Monday, March 23, 2015

Stonehenge of Manipur

Located at a distance of 39 kilometers from the Maram Village in Manipur, Willong Khullen is characterized by its numerous stone erections which are similar to the Stonehenge. The tallest of the stones are as high as 7 meters and are about a meter in thickness. The place is located on the slopes of the valley and offers a serene picnic and resting spot for the travelers. It is said that the stones are uncountable as there is a spirit that would confuse you midway while counting.
According to local villager, these giant stone structures were ercted by their forefathers and this megalithic structures has a close connection with the mythology of the area. Each Stones has a unique story. They also believe that all the stones have their own name and they ‘really talk’ to each other at night. In male’s voice, each stone called one another with their names such as ‘Kala’, ‘Kanga’, ‘Hila’, etc.
Villagers explained that only a man of exceptional strength and power can think of erecting a stone at the site. He would have to go and find a suitable stone from a far off place and the villagers would assist him in bringing the stone to the village. Before bringing the stone to the village, the man have to fast for one whole night and perform a ritual by offering wine before the stone. Only after getting a favourable nod from the stone, he would be allowed to lift it from the original place. If the man found any difficult in lifting the stone then the villagers would sing a special folk song to bring it to Katak Tukhum area.
According to villagers, none could count the exact number of stones that have been erected at Katak Tukhum area. There is also a folk tale about a Japanese, who challenged to count the number of stones but had to retreat after a white wild boar chased him away from the place.
Even today, there is still a giant stone at the outskirt of the village which the villagers regarded it as sent by God to mark the demarcation of Willong village.
But with the passage of time, such tradition and culture of the Marams seem to be moving away. Fortunately there is still a microscopic minority among the Marams who have been bonding with their ancestral practices and beliefs. Because of this group of people we are indeed grateful in capturing a glimpse of the bygone remnants
Mystery of India.com

Sunday, March 22, 2015

नहीं मिलता है इन रहस्यमय घटनाओं का जवाब

यह कहना गलत नहीं होगा कि वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान एक ऐसे राष्ट्र की है जहां कदम-कदम पर कोई ना कोई चमत्कार देखने को मिल जाता है। वैसे बहुत हद तक यह बात सही भी है क्योंकि अकसर देखा गया है कि चमत्कारों से जुड़ी जितनी कहानियां विश्व के सभी देशों से मिलाकर आती हैं उतनी या उससे कुछ ज्यादा अकेले भारत की भूमि पर घटित हो जाती हैं।
इनमें से कुछ कहानियां हमारे पौराणिक काल में घटित हुई थीं तो कुछ वर्तमान समय से जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ मात्र संयोग हैं तो कुछ वाकई ये सोचने को मजबूर कर देती हैं कि क्या सच में ऐसा भी हो सकता है?
चलिए आज हम आपको कुछ ऐसी ही कहानियों या घटनाओं से परिचित करवाते हैं जो एक ऐसा सवाल बनकर उभरी हैं, जिनका जवाब विज्ञान तक नहीं दे पाया है।
इस श्रेणी में सबसे पहला नाम आता है केरल के कोधिनी गांव का, जिसमें करीब 2000 परिवार रहते हैं। आप सोच रहे होंगे कि इतनी मामूली सी जनसंख्या वाले इस गांव में ऐसा क्या है तो हम आपको बता दें कि मात्र 2000 परिवार वाले इस गांव में लगभग 250 जुड़वा बच्चों के जोड़े रहते हैं।
इतना ही नहीं यह आंकड़ा तो बस आधिकारिक है क्योंकि स्थानीय लोगों के अनुसार यह संख्या 250 नहीं बल्कि 350 है। हैरानी की बात तो यह है कि जुड़वा बच्चों की यह गिनती हर साल बढ़ती ही जा रही है। ऐसा क्यों है, इस बात का जवाब स्वयं डॉक्टरों के पास तक नहीं है। डॉक्टरों का मानना है कि या तो ये लोग कुछ ऐसा खाते हैं जिससे जुड़वा बच्चे जन्म लेते हैं या फिर ये कोई अनुवांशिक क्रिया है। प्रामाणिक जवाब ना मिल पाने के कारण जुड़वा बच्चों का यह गांव एक बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ है।
18 दिसंबर, 2012 की अर्धरात्रि के समय जोधपुर के लोगों को एक तीव्र धमाके की आवाज ने डरा दिया। लेकिन यह धमाका कहां हुआ, आवाज किस चीज की थी, यह आज तक पता नहीं चल पाया है। यह आवाज ऐसी थी जैसे कोई बहुत बड़ा बम फटा हो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। जोधपुर का यह धमाका आज तक एक सवाल ही है।
अगर उस दिन यह रहस्यमय धमाका केवल जोधपुर में ही हुआ होता तो शायद इसे एक इत्तेफाक मानकर नजरअंदाज भी कर दिया जाता। लेकिन इसी तरह का रहस्यमय धमाका इंग्लैंड से लेकर टेक्सास तक हुआ। यह सब करीब एक महीने तक चला लेकिन किसी को इस धमाके का कारण पता नहीं चल पाया।
नौ लोगों की यह रहस्यमय सोसाइटी सर्वप्रथम 273 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई जब लाखों लोगों का रक्त बहाने के बाद स्वयं सम्राट अशोक ने इसकी स्थापना की। इन नौ लोगों का काम उन जानकारियों और विद्या को गुप्त रखना था, जो अगर किसी गलत हाथ में पड़ गईं तो तबाही मचा सकती थीं। हर काल खंड में ये नौ लोग तो बदलते गए लेकिन इनकी संख्या हमेशा नौ ही रही।
ये नौ लोग जनता के बीच में रहते लेकिन अपनी पहचान छिपाकर। इन्हें संसार भर में बड़े ओहदों पर, बड़ी जिम्मेदारियां निभाने भेजा जाता था। कहते हैं भारतीय स्पेस वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और दसवीं शताब्दी के पोप सिल्वेस्टर द्वितीय इसी सीक्रेट सोसाइटी का हिस्सा थे।
खूबसूरती की मिसाल बन चुके ताजमहल को दुनियाभर के लोग शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज की कब्र के रूप में जानते हैं। लेकिन क्या वाकई ताजमहल एक कब्र है? इस सवाल का जवाब एक विवाद बन चुका है क्योंकि इतिहासकार पी.एन. ओक के अनुसार ताजमहल अपने मौलिक रूप में “तेजो महालय” नामक एक शिव मंदिर था, जो कि करीब 300 साल पुराना है।
पी.एन. ओक ने अपनी थ्योरी में यह प्रमाणित किया है कि शाहजहां ने बस इस मंदिर पर कब्जा कर उसे मुमताज की कब्र का नाम दिया है। जबकि असल में यह एक हिन्दू मंदिर है। इस सवाल का जवाब तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि सरकार की ओर से इसके बंद दरवाजों के पीछे छिपे रहस्यों को ना समझा जाए।
करीब 500 साल पहले 1500 लोग कुलधरा गांव में रहते थे। लेकिन एक रात अचानक पूरा गांव बिल्कुल खाली हो गया। ऐसा नहीं है कि वो लोग मर गए या उन्हें अगवा कर लिया गया, वह बस भाग गए। कहा जाता है एक अत्याचारी जमींदार के खौफ की वजह से उन्होंने रातोंरात यह पूरा गांव खाली कर दिया।
जाते-जाते वे लोग इस गांव को एक ऐसा श्राप दे गए जो आज भी इस गांव की बरबादी कहता है। वह श्राप था कि जो भी रात के समय इस गांव में रुकेगा वो वापस नहीं जा पाएगा। तब से लेकर आज तक कोई भी व्यक्ति एक रात के लिए भी यहां नहीं रुका और जो रुका वह सुबह का सूरज नहीं देख पाया।
पुणे की सड़कों पर रात के समय एक ऐसा जीव दिखाई देता है जो बिल्ली, कुत्ते और नेवले का मिश्रण है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार चौड़ी पूंछ और डरावनी आंखों वाली यह बिल्ली बेहद डरावनी है, जिसका चेहरा कुत्ते और पीठ नेवले के समान है। पुणे में कई ऐसे किस्से भी हैं जहां लोगों ने भयानक शरीर वाले राक्षस को देखने की भी बात कही है।
वर्ष 1930 में एक संपन्न और भले परिवार में शांति देवी का जन्म हुआ था। लेकिन जब वे महज 4 साल की थीं तभी उन्होंने अपने माता-पिता को पहचानने से इनकार कर दिया और यह कहने लगीं कि ये उनके असली अभिभावक नहीं हैं। उनका कहना था कि उनका नाम लुग्दी देवी है और बच्चे को जन्म देते समय उनकी मौत हो गई थी। इतना ही नहीं वह अपने पति और परिवार से संबंधित कई और जानकारियां भी देने लगीं।
जब उन्हें, उनके कहे हुए स्थान पर ले जाया गया तो उनकी कही गई हर बात सच निकलने लगी। उन्होंने अपने पति को पहचान लिया और अपने पुत्र को देखकर उसे प्यार करने लगीं। कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में भी शांति देवी की कहानी प्रकाशित हुई। यहां तक कि महात्मा गांधी भी शांति देवी से मिले।
शांति देवी को ना सिर्फ अपना पूर्वजन्म याद था बल्कि उन्हें यह भी याद था कि मृत्यु के बाद और जन्म से पहले भगवान कृष्ण के साथ बिताया गया उनका समय कैसा था। उनका कहना था कि वह कृष्ण से मिली थीं और कृष्ण चाहते थे कि वह अपने पूर्वजन्म की घटना सबको बताएं इसलिए शांति देवी को हर घटना याद है। बहुत से लोगों ने प्रयास किया लेकिन कोई भी शांति देवी को झूठा साबित नहीं कर पाया।

