Thursday, May 24, 2012

रूद्राक्ष की उत्पति

           
अधिंकाशत: रूद्राक्ष सभी ने देखा होगा। परन्तु इसकी उत्पति किस प्रकार से हुई है, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। वैसे तो रूद्राक्ष की उत्पति की अनेक ग्रंथों में अलग २ कथाएं हैं परन्तु विस्तारभय के कारण मैं आपको एक कथा बता रहा हूं कयोंकि हमारा उद्दे य रूद्राक्ष की उत्पति जानना नहीं है अपितु यह जानना है कि रूद्राक्ष से लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है फिर भी जिज्ञासा शांत करने के लिए शिवपुराण में वर्णित रूद्राक्ष की पौराणिक कथा बता रहा हूं - महाबली असुरराज त्रिपुरासुर देवों के साथ २ समस्त ऋषियों को भी प्रताड़ित करता रहता था क्योंकि उसे सृष्टि विद्याता ब्रह्माजी से अजेय रहने का वरदान प्राप्त था। जब देवता त्रिपुरासुर से परेशान हो गए तो वह सभी मिलकर भगवान शिव के पास गए। उनकी स्तुति कर असुरराज से मुक्ति दिलवाने का निवेदन किया तो भगवान शिव त्रिपुरासुर से युद्ध के लिए तैयार हो गए। त्रिपुरासुर से युद्ध करते हुए भगवान शिव को सहस्त्र वर्ष बीत गए, किन्तु कोई परिणाम नहीं निकाल पा रहा था। युद्ध में अधिक व्यस्त रहने के कारण भगवान शिव के नेत्रों में शूल होने के कारण नेत्रों से आंसू गिरने लगे। जो आंसू पृथ्वी पर गिरे, उन्होंने वृक्ष का रूप ले लिया। कालांतर में उस वृक्ष से जो फल निकले वहीं रूद्राक्ष कहलाए। यदि हम रूद्राक्ष का संधि विच्छेद करे तो यही अर्थ निकलेगा अर्थात् रूद्र + अक्ष यानि की रूद्र के अक्ष अर्थात् शिव के आंसू। रूद्र भी शिवजी का ही एक नाम है।
चिकित्सकों के मत में रूद्राक्ष एक उष्ण फल है जो प्रमाद, वात और कफनाशक होने के साथ मस्तिक व हृदय को भी बलशाली बनाता है। त्वचा को स्निग्ध कांति देता है। रक्तशोधन तथा स्त्रायु तंत्र को बल देता है। इन सबके अतिरिक्त तंत्रशास्त्र में भी रूद्राक्ष को भूत - प्रेत नाशक माना गया है। अन्य रत्नों की तरह यह भी मानव शरीर पर विद्युत व चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करता है। जिससे मानसिक विकार से मुक्ति के साथ २ रक्तचाप में भी लाभ होता है। रूद्राक्ष को माता अथवा एकल रूप में धारण करने से शरीर व मन को बल प्राप्त होता है। साथ ही आर्थिक समृद्धि, समाज में सम्मान, पारिवारिक सुख व मान - प्रतिष्टा में वृद्धि तो निश्चत होती है।
रूद्राक्ष का महत्व
रूद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है तथा हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का उच्च स्थान है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।
जो लाभ आपको रत्न धारण करने से होगा उससे कहीं अधिक लाभ आप रूद्राक्ष धारण करके भी प्राप्त कर सकते है। रत्न धारण करने के साथ व्यकित के मन में यह भी शंका रहती है कि जो रत्न वह धारण कर रहा है वह लाभ के स्थान पर हानि तो नहीं देगा रूद्राक्ष के बारे ऐसा कुछ नहीं हैं। रूद्राक्ष को आप किसी भी ग्रह की भान्ति के लिए अथवा उस ग्रह से लाभ प्राप्त करने के लिए धारण कर सकते हैं क्योंकि रूद्राक्ष से आपको केवल लाभ ही प्राप्त हो्गा। हानि की संभावना बिल्कुल भी नहीं होती है।
रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। ऊपरी हवाओं से भी सदैव मुक्त रहेंगे क्योंकि जो व्यक्ति कोई भी रूद्राक्ष धारण करता है उसे भूत पिशाच आदि की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं
रूद्राक्ष के मुख व लाभ
किस धारणा से कौन सा रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।

