Tuesday, January 17, 2017

*भाषा की उत्पत्ति के विषय वैदिक धारण*
--- श्री पी एन ओक
1)
यदि मुस्लिम और ईसाई लोग अपने-अपने मतों को मौलिक, आदि-कालिन, प्रारंभिक बताने के छद्मरूप को कुछ त्याग ले और अहंकार, स्वार्थ का परित्याग कर दें तो वे मानव-जाती की आदि-उत्पत्ति के बारे मे कोई भी आविष्कृत सिद्धांत, चाहे अपनी और से हो या फिर चार्ल्स डारविन जैसे किसी जीवशास्त्रीयो की उपलब्धियों को ही उन्होंने स्वीकार, शिरोधार्य किया हो, प्रस्तुत करने के लिए धृष्ट, हठी न रह पाएंगे ।

चुकी इस्लाम और ईसाइयत विगत कालखण्ड के मात्र छोटे-छोटे बच्चे ही हैं, इसलिए अच्छा हो कि वे वैदिक संस्कृति द्वारा दिये गए ज्ञान और अनुभव की धरोहर को मान्य कर ले और इसे ग्रहण करें, क्योंकि मानव-प्राणियों की प्रथम पीढी से अस्तित्व मे रहनेवाली संस्कृति यहीं है ।  वे वैदिक संस्कृति  (अर्थात हिन्दू-धर्म) को एक समकालीन प्रतियोगी के रूप मे न देखें, क्योंकि वैदिक  संस्कृति समुचि मानवता का श्रीगणेश करनेवाला मौलिक धर्म है। अतः उन लोगों को चाहिए कि वे वैदिक संस्कृति को अपने पूर्वजों की परंपरा के रूप मे मुक्त-कंठ से स्वीकार व ग्रहण कर लें। बजाय इसके कि इसे एक प्रतिद्वंद्वी मानकर इसकी निन्दा या तिरस्कार करें या फिर इससे मुंह मोड ले, क्योंकि इस्लाम और ईसाई-मत की परंपराएं और शब्दावली अतिसुदृढ रूप मे वैदिक संस्कृति मे जडे जमाए हैं। इसलिए आइए, हम देखें कि मानवता के प्रारंभ  और इसकी भाषा के बारेमें वैदिक परंपरा का कहना क्या है ।
--- सावशेष

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