धनुषकोडी, भारतके दक्षिण-पूर्वी शेष अग्रभागपर स्थित हिन्दुआेंका यह एक पवित्र
तीर्थस्थल है !
यह स्थान पवित्र रामसेतुका उद्गमस्थान है ।
तीर्थस्थल है !
यह स्थान पवित्र रामसेतुका उद्गमस्थान है ।
५० वर्षोंसे हिन्दुआेंके इस पवित्र तीर्थस्थलकी अवस्था एक ध्वस्त नगरकी भांति हुई है ।
२२ दिसम्बर १९६४ मेें इस नगरको एक चक्रवातने ध्वस्त किया ।
तदुपरान्त गत ५० वर्षोंमें इस तीर्थस्थलका पुनरूत्थान करनेकी बात तो दूर,
अपितु शासनद्वारा इस नगरको ‘भूतोंका नगर’ घोषित कर उसकी अवमानना की गई ।
इस घटनाको आज ५० वर्ष से अधिक पूर्ण हो गए हैं ।
तदुपरान्त गत ५० वर्षोंमें इस तीर्थस्थलका पुनरूत्थान करनेकी बात तो दूर,
अपितु शासनद्वारा इस नगरको ‘भूतोंका नगर’ घोषित कर उसकी अवमानना की गई ।
इस घटनाको आज ५० वर्ष से अधिक पूर्ण हो गए हैं ।
इस निमित्त बंगाल,आसाम,महाराष्ट्र,कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यके हिन्दुत्ववादी
संगठनोंके नेताआेंके अभ्यासगुटने धनुषकोडीको भेंट दी ।
संगठनोंके नेताआेंके अभ्यासगुटने धनुषकोडीको भेंट दी ।
इस अभ्यासगुटमें हिन्दू जनजागृति समितिके प्रतिनिधि भी सम्मिलीत हुए थे ।
इस भेंटमें धनुषकोडीका उजागर हुआ भीषण वास्तव इस लेखमें प्रस्तुत किया है ।
धनुषकोडीका मीठा पानी,एक प्राकृतिक आश्चर्य !
इस भेंटमें धनुषकोडीका उजागर हुआ भीषण वास्तव इस लेखमें प्रस्तुत किया है ।
धनुषकोडीका मीठा पानी,एक प्राकृतिक आश्चर्य !
धनुषकोडीके दक्षिणका हिन्दी महासागर गाढा नीला दिखता है,
तो उत्तरका बंगाल का उपसागर मैले काले रंगका दिखता है ।
इन दोनों सागरोंमें १ कि.मी की भी दूरी नहीं है ।
दोनों सागरोंका पानी नमकीन है ।
ऐसा होते हुए भी धनुषकोडीमें ३ फूटका गढ्ढा खोदनेपर उसमें मीठा पानी आता है ।
क्या यह प्रकृतिद्वारा निर्मित चमत्कार नहीं है ?
तो उत्तरका बंगाल का उपसागर मैले काले रंगका दिखता है ।
इन दोनों सागरोंमें १ कि.मी की भी दूरी नहीं है ।
दोनों सागरोंका पानी नमकीन है ।
ऐसा होते हुए भी धनुषकोडीमें ३ फूटका गढ्ढा खोदनेपर उसमें मीठा पानी आता है ।
क्या यह प्रकृतिद्वारा निर्मित चमत्कार नहीं है ?
धनुषकोडीका भूगोल
तमलिनाडु राज्यके पूर्वी तटपर रामेश्वरम नामक तीर्थस्थल है ।
रामेश्वरमके दक्षिणकी ओर ११ कि.मी. दूरीपर ‘धनुषकोडी’ नगर है ।
यहांसे श्रीलंका केवल १८ कि.मी. दूरीपर है !
रामेश्वरमके दक्षिणकी ओर ११ कि.मी. दूरीपर ‘धनुषकोडी’ नगर है ।
यहांसे श्रीलंका केवल १८ कि.मी. दूरीपर है !
बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के पवित्र संगमपर
बसा और ५० गज (अनुमानतः १५० फूट) चौडा धनुषकोडी,बालुसे व्याप्त स्थान है ।
बसा और ५० गज (अनुमानतः १५० फूट) चौडा धनुषकोडी,बालुसे व्याप्त स्थान है ।
रामेश्वरम और धनुषकोडीकी धार्मिक महिमा !
उत्तर भारतमें काशीकी जो धार्मिक महिमा है,वही महिमा दक्षिण भारतमें
रामेश्वरमकीे है ।
रामेश्वरम हिन्दुआेंके पवित्र चार धाम यात्रामेंसे एक धाम भी है ।
रामेश्वरमकीे है ।
रामेश्वरम हिन्दुआेंके पवित्र चार धाम यात्रामेंसे एक धाम भी है ।
पुराणादि धर्मग्रन्थोंनुसार काशी विश्वेश्वरकी यात्रा रामेश्वरमके श्री रामेश्वरके दर्शन
बिना पूरी नहीं होती ।
काशीकी तीर्थयात्रा बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के
संगमपर स्थित धनुषकोडीमें स्नान करनेपर और तदुपरान्त काशीके गंगाजलसे
रामेश्वरको अभिषेक करनेके उपरान्त ही पूरी होती है ।
बिना पूरी नहीं होती ।
काशीकी तीर्थयात्रा बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के
संगमपर स्थित धनुषकोडीमें स्नान करनेपर और तदुपरान्त काशीके गंगाजलसे
रामेश्वरको अभिषेक करनेके उपरान्त ही पूरी होती है ।
धनुषकोडीका इतिहास और रामसेतुकी प्राचीनता !
