कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट के संस्थापक कोई चाइनीज़ नही भगवान विष्णु के अवतार “भगवान परशुराम” थे
कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट के संस्थापक कोई चाइनीज़ नही भगवान विष्णु के अवतार “भगवान परशुराम” थे कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट का नाम सुनते ही सभी के दिमाग में ‘ब्रूस ली’ या कोई चाइनीज़ की छवि आ जाती है। उसकी तरह शरीर को पूरा घुमाकर, ना जाने कैसे-कैसे करतब करके दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने की स्टाइल शायद ही आज के समय में किसी के पास होगी। लेकिन ब्रूस ली ही इस आर्ट को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है, ऐसा सोचना भी गलत है। अब तक आपको और दुनिया को मार्शल आर्ट के बारे में यही पढ़ाया और प्रचारित किया जाता रहा है की यह विधा तो चीन की देन है, जबकि हकीक़त इसके ठीक उलट है। इस कला का ज्ञान चीन ने नहीं बल्कि चीन के साथ पूरे विश्व को भारत वर्ष ने दिया था। प्राचीन भारत में आत्मरक्षण की इस विधा को ‘कलारिपप्यतु’ नाम से जाना जाता था। महाभारत काल में यह विधा अपने चरम काल पर थी। स्वयं भगवान् कृष्ण इस विधा के श्रेष्ठ महारथी थे। क्योंकि मार्श आर्ट का सिद्धांत इतना पुराना है कि आप सोच भी नहीं सकते। यदि हिन्दू पुराणों को खंगाल कर देखा जाए, तो ऐसी मान्यता है कि मार्शल आर्ट के संस्थापक भगवान परशुराम हैं। जी हां… सही सुना आपने! ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार, अपने शस्त्र ज्ञान के कारण पुराणों में विख्यात भगवान परशुराम को पूरे जगत में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। भगवान परशुराम मूल रूप से ब्राह्मण थे किंतु फिर भी उनमें शस्त्रों की अतिरिक्त जानकारी थी और इसी कारणवश उन्हें एक क्षत्रिय भी कहा जाता है।पुराणों में भगवान परशुराम ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) के नाम से भी विख्यात हैं। शिव के भक्त भगवान परशुराम शिव के भक्त थे और उन्होंने शस्त्र विद्या भी भगवान शिव से ही प्राप्त की थी। अपनी शिक्षा में सफल हुए परशुराम को प्रसन्न होकर भगवान शिव ने परशु दिया था जिसके पश्चात उनका नाम परशुराम पड़ा। शिव से परशु को पाने के बाद समस्त दुनिया में ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें युद्ध में मात देने में सक्षम हो। लेकिन उस समय में मार्शल आर्ट कहां था? आप सोच रहे होंगे कि मार्शल आर्ट का भारतीय इतिहास से कोई संबंध है, ऐसा होना भी असंभव-सा है। लेकिन यही सत्य है… भीष्म पितामाह, द्रोणाचार्य व कर्ण को शस्त्रों की महान विद्या देने वाले भगवान परशुराम ने कलरीपायट्टु नामक एक विद्या को विकसित किया था। परशुराम ने प्रदान की मार्शल आर्ट कला – कलरीपायट्टु कलरीपायट्टु भगवान परशुराम द्वारा प्रदान की गई शस्त्र विद्या है जिसे आज के युग में मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता है। देश के दक्षिणी भारत में आज भी प्रसिद्ध इस मार्शल आर्ट को भगवान परशुराम व सप्तऋषि अगस्त्य लेकर आए थे। कलरीपायट्टु दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट है और इसे सभी तरह के मार्शल आर्ट का जनक भी कहा जाता है। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में महारथी थे इसलिए उन्होंने उत्तरी कलरीपायट्टु या वदक्क्न कलरी विकसित किया था और सप्तऋषि अगस्त्य ने शस्त्रों के बिना दक्षिणी कलरीपायट्टु का विकास किया था। समय के साथ कुंगफू बाद में चीन चला गया बौद्ध धर्म के सहारे कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक बोधिधर्म ने भी इस प्रकार की विद्या की जानकारी प्राप्त की थी व अपनी चीन की यात्रा के दौरान उन्होंने विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देते हुए इस मार्शल आर्ट का भी उपयोग किया था। आगे चलकर वहां के वासियों ने इस आर्ट का मूल रूप से प्रयोग कर शाओलिन कुंग फू मार्शल आर्ट की कला विकसित की। अंत में भगवान परशुराम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जीत के बाद जो V विक्ट्री या विजय का प्रतीक बन चूका और अकसर खेलों में भी खिलाड़ी जीत के बाद दो उँगलियों से V बनाते हैं वो भगवान परशुराम द्वारा ही दिया गया था। एक मिथ्या या अफवाह उड़ाई जाती है कि भगवान परशुराम ने सम्पूर्ण क्षत्रियों का विनाश किया, ये अफवाह वामपंथियों व् हिन्दू विरोधियों द्वारा फैलाई गई है जबकि भगवान परशुराम ने 21 बार सिर्फ हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट किया था। क्षत्रियों का एक वर्ग है जिसे हैहयवंशी समाज कहा जाता है यह समाज आज भी है। इसी समाज में एक राजा हुए थे सहस्त्रार्जुन। परशुराम ने इसी राजा और इनके पुत्र और पौत्रों का वध किया था और उन्हें इसके लिए 21 बार युद्ध करना पड़ा था। कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे।
कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट के संस्थापक कोई चाइनीज़ नही भगवान विष्णु के अवतार “भगवान परशुराम” थे कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट का नाम सुनते ही सभी के दिमाग में ‘ब्रूस ली’ या कोई चाइनीज़ की छवि आ जाती है। उसकी तरह शरीर को पूरा घुमाकर, ना जाने कैसे-कैसे करतब करके दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने की स्टाइल शायद ही आज के समय में किसी के पास होगी। लेकिन ब्रूस ली ही इस आर्ट को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है, ऐसा सोचना भी गलत है। अब तक आपको और दुनिया को मार्शल आर्ट के बारे में यही पढ़ाया और प्रचारित किया जाता रहा है की यह विधा तो चीन की देन है, जबकि हकीक़त इसके ठीक उलट है। इस कला का ज्ञान चीन ने नहीं बल्कि चीन के साथ पूरे विश्व को भारत वर्ष ने दिया था। प्राचीन भारत में आत्मरक्षण की इस विधा को ‘कलारिपप्यतु’ नाम से जाना जाता था। महाभारत काल में यह विधा अपने चरम काल पर थी। स्वयं भगवान् कृष्ण इस विधा के श्रेष्ठ महारथी थे। क्योंकि मार्श आर्ट का सिद्धांत इतना पुराना है कि आप सोच भी नहीं सकते। यदि हिन्दू पुराणों को खंगाल कर देखा जाए, तो ऐसी मान्यता है कि मार्शल आर्ट के संस्थापक भगवान परशुराम हैं। जी हां… सही सुना आपने! ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार, अपने शस्त्र ज्ञान के कारण पुराणों में विख्यात भगवान परशुराम को पूरे जगत में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। भगवान परशुराम मूल रूप से ब्राह्मण थे किंतु फिर भी उनमें शस्त्रों की अतिरिक्त जानकारी थी और इसी कारणवश उन्हें एक क्षत्रिय भी कहा जाता है।पुराणों में भगवान परशुराम ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) के नाम से भी विख्यात हैं। शिव के भक्त भगवान परशुराम शिव के भक्त थे और उन्होंने शस्त्र विद्या भी भगवान शिव से ही प्राप्त की थी। अपनी शिक्षा में सफल हुए परशुराम को प्रसन्न होकर भगवान शिव ने परशु दिया था जिसके पश्चात उनका नाम परशुराम पड़ा। शिव से परशु को पाने के बाद समस्त दुनिया में ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें युद्ध में मात देने में सक्षम हो। लेकिन उस समय में मार्शल आर्ट कहां था? आप सोच रहे होंगे कि मार्शल आर्ट का भारतीय इतिहास से कोई संबंध है, ऐसा होना भी असंभव-सा है। लेकिन यही सत्य है… भीष्म पितामाह, द्रोणाचार्य व कर्ण को शस्त्रों की महान विद्या देने वाले भगवान परशुराम ने कलरीपायट्टु नामक एक विद्या को विकसित किया था। परशुराम ने प्रदान की मार्शल आर्ट कला – कलरीपायट्टु कलरीपायट्टु भगवान परशुराम द्वारा प्रदान की गई शस्त्र विद्या है जिसे आज के युग में मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता है। देश के दक्षिणी भारत में आज भी प्रसिद्ध इस मार्शल आर्ट को भगवान परशुराम व सप्तऋषि अगस्त्य लेकर आए थे। कलरीपायट्टु दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट है और इसे सभी तरह के मार्शल आर्ट का जनक भी कहा जाता है। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में महारथी थे इसलिए उन्होंने उत्तरी कलरीपायट्टु या वदक्क्न कलरी विकसित किया था और सप्तऋषि अगस्त्य ने शस्त्रों के बिना दक्षिणी कलरीपायट्टु का विकास किया था। समय के साथ कुंगफू बाद में चीन चला गया बौद्ध धर्म के सहारे कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक बोधिधर्म ने भी इस प्रकार की विद्या की जानकारी प्राप्त की थी व अपनी चीन की यात्रा के दौरान उन्होंने विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देते हुए इस मार्शल आर्ट का भी उपयोग किया था। आगे चलकर वहां के वासियों ने इस आर्ट का मूल रूप से प्रयोग कर शाओलिन कुंग फू मार्शल आर्ट की कला विकसित की। अंत में भगवान परशुराम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जीत के बाद जो V विक्ट्री या विजय का प्रतीक बन चूका और अकसर खेलों में भी खिलाड़ी जीत के बाद दो उँगलियों से V बनाते हैं वो भगवान परशुराम द्वारा ही दिया गया था। एक मिथ्या या अफवाह उड़ाई जाती है कि भगवान परशुराम ने सम्पूर्ण क्षत्रियों का विनाश किया, ये अफवाह वामपंथियों व् हिन्दू विरोधियों द्वारा फैलाई गई है जबकि भगवान परशुराम ने 21 बार सिर्फ हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट किया था। क्षत्रियों का एक वर्ग है जिसे हैहयवंशी समाज कहा जाता है यह समाज आज भी है। इसी समाज में एक राजा हुए थे सहस्त्रार्जुन। परशुराम ने इसी राजा और इनके पुत्र और पौत्रों का वध किया था और उन्हें इसके लिए 21 बार युद्ध करना पड़ा था। कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे।
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