Tuesday, May 29, 2012

कोर्ट में सब से पहले गीता पर क्यों हाथ रखवाते हैं? कोर्ट में वेद , रामायण या उपनिषद क्यों नहीं रखते?

कोर्ट में सब से पहले गीता पर क्यों हाथ रखवाते हैं? कोर्ट में वेद , रामायण या उपनिषद क्यों नहीं रखते?
सर्वप्रथम अत्यंत बोधप्रद प्रश्न के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद
मेरे विचार से सर्व शास्त्रमयी गीता धर्म व अधर्म के टकराव का निरूपण नहीं करती वरण गीता के माध्यम से दो धर्मों के संघर्ष का निरूपण एवँ सामाधान भगवान योगेश्वर ने स्व मुख से किया है ....ये दो धर्म थे क्षात्र धर्म ( स्व धर्म ) और करुणा धर्म / दया धर्म
गीता के श्रवण का पात्र अर्जुन मोह व स्वधर्म के बीच संघर्षरत योद्धा का प्रतिनिधि है

आज के अर्जुनों के मध्य भी समय समय ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति अवश्य आती है ...परन्तु उनको कृष्ण ना मिलने से उनकी स्थिति सेक्सपीयर के विभिन्न पात्रों के सामान हो जाती है ......वो मार्गदर्शन ना पाकर या तो स्वयं को नष्ट कर लेते हैं या अन्य लोगों के विनास आदि का करण बनाते हैं .

महाभारत के युद्ध प्रसंग मे उपरोक्त दुविधापूर्ण मनः स्थिति आने पर अर्जुन भगवान की शरण मे जाता है व कहता है ....शिष्यस्तेSहं साधि माम त्वां प्रपन्नं ..अर्थात अब मै आपकी शरण हूँ ..मै आपका शिष्य हूँ ..मै अपनी सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपको प्रदान करता हूँ ...मेरा श्रेय व प्रेय क्या है ..हे प्रभु अब आप ही देखिये .
यथा योग्यं तथा कुरु ..जो मेरे योग्य हो ...जिसमे मेरा परम हित हो वही आप करो व वही मार्ग आप मुझे बताओ ..अब मै आपकी ही शरण हूँ ...

भगवान आत्यंतिक प्रेम से जिस प्रकार बछड़े के वात्सल्य से प्रेरित माँ अपने स्तनों मे दूध लाती है व अपने वत्स को प्रेम से दुग्ध पान कराती है ..(उसी प्रकार अर्जुन के इस अधिकारित्व से उनके शिष्यत्व स्वीकार करने के कारण) अर्जुन के साथ इस प्रकार का आत्यंतिक न्याय करते हुए माँ समान गीता पान कराकर समाधान करते हैं .......
>>हमारी न्याय व्यवस्था जिन उच्च आदर्शों को लेकर चली है ..उसमे प्रथम आवश्यक तत्व जो मुझे लगता है वह है ..सज्जनों को न्याय पर विश्वास एवँ दुर्जनों को न्याय व्यवस्था के श्रेष्ठ होने की वजह से भय
गीता को स्पर्श करा कर सपथ दिलाने के पीछे ऐसा भाव हो सकता है कि मै कृष्ण स्वरुप न्याय व्यवस्था मे पूर्ण आस्था रखता हूँ ...और इस वजह से मै न्यायालय के सामने जिस प्रकार अर्जुन ने शिष्य भाव से भगवान को अपने मन का पूर्ण सत्य बता कर ...अपनी पूर्ण जिम्मेदारी दे दी थी ..उसी प्रकार मै भी उसी गीता को सामने रख कर उसे स्पर्श कर उसकी सौगंध खाकर ..न्याय व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास के साथ सम्पूर्ण सत्य न्यायालय के सामने रखूँगा ....

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