Wednesday, May 30, 2012

जैसा अन्न वैसा मन

जापान के डॉ ईमोटो ने एक प्रयोग किया . उन्होंने पानी को अलग अलग विचारों से प्रभावित किया . फिर उसे जमा कर उसके कणों ( crystals ) की फोटो ली . तब उन्होंने पाया की जिस पानी को प्रेम की भावना प्रेषित की उसके कण बहुत ही सुन्दर और षटकोणीय पाए गए पर जिस पानी को नफरत की भावना प्रेषित की गयी उसके कण ठीक से बने ही नहीं . खाने में एक बड़ा अंश पानी का होता है ; चाहे वो फल हो , सब्जी हो या पकाया हुआ अन्न . अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ का बना खाना खा ले जिसकी सोच में हिंसा या व्याभिचार हो तो वह विचार उस अन्न को प्रभावित करेंगे और वह अन्न हमें .इसीलिए हमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए की खाना बनाने वाले के विचार कैसे है . अगर हम भगवान को ध्यान में रख भोग के लिए हलवा बनाते है तो उस हलवे का स्वाद अन्य दिनों से निराला होगा जबकि सामग्री और बनाने वाला वही होगा . आजकल बाहर का खाना खाने की प्रवृत्ति बढती जा रही है . उस खाने को चाहे वो शाकाहारी ही क्यों ना हो ; उसे बनाने वाले के विचार अगर तामसिक है तो ऐसा खाना हमारे विचार भी गंदे कर सकता है .
फिर भी अगर हमें किसी मजबूरी में बाहर का खाना 
खाना ही पड़े तो क्या करे . हमें अन्न परोस कर उस पर ध्यान लगा कर उसे भगवान को अर्पित करना चाहिए . मन में शुद्ध विचार ला उस परपिता परमात्मा का ध्यान लगाये . तो वह अन्न फिर शुद्ध हो सकता है . अब उस भोजन को शांत भाव से मन लगा कर चबा चबा कर ग्रहण करे .

1 comment:

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