गाय
गाय पृथ्वी पर समस्त देवताओं की साक्षात प्रतिनिधि है। जिसकी देह के अंग-प्रत्यंग में सभी देवी देवता स्थित है वह गोसर्वदेवमय है।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि गाय के शरीर में देवताओं का वास व पैरों
में तीर्थ स्थल होता है। संत जन कहते कि जब कोई भी मनुष्य गऊ माता की धुली
को अपने माथे पर लगाता है तो उसे तत्काल किसी तीर्थ स्थल के जल में स्नान
करने जितना पुण्य प्राप्त होता है और सफलता उसके कदम चूमती है। जहां पर गाय
रहती है वह स्थान पवित्र होकर तीर्थ स्थल के समान हो जाता है। ऐसी भूमि पर
प्राण त्यागने वाला इंसान तुरन्त मुक्ति प्राप्त करता है।
गाय की
महिमा का बखान उपनिषद् के इस कथन से मिलता है कि गाय ही भूत और भविष्य है।
ये सदा रहने वाली पुष्टि का कारण व लक्ष्मी की जड है। गौ माता को जो कुछ
दिया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता जो लोग गो दान करते हैं वे
समस्त संकटों से मुक्त होकर दुष्कर्मो के पाप समूह से भी तर जाते हैं।
गाय के सींगो के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में
ब्रह्मा और ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, जीभ में
सरस्वती, दांतो में मरुद्गण, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गोमूत्र में
गंगा, गोबर में लक्ष्मी व खुरों के अग्र भाग में अप्सराए निवास करती है।
उन्होंने कहा कि गाय के सींगो में चर व अचर सभी तीर्थ विद्यमान है। ललाट
में देवी पार्वती व हुंकार में भगवती सरस्वती का वास है। गालों में यम व
यक्ष निवास करते हैं।
उन्होंने कहा कि चूंकि गाय के शरीर में
समस्त देवी देवताओं का वास होता है अत: जो कभी भी गाय माता के ऊपर क्रोध
नहीं करता व उन्हें प्रताडित नहीं करता, वह महान ऐश्वर्य को प्राप्त करता
है और मणोपरांत स्वर्ग को प्राप्त करता है। जो मानव श्रद्धा पूर्वक गाय
माता को स्पर्श करता है माता उसके सब पाप हर लेती है और गाय माता की सेवा
करने से मानव को अपार धन, संपत्ति व यश पाता है।
उन्होंने कहा कि
गाय की खुरों से उत्पन्न गो धूलि स्पर्श मात्र से पातक ध्वस्त हो जाते है।
गाय को साक्षात देव स्वरूप मानकर उसकी देखभाल करना व गो रक्षा के लिए सदैव
तत्पर रहना प्रत्येक मानव का मात्र कर्तव्य ही नहीं वरन धर्म भी है।..
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