---- श्री गौरी राय द्वारा फेस बुक पर लिखे गए स्तातुस में से साभार
क्या वेद में वेदाध्ययन व कर्मकांड पर स्त्री निषेध हे? और क्या यह बात तर्क
के आधार पर साबित की जा सकती हे?
- वेदों के अध्ययन में स्त्री निषेध नहीं हे.
- वस्तुतः सत्य यह हे की वेदों में केवल अध्ययन के आधार पर स्त्री निषेध नहीं
हे. कोई भी स्त्री (रजस्वला अवस्था में ना हों तो) वह वेदों का अध्ययन कर सकती
हे. किन्तु केवल ७ दिन (रजस्वला अवस्था के) वह वेदाध्ययन से दूर रहे. यह
स्पष्ट प्रमाण हे की स्त्री वेदाध्ययन कर सकती हे.
- हमारे वेदों में संध्या, अरुंधती, गार्गी, अपाला, मैत्रेयी. सावित्री,
अनसूया, शाण्डिली. वाचक्रवी, देवहुति इत्यादि अनेक स्त्री हुए हे जिन्होंने
स्वतन्त्र वैदिक सूक्त की मन्त्र द्रष्टा की अवस्था प्राप्त की हे.
- स्त्री उपनयन धारण कर सकती थी ऐसे कई द्रष्टान्त व प्रमाण भी हमारे वेदों
में हे.
- और ब्रह्मविद्या अवस्था में स्त्री-पुरुष इत्यादि पात्र ना होकर केवल ज्ञान
की पात्रता का स्वीकार होने के कारण भी स्त्री का अधिकार अबाधित हे.
- वेदों के कर्मकांड विभाग में स्त्री निषेध अवश्य हे.
- यह बात के ४ प्रमाण हे.
- १. प्रत्यक्ष प्रमाण (क्युकी भुत से वर्त्तमान तक स्त्री कर्मकांड की अवस्था
देखि गई नहीं हे.)
- २. श्रुति प्रमाण (श्रुति में कही भी कर्मकांड विभाग में स्त्री के अधिकार
का प्रमाण नहीं हे.)
- ३. नैतिक मर्यादा
- ४. स्त्री के दायित्व का सन्मान.
- किन्तु यह चार प्रमाणों को जाने दे और तर्क पर विचार करे तो...
- कर्मकांड एक अनंत वास्तु हे अगर स्त्री को वैदिक कर्मकांड में अधिकार दिया
भी जाता हे तो उनको आजीवन वैदिक कर्मकांड का बिना खंडन किए निर्वाह करना होगा.
जी स्त्री योनी में संभव इस लिए नहीं हे क्युकी उनको हर मॉस में रजस्वला धर्म
में का निर्वाह करना होता हे. और वह समय में स्त्री के कर्मकांड आदि धर्म का
खंडन होगा. जो वैदिक अनुशाशन में अयुक्त हे.
- अगर रजस्वला धर्म की पूर्ण निवृत्ति के बाद भी स्त्री को कर्मकांड का
निर्वाह का आदेश दिया जाए तो गर्भावस्था और बालक पोषण इत्यादि कर्मो का हनन
होगा. अगर इत्यादि धर्मो का खंडन के विकल्प में कर्मकांड होता हे तो परिणाम
संभव नहीं हे.
- स्त्री का मुख्य कर्म पति सेवा और कुटुंब व्यवस्था का निर्वहन हे. जो की
कर्मकांड अधिकार से खंडित होगा और समूचे कुटुंब का नाश होगा.
- मानव सहज स्वभाव और स्त्री मानसिकता काम प्रधान होती हे. अतः केवल कर्मकांड
से उसकी शुद्धि ना होने के कारण काम प्रधान मन कर्मकांड के उत्तरदायित्व का
दूषित परिणाम घोषित कर सकता हे.
- विशेष- (ज्योतिप्रकाश सत्यकाम दाश जी से साभार...)
- पुराकालेषु नारीणां मौन्जिवन्धन उपनयनमिष्यते
अध्यापनं च वेदानां सवित्रिवाचनं तथा
सावित्री वाचनं कुर्युः प्रणव व्याह्रुति विना -यम स्मृति.
means in past ladies got right for reading veda,chanting savitri mantra
upanayana .but they should not chant savitri with pranava or vyahruti....
- द्विविधाः स्त्रियः सन्ति-ब्रह्मवादिन्यः,सद्योवधू ..
ब्रह्मवादिनीनाम् उपनयनं अग्न्याध्यानं वेदाध्ययनं भैक्षचर्यां स्वपति गृहे
सद्योवधूनां उपनयनं कृत्वा विवाहः कार्यः =हारीत स्मृति...
means harita muni says there are two types of ladies..one are
brahmavaadini(lopamudra,maitrayee etc) and other are sadyavadhu(the girl
who is going to marry).for both of them upanayana etc ,vedadhyana etc done
in husband house(स्वपति गृहे )..for girls going to marry the upanayana
should be done before they marry.
- and one thing i can say the current practice of mangalsutra is
nothing.but substitute of yajnopaveeta which rishi patnis used to wear
during marriage.now the yajnopaveeta became mangalasutra,still in some
vedic brahmin society they do upanayana sanskaar of girls before they climb
marriage mandapa.
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