Saturday, August 4, 2012

वाणी (शव्द )

शव्द :-" वाणी "भाव एवं विचार अभिव्यक्ति का अचूक अस्त्र है ,इसके निकल जाने के बाद परिमार्जन अथवा सुधार संभव नहीं और इसके अभाव में तो बस -गूंगा खाए शर्करा ,खाय और मुस्काए (यद्यपि यह ईश्वर प्राप्त ब्रह्मज्ञानियों के लिए कहा गया है तथापि लौकिक सत्य भी है ).शव्दों के प्रयोग में साबधानी न बरतने या इसके उलट -फेर से अर्थ का अनर्थ निकल आता है .दूसरा - सामने वाले की बौद्धिक क्षमता का भी स्मरण रखना चाहिए तथा उसके हिसाब से ही बात करनी चाहिए अन्यथा अनर्गल प्रलाप बन जाता है ."टेढ़ी खीर की कथा" ऐसी ही है -एक बार एक गाँव में खीर भोजन के लिए लोग बगल के गाँव से टोलियों में जा रहे थे ,खीर की चर्चा ही करते जा रहे थे .रास्ते में एक सूरदास बैठा ,जाने बालों की बात सुन रहा था .उसकी भी खीर को जानने और खाने की इच्छा हुई ,उसने आवाज दी -ऐ भैया ! जरा सुनना .टोली में से एक किशोर उसके निकट आया और पुछा -क्या है सूरदास ?सूरदास -भैया ,जरा ये तो बताना कि ये खीर कैसी होती है ?किशोर -उजली .सूरदास -यह उजली कैसी होती है ?किशोर -बगुले जैसी .सूरदास -भैया ,यह बगुला कैसा होता है ?किशोर असमंजस में पड़ गया ,फिर उसे एक युक्ति सूझी ,वह सूरदास के एकदम समिप चला गया और बगुले जैसी टेढ़ी आकृति अपने हाथ से बनाई और सूरदास का हाथ समूचे आकृति पर घूमा दिया .जैसे -जैसे सूरदास आकृति को टटोलता गया ,आश्चर्यित और बिस्फारित होता गया और बोला -भैया ,ये तो बहुत टेढ़ी है ,गले में फँस सकती है ,आप ही लोग जाओ इस खीर को खाने .जरा सोचिये ,न समझ में आये तो खीर जैसी कोमल ,मधुर और अमृत भोजन भी टेढ़ी और गले में अटकनेवाली हो जाती है .आस्तिकता ,अध्यात्म और ईश्वर -तत्व की भी कहीं -कहीं यही दशा है .


शव्द :-चीन के एक संत को ,जब वे सदा के लिए बाहर जा रहे थे ,पत्रकारों ने Air-Port पर पुछा -आप एक अंतिम उपदेश हमें देकर जायें.संत -'शव्द' समय ,स्थान और घटनाक्रम से आबद्ध होते हैं ,जो भी कहता हूँ सब अभी के 'सत्य' हैं फिर झूठे हो जायेंगे .कभी -कभी तो भक्त के सहज बोल भगवान को भी भारी पड़ते हैं :- एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस ब्रह्मबेला में नदी तट पर जावा कुसुम ळोढ़ने गए . माँ का भजन गा रहे थे और फूल बीन रहे थे ,वहीँ बगल में एक मछुआरा बंसी डाले टंडेल पर नज़र गड़ाये पूछा -रामकृष्णजी ,बताइए तो बंसी में क्या फँसेगा ? परमहंसजी मनमौज में कह दिया -मोर फँसेगा . मछुआरे ने कहा -देखते हैं बाबा , आपकी बात सच होती है या नहीं .बाबा फूल बिछते हुए आगे निकल गए .बंसी का टंडेल डूबा ,मछुआरे ने बंसी को बाहर झटका ,सचमुच एक मोर निकला और बंसी से अपने को छुड़ा जंगल में भाग गया .मछुआरे का तो प्राण सूख गया ,वह स्वामीजी की तरफ़ भागा. इधर रामकृष्ण मंदिर आये तो देखा -माँ की मूर्ती की नाक से शोणित निकल रहा है ,वे चिंता में पड़ गए ,उसी क्षण मछुआरा भी वहाँ पहुँचा और उनके पैर पर माथा रख रोते हुए मोर वाली घटना सुनाई. नीचे वह रो रहा था और ऊपर रामकृष्णजी माँ की तरफ़ देख रहे थे और उनकी आँखों से लगातार अश्रुधारा बही जा रही थी और वे बुदबुदा रहे थे -क्षमा कोरो माँ क्षमा कोरो .

-------------************* इति शुभम् ************--------------
---  श्री विजय मिश्र

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