बहुत
से विषयों में हमने संक्षिप्त मार्गों की तलाश की . व्यस्तता में इन
मार्गों का अनुशरण करते अपने मंतव्य भी पूरे करने आरम्भ किये . श्रवण और
दर्शन की जाने वाली सामग्रियों की इस तरह प्रचुरता के मध्य हमने इनमें भी
संक्षिप्त मार्ग अपनाया . हमने स्वयं से निर्णय करने में कम समय लगाया , यह
देखा दूसरे क्या पढ़ और देख रहे हैं , उसे अच्छा माना और उन्हीं सामग्रियों
का इस हेतु उपयोग किया .
आधुनिक
इन माध्यमों के जनक पाश्चात्य महादीप (यूरोप तथा अमेरिका ) थे . अतः इन
माध्यमों पर वहां की जीवन शैली और संस्कृति की प्रचुरता थी . ये सब ज्यादा
देख और पढ़ हम उसे सामान्य रूप में लेने लगे . जब इसे इस तरह स्वीकार करने
लगे तो आचरण , व्यवहार और हमारे कर्मों में धीरे धीरे यह शैली आने लगी .
चूँकि युवा वर्ग हमारी संस्कृति के विषय में कम देख और पढ़ पा रहा था, अतः
अपनी भाषा , पहनावा , खानपान , जीवन शैली ,परम्पराओं और मर्यादाओं को
तजने में कोई धर्म संकट या संकोच नहीं हुआ .
लोकप्रियता
, बहुमत की राय तो दर्शा रही थी लेकिन बौध्दिक स्तर नहीं प्रकट कर सकती थी
. बहुमत की राय यदि बौध्दिक स्तर की कमी के बाद है तो उसका औचित्य संदिघ्न
होता है .
लोकप्रियता के नाम मसालों की मात्रा और बढती चली
गयी . लगातार ऐसा देख इसे ही जीवन स्वरूप समझ हम संस्कृति , सिध्दांत और
परम्पराओं से दूर होते गए .
समय आया अब कम युवा ही हमारी संस्कृति ,जीवन शैली क्या थी क्या होना चाहिए इस पर विचार करते हैं .
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