Friday, May 18, 2012

‘शंख कल्प संहिता'

प्राचीन ग्रन्थ ‘शंखकल्प संहिता’ और सभी आध्यात्मिक ग्रंथों, पौराणिक मतों के अनुसार देवताओं और दानवों ने अमृत की खोज के लिए मंदराचल पर्वत की मथानी से क्षीरसागर मंथन किया, उससे 14 प्रकार के रत्न प्राप्त हुए। आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ जिसमें तथा मुख्य दक्षिणावर्ती शंख, गोमुखी शंख और भी कई प्रकार के शंख प्राप्त हुए। प्रतिदिन घर में शंखनाद करने से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। शंख ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है। शंख में पंच तत्वों का संतुलन बराबर बनाए रखने की प्रचुर क्षमता होती है।
ऐरावत शंख : ऐरावत शंख का उपयोग मनचाही साधना सिद्ध को पूर्ण करने के लिए और शरीर की सही बनावट, रूप रंग को और निखारने के लिए किया जाता है। प्रतिदिन इस शंख में जल डाल कर उसे ग्रहण करना चाहिए। शंख में जल प्रतिदिन 24 - 28 घण्टे तक रहे और फिर उस जल को ग्रहण करें, तो चेहरा कांतिमान होने लगता है।
श्री गणेश शंख : इस शंख की आकृति भगवान श्री गणेश की तरह ही होती है। यह शंख दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति का कारक होता है।
अन्नपूर्णा शंख : अन्नपूर्णा शंख का उपयोग घर में सुख-शान्ति और श्री समृद्धि के लिए अत्यन्त उपयोगी है। गृहस्थ जीवन बिताने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिएं।
कामधेनु शंख : कामधेनु शंख का उपयोग तर्क शक्ति को और प्रबल करने के लिए किया जाता है। इस शंख की पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मोती शंख : इस शंख का उपयोग घर में सुख और शांति के लिए किया जाता है। मोती शंख हृदय रोग नाशक भी है। मोती शंख की स्थापना पूजा घर में सफेद कपड़े पर करें और प्रतिदिन पूजन करें, लाभ मिलेगा।
विष्णु शंख : इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में राहत व उपचार के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है।
पौण्ड्र शंख : पौण्ड्र शंख का उपयोग मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम रहता है। इसे विद्यार्थियों को अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।
मणि पुष्पक शंख : मणि पुष्पक शंख की पूजन-अर्चना से यश कीर्ति, मान सम्मान प्राप्त होता है। उ‘च पद की प्राप्ति के लिए भी इस का पूजन उत्तम रहता है।
देवदत्त शंख : इसका उपयोग दुर्भाग्य नाशक माना गया है। इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। इस शंख को शक्ति का प्रतीक माना गया है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
श्रेष्ठ है दक्षिणावर्ती शंख
इस शंख को देव स्वरूप माना गया है। शंख के मध्य में वरूण, पृष्ठ में ब्रह्मा व अग्रभाग में गंगा का निवास है। दक्षिणावर्ती शंख पूजन से मंगल ही मंगल और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ सम्पत्ति भी बढ़ती है। जहां शंखनाद और शंख पूजन होता है वहां लक्ष्मी स्थायी-वास करती हैं। दक्षिणावर्ती शंख के दो प्रकार होते हैं। नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो वह मादा शंख होता है। दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए। शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करना चाहिए। प्रतिदिन नित्यक्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य-पुष्प से पूजन करें और तुलसी दल चढ़ाएं।
दक्षिणावर्ती शंख की पूजा और फल
प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन सम्पत्ति में वृद्धि होती हैं। तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है। चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से सन्तान प्राप्ति होती है। जिस घर में इस शंख का पूजन होता है, वहां मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस शंख की उत्पत्ति भी माता लक्ष्मी की तरह समुद्र मंथन से हुई है। दूसरा कारण यह है कि यह शंख श्री हरि विष्णु को अति प्रिय है, इस शंख को विधि-विधान से घर में प्रतिष्ठित किया जाए तो घर के वास्तुदोष भी समाप्त होते हैं। इस शंख को दक्षिणावर्ती इसिलए कहा जाता है क्योंकि सभी शंखों का पेट बार्ईं और खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं ओर खुलता है। जहां यह शंख होता है वहां मंगल ही मंगल होता है। यदि पेट मे दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है। दक्षिणावर्ती शंख से शिवजी का अभिषेक करने से अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होता है। विशेष कार्य में जाने से पूर्व दक्षिणावर्ती शंख के दर्शन करने से वह कार्य सिद्ध होता है।
— अनुराग मिश्र

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