ॐ
18/6/2018
नमस्कार,
कुछ दिनों पहले गर्मी की छुट्टी खत्म हुई, और सभी माननीय शिक्षकगण ने जो कुछ छुट्टियाँ मिली उसका आनंद लिया होगा, *जो कुछ छुट्टियाँ मिली..*लिखने के पीछे हेतु यह कहने का था आजकल शिक्षकों को भी नोन टीचिंग स्टाफ की तरह ट्वीट किया जाता है।
अपनी बात पर आते हैं,
गुजरात के एक कब्जे में एक शिक्षक दंपति श्री भरत मकवाणा और श्रीमती जागृति मकवाणा ने
अपनी छुट्टियाँ जंगल मे धधकती गर्मी मे वनस्पतीयों के बीज इकट्ठा करने में बताया।
आओ जानते है उन्होने क्या कहा-
इन छुट्टियों मे हम पति-पत्नी ने 11 लाख बीज इकट्ठा किये है, इह कार्य मे हमारे साथ कुछ मजदूर भी थे।
मेरा नियम है हर वर्ष एक महीने की वेतन (30000 ₹) पर्यावरण के लिए खर्च करता हूँ। इस वर्ष मेरी पत्नी ने 21000 ₹ दिये जिससे कुल राशि 30000+21000=51000 ₹ हुए।
इस राशि से 11 लाख बीज (खरखोडी, अगथीयो, गुलमोहोर, घरमे, गंदी, चिनौठी, सर्वो (सहजन), बडी इमली, मैलो, टिकोमा, करंज, पीपल, कंकोडा इत्यादि) के बीज इकट्ठा किये और साथ ही इनके पौधे तैयार कर
सब को मुफ्त बाटे जायेंगे। જ્યાંરે जब डोडी के बीज और पौध बनाने हेतु एक मामुली राशि ली जायेगी उस राशि को डोडी और गुग्गुल के संवर्धन मे ही उपयोग किया जायेगा।
-Bharat Makwana (9429281448)
क्या आप जानते हैं कि सूखे की वजह से पिछले कुछ सालो में पर्यावरण की रक्षा के प्रतीक जैसे बडे पेड़ों को खत्म किया गया?
जिसमें पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% आब्जरबर है, बरगद़ 80% और नीम 75 %।
अब तथाकथित कुछ सेकुलरवादी लोगो ने सेकुलरवाद चक्कर में इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है
आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली।
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही।
हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त भारत होगा।
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।
जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे तब मंत्रियों और सांसदों के आवास के अंदर से सभी नीम और पीपल के पेड़ कटवा दिए थे
कम्युनिस्ट कितने मानसिक रूप से पिछड़े हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की तब लोक सभाध्यक्ष पीपल और नीम के पेड़ कटवाने का कारण बताये थे कि इन पेड़ों पर भूत निवास करते हैं।
मिडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बना, क्यूँकि यह पेड़ हिन्दू धार्मिक आस्था के प्रतीक थे।
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमस्तुते।
इन जीवनदायी पेड़ो को ज्यादा से ज्यादा लगाये तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया जाय।
जिसके पास इतनी जग़ह न हो वह तुलसी जी का पौधा लगाये। हरसिंगार का वृक्ष लगाये। नियम बना लीजिये कि जहाँ कहीं भी वृक्ष लगाने की जगह मिले जन्मदिन पर एक वृक्ष जरूर लगायें।
आइये हम सब मिलकर अपने "हिंदुस्तान" को प्राकृतिक आपदाओं से बचाये।
-- रा. म. पं
18/6/2018
नमस्कार,
कुछ दिनों पहले गर्मी की छुट्टी खत्म हुई, और सभी माननीय शिक्षकगण ने जो कुछ छुट्टियाँ मिली उसका आनंद लिया होगा, *जो कुछ छुट्टियाँ मिली..*लिखने के पीछे हेतु यह कहने का था आजकल शिक्षकों को भी नोन टीचिंग स्टाफ की तरह ट्वीट किया जाता है।
अपनी बात पर आते हैं,
गुजरात के एक कब्जे में एक शिक्षक दंपति श्री भरत मकवाणा और श्रीमती जागृति मकवाणा ने
अपनी छुट्टियाँ जंगल मे धधकती गर्मी मे वनस्पतीयों के बीज इकट्ठा करने में बताया।
आओ जानते है उन्होने क्या कहा-
इन छुट्टियों मे हम पति-पत्नी ने 11 लाख बीज इकट्ठा किये है, इह कार्य मे हमारे साथ कुछ मजदूर भी थे।
मेरा नियम है हर वर्ष एक महीने की वेतन (30000 ₹) पर्यावरण के लिए खर्च करता हूँ। इस वर्ष मेरी पत्नी ने 21000 ₹ दिये जिससे कुल राशि 30000+21000=51000 ₹ हुए।
इस राशि से 11 लाख बीज (खरखोडी, अगथीयो, गुलमोहोर, घरमे, गंदी, चिनौठी, सर्वो (सहजन), बडी इमली, मैलो, टिकोमा, करंज, पीपल, कंकोडा इत्यादि) के बीज इकट्ठा किये और साथ ही इनके पौधे तैयार कर
सब को मुफ्त बाटे जायेंगे। જ્યાંરે जब डोडी के बीज और पौध बनाने हेतु एक मामुली राशि ली जायेगी उस राशि को डोडी और गुग्गुल के संवर्धन मे ही उपयोग किया जायेगा।
-Bharat Makwana (9429281448)
क्या आप जानते हैं कि सूखे की वजह से पिछले कुछ सालो में पर्यावरण की रक्षा के प्रतीक जैसे बडे पेड़ों को खत्म किया गया?
जिसमें पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% आब्जरबर है, बरगद़ 80% और नीम 75 %।
अब तथाकथित कुछ सेकुलरवादी लोगो ने सेकुलरवाद चक्कर में इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है
आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली।
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही।
हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त भारत होगा।
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।
जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे तब मंत्रियों और सांसदों के आवास के अंदर से सभी नीम और पीपल के पेड़ कटवा दिए थे
कम्युनिस्ट कितने मानसिक रूप से पिछड़े हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की तब लोक सभाध्यक्ष पीपल और नीम के पेड़ कटवाने का कारण बताये थे कि इन पेड़ों पर भूत निवास करते हैं।
मिडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बना, क्यूँकि यह पेड़ हिन्दू धार्मिक आस्था के प्रतीक थे।
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमस्तुते।
इन जीवनदायी पेड़ो को ज्यादा से ज्यादा लगाये तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया जाय।
जिसके पास इतनी जग़ह न हो वह तुलसी जी का पौधा लगाये। हरसिंगार का वृक्ष लगाये। नियम बना लीजिये कि जहाँ कहीं भी वृक्ष लगाने की जगह मिले जन्मदिन पर एक वृक्ष जरूर लगायें।
आइये हम सब मिलकर अपने "हिंदुस्तान" को प्राकृतिक आपदाओं से बचाये।
-- रा. म. पं
No comments:
Post a Comment