Tuesday, April 17, 2012

परम चेतना के प्रतिक भगवान् शिव


भगवान शिव परम चेतना के प्रतीक के रूप में मने जाते हैं I पार्वती परम ज्ञान, संकल्प और कर्म की साकार प्रतिमा मानी जाती हैं और वही समस्त सृष्टि की कर्तरी भी कही जाती हैं I इस शक्ति या उर्जा को कुण्डलिनी शक्ति भी कहते हैं, जो सभी जीवों में प्रसुप्त है I पार्वती समग्र विश्व ब्रम्हाण्ड की मात- शक्ति भी समझी जाती हैं I जीवात्मा, जो नाम और रूप के जगत से आबद्ध है, उनकी कृपा से मुक्त होकर परम चेतना के साथ युक्त हो जाता है I अपनी संतति के प्रति प्रेम और करुणा के वश में हो उन्होंने तंत्र के रूप में अपना मोछ- ज्ञान उसे प्रदान किया I यौगिक विधियों का स्त्रोत तंत्र है, अत: योग और तंत्र को एक- दुसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है, जैसे शिव को शक्ति से अलग नहीं किया जा सकता I

मानव- सभ्यता के प्रारंभ में योग का उत्थान तब हुआ जब मानव अपनी अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर उसे विकसित करने की विधियों की खोज करने लगा I संपूर्ण विश्व में प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा योग-विज्ञानं का क्रामिक विकास किया गया I योग के तत्त्व को विविध प्रतीकों, रूपकों और अलंकारिक भाषओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है, इसलिए योग रहस्य की झीनी चादर से ढका हुआ प्रतीत होता है I

--- श्री  जगन्नाथ  करंजे  

1 comment:

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