Saturday, February 18, 2012

शिवपुराण में लिखा है कि देवाधिदेव महादेव की जिन अष्टमूíतयोंसे यह अखिल ब्रह्माण्ड व्याप्त है, उन्हीं से सम्पूर्ण विश्व की सत्ता संचालित हो रही है। भगवान शिव की इन अष्टमूíतयोंको इन्हीं आठ मन्त्रों से पुष्पांजलि दें-
ॐशर्वायक्षितिमू‌र्त्तयेनम:।
ॐभवायजलमू‌र्त्तयेनम:।
ॐरुद्रायअग्निमू‌र्त्तयेनम:।
ॐउग्रायवायुमू‌र्त्तयेनम:।
ॐभीमायआकाशमू‌र्त्तयेनम:।
ॐपशुपतयेयजमानमू‌र्त्तयेनम:।
ॐमहादेवायसोममू‌र्त्तयेनम:।
ॐईशानायसूर्यमू‌र्त्तयेनम:।
पुराणों के मत से शिवरात्रि-व्रत मात्र शैवोंके लिए ही नहीं वरन् वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, सौर आदि सभी संप्रदायों के मतावलंबियों के लिए भी अनिवार्य है।


प्राचीनकाल में राजा भरत, मान्धाता,शिवि,नल,नहुष,सगर,युयुत्सु, हरिश्चन्द्र आदि महापुरुषों ने तथा स्त्रियों में लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती, रति आदि देवियों ने भी शिवरात्रि-व्रत का श्रद्धापूर्वकपालन किया था। इस लोक के सभी पुण्यकर्म इस व्रतराज की समानता नहीं कर सकते।
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अर्धरात्रिव्यापिनीचतुर्दशी महाशिवरात्रि से प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्तप्रत्येक मास के कृष्णपक्ष में मध्यरात्रिव्यापिनीचतुर्दशी मासिक शिवरात्रि में व्रत करते हुए शिवार्चन करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाता है।
कुंवारियोंके लिए विवाह का सुयोग बनता है। विवाहितोंके दाम्पत्य जीवन की अशान्ति दूर होती है। वस्तुत:शिवरात्रि भगवान शंकर के सान्निध्य का स्वíणम अवसर प्रदान करती है। इस अमोघ व्रत के फलस्वरूप जीव शिवत्व की प्राप्ति से भगवान शिव का सायुज्य अíजत कर लेता है।

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