२२ दिसम्बरकी अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण रातमें ११.५५ बजे धनुषकोडी रेलस्थानकमें प्रवेश
की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके लिए पंबनसे
११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी) इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके लिए पंबनसे
११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी) इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
उस समय वह धनुषकोडी रेलस्थानकसे कुछ मीटर दूरीपर थी ।
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
प्रचण्ड वेगसे आनेवाला पानी रामेश्वरमके मन्दिरके पास थम गया !
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
प्रचण्ड वेगसे आनेवाला पानी रामेश्वरमके मन्दिरके पास थम गया !
यह चक्रवात आगे-आगे बढते हुए रामेश्वरमतक आ गया था ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
इस परिसरके कुल १ सहस्र ८०० से अधिक लोग इस चक्रवातमें मृत हुए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
इस द्वीपकल्पपर १० कि.मी. वेगसे हवा बही और पूरा नगर ध्वस्तहुआ;
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
केवल एक व्यक्ति बचना !
वर्ष १९६४ के चक्रवातमें धनुषकोडी नगरके सभी लोगोंकी मृत्यु हुई ।
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया,उसका नाम था कालियामन !
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया,उसका नाम था कालियामन !
इस व्यक्तिने समुद्रमें तैरकर अपने प्राण बचाए;इसलिए शासनने उसका नाम पासके
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
शासनद्वारा धनुषकोडी ‘भूतोंका शहर’ घोषित
इस संकटके उपरान्त तुरन्त ही तत्कालीन मद्रास शासनने दूरवाणीसे धनुषकोडीको
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
बालु और वास्तुआेंके भग्न अवशेषोंका नगर !
सेतुके पहले भागको धनुषकोडी (‘कोडी’ अर्थात धनुष्यका अग्रभाग) कहते है ।
साढे सतरह लाख वर्षपूर्व रावणकी लंकामें (श्रीलंका) प्रवेश करनेके लिए प्रभु
श्रीरामने उसके ‘कोदण्ड’ नामक धनुषके अग्रभागसे सेतु बनानेके लिए यह
स्थान निश्चित किया था ।
साढे सतरह लाख वर्षपूर्व रावणकी लंकामें (श्रीलंका) प्रवेश करनेके लिए प्रभु
श्रीरामने उसके ‘कोदण्ड’ नामक धनुषके अग्रभागसे सेतु बनानेके लिए यह
स्थान निश्चित किया था ।
यहां एक ही रेखामें विद्यमान बडे पाषाणक्षेत्रोंकी शृंखला भग्न अवशेषोंके रूपमें
आज भी हमें देखनेको मिलती है ।
आज भी हमें देखनेको मिलती है ।
रामसेतु नल और नीलकी वास्तुकलाका एक अदभुत नमुना है ।
वाल्मिकी रामायणमें ऐसा विस्तृत वर्णन है कि रामसेतुकी चौडाई और लम्बाईका
अनुपात १: है ।
प्रत्यक्ष नापनेपर भी उसकी चौडाई ३.५ कि.मी. तथा
लम्बाई ३५ कि.मी. है । इस सेतुके निर्माणकार्यके समय गीलहरीद्वारा दिए योगदानकी
कथा और पानीपर तैरते हुए पाषाण हम हिन्दुआेंकी कई पीढियां जानती हैं ।
वाल्मिकी रामायणमें ऐसा विस्तृत वर्णन है कि रामसेतुकी चौडाई और लम्बाईका
अनुपात १: है ।
प्रत्यक्ष नापनेपर भी उसकी चौडाई ३.५ कि.मी. तथा
लम्बाई ३५ कि.मी. है । इस सेतुके निर्माणकार्यके समय गीलहरीद्वारा दिए योगदानकी
कथा और पानीपर तैरते हुए पाषाण हम हिन्दुआेंकी कई पीढियां जानती हैं ।
धनुषकोडी और रामभक्त विभीषण
श्रीराम-रावण महायुद्धके पहले धनुषकोडी नगरमें ही रावणबन्धु विभीषण प्रभु श्रीरामके
शरणमें आए थे ।
श्रीलंकाके युद्धसमाप्तिके पश्चात प्रभु रामचंद्रने इसी नगरमें विभीषणका सम्राटके
रूपमें राज्याभिषेक किया था ।
इसी समय लंकाधिपती विभीषणने प्रभु रामचंद्रसे कहा था,
‘‘भारतके शूर और पराक्रमी राजा रामसेतुका उपयोग कर बार-बार श्रीलंकापर आक्रमण
करेंगे और श्रीलंकाकी स्वतन्त्रता नष्ट करेंगे ।
शरणमें आए थे ।
श्रीलंकाके युद्धसमाप्तिके पश्चात प्रभु रामचंद्रने इसी नगरमें विभीषणका सम्राटके
रूपमें राज्याभिषेक किया था ।
इसी समय लंकाधिपती विभीषणने प्रभु रामचंद्रसे कहा था,
