*“न क्षयति इति अक्षय” *
अर्थात जिसका कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं और वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है।
इसी दिन भगवान परशुरामका जन्म होनेके कारण इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा-स्नान करने एवं भगवान श्री कृष्ण को चंदन लगाने से है।मान्यता है कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान करने, श्री सूक्त के पाठ के साथ हवन करने का भी विधान है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा करने से माँ अवश्य ही कृपा करती है जातक को अक्षय पुण्य के साथ उसका जीवन धन-धान्य से भर जाता है।
जानिए क्या है
अक्षय तृतीया का महत्व,
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है,
*अक्षय तृतीया के दिन क्या करें,*
जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान/ पवित्र नदियों में स्नान करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यदिघर पर ही स्नान करना पड़े तो सूर्य उदय से पूर्व उठ कर एक बाल्टी में जल भर कर उस में गंगा जल मिला कर स्नान करना चाहिए । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण / श्री विष्णु जी की पूजा , होम-हवन, जप, दान करने के बाद पितृतर्पण भी अवश्य ही करना चाहिए। इस दिन जल में तिल, अक्षत, गंगा जल, शहद, तुलसी डाल कर देवताओं और पितरो का तर्पण करने से पितृ अति प्रसन्न होतेहै, उनका आशीर्वाद मिलता है। तिल अर्पण करते समय भाव रखना चाहिए कि ‘हम यह ईश्वर द्वारा सद्बुद्धि देने, कृपा के कारण ही कर पा रहे है। अर्थात तर्पण के समय साधक के मन में किसी भी तरह अहंकार नहीं आना चाहिए।अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु को सत्तूका भोग लगाया जाता हैऔर प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है। इस दिन प्रत्येक मनुष्य सत्तू अवश्य खाना चाहिए।आज के दिन भगवान विष्णु को मिश्री और भीगी हुई चने की दाल का भोग लगया जाता है ।इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था।श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था।वृंदावन के श्री बांकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढंके रहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीय के दिन ही भगवान कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ था और सुदामा का भाग्य बदल गया था।ब्रह्मा जी के पुत्र श्री अक्षय कुमार का आज ही के दिन अवतरण हुआ था ।आज ही के दिन कुबेर देव को अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई थी वह देवताओं के कोषाध्यक्ष बने थे ।इस दिन गंगा-स्नान /नदी सरोवर में स्नान करने तथा भगवान श्री कृष्ण को चंदन लगाने का विशेष महत्व है।अक्षय तृतीया के दिन ही गणेश जी ने भगवान व्यास के साथ इसी दिन से महाभारत लिखना शुरू किया था।इस दिन महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान किये जाते है। इस दिनश्री सूक्त , लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करने से माँलक्ष्मी यथाशीघ्र प्रसन्न होती है, जातक धन-धान्य से परिपूर्ण हो ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।शास्त्रों के अनुसार आज अक्षय तृतीय के दिन ही महाभारतका युद्ध समाप्त हुआ था ।शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहाहै कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।इस दिन भगवान बद्रीनाथ को अक्षय (साबुत ) चावल चढ़ाने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।इस दिन अपने सामर्थ के अनुसार अपने माता पिता ,बड़े बुजुर्ग और अपने गुरु को उपहार देकर उनका आशीर्वाद अवश्य ही लेना चाहिए ,उनके साथ कुछ समय भी बिताना चाहिए । इस दिन मिला हुआ आशीर्वाद वरदान साबित होता है , और जीवन में सच्चे ह्रदय से मिले आशीर्वाद का कोईभी मोल नहीं है ।
*अक्षय तृतीया पर यह ना करें*
भविष्य पुराण में बताया गया है कि अक्षय तृतीया के दिन व्यक्ति जो भी काम करता है उसका परिणाम इस जन्म में ही नहीं बल्कि कई-कई जन्मों तक प्राप्त होता है।इसलिए अक्षय तृतीया के दिनकुछ भी करने से पहले यह सोच लेंकि आप जो कर रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा।अक्षय तृतीया के दिन लालच के कारण किसी को आर्थिक नुकसानपहुंचाते हैं,क्रोध या हिंसा करते है किसी का तिरस्कार करतेहै या काम वासना से पीड़ित होकर कोई गलत काम करते है तो इसका कष्टकारी परिणाम भी आपको कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है।
श्रीविष्णु भगवान की पूजा और दान का विशेष महत्व है। 🙏🙏
सौजन्य
श्री रसीक दवे, जुनागढ़ गुजरात
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