धनुषकोडी – एक ध्वस्त और उपेक्षित तीर्थस्थल !


धनुषकोडी, भारतके दक्षिण-पूर्वी शेष अग्रभागपर स्थित हिन्दुआेंका यह एक पवित्र
तीर्थस्थल है !
यह स्थान पवित्र रामसेतुका उद्गमस्थान है ।
५० वर्षोंसे हिन्दुआेंके इस पवित्र तीर्थस्थलकी अवस्था एक ध्वस्त नगरकी भांति हुई है ।
२२ दिसम्बर १९६४ मेें इस नगरको एक चक्रवातने ध्वस्त किया ।
तदुपरान्त गत ५० वर्षोंमें इस तीर्थस्थलका पुनरूत्थान करनेकी बात तो दूर,
अपितु शासनद्वारा इस नगरको ‘भूतोंका नगर’ घोषित कर उसकी अवमानना की गई ।
इस घटनाको आज ५० वर्ष से अधिक पूर्ण हो गए हैं ।
इस निमित्त बंगाल,आसाम,महाराष्ट्र,कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यके हिन्दुत्ववादी
संगठनोंके नेताआेंके अभ्यासगुटने धनुषकोडीको भेंट दी ।
इस अभ्यासगुटमें हिन्दू जनजागृति समितिके प्रतिनिधि भी सम्मिलीत हुए थे ।
इस भेंटमें धनुषकोडीका उजागर हुआ भीषण वास्तव इस लेखमें प्रस्तुत किया है ।
धनुषकोडीका मीठा पानी,एक प्राकृतिक आश्‍चर्य !
धनुषकोडीके दक्षिणका हिन्दी महासागर गाढा नीला दिखता है,
तो उत्तरका बंगाल का उपसागर मैले काले रंगका दिखता है ।
इन दोनों सागरोंमें १ कि.मी की भी दूरी नहीं है ।
दोनों सागरोंका पानी नमकीन है ।
ऐसा होते हुए भी धनुषकोडीमें ३ फूटका गढ्ढा खोदनेपर उसमें मीठा पानी आता है ।
क्या यह प्रकृतिद्वारा निर्मित चमत्कार नहीं है ?
धनुषकोडीका भूगोल
तमलिनाडु राज्यके पूर्वी तटपर रामेश्‍वरम नामक तीर्थस्थल है ।
रामेश्‍वरमके दक्षिणकी ओर ११ कि.मी. दूरीपर ‘धनुषकोडी’ नगर है ।
यहांसे श्रीलंका केवल १८ कि.मी. दूरीपर है !
बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के पवित्र संगमपर
बसा और ५० गज (अनुमानतः १५० फूट) चौडा धनुषकोडी,बालुसे व्याप्त स्थान है ।
रामेश्‍वरम और धनुषकोडीकी धार्मिक महिमा !
उत्तर भारतमें काशीकी जो धार्मिक महिमा है,वही महिमा दक्षिण भारतमें
रामेश्‍वरमकीे है ।
रामेश्‍वरम हिन्दुआेंके पवित्र चार धाम यात्रामेंसे एक धाम भी है ।
पुराणादि धर्मग्रन्थोंनुसार काशी विश्‍वेश्‍वरकी यात्रा रामेश्‍वरमके श्री रामेश्‍वरके दर्शन
बिना पूरी नहीं होती ।
काशीकी तीर्थयात्रा बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के
संगमपर स्थित धनुषकोडीमें स्नान करनेपर और तदुपरान्त काशीके गंगाजलसे
रामेश्‍वरको अभिषेक करनेके उपरान्त ही पूरी होती है ।
धनुषकोडीका इतिहास और रामसेतुकी प्राचीनता !
२२ दिसम्बरकी अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण रातमें ११.५५ बजे धनुषकोडी रेलस्थानकमें प्रवेश
की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके लिए पंबनसे
११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी) इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
उस समय वह धनुषकोडी रेलस्थानकसे कुछ मीटर दूरीपर थी ।
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
प्रचण्ड वेगसे आनेवाला पानी रामेश्‍वरमके मन्दिरके पास थम गया !
यह चक्रवात आगे-आगे बढते हुए रामेश्‍वरमतक आ गया था ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
इस परिसरके कुल १ सहस्र ८०० से अधिक लोग इस चक्रवातमें मृत हुए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
इस द्वीपकल्पपर १० कि.मी. वेगसे हवा बही और पूरा नगर ध्वस्तहुआ;
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्‍वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्‍वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
केवल एक व्यक्ति बचना !
वर्ष १९६४ के चक्रवातमें धनुषकोडी नगरके सभी लोगोंकी मृत्यु हुई ।
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया,उसका नाम था कालियामन !
इस व्यक्तिने समुद्रमें तैरकर अपने प्राण बचाए;इसलिए शासनने उसका नाम पासके
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
शासनद्वारा धनुषकोडी ‘भूतोंका शहर’ घोषित
इस संकटके उपरान्त तुरन्त ही तत्कालीन मद्रास शासनने दूरवाणीसे धनुषकोडीको
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
बालु और वास्तुआेंके भग्न अवशेषोंका नगर !
सेतुके पहले भागको धनुषकोडी (‘कोडी’ अर्थात धनुष्यका अग्रभाग) कहते है ।
साढे सतरह लाख वर्षपूर्व रावणकी लंकामें (श्रीलंका) प्रवेश करनेके लिए प्रभु
श्रीरामने उसके ‘कोदण्ड’ नामक धनुषके अग्रभागसे सेतु बनानेके लिए यह
स्थान निश्‍चित किया था ।
यहां एक ही रेखामें विद्यमान बडे पाषाणक्षेत्रोंकी शृंखला भग्न अवशेषोंके रूपमें
आज भी हमें देखनेको मिलती है ।
रामसेतु नल और नीलकी वास्तुकलाका एक अदभुत नमुना है ।
वाल्मिकी रामायणमें ऐसा विस्तृत वर्णन है कि रामसेतुकी चौडाई और लम्बाईका
अनुपात १: है ।
प्रत्यक्ष नापनेपर भी उसकी चौडाई ३.५ कि.मी. तथा