‘‘भारतके शूर और पराक्रमी राजा रामसेतुका उपयोग कर बार-बार श्रीलंकापर आक्रमण
करेंगे और श्रीलंकाकी स्वतन्त्रता नष्ट करेंगे ।
इसलिए प्रभु आप इस सेतुको नष्ट कीजिए ।’’ अपने भक्तकी प्रार्थना सुनकर कोदण्डधारी
प्रभु रामचंद्रने रामसेतुपर बाण छोडकर उसे पानीमें डुबाया ।
इसलिए यह सेतु पानीके २-३ फूट नीचे गया है ।
आज भी रामसेतुपर कोई खडा रहता है,तो उसके कटितक पानी होता है ।
प्रभु रामचंद्रने रामसेतुपर बाण छोडकर उसे पानीमें डुबाया ।
इसलिए यह सेतु पानीके २-३ फूट नीचे गया है ।
आज भी रामसेतुपर कोई खडा रहता है,तो उसके कटितक पानी होता है ।
रामसेतुका ध्वंस करनेवाली सेतुसमुद्रम परियोजना
केन्द्रके पूर्ववर्ती हिन्दूद्वेषी कांग्रेस शासनने व्यावसायिक लाभको देखकर ‘सेतुसमुद्रम शिपिंग कॅनॉल’ नामक परियोजनाद्वारा सेतु ध्वस्त करनेका षडयन्त्र रचा था ।
यह परियोजना हिन्दुआेंकी श्रद्धापर प्रहार ही था ।
अनुमानतः २४ प्रतिशत रामसेतु ध्वस्त होनेके उपरान्त सर्वोच्च न्यायालयने इस परियोजनापर स्थगनप्रस्ताव लाया ।
तबतक रामसेतुका एक चौथाई भाग ‘ड्रील’ किया गया था ।
फलस्वरूप इस सेतुके बडे पाषाण चकनाचूर हो गए हैं ।
आज भी इन पाषाणोंके अवशेष हिन्दी महासागर और बंगालके उपसागरमें तैरते दिखाई
देते हैं ।
मछुआरोंके जालमें कई बार इन तैरते पाषाणोंके टुकडे आते हैं ।
कुछ लोग धनुषकोडी अथवा रामेश्वरममें यह पत्थर बेचते दिखाई देते हैं ।
इस प्रकारसे ऐतिहासिक और धार्मिक आस्थासे सम्बन्धित वास्तुका ध्वंस करनेवाले
कांग्रेसजन अखिल मानवजातिके ही नहीं,अपितु इतिहासके भी अपराधी हैं ।
उनका अपराध क्षम्य नहीं !
अनुमानतः २४ प्रतिशत रामसेतु ध्वस्त होनेके उपरान्त सर्वोच्च न्यायालयने इस परियोजनापर स्थगनप्रस्ताव लाया ।
तबतक रामसेतुका एक चौथाई भाग ‘ड्रील’ किया गया था ।
फलस्वरूप इस सेतुके बडे पाषाण चकनाचूर हो गए हैं ।
आज भी इन पाषाणोंके अवशेष हिन्दी महासागर और बंगालके उपसागरमें तैरते दिखाई
देते हैं ।
मछुआरोंके जालमें कई बार इन तैरते पाषाणोंके टुकडे आते हैं ।
कुछ लोग धनुषकोडी अथवा रामेश्वरममें यह पत्थर बेचते दिखाई देते हैं ।
इस प्रकारसे ऐतिहासिक और धार्मिक आस्थासे सम्बन्धित वास्तुका ध्वंस करनेवाले
कांग्रेसजन अखिल मानवजातिके ही नहीं,अपितु इतिहासके भी अपराधी हैं ।
उनका अपराध क्षम्य नहीं !
धनुषकोडी वर्ष १९६४ के पहले बडा नगर था !
ब्रिटिशकालमें धनुषकोडी एक बडा नगर था,तो रामेश्वरम एक छोटासा गांव था ।
यहांसे श्रीलांका
जानेके लिए नौकाआेंकी सुविधा थी ।
उस समय श्रीलंका जानेके लिए पारपत्र (पासपोर्ट) की आवश्यकता नहीं थी ।
धनुषकोडी से थलाईमन्नार (श्रीलंका) तककी नौकायात्राका टिकट केवल १८ रुपया था ।
यहांसे श्रीलांका
जानेके लिए नौकाआेंकी सुविधा थी ।
उस समय श्रीलंका जानेके लिए पारपत्र (पासपोर्ट) की आवश्यकता नहीं थी ।
धनुषकोडी से थलाईमन्नार (श्रीलंका) तककी नौकायात्राका टिकट केवल १८ रुपया था ।
इन नौकाआें द्वारा व्यापारी वस्तुआेंका लेन-देन भी होता था ।
वर्ष १८९३ में अमेरिकामें धर्मसंसदके लिए गए स्वामी विवेकानंद वर्ष १८९७ में श्रीलंकामार्ग
से भारतमें आए,तब वे धनुषकोडीकी भूमिपर उतरे थे ।
से भारतमें आए,तब वे धनुषकोडीकी भूमिपर उतरे थे ।
वर्ष १९६४ में धनुषकोडी विख्यात पर्यटनस्थल और तीर्थस्थल था ।
श्रद्धालुआेंके लिए यहां होटल, कपडोंके दुकान और धर्मशालाएं थी ।
श्रद्धालुआेंके लिए यहां होटल, कपडोंके दुकान और धर्मशालाएं थी ।
उस समय धनुषकोडीमें जलयाननिर्माण केन्द्र,रेलस्थानक,छोटा रेल चिकित्सालय,
पोस्ट कार्यालय और मत्स्यपालन जैसे कुछ शासकीय कार्यालय थे ।
पोस्ट कार्यालय और मत्स्यपालन जैसे कुछ शासकीय कार्यालय थे ।
वर्ष १९६४ के चक्रवातके पहले चेन्नई और धनुषकोडीके मध्यमें ‘मद्रास एग्मोर’से
‘बोट मेल’ नामसे परिचित रेलसेवा थी ।
‘बोट मेल’ नामसे परिचित रेलसेवा थी ।
आगे श्रीलंकामें फेरीबोटसे जानेवालोंके लिए वह उपयुक्त थी ।
धनुषकोडीका ध्वंस करनेवाला १९६४ का चक्रवात !
