Saturday, August 11, 2012

चरणामृत का क्या महत्व है?

शास्त्रों में कहा गया है
जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.जब भगवान का वामन अवतार हुआ,और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया.वह चरणामृत गंगा जी बन गई,जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है,जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है - "चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।

आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।


अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।

विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृतरूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।,जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता"
चरण का एक अर्थ है चलन ....... यानि परमप्रभु के आदेश के अनुसार जीवन-चलन होने पर एवं उन्ही के अनुसार सकल कर्म करने पर पुनर्जन्म नहीं होता.
उनके चरणों में अपना आत्मसमर्पण कर उनके आदेशों के अनुसार सभी कर्म करने का अर्थ ही है वास्तविक रूप से उनका चरणामृत पीना.
---श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
 

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