लम्बाई ३५ कि.मी. है । इस सेतुके निर्माणकार्यके समय गीलहरीद्वारा दिए योगदानकी
कथा और पानीपर तैरते हुए पाषाण हम हिन्दुआेंकी कई पीढियां जानती हैं ।
धनुषकोडी और रामभक्त विभीषण
श्रीराम-रावण महायुद्धके पहले धनुषकोडी नगरमें ही रावणबन्धु विभीषण प्रभु श्रीरामके
शरणमें आए थे ।
श्रीलंकाके युद्धसमाप्तिके पश्‍चात प्रभु रामचंद्रने इसी नगरमें विभीषणका सम्राटके
रूपमें राज्याभिषेक किया था ।
इसी समय लंकाधिपती विभीषणने प्रभु रामचंद्रसे कहा था,
‘‘भारतके शूर और पराक्रमी राजा रामसेतुका उपयोग कर बार-बार श्रीलंकापर आक्रमण
करेंगे और श्रीलंकाकी स्वतन्त्रता नष्ट करेंगे ।
इसलिए प्रभु आप इस सेतुको नष्ट कीजिए ।’’ अपने भक्तकी प्रार्थना सुनकर कोदण्डधारी
प्रभु रामचंद्रने रामसेतुपर बाण छोडकर उसे पानीमें डुबाया ।
इसलिए यह सेतु पानीके २-३ फूट नीचे गया है ।
आज भी रामसेतुपर कोई खडा रहता है,तो उसके कटितक पानी होता है ।
रामसेतुका ध्वंस करनेवाली सेतुसमुद्रम परियोजना
केन्द्रके पूर्ववर्ती हिन्दूद्वेषी कांग्रेस शासनने व्यावसायिक लाभको देखकर ‘सेतुसमुद्रम शिपिंग कॅनॉल’ नामक परियोजनाद्वारा सेतु ध्वस्त करनेका षडयन्त्र रचा था ।
यह परियोजना हिन्दुआेंकी श्रद्धापर प्रहार ही था ।
अनुमानतः २४ प्रतिशत रामसेतु ध्वस्त होनेके उपरान्त सर्वोच्च न्यायालयने इस परियोजनापर स्थगनप्रस्ताव लाया ।
तबतक रामसेतुका एक चौथाई भाग ‘ड्रील’ किया गया था ।
फलस्वरूप इस सेतुके बडे पाषाण चकनाचूर हो गए हैं ।
आज भी इन पाषाणोंके अवशेष हिन्दी महासागर और बंगालके उपसागरमें तैरते दिखाई
देते हैं ।
मछुआरोंके जालमें कई बार इन तैरते पाषाणोंके टुकडे आते हैं ।
कुछ लोग धनुषकोडी अथवा रामेश्‍वरममें यह पत्थर बेचते दिखाई देते हैं ।
इस प्रकारसे ऐतिहासिक और धार्मिक आस्थासे सम्बन्धित वास्तुका ध्वंस करनेवाले
कांग्रेसजन अखिल मानवजातिके ही नहीं,अपितु इतिहासके भी अपराधी हैं ।
उनका अपराध क्षम्य नहीं !
धनुषकोडी वर्ष १९६४ के पहले बडा नगर था !
ब्रिटिशकालमें धनुषकोडी एक बडा नगर था,तो रामेश्‍वरम एक छोटासा गांव था ।
यहांसे श्रीलांका
जानेके लिए नौकाआेंकी सुविधा थी ।
उस समय श्रीलंका जानेके लिए पारपत्र (पासपोर्ट) की आवश्यकता नहीं थी ।
धनुषकोडी से थलाईमन्नार (श्रीलंका) तककी नौकायात्राका टिकट केवल १८ रुपया था ।
इन नौकाआें द्वारा व्यापारी वस्तुआेंका लेन-देन भी होता था ।
वर्ष १८९३ में अमेरिकामें धर्मसंसदके लिए गए स्वामी विवेकानंद वर्ष १८९७ में श्रीलंकामार्ग
से भारतमें आए,तब वे धनुषकोडीकी भूमिपर उतरे थे ।
वर्ष १९६४ में धनुषकोडी विख्यात पर्यटनस्थल और तीर्थस्थल था ।
श्रद्धालुआेंके लिए यहां होटल, कपडोंके दुकान और धर्मशालाएं थी ।
उस समय धनुषकोडीमें जलयाननिर्माण केन्द्र,रेलस्थानक,छोटा रेल चिकित्सालय,
पोस्ट कार्यालय और मत्स्यपालन जैसे कुछ शासकीय कार्यालय थे ।
वर्ष १९६४ के चक्रवातके पहले चेन्नई और धनुषकोडीके मध्यमें ‘मद्रास एग्मोर’से
‘बोट मेल’ नामसे परिचित रेलसेवा थी ।
आगे श्रीलंकामें फेरीबोटसे जानेवालोंके लिए वह उपयुक्त थी ।
धनुषकोडीका ध्वंस करनेवाला १९६४ का चक्रवात !
१९६४ में आया चक्रवात धनुषकोडीका ध्वंस कनेवाला सिद्ध हुआ ।
१७ दिसम्बर १९६४ को दक्षिणी अण्डमान समुद्रमें ५ डिग्री पूर्वमें उसका केन्द्र था ।
१९ दिसम्बरको उसने एक बडे चक्रवातके रूपमें वेग धारण किया ।
२२ दिसम्बरकी रातमें वह २७० कि.मी प्रतिघण्टाके वेगसे श्रीलांकाको पार कर धनुषकोडी
के तटपर धडक गया ।
चक्रवातके समय आई २० फूट ऊंची तरंगने धनुषकोडी नगरके पूर्वके संगमसे नगरपर
आक्रमण किया और पूर्ण धनुषकोडी नगर नष्ट किया ।
धनुषकोडीके बसस्थानकके पास चक्रवातमें बली हुए लोगोंका एक स्मारक बनाया गया है ।
उसपर लिखा है -‘उच्च वेगसे बहनेवाली हवाके साथ आए उच्च गतिके चक्रवातमें २२
दिसम्बर १९६४ की रातमें प्रचण्ड हानि हुई और धनुषकोडी ध्वस्त हुआ !’
चक्रवातमें रेलका पूल और रेलगाडी भी नष्ट !
२२ दिसम्बरकी अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण रातमें ११.५५ बजे धनुषकोडी रेलस्थानकमें
प्रवेश की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके
लिए पंबनसे ११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी)
इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
उस समय वह धनुषकोडी रेलस्थानकसे कुछ मीटर दूरीपर थी ।
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
प्रचण्ड वेगसे आनेवाला पानी रामेश्‍वरमके मन्दिरके पास थम गया !
यह चक्रवात आगे-आगे बढते हुए रामेश्‍वरमतक आ गया था ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
इस परिसरके कुल १ सहस्र ८०० से अधिक लोग इस चक्रवातमें मृत हुए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
इस द्वीपकल्पपर १० कि.मी. वेगसे हवा बही और पूरा नगर ध्वस्त हुआ;