१९६४ में आया चक्रवात धनुषकोडीका ध्वंस कनेवाला सिद्ध हुआ ।
१७ दिसम्बर १९६४ को दक्षिणी अण्डमान समुद्रमें ५ डिग्री पूर्वमें उसका केन्द्र था ।
१९ दिसम्बरको उसने एक बडे चक्रवातके रूपमें वेग धारण किया ।
२२ दिसम्बरकी रातमें वह २७० कि.मी प्रतिघण्टाके वेगसे श्रीलांकाको पार कर धनुषकोडी
के तटपर धडक गया ।
चक्रवातके समय आई २० फूट ऊंची तरंगने धनुषकोडी नगरके पूर्वके संगमसे नगरपर
आक्रमण किया और पूर्ण धनुषकोडी नगर नष्ट किया ।
१७ दिसम्बर १९६४ को दक्षिणी अण्डमान समुद्रमें ५ डिग्री पूर्वमें उसका केन्द्र था ।
१९ दिसम्बरको उसने एक बडे चक्रवातके रूपमें वेग धारण किया ।
२२ दिसम्बरकी रातमें वह २७० कि.मी प्रतिघण्टाके वेगसे श्रीलांकाको पार कर धनुषकोडी
के तटपर धडक गया ।
चक्रवातके समय आई २० फूट ऊंची तरंगने धनुषकोडी नगरके पूर्वके संगमसे नगरपर
आक्रमण किया और पूर्ण धनुषकोडी नगर नष्ट किया ।
धनुषकोडीके बसस्थानकके पास चक्रवातमें बली हुए लोगोंका एक स्मारक बनाया गया है ।
उसपर लिखा है -‘उच्च वेगसे बहनेवाली हवाके साथ आए उच्च गतिके चक्रवातमें २२
दिसम्बर १९६४ की रातमें प्रचण्ड हानि हुई और धनुषकोडी ध्वस्त हुआ !’
उसपर लिखा है -‘उच्च वेगसे बहनेवाली हवाके साथ आए उच्च गतिके चक्रवातमें २२
दिसम्बर १९६४ की रातमें प्रचण्ड हानि हुई और धनुषकोडी ध्वस्त हुआ !’
चक्रवातमें रेलका पूल और रेलगाडी भी नष्ट !
२२ दिसम्बरकी अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण रातमें ११.५५ बजे धनुषकोडी रेलस्थानकमें
प्रवेश की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके
लिए पंबनसे ११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी)
इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
प्रवेश की ६५३ क्रमांककी ‘पंबन-धनुषकोडी पैसेन्जर’ (वह उसकी नियमित सेवाके
लिए पंबनसे ११० यात्री और ५ कर्मचारियोंके साथ निकली थी)
इस प्रचण्ड तरंगके आक्रमणकी बली हुई !
उस समय वह धनुषकोडी रेलस्थानकसे कुछ मीटर दूरीपर थी ।
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
पूरी गाडी उसके ११५ यात्रियोंके साथ बह गई ।
पंबनसे आरम्भ हुआ धनुषकोडीका रेलमार्ग १९६४ के चक्रवातमें नष्ट हुआ !
चक्रवातके उपरान्त रेलमार्गकी दुःस्थिति हुई और कुछ समय उपरान्त वह पूर्णतः
बालुके नीचे ढंक गया !
प्रचण्ड वेगसे आनेवाला पानी रामेश्वरमके मन्दिरके पास थम गया !
यह चक्रवात आगे-आगे बढते हुए रामेश्वरमतक आ गया था ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
इस परिसरके कुल १ सहस्र ८०० से अधिक लोग इस चक्रवातमें मृत हुए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
उस समय भी ८ फूट ऊंची तरंगे आ रही थी ।
इस परिसरके कुल १ सहस्र ८०० से अधिक लोग इस चक्रवातमें मृत हुए ।
स्थानीयोंके मतानुसार यह संख्या ५ सहस्र थी ।
धनुषकोडीके सभी निवासियोंके घर और अन्य वास्तुआेंकी इस चक्रवातमें दुःस्थिति
होकर उनके केवल भग्न अवशेष रह गए ।
इस द्वीपकल्पपर १० कि.मी. वेगसे हवा बही और पूरा नगर ध्वस्त हुआ;
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
परन्तु प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समुद्रकी प्रचण्ड तरंगोंका वेगसे आनेवाला पानी
रामेश्वरमके मुख्य मन्दिरके पास थम गया था !
विशेष बात यह कि सैंकडो लोगोंने रामेश्वरमके मन्दिरमें चक्रवातसे बचनेके लिए
आश्रय लिया था !
केवल एक व्यक्ति बचना !
वर्ष १९६४ के चक्रवातमें धनुषकोडी नगरके सभी लोगोंकी मृत्यु हुई ।
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया, उसका नाम था कालियामन !
केवल एक ही व्यक्ति इस चक्रवातमें बच गया, उसका नाम था कालियामन !
इस व्यक्तिने समुद्रमें तैरकर अपने प्राण बचाए;इसलिए शासनने उसका नाम पासके
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
गांवको देकर उसका गौरव किया ।
यह गांव ‘निचल कालियामन’ नामसे परिचित है ।
निचलका अर्थ है तैरनेवाला !