एकमुखी रूद्राक्ष ('एक वक्त्र: शिव: साक्षाद्र ब्रहमहत्या त्योपहति`) एक मुखी रूद्राक्ष को साक्षात् भगवान शिव माना गया है। इस में स्वयं शिव ही विराजते हैं।
द्विमुखी रूद्राक्ष (गृह सुख शान्तिदाता) यह मुक्ति एवं सांसारिक ऐश्वर्य का दाता है तथा अर्द्धनारीश्वर स्वरूप है यह स्त्रियों के लिए विशेषकर लाभदायक है।
त्रिमुखी रूद्राक्ष (बुखार से छुटकारा) इसके धारक से अग्निदेव प्रसन्न होते है। जिस व्यक्ति को बार-बार बुखार आता है उसके लिए विशेष गुणकारी है।
चर्तुमुखी रूद्राक्ष (ज्ञान-वाकपटुता) यह साक्षात् ब्रहमा जी का स्वरूप् है। जिस बालक की बुद्धि कमजोर हो, बोलने में अटकता हो उसके लिए अति उत्तम है।
पंचमुखी रूद्राक्ष (दिल की बीमारी के लिए) इसको धारण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं यह प्रचण्ड कालाग्नि रूद्र है। इसके धारक को किसी प्रकार का दुख नहीं सताता, इसके कम से कम तीन दाने धारण करने चाहिए।
छ: मुखी रूद्राक्ष (विद्या प्राप्ति के लिए) यह रूदाक्ष स्वामी कार्तिकेय के समान है। यह विद्या प्राप्ति में तथा ब्रहम हत्यादि के दोष दूर करने में सहायक है।
सप्तमुखी रूद्राक्ष (धन प्राप्ति के लिए) इस रूद्राक्ष के देवता सात माताएं, सूर्य और सप्तऋषि हैं। इसके धारक पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
अष्टमुखी रूद्राक्ष (आयु वृद्धि के लिए) यह रूद्राक्ष गणेश जी का स्वरूप है वटुक भैरव का स्वरूप माना जाता है। यह आयु बढ़ाने वाला है।
नवमुखी रूद्राक्ष (नवदुर्गा रूप) यह रूद्राक्ष भगवती दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। किसी मत के अनुसार इसे धर्मराज का स्वरूप माना गया है।
दशमुखी रूद्राक्ष (ग्रह शन्ति के लिए) इस रूद्राक्ष के प्रधान भगवान जनार्दन एवं दसों दिगपाल कहे गये हैं। इसके धारक के सर्व कार्य सिद्ध होते है।
एकादशमुखी रूद्राक्ष (पुत्र प्राप्ति के लिए) स्त्रियों के लिए यह रूद्राक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पति की सुरक्षा उसकी दीर्धायु एवं उन्नति तथा सौभाग्य प्राप्ति में यह रूद्राक्ष उपयोगी है।
द्वादशमुखी रूद्राक्ष (विष्णु स्वरूप) यह रूद्राक्ष भगवान विष्णु स्वरूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके देवता बारह सूर्य है। इसको धारण करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा लोक परलोक में सुख की प्राप्ति होती है।
तेरहमुखी रूद्राक्ष (मनोकामना सिद्धि) यह रूद्राक्ष हर प्रकार की मनोकामना सिद्ध करने वाला है। इसके धारण से यश, मान, एवं धन की प्राप्ति होती है।
चौदहमुखी रूद्राक्ष (सर्व सुखकारी) यह रूद्राक्ष स्वयं भगवान शिव के नेत्र से प्रकट हुआ है ऐसा कई ग्रन्थों में लिखा है। इसे पूज्य हनुमान जी का स्वरूप माना गया है यह सौभाग्य से ही प्राप्त होता है।
गौरी-शंकर रूद्राक्ष (शिव शक्ति मिश्रित रूप) यह रूद्राक्ष कुदरती दो जुडे हुए रूद्राक्ष होते हैं इसलिए इस रूद्राक्ष को शिव तथा शक्ति का मिश्रित रूप माना गया है जो व्यक्ति एकमुखी प्राप्त करने में असमर्थ हो उनके लिए यह रूद्राक्ष अति उत्तम है। घर में, पूजा घर में, तिजोरी में मंगलकामना की सिद्धि के लिए इसे रखना आवश्यक है।
नोट :

प्रत्येक रूद्राक्ष को सदैव सोमवार के दिन प्रात:काल शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर धारण करें।
रूदाक्ष को लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर धारण किया जा सकता है।

—अनुराग मिश्र 

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