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्‍वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्‍वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
केवल एक व्यक्ति बचना !
वर्ष १९६४ के चक्रवातमें धनुषकोडी नगरके सभी लोगोंकी मृत्यु हुई ।
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया, उसका नाम था कालियामन !
इस व्यक्तिने समुद्रमें तैरकर अपने प्राण बचाए;इसलिए शासनने उसका नाम पासके
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
शासनद्वारा धनुषकोडी ‘भूतोंका शहर’ घोषित
इस संकटके उपरान्त तुरन्त ही तत्कालीन मद्रास शासनने दूरवाणीसे धनुषकोडीको
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
बालु और वास्तुआेंके भग्न अवशेषोंका नगर !
तीर्थस्थलोंका खरा सिकास हिन्दू राष्ट्रमें ही होगा !
धनुषकोडीका भीषण वास्तव प्रत्यक्ष देखनेपर ध्यानमें आता है कि सर्वपक्षीय
राज्यकर्ताआेंने भारतीय तीर्थस्थलोंकी किस प्रकार उपेक्षा की है ।
प्रश्‍न है कि क्या काशीको ‘स्मार्ट सिटी’ बनानेकी घोषणा करनेवाले विकासपुरुष
काशीयात्राको पूर्णत्व देनेवाले धनुषकोडी नगरको भी न्याय देंगे ?
हिन्दुआेंकी असंवेदनशीलता भी इस दुर्गतिका एक कारण है ।
हमें यह समझना होगा कि यदि हम हिन्दू इसी प्रकार असंवेदनशील रहेंगे,
तो आजतक विकसित हुए अनेक तीर्थस्थलोंकी अवस्था भविष्यमें धनुषकोडीसमान
हो जाएगी ।
हिन्दुआेंके तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए तथा वहां धर्मशालाएं,सडकें आदि
सुविधा करनेके लिए हमें शासनसे आग्रहपूर्वक मांग करनी चाहिए ।
वास्तव में तो यह है कि प्रचलित धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थामें हिन्दू धर्महितके कार्य होंगे,
ऐसी अपेक्षा करना उचित नहीं होगा ।
इसलिए हिन्दूहित साधनेवाला धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापित करना,
तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए यही खरा उपाय है ।
रेलस्थानकके भग्न १९६४ के पूर्वके एक भव्य चर्चके अवशेष
धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापित करना,तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए यही
खरा उपाय है ।
अब धनुषकोडी नगरपर पूर्णतः (मध्य-मध्यमें समुद्रका पानी और वनस्पती) बालुका
साम्राज्य है ।
अवकाशसे खींचे चित्रोंसे इस नगरकी ओर देखनेपर केवल बालु ही दिखती है ।
यहांकी बालुमें सर्वत्र वास्तुआेंके भग्न अवशेष दिखाई पडते हैं ।
जलयाननिर्मिती केन्द्र,रेलस्थानक,टपाल कार्यालय,चिकित्सालय,पुलिस और
रेलकी कालोनियां,विद्यालय, मन्दिर चर्च आदिके अवशेष यहां स्पष्टरूपसे
दिखाई देते हैं ।
धनुषकोडीके विकासकी उपेक्षा !
धनुषकोडी नगरमें जानेसे पहले श्रद्धालुआेंको बताया जाता है कि, ‘एकसाथ जाओ
और सूर्यास्तके पहले लौट आओ’; क्योंकि १५ कि.मी. की पूरी सडक निर्मनुष्य और
भयानक है ।
वर्तमानमें लगभग ५०० से अधिक यात्री प्रतिदिन धनुषकोडीमें आते हैं ।
त्यौहार और पूर्णिमाके दिन सहस्रोंकी संख्यामें यात्री यहां आते हैं ।
धनुषकोडीमें पूजन-अर्चन करनेवालोंके लिए निजी वाहनके अतिरिक्त कोई
विकल्प नहीं है ।
निजी वाहनोंके चालक यात्रियोंसे ५० से १०० रुपयोंतक किराया लेते हैं ।
रामेश्‍वरमको जानेवाले पूरे देशक ेयात्रियोंकी मांगके अनुसार वर्ष २००३ में दक्षिण
रेल मन्त्रालयने रामेश्‍वरमसे धनुषकोडीतक १६ कि.मी. रेलमार्ग बनानेके लिए एक
प्रतिवेदन भेजा था परन्तु आजतक इसकी उपेक्षा ही की गई है ।
अयोग्य शासकीय नीतियोंके कारण दर्शन दुर्लभ होना !
पूरे भारतसे श्रद्धालु यहां केवल पवित्र रामसेतुका दर्शन लेने आते हैं ।
धनुषकोडीमें आनेके पश्‍चात पता चलता है कि रामसेतुके दर्शन करनेके लिए
कस्टमकी अनुमति लगती है ।
कस्टमका यह कार्यालय रामेश्‍वरममें है ।
रामेश्‍वरमसे धनुषकोडीतक यात्री पक्की सडक न होनेके कारण कभी बालुसे तो कभी
सागरके पानीसे कष्टप्रद यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं ।
परन्तु यहां आनेपर अनुमति लेनेके लिए उन्हें पुनः १८ कि.मी. का कष्टप्रद अन्तर
काटकर रामेश्‍वरमको जाना पडता है ।
श्रद्धालुआेंके साथ किया यह छल है ।
परिणामस्वरूप ९० प्रतिशत श्रद्धालु धनुषकोडीमें पहुंचनेपर भी पवित्र रामसेतुके दर्शन
नहीं कर पाते ।
शासन धनुषकोडीमें ही कस्टमका कार्यालय क्यों नहीं खोलता ?
श्रीलंकासे टूटा सम्पर्क !
भारत-श्रीलंकामें सागरी सीमा विवाद उत्पन्न होनेसे धनुषकोडीसे थलाईमन्नारतककी
सागरी यातायात बन्द हुई ।
इससे यहांके हिन्दुआेंका श्रीलंकाके हिन्दुआेंसे सम्पर्क टूट गया ।
इसके पहले प्रतिदिन सायंकालमें ६ बजे श्रीलंकासे भारतमें दूध आता था,
जिससे दूसरे दिन प्रातः रामेश्‍वरमके शिवलिंगपर अभिषेक कियाजाता था ।
