- हिन्दू धर्म के साथ शिखा का अटूट संबंध होने के कारण चोटी रखने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। शिखा का महत्व संस्कृति में अंकुश के समान है। यह हमारे ऊपर आदर्श और सिद्धांतों का अंकुश है। इससे मस्तिक में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं।
- पूजा-पाठ के समय शिखा में गाँठ लगाकर रखने से मस्तिक में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकाल पाती हैं। इनके अंतर्मुख हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोत्तरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं।
- मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से निकलती है .ये द्वार है--> दो आँख ,दो कान ,दो नासिका छिद्र ,दो निचे के द्वार ,एक मुंह और दसवा द्वार है सहस्रार चक्र .इसी स्थान पर शिखा होती है
- यजुर्वेद में शिखा को इंद्रयोनि कहा गया है। कर्म, ज्ञान और इच्छा प्रवर्तक ऊर्जा, ब्रह्मरंध्र के माध्यम से इंद्रियों को प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में शिखा मनुष्य का एंटेना है। जिस तरह दूरदर्शन या आकाशवाणी में प्रक्षेपित तरंगों को पकडऩे के लिए एंटेना का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए शिखा का प्रयोग करते हैं।
- मानव उत्क्रांति का सर्वोच्च पड़ाव आत्म साक्षात्कार है। यह साक्षात्कार सुषुम्ना के माध्यम से होता है। सुषुम्ना नाड़ी अपान मार्ग से होती हुई मस्तक के जरिए ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती है। ब्रह्मरंध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केशराशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है।
Tuesday, May 1, 2012
हम शिखा क्यों रखते है, शिखा रखने का सैधांतिक या वैज्ञानिक कारण या प्रयोजन? क्या हिन्दू होनेका द्योतक है?
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good good very good
ReplyDeleteHariBol