शासनद्वारा धनुषकोडी ‘भूतोंका शहर’ घोषित
इस संकटके उपरान्त तुरन्त ही तत्कालीन मद्रास शासनने दूरवाणीसे धनुषकोडीको
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
‘भूतोंका शहर’ (Ghost Town) घोषित किया और नागरिकोंके वहां रहनेपर प्रतिबन्ध
लगाया ।
निर्मनुष्य नगरोंको ‘भूतोंका शहर’ सम्बोधित किया जाता है ।
अब कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसायके लिए दिनभरके लिए जा सकते हैं ।
सायंकालमें ७ बजनेसे पहले उन्हें वहांसे लौटना पडता है ।
बालु और वास्तुआेंके भग्न अवशेषोंका नगर !
तीर्थस्थलोंका खरा सिकास हिन्दू राष्ट्रमें ही होगा !
धनुषकोडीका भीषण वास्तव प्रत्यक्ष देखनेपर ध्यानमें आता है कि सर्वपक्षीय
राज्यकर्ताआेंने भारतीय तीर्थस्थलोंकी किस प्रकार उपेक्षा की है ।
राज्यकर्ताआेंने भारतीय तीर्थस्थलोंकी किस प्रकार उपेक्षा की है ।
प्रश्न है कि क्या काशीको ‘स्मार्ट सिटी’ बनानेकी घोषणा करनेवाले विकासपुरुष
काशीयात्राको पूर्णत्व देनेवाले धनुषकोडी नगरको भी न्याय देंगे ?
काशीयात्राको पूर्णत्व देनेवाले धनुषकोडी नगरको भी न्याय देंगे ?
हिन्दुआेंकी असंवेदनशीलता भी इस दुर्गतिका एक कारण है ।
हमें यह समझना होगा कि यदि हम हिन्दू इसी प्रकार असंवेदनशील रहेंगे,
तो आजतक विकसित हुए अनेक तीर्थस्थलोंकी अवस्था भविष्यमें धनुषकोडीसमान
हो जाएगी ।
हमें यह समझना होगा कि यदि हम हिन्दू इसी प्रकार असंवेदनशील रहेंगे,
तो आजतक विकसित हुए अनेक तीर्थस्थलोंकी अवस्था भविष्यमें धनुषकोडीसमान
हो जाएगी ।
हिन्दुआेंके तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए तथा वहां धर्मशालाएं,सडकें आदि
सुविधा करनेके लिए हमें शासनसे आग्रहपूर्वक मांग करनी चाहिए ।
सुविधा करनेके लिए हमें शासनसे आग्रहपूर्वक मांग करनी चाहिए ।
वास्तव में तो यह है कि प्रचलित धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थामें हिन्दू धर्महितके कार्य होंगे,
ऐसी अपेक्षा करना उचित नहीं होगा ।
ऐसी अपेक्षा करना उचित नहीं होगा ।
इसलिए हिन्दूहित साधनेवाला धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापित करना,
तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए यही खरा उपाय है ।
तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए यही खरा उपाय है ।
रेलस्थानकके भग्न १९६४ के पूर्वके एक भव्य चर्चके अवशेष
धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापित करना,तीर्थस्थलोंका विकास करनेके लिए यही
खरा उपाय है ।
खरा उपाय है ।
अब धनुषकोडी नगरपर पूर्णतः (मध्य-मध्यमें समुद्रका पानी और वनस्पती) बालुका
साम्राज्य है ।
अवकाशसे खींचे चित्रोंसे इस नगरकी ओर देखनेपर केवल बालु ही दिखती है ।
यहांकी बालुमें सर्वत्र वास्तुआेंके भग्न अवशेष दिखाई पडते हैं ।
साम्राज्य है ।
अवकाशसे खींचे चित्रोंसे इस नगरकी ओर देखनेपर केवल बालु ही दिखती है ।
यहांकी बालुमें सर्वत्र वास्तुआेंके भग्न अवशेष दिखाई पडते हैं ।
जलयाननिर्मिती केन्द्र,रेलस्थानक,टपाल कार्यालय,चिकित्सालय,पुलिस और
रेलकी कालोनियां,विद्यालय, मन्दिर चर्च आदिके अवशेष यहां स्पष्टरूपसे
दिखाई देते हैं ।
रेलकी कालोनियां,विद्यालय, मन्दिर चर्च आदिके अवशेष यहां स्पष्टरूपसे
दिखाई देते हैं ।
धनुषकोडीके विकासकी उपेक्षा !