यह परम्परा अनेक वर्षोंसे थी ।
भारत-श्रीलंकाके सागरी सीमा विवादके कारण वह बन्द हुई ।
पहले थलाइमन्नार से धनुषकोडीतककी ३५ कि.मी. की यात्रा नौकासे २ घण्टेमें होती थी ।
अब थलाईमन्नारसे कालंबोतक ५०० कि.मी. की यात्रा करके जाना पडता है ।
कोलंबो से मदुराई विमानसेवा है ।
इसके लिए १ घण्टा लगता है ।
मदुराई से रामेश्‍वरम की २०० कि.मी की यात्रा रेल अथवा बससे करनेके लिए साढेचार
घण्टे लगते हैं ।
श्रद्धालुआेंकी परीक्षा लेनेवाली रामेश्‍वरम से धनुषकोडीतककी मार्गहीन यात्रा !
वर्तमान स्थितिमें रामेश्‍वरमसे धनुषकोडीको जाना होगा, तो या तो बालु और समुद्रसे
मार्ग निकालते हुए पैदल जाना पडता है अथवा निजी बसगाडीसे !
रामेश्‍वरममें आनेपर धनुषकोडी जाकर रामसेतुके दर्शन करनेकी श्रद्धालुआेंकी इच्छा
रहती है इस १८ कि.मी. की यात्रामें हेमपुरमतक पक्की सडक है ।
वहांसे आगेकी सम्पूर्ण यात्रा सागरी तटकी बालुसे अथवा सागरीतटके निकटके पानीसे
वाहन चलाकर करनी पडती है ।
इन ७ कि.मी. के लिए सडक बनाई ही नहीं है ।
भारतका प्रमुख तीर्थस्थल होते हुए भी यहां सडक बनाई न जाना आश्‍चर्यजनक है ।
श्रद्धालु यहां आना चाहते हैं ।
अपनेआपको बडे संकटमें डालकर वे यहां आते हैं ।
अधिकांश श्रद्धालु हेमपुरमतक ही आते हैं ।
यहांसे आगे सडक न होनेके कारण वे आगे जानेका साहस नहीं करते ।
जो साहसी होते हैं, ऐसे श्रद्धालु ही धनुषकोडीतक जानेका प्रयास करते हैं ।
रामेश्‍वरम से धनुषकोडीकी सडक आजतक क्यों नहीं बनाई गई, ऐसा प्रश्‍न यहां
आनेवाले प्रत्येक श्रद्धालुके मनमें आता है ।
हिन्दुआेंकी धर्मभावनाआेंको किसी भी प्रकारसे महत्त्व न देनेका भारतके धर्मनिरपेक्षतावादी राज्यकर्ताआें का तत्त्व यहां भी दिखाई देता है ।
केवल धर्मभावनाकी दृष्टिसे ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय एकताकी दृष्टिसे भी यह मार्ग बनाना
आवश्यक है ।
काशी जानेवाले करोडो हिन्दू जाति,भाष,प्रान्त आदि भेद त्यागकर रामेश्‍वरमके दर्शनकी
आस लगाए बैठते हैं ।
केवल दक्षिण भारतके ही नहीं,अपितु कश्मीरके साथ उत्तर भारत,आसामके साथ
उत्तरपूर्वी भारत, बंगालके साथ पूर्व भारत,मुंबई,गुजरात आदि पश्‍चिम भारतके
नागरिक यहां दर्शनके लिए आते हैं अथवा आनेकी इच्छा रखते हैं ।
धनुषकोडी राष्ट्रीय एकता साधनेवाला नगर है ।
तमिलनाडु शासन और केन्द्रशासन यह छोटीसी सडक बनाकर राष्ट्रीय एकताका यह
आधार सुदृढ क्यों नहीं बनाते ?
महानगरोंमें मेट्रो ट्रेन आरम्भ करनेके लिए सहस्रो करोड रुपए व्यय किए जाते हैं;
तो फिर केवल ५०-६० करोड रुपयोंकी यह सडक क्यों नहीं बनाई जाती ?
कश्मीरमें पूंछ से श्रीनगरमें मुघलकालीन मार्ग था ।
इस मार्गको इस्लामी संस्कृतिकी देन समझकर उसका पुनरूत्थान करनेके लिए
शासनने करोडो रुपए व्यय किए;फिर १९६४ में ध्वस्त हुआ; परन्तु हिन्दुआेंके
आस्थास्रोतसे सम्बन्धित यह मार्ग पुनश्‍च निर्माण करनेमें क्या अडचन आती है ?
धनुषकोडीमें चर्चका आडंबर संकटकी सूचना !
आजतकका अनुभव है कि ईसाई मिश्‍नरी भारतके कोनेकोनेमें विशेषकर पीछडे और
दुर्गम क्षेत्रमें जाकर धर्मान्तरणका कार्य करते हैं ।
भारते दक्षिणपूर्वके अग्रभागमें स्थित धनुषकोडी नगरमें एक भव्य चर्चके अवशेष हैं ।
यह चर्च १९६४ के चक्रवातमें ध्वस्त हुआ ।
इसका अर्थ यह है कि उस समय भी ईसाई धर्मप्रचारक भारी संख्यामें धर्मान्तरण कर रहे थे ।
अब धनुषकोडी नगरके २ कि.मी. पहले एक मध्यम आकारका चर्च खडा है ।
उसके आसपास कोई मनुष्यबस्ती नहीं है ।
वास्तवमें हिन्दुआेंके इस पवित्र स्थानमें चर्च बनानेके लिए शासनको अनुमति नहीं
देनी चाहिए ।
जिस प्रकार मक्कामें चर्च नहीं बना सकते अथवा वैटिकनमें मन्दिर नहीं बना सकते,
उसी प्रकार हिन्दुआेंके तीर्थस्थलोंके स्थानपर चर्च,मस्जिदें,दरगाह बनानेकी अनुमति
नहीं होनी चाहिए ।
यहांके चर्चका रहस्य ध्यानमें रखकर हमने यहांके मछुआरोंको मिलनेका प्रयत्न किया ।
हमें लगा कि वे धर्मान्तरित हुए होंगे । प्रत्यक्ष मिलनेपर पता चला कि सभी मछुआरे
हिन्दू ही हैं ।
वर्ष १९६४ के पहलेके भव्य चर्चके अवशेष देखनेपर ध्यानमें आता है कि वहां भारी संख्यामें धर्मान्तरण हुआ होगा; परन्तु अब वहां एक भी ईसाई नहीं है ।
या तो १९६४ के चक्रवातमें सभी ईसाई नष्ट हुए या ‘आकाशका बाप धनुषकोडीके ईसाईयोंको
बचाता नहीं‘, यह ध्यानमें आनेपर वे वहांसे भाग गए होंगे ।
ऐसा होते हुए भी आसपासके परिसरमें चर्चकी स्थापना और भारी संख्यामें ईसाई
धर्मप्रचारक आदिके कारण भविष्यमें वहांके अज्ञान और निर्धन हिन्दू ईसाई हो गए,
तो कोई आश्‍चर्य नहीं लगेगा ।
भविष्यमें धर्मान्तरणका आडंबर बढकर जब यह क्षेत्र नागालैण्ड-मीजोरम जैसा बनेगा,
तब भारतीय राज्यकर्ता इस क्षेत्रके विकासके लिए करोडो रुपए व्यय करेंगे।
संकलनकर्ता: श्री. चेतन राजहंस, हिन्दू जनजागृति समिति,,,

