में जो अमृत ब्रह्मरन्ध्र के बिंदु से क्षरित होता है वही मूलाधार में आ कर काम उर्जा का निर्माण करता है जिससे सृष्टि के सृजन का कार्य होता है | किन्तु हमारे पूर्वज योगियों ने ध्यान के द्वारा अपने स्वयं के शरीर में प्रवेश कर इसके मर्म को इसके विज्ञान को समझा और युक्तिपूर्वक एक नए विज्ञान का आविष्कार किया | योगियों के स्व साधना के क्षेत्र में जो भी अविष्कार हुए वे सभी ध्यान की गहरी अवस्था में हुए इसलिए वर्तमान विज्ञान को इसे पकड पाना कठिन है |”<br />
महा योगी के इस ओजमयी ज्ञान का पान वहां उपस्थित सभी साधक तल्लीनता पूर्वक कर रहे थे |<br />
नोट* इस लेख का उदेश्य मदिरापान को बढ़ावा देना कतई नहीं है |<br />
*मदिरापान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |<br />
तन्त्र के सम्बन्ध में कोई प्रश्न हो तो टिप्पणी करें |<br />
<br />
जारी .......16<br />
साभार...👣🙏🏻🌟🎄</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7129281277385864007.post-88806729346338503112016-08-15T12:30:00.001+05:302016-08-15T12:31:14.590+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
समस्त देशवासीओ को राहुल पंड्या की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये।<br />
मित्रो मन मे प्रश्न उठता है, क्या सही अर्थ मे हम भारतवासी स्वतंत्र है?<br />
सन 1840 मे लोर्ड मोरे ने भारतवासी को लंबे समय तक गुलाम रखने के लिए जो शिक्षा पद्धति लागु करवाई थी वो आज भी चालु है।<br />
स्वतंत्रता के पश्चात भारत गणतंत्र बना उस समय हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया। और तब से लेकर आज तक उसके विकास के लिए अलग से राजभाषा विभाग कार्यरत है।<br />
विडंबना ये है के राजभाषा विभाग आजतक हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के रूप मे स्थापित नही कर सका। आज के दिन स्वतंत्रता दिवस की जितनी भी शुभकामनाये मिली उसमे से 80% से अधिक अंग्रेजी मे थी।<br />
आज भी तमाम सरकारी कामकाज को हिन्दी मे करने के लिए उस संबंधित विभाग या अधिकारी को प्रोत्साहन के लिए इनाम दिया जाता है।<br />
आज समग्र भारतवर्ष मे यह स्थिति है की स्थानीय भाषा की प्राथमिक पाठ शाला सब धिरे धिरे बंध होने के कगार पर है कारण सब के सब अभिभावक अपने बच्चे को अंग्रेजी मे शिक्षण देने पर उतारू है।<br />
अब कोई मा डोक्टर के पास अपने 5 वर्ष के बच्चे को लेके जाती है तब डोक्टर कहे जीभ दिखाओ तो बच्चा नही समझता और मा कहती है बेटा टंग दिखाओ डोक्टर दखल को।<br />
कारण आज भी हम वही अंग्रेजो वाली मानसीकता मे जी रहे है।<br />
मित्रो आओ सही अर्थ मे स्वतंत्र बने अपनी मातृभाषा और राजभाषा का सम्मान करे ऐसा करने हम सही अर्थ मे अपने देश को स्वतंत्र बनाए।<br />
जय हिन्द ।।<br />
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये ।।</div>
RAHUL MAHIPAT PANDYAhttp://www.blogger.com/profile/08906588204011307450noreply@blogger.com0