धनुषकोडी नगरमें जानेसे पहले श्रद्धालुआेंको बताया जाता है कि, ‘एकसाथ जाओ
और सूर्यास्तके पहले लौट आओ’; क्योंकि १५ कि.मी. की पूरी सडक निर्मनुष्य और
भयानक है ।
और सूर्यास्तके पहले लौट आओ’; क्योंकि १५ कि.मी. की पूरी सडक निर्मनुष्य और
भयानक है ।
वर्तमानमें लगभग ५०० से अधिक यात्री प्रतिदिन धनुषकोडीमें आते हैं ।
त्यौहार और पूर्णिमाके दिन सहस्रोंकी संख्यामें यात्री यहां आते हैं ।
धनुषकोडीमें पूजन-अर्चन करनेवालोंके लिए निजी वाहनके अतिरिक्त कोई
विकल्प नहीं है ।
निजी वाहनोंके चालक यात्रियोंसे ५० से १०० रुपयोंतक किराया लेते हैं ।
रामेश्वरमको जानेवाले पूरे देशक ेयात्रियोंकी मांगके अनुसार वर्ष २००३ में दक्षिण
रेल मन्त्रालयने रामेश्वरमसे धनुषकोडीतक १६ कि.मी. रेलमार्ग बनानेके लिए एक
प्रतिवेदन भेजा था परन्तु आजतक इसकी उपेक्षा ही की गई है ।
त्यौहार और पूर्णिमाके दिन सहस्रोंकी संख्यामें यात्री यहां आते हैं ।
धनुषकोडीमें पूजन-अर्चन करनेवालोंके लिए निजी वाहनके अतिरिक्त कोई
विकल्प नहीं है ।
निजी वाहनोंके चालक यात्रियोंसे ५० से १०० रुपयोंतक किराया लेते हैं ।
रामेश्वरमको जानेवाले पूरे देशक ेयात्रियोंकी मांगके अनुसार वर्ष २००३ में दक्षिण
रेल मन्त्रालयने रामेश्वरमसे धनुषकोडीतक १६ कि.मी. रेलमार्ग बनानेके लिए एक
प्रतिवेदन भेजा था परन्तु आजतक इसकी उपेक्षा ही की गई है ।
अयोग्य शासकीय नीतियोंके कारण दर्शन दुर्लभ होना !
पूरे भारतसे श्रद्धालु यहां केवल पवित्र रामसेतुका दर्शन लेने आते हैं ।
धनुषकोडीमें आनेके पश्चात पता चलता है कि रामसेतुके दर्शन करनेके लिए
कस्टमकी अनुमति लगती है ।
कस्टमका यह कार्यालय रामेश्वरममें है ।
रामेश्वरमसे धनुषकोडीतक यात्री पक्की सडक न होनेके कारण कभी बालुसे तो कभी
सागरके पानीसे कष्टप्रद यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं ।
धनुषकोडीमें आनेके पश्चात पता चलता है कि रामसेतुके दर्शन करनेके लिए
कस्टमकी अनुमति लगती है ।
कस्टमका यह कार्यालय रामेश्वरममें है ।
रामेश्वरमसे धनुषकोडीतक यात्री पक्की सडक न होनेके कारण कभी बालुसे तो कभी
सागरके पानीसे कष्टप्रद यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं ।
परन्तु यहां आनेपर अनुमति लेनेके लिए उन्हें पुनः १८ कि.मी. का कष्टप्रद अन्तर
काटकर रामेश्वरमको जाना पडता है ।
श्रद्धालुआेंके साथ किया यह छल है ।
परिणामस्वरूप ९० प्रतिशत श्रद्धालु धनुषकोडीमें पहुंचनेपर भी पवित्र रामसेतुके दर्शन
नहीं कर पाते ।
शासन धनुषकोडीमें ही कस्टमका कार्यालय क्यों नहीं खोलता ?
काटकर रामेश्वरमको जाना पडता है ।
श्रद्धालुआेंके साथ किया यह छल है ।
परिणामस्वरूप ९० प्रतिशत श्रद्धालु धनुषकोडीमें पहुंचनेपर भी पवित्र रामसेतुके दर्शन
नहीं कर पाते ।
शासन धनुषकोडीमें ही कस्टमका कार्यालय क्यों नहीं खोलता ?
श्रीलंकासे टूटा सम्पर्क !
भारत-श्रीलंकामें सागरी सीमा विवाद उत्पन्न होनेसे धनुषकोडीसे थलाईमन्नारतककी
सागरी यातायात बन्द हुई ।
इससे यहांके हिन्दुआेंका श्रीलंकाके हिन्दुआेंसे सम्पर्क टूट गया ।
इसके पहले प्रतिदिन सायंकालमें ६ बजे श्रीलंकासे भारतमें दूध आता था,
जिससे दूसरे दिन प्रातः रामेश्वरमके शिवलिंगपर अभिषेक कियाजाता था ।
यह परम्परा अनेक वर्षोंसे थी ।
भारत-श्रीलंकाके सागरी सीमा विवादके कारण वह बन्द हुई ।
पहले थलाइमन्नार से धनुषकोडीतककी ३५ कि.मी. की यात्रा नौकासे २ घण्टेमें होती थी ।
सागरी यातायात बन्द हुई ।
इससे यहांके हिन्दुआेंका श्रीलंकाके हिन्दुआेंसे सम्पर्क टूट गया ।
इसके पहले प्रतिदिन सायंकालमें ६ बजे श्रीलंकासे भारतमें दूध आता था,
जिससे दूसरे दिन प्रातः रामेश्वरमके शिवलिंगपर अभिषेक कियाजाता था ।
यह परम्परा अनेक वर्षोंसे थी ।
भारत-श्रीलंकाके सागरी सीमा विवादके कारण वह बन्द हुई ।
पहले थलाइमन्नार से धनुषकोडीतककी ३५ कि.मी. की यात्रा नौकासे २ घण्टेमें होती थी ।
अब थलाईमन्नारसे कालंबोतक ५०० कि.मी. की यात्रा करके जाना पडता है ।
कोलंबो से मदुराई विमानसेवा है ।
इसके लिए १ घण्टा लगता है ।
मदुराई से रामेश्वरम की २०० कि.मी की यात्रा रेल अथवा बससे करनेके लिए साढेचार
घण्टे लगते हैं ।
कोलंबो से मदुराई विमानसेवा है ।
इसके लिए १ घण्टा लगता है ।
मदुराई से रामेश्वरम की २०० कि.मी की यात्रा रेल अथवा बससे करनेके लिए साढेचार
घण्टे लगते हैं ।
श्रद्धालुआेंकी परीक्षा लेनेवाली रामेश्वरम से धनुषकोडीतककी मार्गहीन यात्रा !
