महर्षि वेद व्यास ने स्वयं (महाभारत 1-V-4) लिखा है-
श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृतिर्त्वरा॥
भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास
Manish Kumar:
अर्थात जहां कही भी वेदो और दूसरे ग्रंथो मे विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात की मान्य होगी। 1899 मे प्रोफेसर ए. मैकडोनेल ने अपनी पुस्तक ''ए हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर'' के पेज 28 पर लिखा है कि वेदो की श्रुतियां संदेह के दायरे से तब बाहर होती है जब स्मृति के मामले मे उनकी तुलना होती है। पेज 31 पर उन्होने लिखा है कि सामान्य रूप मे धर्म सूत्र भारतीय कानून के सर्वाधिक पुराने स्त्रोत है और वेदो से काफी नजदीक से जुड़े है जिसका वे उल्लेख करते है और जिन्हे धर्म का सर्वोच्च स्त्रोत स्थान हासिल है। इस तरह मैकडोनेल बाकी सभी धार्मिक पुस्तको पर वेदो की सर्वोच्चता को स्थापित मानते है। न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य भी अपनी पुस्तक ''हिंदू लॉ एंड कांस्टीच्यूशन'' के पेज 16 पर लिखा है कि अगर श्रुति और स्मृति मे कही भी अंतर्विरोध हो तो तो श्रुति (वेद) को ही श्रेष्ठ माना जाएगा ,,
Siddharth Krishna:
ये विचार तो सभी ग्रन्थों में कूट कूट कर भरा पड़ा है, वैदिक सनातन धर्म के प्रत्येक विचारक न सदा ही वेदों को सर्वश्रेष्ठ माना है - धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः........ धर्मविषयक किसी भी प्रकार की जिज्ञासा होने पर श्रुति ही सर्वोत्कृष्ट प्रमाण माना जाता है, श्रुति अर्थात् वेदों के उपरान्त ही स्मृतिग्रन्थों अर्थात् गीताजी आदि का स्थान आता है........ उसके उपरान्त शिष्टाचार अर्थात् शिष्ट जनों के आचरण को तीसरा प्रमाण माना गया है........ शिष्टाचार को प्रमाण मानने की बात स्वयं वेदों में ही निरूपित है, जैसे कि कृष्णयजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक आदि में........... हिन्दू यानी वेदों को सर्वोपरि मानने वाला......स्वयं ईश्वर भी आकर कुछ वेदविरुद्ध बोलें, तो हम उन्हें पूजते हैं, लेकिन उनकी बात नहीं मानते.... इसलिये हम हिन्दु भगवान् बुद्ध को अवतार मानते हैं, उन्हें पूजते भी हैं, लेकिन जितने अंश में उनका विरोध वेदों से हैं, उतने अंश में हम उन्हें अस्वीकार करते हैं.......... वेदनारायण ही वैदिक सनातन धर्म में सर्वोपरि हैं..
Sushil Jhunjhunwala:
जो अनुभव इन्द्रियजन्य नहीं हैं उसी ज्ञान के लिए वेद प्रमाण हैं
Siddhartha Krishna:
धर्म का अनुभव इन ५ इन्द्रियों से हो ही नहीं सकता, इसीलिये उसे समझने के लिये तथा परमलक्ष्य ब्रह्मतत्त्व को समझने के लिये वेदभगवान् ही एकमात्र साधन है - इसीलिये पुरुषार्थानुशासन सूत्र कहता है - धर्मब्रह्मणी वेदैकवेद्ये...... अर्थात् धर्म एवं ब्रह्म केवल वेद से ही जाने जा सकते हैं......... अगर कोई कहे कि धर्म को तो विश्व में अनेक पैगम्बरों या नबियों ने जाना है, तो मैं कहूंगा कि वह धर्म नहीं, वे तो मत-मतान्तर व विभिन्न सम्प्रदाय हैं, धर्मतत्त्व को वेद से ही जाना जा सकता है.........इसी प्रकार कोई कहे कि सभी धर्म भी ईश्वर की बात करते हैं, फिर वेद ने क्या खास बताया, तो मैं यही कहूंगा कि ब्रह्म ईश्वर नहीं, ईश्वर की भी मूलभूत सत्ता है, जिस तत्त्व को केवल वेदों ने ही समझा व समझाया........ इस अर्थ में मेरे विचार से वेद बिल्कुल अनूठा है, पूरे विश्व में............ यह हम भारतीयों को सबसे पहले समझना होगा......... वैदिक सनातन धर्म को किसी भी अन्य धर्म के समकक्ष नहीं ठहराया जा सकता........... यह मैं अन्य धर्मों का कुछ अध्ययन व अपने धर्म का गहराई से अध्ययन करने के उपरान्त कह रहा हूं......... यदि किसी के विचार भिन्न हो, तो कृपया स्पष्टीकरण दें एवं मेरा दोष मुझे दिखाने का प्रयत्न करें........धन्यवाद
Sushil Jhunjhunwala:
Kya ye sach hai ki Indriyon ke anubhav se jo gyaan aata hai us vishay me nahi balki sirf Aparoksh gyaan me hi ved ko pramaan mana gaya hai.
Samarpan Trivedi:
जी
नहीं, एसी कोई बात नहीं हे. किन्तु में मानता हू. की इन्द्रियों के अनुभव
से आने वाला ज्ञान जो भी हो वह मिथ्या ही हे. एसी स्थिति में जो मिथ्या
नहीं हे ऐसा ज्ञान वेद हमें देता हे. उदहारण देखे तो. काम से मन को तृप्ति
होती हे और आनंद मिलता हे. लेकिन वेद कहता
हे इससे भी बड़ा आनंद, सत्वानंद, ब्रह्मानंद. परमानंद इत्यादि हे. तो
इन्द्रिय आदि के अनुभव में वेद अवश्य ही मध्यस्थी करता हे. अतः में ये
कहूँगा की भौतिक स्वार्थ हेतु और व्यवहारिकता में इन्द्रिय अनुभव को भले ही
प्रमाण माना जाए. किन्तु अंतिम सत्य हेतु (भले ही वह इन्द्रिय सापेक्ष हो)
वेद ही प्रमाण हे.
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