Saturday, March 21, 2015

20 Amazing Scientific Reasons Behind Hindu Traditions

1.  Joining Both Palms Together To Greet

In Hindu culture, people greet each other by joining their palms – termed as “Namaskar.” The general reason behind this tradition is that greeting by joining both the palms means respect. However, scientifically speaking, joining both hands ensures joining the tips of all the fingers together; which are denoted to the pressure points of eyes, ears, and mind. Pressing them together is said to activate the pressure points which helps us remember that person for a long time. And, no germs since we don’t make any physical contact!

2. Why Do Indian Women Wear Toe Ring

Wearing toe rings is not just the significance of married women but there is science behind it. Normally toe rings are worn on the second toe. A particular nerve from the second toe connects the uterus and passes to heart. Wearing toe ring on this finger strengthens the uterus. It will keep it healthy by regulating the blood flow to it and menstrual cycle will be regularized. As Silver is a good conductor, it also absorbs polar energies from the earth and passes it to the body.

3. Throwing Coins Into A River

The general reasoning given for this act is that it brings Good Luck. However, scientifically speaking, in the ancient times, most of the currency used was made of copper unlike the stainless steel coins of today. Copper is a vital metal very useful to the human body. Throwing coins in the river was one way our fore-fathers ensured we intake sufficient copper as part of the water as rivers were the only source of drinking water. Making it a custom ensured that all of us follow the practice.

4. Applying Tilak/KumKum On The Forehead

On the forehead, between the two eyebrows, is a spot that is considered as a major nerve point in human body since ancient times. The Tilak is believed to prevent the loss of “energy”, the red ‘kumkum’ between the eyebrows is said to retain energy in the human body and control the various levels of concentration. While applying kumkum the points on the mid-brow region and Adnya-chakra are automatically pressed. This also facilitates the blood supply to the face muscles.

5. Why Do Temples Have Bells

People who are visiting the temple should and will Ring the bell before entering the inner sanctum (Garbhagudi or Garbha Gruha or womb-chamber) where the main idol is placed. According to Agama Sastra, the bell is used to give sound for keeping evil forces away and the ring of the bell is pleasant to God. However, the scientific reason behind bells is that their ring clears our mind and helps us stay sharp and keep our full concentration on devotional purpose. These bells are made in such a way that when they produce a sound it creates a unity in the Left and Right parts of our brains. The moment we ring the bell, it produces a sharp and enduring sound which lasts for minimum of 7 seconds in echo mode. The duration of echo is good enough to activate all the seven healing centres in our body. This results in emptying our brain from all negative thoughts.

6. Why We Start With Spice & End With Sweet:

Our ancestors have stressed on the fact that our meals should be started off with something spicy and sweet dishes should be taken towards the end. The significance of this eating practice is that while spicy things activate the digestive juices and acids and ensure that the digestion process goes on smoothly and efficiently, sweets or carbohydrates pulls down the digestive process. Hence, sweets were always recommended to be taken as a last item.

7.  Why Do We Applying Mehendi/Henna On The Hand And Feet

Besides lending color to the hands, mehndi is a very powerful medicinal herb. Weddings are stressful, and often, the stress causes headaches and fevers. As the wedding day approaches, the excitement mixed with nervous anticipation can take its toll on the bride and groom. Application of mehndi can prevent too much stress because it cools the body and keeps the nerves from becoming tense. This is the reason why mehndi is applied on the hands and feet, which house nerve endings in the body.

8. Sitting On The Floor & Eating

This tradition is not just about sitting on floor and eating, it is regarding sitting in the “Sukhasan” position and then eating. Sukhasan is the position we normally use for Yoga asanas. When you sit on the floor, you usually sit cross legged – In sukhasana or a half padmasana  (half lotus), which are poses that instantly bring a sense of calm and help in digestion, it is believed to automatically trigger the signals to your brain to prepare the stomach for digestion.

9. Why You Should Not To Sleep With Your Head Towards North

Myth is that it invites ghost or death but science says that it is because human body has its own magnetic field (Also known as hearts magnetic field, because the flow of blood) and Earth is a giant magnet. When we sleep with head towards north, our body’s magnetic field become completely asymmetrical to the Earth’s Magnetic field. That cause problems related to blood pressure and our heart needs to work harder in order to overcome this asymmetry of Magnetic fields. Apart from this another reason is that Our body have significant amount of iron in our blood. When we sleep in this position, iron from the whole body starts to congregate in brain. This can cause headache, Alzheimer’s Disease, Cognitive Decline, Parkinson disease and brain degeneration.

10. Why We Pierce Ear

Piercing the ears has a great importance in Indian ethos. Indian physicians and philosophers believe that piercing the ears helps in the development of intellect, power of thinking and decision making faculties. Talkativeness fritters away life energy. Ear piercing helps in speech-restraint. It helps to reduce impertinent behavior and the ear-channels become free from disorders. This idea appeals to the Western world as well, and so they are getting their ears pierced to wear fancy earrings as a mark of fashion.

11. Surya Namaskar

Hindus have a tradition of paying regards to Sun God early in the morning by their water offering ritual. It was mainly because looking at Sun rays through water or directly at that time of the day is good for eyes and also by waking up to follow this routine, we become prone to a morning lifestyle and mornings are proven to be the most effective part of the day.

