Thursday, August 18, 2016

विश्व के समस्त सनातनियों को रक्षा सूत महा पर्व की अनंत शुभकामनाएं,,,
समस्त बहनों को ढेरों खुशिया मिलें,,,
बाबा विश्वनाथ सब का कल्याण करें,,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,,,
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित,सुखी संवतसरे भवेत्।।
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।
रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं।
प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना।
इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह,शांति और रक्षा का बंधन है।
इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है।
सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी।
पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षा सूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो
सकता है।
धागा केवल उसका प्रतीक है।
येन बद्धो बलिराजा,दानवेन्द्रो महाबलः
तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे,माचल-माचलः'
अर्थात दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे,उसी से तुम्हें बांधता हूं।
हे रक्षे ! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो,चलायमान न हो।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे,उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं,यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना,स्थिर रहना।
इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े परिचायक हैं हमारे पर्व और त्यौहार।
यहां हर महीने और हर मौसम में कोई ना कोई ऐसा त्यौहार होता ही है जिसमें देश की संस्कृति की झलक हमें देखने को मिलती है।
त्यौहारों का यह देश अपनी विविधता में एकता के लिए ही विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए है।
रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्यौहार है तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं।
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है।
रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं,उनका तिलक करती हैं और उनसे  अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं।
हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है।
राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप  नहीं रह गया है।
राखी देश की रक्षा,पर्यावरण की रक्षा,हितों की रक्षा  आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग-भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।
--- रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है।
वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।
कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर  स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया,तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।
वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया।
उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय  अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई।
नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बाधकर उसे अपना भाई बना लिया।
बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई।
उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
---महाभारत में राखी
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है।
जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं,तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई,तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी।
यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा
और सहयोग की भावना निहित है।
---ऐतिहासिक महत्व
इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं।
मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी।
हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था।
पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
आज यह त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्यौहार पर गर्व है।
लेकिन भारत जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं।
आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्यूंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं।
यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश में कन्या- पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं।
यह त्यौहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।
अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी।
भाई-बहनों के इस त्यौहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का विरोध करें और महिलाओं पर हो रहे शोषण का विरोध करें।
अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि राह चलते वह जिस महिला या लड़की पर फब्तियां कस रहे हैं वह भी किसी की बहन होगी और जो वह दूसरों की बहन के साथ कर रहे हैं वह कोई उनकी बहन के साथ भी कर सकता है।

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