*भाषा की उत्पत्ति के विषय में वैदिक धारणा*
--- श्री पी एश ओक
2)
वैदिक ग्रंथ सृष्टि के पूर्व से ही अपना वर्णन करते है। ब्रह्माण्ड पुराण हमें बताता है कि प्रारंभ मे सर्वत्र अंधकार था और स्थिरता, ठहराव था। कोई ध्वनि नहीं थी और किसी प्रकार की गति भी नहीं थी।
अकस्मात् भगवान् विष्णु एक विशाल सर्पराज की कुंडलियों पर लेटे, टिके हुए दुग्ध-धवल, फेन-युक्त महासागर के तैरते गगन पर अवतरित हुए। और उच्च आकाशों के माध्यम से 'ओं' का महा-स्वर गुंजरित होने लगा।
विष्णु की नाभी से निकली कमल-नाड पर ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ। तत्पश्चात प्रजातियों के रूप मे संस्थापक जनको और मातृकाओ के नाम से ज्ञात संस्थापक माताओं की सृष्टि हुई। मानवता की यह पहली सीढी थी। उन सभी मे दैवी गुण विद्यमान थे।
उनको वेद प्रदान किए गए थे जो पृथ्वी पर मानव-जीवन के अनिवार्य मौलिक प्रारंभिक मार्गदर्शन के लिए विज्ञानों, कलाओं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन, प्रशासन आदि से सम्बंधित समस्त ज्ञान का सार-संग्रह है।
--- सावशेष
--- श्री पी एश ओक
2)
वैदिक ग्रंथ सृष्टि के पूर्व से ही अपना वर्णन करते है। ब्रह्माण्ड पुराण हमें बताता है कि प्रारंभ मे सर्वत्र अंधकार था और स्थिरता, ठहराव था। कोई ध्वनि नहीं थी और किसी प्रकार की गति भी नहीं थी।
अकस्मात् भगवान् विष्णु एक विशाल सर्पराज की कुंडलियों पर लेटे, टिके हुए दुग्ध-धवल, फेन-युक्त महासागर के तैरते गगन पर अवतरित हुए। और उच्च आकाशों के माध्यम से 'ओं' का महा-स्वर गुंजरित होने लगा।
विष्णु की नाभी से निकली कमल-नाड पर ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ। तत्पश्चात प्रजातियों के रूप मे संस्थापक जनको और मातृकाओ के नाम से ज्ञात संस्थापक माताओं की सृष्टि हुई। मानवता की यह पहली सीढी थी। उन सभी मे दैवी गुण विद्यमान थे।
उनको वेद प्रदान किए गए थे जो पृथ्वी पर मानव-जीवन के अनिवार्य मौलिक प्रारंभिक मार्गदर्शन के लिए विज्ञानों, कलाओं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन, प्रशासन आदि से सम्बंधित समस्त ज्ञान का सार-संग्रह है।
--- सावशेष
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