12. Choti On The Male Head

Sushrut rishi, the foremost surgeon of Ayurveda, describes the master sensitive spot on the head as Adhipati Marma, where there is a nexus of all nerves. The shikha protects this spot. Below, in the brain, occurs the Brahmarandhra, where the sushumnã (nerve) arrives from the lower part of the body. In Yog, Brahmarandhra is the highest, seventh chakra, with the thousand-petalled lotus. It is the centre of wisdom. The knotted shikhã helps boost this centre and conserve its subtle energy known as ojas.

13. Why Do We Fast

The underlying principle behind fasting is to be found in Ayurveda. This ancient Indian medical system sees the basic cause of many diseases as the accumulation of toxic materials in the digestive system. Regular cleansing of toxic materials keeps one healthy. By fasting, the digestive organs get rest and all body mechanisms are cleansed and corrected. A complete fast is good for heath, and the occasional intake of warm lemon juice during the period of fasting prevents the flatulence. Since the human body, as explained by Ayurveda, is composed of 80% liquid and 20% solid, like the earth, the gravitational force of the moon affects the fluid contents of the body. It causes emotional imbalances in the body, making some people tense, irritable and violent. Fasting acts as antidote, for it lowers the acid content in the body which helps people to retain their sanity. Research suggests there are major health benefits to caloric restriction like reduced risks of cancer, cardiovascular diseases, diabetes, immune disorders etc.

14. The Scientific Explanation Of Touching Feet (Charan Sparsh)

Usually, the person of whose feet you are touching is either old or pious. When they accept your respect which came from your reduced ego (and is called your shraddha) their hearts emit positive thoughts and energy (which is called their karuna) which reaches you through their hands and toes. In essence, the completed circuit enables flow of energy and increases cosmic energy, switching on a quick connect between two minds and hearts. To an extent, the same is achieved through handshakes and hugs. The nerves that start from our brain spread across all your body. These nerves or wires end in the fingertips of your hand and feet. When you join the fingertips of your hand to those of their opposite feet, a circuit is immediately formed and the energies of two bodies are connected. Your fingers and palms become the ‘receptor’ of energy and the feet of other person become the ‘giver’ of energy.

15. Why Married Women Apply Sindoor Or Vermillion

It is interesting to note that that the application of sindoor by married women carries a physiological significance. This is so because Sindoor is prepared by mixing turmeric-lime and the metal mercury. Due to its intrinsic properties, mercury, besides controlling blood pressure also activates sexual drive. This also explains why Sindoor is prohibited for the widows. For best results, Sindoor should be applied right upto the pituitary gland where all our feelings are centered. Mercury is also known for removing stress and strain.

16. Why Do We Worship Peepal Tree

Peepal’ tree is almost useless for an ordinary person, except for its shadow. ‘Peepal’ does not a have a delicious fruit, its wood is not strong enough for any purpose then why should a common villager or person worship it or even care for it? Our ancestors knew that ‘Peepal’ is one of the very few trees (or probably the only tree) which produces oxygen even at night. So in order to save this tree because of its unique property they related it to God/religion.

17. Why Do We Worship Tulsi Plant


Hindu religion has bestowed ‘Tulsi’, with the status of mother. Also known as ‘Sacred or Holy Basil’, Tulsi, has been recognized as a religious and spiritual devout in many parts of the world. The vedic sages knew the benefits of Tulsi and that is why they personified it as a Goddess and gave a clear message to the entire community that it needs to be taken care of by the people, literate or illiterate. We try to protect it because it is like Sanjeevani for the mankind. Tulsi has great medicinal properties. It is a remarkable antibiotic. Taking Tulsi everyday in tea or otherwise increases immunity and help the drinker prevent diseases, stabilize his or her health condition, balance his or her body system and most important of all, prolong his or her life. Keeping Tulsi plant at home prevents insects and mosquitoes from entering the house. It is said that snakes do not dare to go near a Tulsi plant. Maybe that is why ancient people would grow lots of Tulsi near their houses.

18. Why Do We Worship Idol

Hinduism propagates idol worship more than any other religion. Researchers say that this was initiated for the purpose of increasing concentration during prayers. According to psychiatrists, a man will shape his thoughts as per what he sees. If you have 3 different objects in front of you, your thinking will change according to the object you are viewing. Similarly, in ancient India, idol worship was established so that when people view idols it is easy for them to concentrate to gain spiritual energy and meditate without mental diversion

19. Why Do Indian Women Wear Bangles

Normally the wrist portion is in constant activation on any human. Also the pulse beat in this portion is mostly checked for all sorts of ailments. The Bangles used by women are normally in the wrist part of ones hand and its constant friction increases the blood circulation level. Further more the electricity passing out through outer skin is again reverted to one’s own body because of the ring shaped bangles, which has no ends to pass the energy outside but to send it back to the body.

20. Why Should We Visit Temple?

Temples are located strategically at a place where the positive energy is abundantly available from the magnetic and electric wave distributions of north/south pole thrust. The main idol is placed in the core center of the temple, known as “*Garbhagriha*” or *Moolasthanam*. In fact, the temple structure is built after the idol has been placed. This *Moolasthanam* is where earth’s magnetic waves are found to be maximum. We know that there are some copper plates, inscribed with Vedic scripts, buried beneath the Main Idol. What are they really? No, they are not God’s / priests’ flash cards when they forget the *shlokas*. The copper plate absorbs earth’s magnetic waves and radiates it to the surroundings. Thus a person regularly visiting a temple and walking clockwise around the Main Idol receives the beamed magnetic waves and his body absorbs it. This is a very slow process and a regular visit will let him absorb more of this positive energy. Scientifically, it is the positive energy that we all require to have a healthy life.

Vietnam’s ancient Hindu culture rediscovered

Vietnam is an atheist state, but a significant section of the population practises traditional religions; some adhere to Buddhism and there are quite a few Catholics left over from the French occupation.
However, tucked away not far from Hoi An, is My Son, a UNESCO World Heritage site, once the location of the ancient Hindu Champa civilisation and its majestic complex of temples dedicated to Lord Shiva and Lord Vishnu.
Originally the religious and political capital of the Champa kingdom, the complex was built around the third or fourth century AD, and traces its spiritual roots back to Indian Hinduism. The city was forgotten with the passing of the Cham reign and for centuries sat hidden in the jungle.
Consisting of 70 ruins over 57ha, the site was rediscovered and renovated by the French in the late 1890s, but was subsequently heavily bombed during the Vietnam War, when it was found to be a hiding place for the Viet Cong.
Parts of the site are gradually being reconstructed using the traditional red bricks of the original work, although some of the very early work looks clumsy. Under government supervision, more recent reconstruction and renovation work is now of a high standard, with de-mining of the area being an early priority and still an important consideration for the wider areas around the site.
The renovations also face less alarming, but no less important, challenges. Modern artisans are having difficulties replicating the unique properties of the construction techniques and are struggling to resolve questions around the firing of the bricks. The brick courses of these ancient buildings seem to be held together with just millimetres of incredibly strong mortar – something else which has yet to be successfully reproduced.
My Son is an extraordinary example of an ancient culture – and one which kept written records. Much was recorded on perishable materials, but a great deal has been preserved on stone slabs or pillars and these have been a precious source of information for scholars and archaeologists.
The My Son site is easily accessible from Hoi An or Da Nang, on Vietnam’s south central coast, via group or private tours. There is little signage on the site, so it is worth going with an informed guide. It is also very well worth going early in the morning to beat the heat and the large buses, both of which arrive towards the middle of the day.