वर्तमान स्थितिमें रामेश्वरमसे धनुषकोडीको जाना होगा, तो या तो बालु और समुद्रसे
मार्ग निकालते हुए पैदल जाना पडता है अथवा निजी बसगाडीसे !
मार्ग निकालते हुए पैदल जाना पडता है अथवा निजी बसगाडीसे !
रामेश्वरममें आनेपर धनुषकोडी जाकर रामसेतुके दर्शन करनेकी श्रद्धालुआेंकी इच्छा
रहती है इस १८ कि.मी. की यात्रामें हेमपुरमतक पक्की सडक है ।
वहांसे आगेकी सम्पूर्ण यात्रा सागरी तटकी बालुसे अथवा सागरीतटके निकटके पानीसे
वाहन चलाकर करनी पडती है ।
इन ७ कि.मी. के लिए सडक बनाई ही नहीं है ।
रहती है इस १८ कि.मी. की यात्रामें हेमपुरमतक पक्की सडक है ।
वहांसे आगेकी सम्पूर्ण यात्रा सागरी तटकी बालुसे अथवा सागरीतटके निकटके पानीसे
वाहन चलाकर करनी पडती है ।
इन ७ कि.मी. के लिए सडक बनाई ही नहीं है ।
भारतका प्रमुख तीर्थस्थल होते हुए भी यहां सडक बनाई न जाना आश्चर्यजनक है ।
श्रद्धालु यहां आना चाहते हैं ।
अपनेआपको बडे संकटमें डालकर वे यहां आते हैं ।
अधिकांश श्रद्धालु हेमपुरमतक ही आते हैं ।
यहांसे आगे सडक न होनेके कारण वे आगे जानेका साहस नहीं करते ।
जो साहसी होते हैं, ऐसे श्रद्धालु ही धनुषकोडीतक जानेका प्रयास करते हैं ।
श्रद्धालु यहां आना चाहते हैं ।
अपनेआपको बडे संकटमें डालकर वे यहां आते हैं ।
अधिकांश श्रद्धालु हेमपुरमतक ही आते हैं ।
यहांसे आगे सडक न होनेके कारण वे आगे जानेका साहस नहीं करते ।
जो साहसी होते हैं, ऐसे श्रद्धालु ही धनुषकोडीतक जानेका प्रयास करते हैं ।
रामेश्वरम से धनुषकोडीकी सडक आजतक क्यों नहीं बनाई गई, ऐसा प्रश्न यहां
आनेवाले प्रत्येक श्रद्धालुके मनमें आता है ।
हिन्दुआेंकी धर्मभावनाआेंको किसी भी प्रकारसे महत्त्व न देनेका भारतके धर्मनिरपेक्षतावादी राज्यकर्ताआें का तत्त्व यहां भी दिखाई देता है ।
केवल धर्मभावनाकी दृष्टिसे ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय एकताकी दृष्टिसे भी यह मार्ग बनाना
आवश्यक है ।
आनेवाले प्रत्येक श्रद्धालुके मनमें आता है ।
हिन्दुआेंकी धर्मभावनाआेंको किसी भी प्रकारसे महत्त्व न देनेका भारतके धर्मनिरपेक्षतावादी राज्यकर्ताआें का तत्त्व यहां भी दिखाई देता है ।
केवल धर्मभावनाकी दृष्टिसे ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय एकताकी दृष्टिसे भी यह मार्ग बनाना
आवश्यक है ।
काशी जानेवाले करोडो हिन्दू जाति,भाष,प्रान्त आदि भेद त्यागकर रामेश्वरमके दर्शनकी
आस लगाए बैठते हैं ।
केवल दक्षिण भारतके ही नहीं,अपितु कश्मीरके साथ उत्तर भारत,आसामके साथ
उत्तरपूर्वी भारत, बंगालके साथ पूर्व भारत,मुंबई,गुजरात आदि पश्चिम भारतके
नागरिक यहां दर्शनके लिए आते हैं अथवा आनेकी इच्छा रखते हैं ।
धनुषकोडी राष्ट्रीय एकता साधनेवाला नगर है ।
आस लगाए बैठते हैं ।
केवल दक्षिण भारतके ही नहीं,अपितु कश्मीरके साथ उत्तर भारत,आसामके साथ
उत्तरपूर्वी भारत, बंगालके साथ पूर्व भारत,मुंबई,गुजरात आदि पश्चिम भारतके
नागरिक यहां दर्शनके लिए आते हैं अथवा आनेकी इच्छा रखते हैं ।
धनुषकोडी राष्ट्रीय एकता साधनेवाला नगर है ।
तमिलनाडु शासन और केन्द्रशासन यह छोटीसी सडक बनाकर राष्ट्रीय एकताका यह
आधार सुदृढ क्यों नहीं बनाते ?
आधार सुदृढ क्यों नहीं बनाते ?
महानगरोंमें मेट्रो ट्रेन आरम्भ करनेके लिए सहस्रो करोड रुपए व्यय किए जाते हैं;
तो फिर केवल ५०-६० करोड रुपयोंकी यह सडक क्यों नहीं बनाई जाती ?
तो फिर केवल ५०-६० करोड रुपयोंकी यह सडक क्यों नहीं बनाई जाती ?
