Saturday, May 5, 2012

रामचरितमानस मे मानस शब्द के आध्यात्मिक अर्थ की जिज्ञसा का उत्तर------

यहाँमानस शब्द क अर्थ मन नही है । क्योकि ऐसामानने पर ----रामचरित मानस यहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ वश्रामा ~ बा0का035/7 मे कहा गया विश्राम मन के सुनने से नही मिल सकता । आगे इसे सर कहा गया --होइ सुखी जो यह सर परई 35/8। सरोवर मे स्नान से सुख प्राप्त होता है । अन्यत्र भी भगवान के चरित को अमृतमयी नदी कहा गया ------
अयं त्वत्कथामृष्टपीयूषनद्याँ मनोवारणः क्लेशदावाग्निदग्धः ।
तृषार्तोऽगाढो न संस्मारदावं न निष्क्रामति ब्रह्मसम्पन्नवन्नः । ।
आगे ------जस मानस जेहि विधि भयउ-----35 मे इसे मानस कहकर उत्तरकाण्ड मेशिवजी के शिष्य महर्षि लोमश कहते है ---------
रामचरित सर गुप्त सुहावा । संभु प्रसाद तात मै पावा । । 113/11यहाँमानस के स्थान पर सर शब्द का प्रयोग। है । इसके पूर्वदूसरी चौपाई मे सर के स्थान पर मानस शब्द प्रयुक्त हुआ है----------
रामचरितमानस तब भाषा ---113/9
इससे यह निर्णीत होता है कि रामचरितमानस मे मानस का अर्थ मानससर = मानसरोवर है । यह रामकथा का अमृतमय मानसरोवर है इसमे शिव शुक सनकादि जैसे विमल हंस गोता लगाते हैँ ।
जैसे ब्रह्मा जी ने अपने मन से सत्सड़्कल्प द्वारा मानसरोवर की रचना करके उसमे भगवान् के नेत्र से नि:सृत जल को रखा वैसे ही भगवान् शड़्कर नेअपने दिव्य सड़्कल्प से रामचरित रूपी मानसरोवर की रचना करके इसे अपने मानस =मन मे रखा ----------
रचि महेश निज मानस राखा । पाइ सुसमय शिवा सन भाखा । ।------बा0का035/11
अतःरामचरितमानस मे मानसका आध्यात्मिक अर्थ मानससर =मानसरोवर है-----------जयश्रीराम
-----  आचार्य सियाराम्दास नैयायिक

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