Getting there

Direct flights are available from Sydney and Melbourne to Vietnam’s Ho Chi Minh City flying Qantas, Virgin Australia and Vietnam Airlines. Da Nang is about 14.5 hours’ drive north of Ho Chi Minh City and 13 hours south of Hanoi, and can be reached by bus, train or plane. Taxis and buses are available for the 43-minute trip between Da Nang and Hoi An.

Other things to do

Hoi An: this pretty town was a major port city in the 15th century but now exudes a peaceful, elegant charm. It is known, for its art, low-cost tailors and food, and lends itself to exploration by foot, bike or even kayak.
Han Market, Da Nang: one of the largest of the more than 50 markets in the large riverfront city of Da Nang, Han features fresh local produce, fresh and dried fish, meat, dry goods and clothing. It offers an insight into Vietnamese cuisine and culture – with one or two surprises.

What happened to Vanara Sena after Ramayana?

Vanara Sena after Ramayana
Everyone is familiar with the glorious role played by the Vanara Sena, or monkey clan, led by Hanuman, Vali and Sugreeva, in the Ramayana. But not many know what happened to them afterwards. Let’s find out!
An excerpt from the Ramayana
An excerpt from the Uttara Kanda of the Ramayana describes the fate of the various Vanaras post-Ramayana…when Rama was told by Yama, the god of death, that his time on Earth was nearing an end, he prepared to depart the Earth by going into the Sarayu river.
Angada in charge
When Sugriva heard about this, he put Vali's son Angada in charge of the Vanara kingdom of Kishkindha, after which, he and a group of Vanaras went to Ayodhya to join Rama in departing the Earth.
Monkeys
Then, the Vanaras, accompanied by bears and rakshasas (demons), began to assemble there. Apprised of Rama's determination of going to heaven, the Vanaras, along with Rishis and Gandharvas, came to see Rama.
What they said to Rama
And they told Rama: "O Rama, foremost among men, if you depart for heaven forsaking us all, it will be akin to hurling Yama's rod upon us." The highly powerful Sugriva too saluted Rama, saying: "O lord of men, having placed Angada on the throne, I have come hither. I am determined to follow you, O King."
Rama agrees
Hearing the words of the Vanaras, Rama agreed to fulfil their wishes. He tells Hanuman, "It is settled that you shall live forever. As long as my history is spoken in this world, you will also be praised. Being thus addressed by his beloved Master, Hanuman was delighted, and said, "As long as the sacred theme is present in this world, I shall live here, carrying out your command."
Hanuman assures other Vanars
Thereupon, Hanuman tells Jambhavan, Mainda, Dwrivida and other Vanaras: "As long as the Kali Yuga exists, so will you all live." Thus, while Sugriva and other Vanaras departed the Earth along with Rama, Hanuman, Jambavan, Mainda, Dvivida, and five other Vanaras (including Nila and Nala), are said to be still alive today.
Famous appearances of a Vanara
The most famous appearance of a Vanara is Hanuman's encounter with the Pandavas, in a much-later Yuga. The “Vana Parva” of the Mahabharata describes how Hanuman once blocked the path of Bhima in the Gandhamadana mountains in the Himalayas. Incidentally, both being the sons of Vayu, the wind god, they were also brothers.
Arjuna meeting Hanuman
Then, there is the story of Arjuna meeting Hanuman at Rameshwaram and challenging him to make a sturdy bridge of arrows. This encounter is said to be responsible for Arjuna putting the flag of Hanuman on his chariot, and also why Arjuna is also known as “Kapidhwaja”.
Krishna and Jambhavan
In another instance, the Srimad Bhagavatam describes how Krishna was once falsely accused of stealing the Syamantaka gem, and he launched a quest to clear his name. The gem had actually fallen into the hands of Jambhavan, who lived in a mountain cave, who in turn gave it to his son to play with.
Krishna fights Jambhavan
So Krishna fought Jambhavan to get the gem back. Jambhavan, realising that Krishna was a reincarnation of Rama, to whom Jambhavan had the utmost loyalty, happily gives Krishna the Syamantaka gem, as well as his daughter's hand in marriage. Jambhavan's daughter Jambhavati thus became one of Krishna's queens.
Pandavas and other Vanars
The Sabha Parva of the Mahabharata describes how Yudhishthira conducted a Rajasuya Yagna, during which he sent his four brothers in all four directions, and each king they encountered had to either accept the sovereignty of Yudhisthira, or fight them. Sahadeva was sent South, where he conquered the Vanara kingdom of Kishkindha after a week-long battle with Mainda and Dvivida, who were ruling it at the time.
The caves of Kishkindha
The long-armed hero marched further south, where he beheld the celebrated caves of Kishkindha and fought for seven days with the monkey kings Mainda and Dwivida. Those illustrious kings, however, without being tired of the encounter, expressed gratification with Sahadeva. And joyfully addressing the Kuru prince, they said, "O tiger among the sons of Pandu, go hence, taking the tribute from us all. Let the mission of king Yudhishthira be accomplished without hindrance."
Legend of Dvivida
There was an ape named Dvivida who was a friend of Narakasura. This powerful Dvivida, the brother of Mainda, had been instructed by King Sugriva to avenge the death of his friend Naraka. Indeed, the ape Dvivida ravaged the land, setting fires that burned cities, villages, mines and cowherd dwellings.
Mass destruction
Dvivida tore up a number of mountains and used them to devastate all the neighbouring kingdoms, especially the province of Anarta, wherein dwelt his friend’s killer, Lord Hari. Another time, he entered the ocean and, with the strength of 10,000 elephants, churned up its water with his arms, thereby submerging the coastal regions.
Sages tormented
The wicked ape tore down the trees in the hermitages of exalted sages and contaminated their sacrificial fires. Just as a wasp imprisons smaller insects, he arrogantly threw both men and women into caves in a mountain valley and sealed the caves shut with boulders.
Krishna's brother Balarama
Finally, Dvivida harassed a group of young women who were with Krishna's brother Balarama, so Balarama fought him in an epic battle. While Lord Balarama took up his club and plow weapon, having decided to put his enemy to death, mighty Dvivida himself clenched his fists and beat them against Balarama’s body. The furious Lord of the Yadavas then threw aside his club and plow and using his bare hands, hammered a blow upon Dvivida’s collarbone. The ape collapsed, vomiting blood…
From Treta Yuga to Dwapar Yuga
Thus, we have proof of the Vanaras existing since the Treta Yuga up until Dwapar Yuga…are they around in Kali Yuga? Only time will tell…