कश्मीरमें पूंछ से श्रीनगरमें मुघलकालीन मार्ग था ।
इस मार्गको इस्लामी संस्कृतिकी देन समझकर उसका पुनरूत्थान करनेके लिए
शासनने करोडो रुपए व्यय किए;फिर १९६४ में ध्वस्त हुआ; परन्तु हिन्दुआेंके
आस्थास्रोतसे सम्बन्धित यह मार्ग पुनश्च निर्माण करनेमें क्या अडचन आती है ?
इस मार्गको इस्लामी संस्कृतिकी देन समझकर उसका पुनरूत्थान करनेके लिए
शासनने करोडो रुपए व्यय किए;फिर १९६४ में ध्वस्त हुआ; परन्तु हिन्दुआेंके
आस्थास्रोतसे सम्बन्धित यह मार्ग पुनश्च निर्माण करनेमें क्या अडचन आती है ?
धनुषकोडीमें चर्चका आडंबर संकटकी सूचना !
आजतकका अनुभव है कि ईसाई मिश्नरी भारतके कोनेकोनेमें विशेषकर पीछडे और
दुर्गम क्षेत्रमें जाकर धर्मान्तरणका कार्य करते हैं ।
भारते दक्षिणपूर्वके अग्रभागमें स्थित धनुषकोडी नगरमें एक भव्य चर्चके अवशेष हैं ।
दुर्गम क्षेत्रमें जाकर धर्मान्तरणका कार्य करते हैं ।
भारते दक्षिणपूर्वके अग्रभागमें स्थित धनुषकोडी नगरमें एक भव्य चर्चके अवशेष हैं ।
यह चर्च १९६४ के चक्रवातमें ध्वस्त हुआ ।
इसका अर्थ यह है कि उस समय भी ईसाई धर्मप्रचारक भारी संख्यामें धर्मान्तरण कर रहे थे ।
इसका अर्थ यह है कि उस समय भी ईसाई धर्मप्रचारक भारी संख्यामें धर्मान्तरण कर रहे थे ।
अब धनुषकोडी नगरके २ कि.मी. पहले एक मध्यम आकारका चर्च खडा है ।
उसके आसपास कोई मनुष्यबस्ती नहीं है ।
वास्तवमें हिन्दुआेंके इस पवित्र स्थानमें चर्च बनानेके लिए शासनको अनुमति नहीं
देनी चाहिए ।
जिस प्रकार मक्कामें चर्च नहीं बना सकते अथवा वैटिकनमें मन्दिर नहीं बना सकते,
उसी प्रकार हिन्दुआेंके तीर्थस्थलोंके स्थानपर चर्च,मस्जिदें,दरगाह बनानेकी अनुमति
नहीं होनी चाहिए ।
उसके आसपास कोई मनुष्यबस्ती नहीं है ।
वास्तवमें हिन्दुआेंके इस पवित्र स्थानमें चर्च बनानेके लिए शासनको अनुमति नहीं
देनी चाहिए ।
जिस प्रकार मक्कामें चर्च नहीं बना सकते अथवा वैटिकनमें मन्दिर नहीं बना सकते,
उसी प्रकार हिन्दुआेंके तीर्थस्थलोंके स्थानपर चर्च,मस्जिदें,दरगाह बनानेकी अनुमति
नहीं होनी चाहिए ।
यहांके चर्चका रहस्य ध्यानमें रखकर हमने यहांके मछुआरोंको मिलनेका प्रयत्न किया ।
हमें लगा कि वे धर्मान्तरित हुए होंगे । प्रत्यक्ष मिलनेपर पता चला कि सभी मछुआरे
हिन्दू ही हैं ।
हमें लगा कि वे धर्मान्तरित हुए होंगे । प्रत्यक्ष मिलनेपर पता चला कि सभी मछुआरे
हिन्दू ही हैं ।
वर्ष १९६४ के पहलेके भव्य चर्चके अवशेष देखनेपर ध्यानमें आता है कि वहां भारी संख्यामें धर्मान्तरण हुआ होगा; परन्तु अब वहां एक भी ईसाई नहीं है ।
या तो १९६४ के चक्रवातमें सभी ईसाई नष्ट हुए या ‘आकाशका बाप धनुषकोडीके ईसाईयोंको
बचाता नहीं‘, यह ध्यानमें आनेपर वे वहांसे भाग गए होंगे ।
बचाता नहीं‘, यह ध्यानमें आनेपर वे वहांसे भाग गए होंगे ।
ऐसा होते हुए भी आसपासके परिसरमें चर्चकी स्थापना और भारी संख्यामें ईसाई
धर्मप्रचारक आदिके कारण भविष्यमें वहांके अज्ञान और निर्धन हिन्दू ईसाई हो गए,
तो कोई आश्चर्य नहीं लगेगा ।
धर्मप्रचारक आदिके कारण भविष्यमें वहांके अज्ञान और निर्धन हिन्दू ईसाई हो गए,
तो कोई आश्चर्य नहीं लगेगा ।
भविष्यमें धर्मान्तरणका आडंबर बढकर जब यह क्षेत्र नागालैण्ड-मीजोरम जैसा बनेगा,
तब भारतीय राज्यकर्ता इस क्षेत्रके विकासके लिए करोडो रुपए व्यय करेंगे।
तब भारतीय राज्यकर्ता इस क्षेत्रके विकासके लिए करोडो रुपए व्यय करेंगे।
संकलनकर्ता: श्री. चेतन राजहंस, हिन्दू जनजागृति समिति,,,
No comments:
Post a Comment