ज्योतिर्लिंग सोमनाथ
सोमनाथ
गुजरात राज्य में सिन्धु सागर के तट पर स्थित है। इस पवित्र स्थल को
'प्रभास तीर्थ' के नाम से जाना जाता है। यह तीर्थस्थल देश के प्राचीनतम
तीर्थस्थानों में से एक है एवं इसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्भागवत
गीता, शिवपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में है। यहीं प्रसिद्ध व दर्शनीय
सोमनाथ मंदिर है। इस मंदिर की छटा देखते ही बनती है। यहां सुबह और शाम
अलग-अलग रूपों में सोमनाथ के भाव, भक्ति और श्रद्धापूर्वक दर्शन होते हैं।
यहां समुद्र अपनी गूंज और ऊंची-ऊंची लहरों के साथ सदैव शिव के चरण वंदन
करता प्रतीत होता है। सोमनाथ का शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में प्रमुख
स्थान है।
भावबृहस्पति द्वारा लिखी गई प्रशस्ति के अनुसार सोमनाथ
का प्रथम मंदिर सोम (चन्द्रमा) ने बनवाया था। दूसरे युग में लंकापति रावण
ने उसे चाँदी का बनवाया; श्रीकृष्ण ने उसे काष्ठ (चन्दन) का बनवाया; भीमनाथ
सोलंकी ने उसे शिला का बनवाया और आखिर में राजा कुमारपाल के काल में
सोमनाथ के तत्कालीन महाधिपति भावबृहस्तपति द्वारा मंदिर को बडे पैमाने पर
नवसृजित करवाया गया।
ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है कि सोमनाथ मंदिर
का निर्माण चन्द्र देव [सोमराज] ने किया था। पुरानों में सोमराज द्वारा
मंदिर निर्माण की कथा इस प्रकार है- भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति
ने अपनी २७ कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से किया था। चंद्रमा का अनुराग उनमें
से मात्र रोहिणी के प्रति था। अन्य २६ कन्याओं को इस बात से बड़ा कष्ट
रहता था। कन्याओं का कष्ट देखकर दक्ष ने चंद्रमा को शाप दिया, जिससे
चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गये और वे कांतिहीन होने लगे। इससे जग में
त्राहि-त्राहि मच गयी। जब सच में चन्द्र देव का तेज धूमिल होने लगा तब दक्ष
प्रजापति की पुत्रियों ने अपने पिता से प्रार्थना की कि वे अपना श्राप
वापिस ले लें। राजा दक्ष ने कहा कि सरस्वती नदी के मुहाने पर सिन्धु सागर
में स्नान करने और भगवान् शिव की आराधना से श्राप के प्रकोप को रोका जा
सकता है। तब सोमराज ने सरस्वती के मुहाने पर स्थित सिन्धु [अब अरब] सागर
में स्नान करके भगवान शिव की आराधना की जिससे प्रभु शिव यहाँ पर अवतरित हुए
और उनका उद्धार किया। शिवभक्त चन्द्र देव ने यहां शिव जी का मन्दिर
बनवाया। यहां जो ज्योर्तिलिंग प्रकट हुआ उसका नाम सोमनाथ [चन्द्र के
स्वामी] पड़ गया। यहाँ पर चन्द्रमा द्वारा अपनी कान्ति वापस पाये जाने के
के कारण इस क्षेत्र को 'प्रभास तीर्थ' कहते हैं। शिव भक्त रावण ने इस
मन्दिर को चांदी का बनवाया, और उस के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका पर
अपने शासन के समय इसे चन्दन का बनवाया।
मंदिर के दक्षिण में
समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि
सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। यह
हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है।
सोमनाथ मन्दिर का इतिहास बताता है कि इसका बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार
होता रहा। गुजरात के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर की महिमा और कीर्ति
दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका
जो भव्य विवरण लिखा उससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1026 में सोमनाथ
मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और शिवलिंग को खंडित किया। इसके
बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका शिला में
पुनर्निर्माण कराया। जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो दोबारा
प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया।
सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और लूट का सिलसिला यूं ही जारी रहा। औरंगजेब
ने भी उसमें लूट की थी। कुल मिलाकर 17 बार इस मंदिर को तोड़ा व लूटा गया।
सोमनाथ मंदिर पुनःनिर्माण में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल का
बडा योगदान रहा। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया था।
मंदिर के प्रांगण में रात साढे सात से साढे आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड
लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के पूरे इतिहास का बडा ही सुंदर
सचित्र वर्णन किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि यहीं श्रीकृष्ण ने
देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का महत्त्व और भी बढ गया। श्रीकृष्ण
भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। एक शिकारी ने उनके पैर के तलुए में
पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर चला दिया। श्रीकृष्ण ने देह
त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बडा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर
बना हुआ है। समुद्र तट पर होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में यहां शीतलता रहती
है।
सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ द्वारिका
है, जहां प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की
संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
संपूर्ण जानकारी श्री अनिल कुमार त्रिवेदी द्वारा उपलब्ध --------
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