प्रेम
शब्द सुनते ही हमारे मन में मधुर भाव उमड़ने लगते है! प्रेम करना
प्राणियों क़ी स्वभाविक प्रवर्ती है! शेर-चीते जैसे मांस भक्षी पशु भी अपनी
संतान और परिवार से प्रेम करते है! मनुष्य में यह प्रवर्ती सर्वाधिक
विकसित है ! प्रत्येक व्यक्ति प्रेम चाहता है! बचपन में वह अपने माता -पिता
से प्रेम करता है और चाहता है , फिर अपने भाई और बहनों से प्रेम करने लगता
है और इसके बाद उसकी प्रेम परिधि में परिवार, धर्म, जाति और देश आदि का
समावेश होने लगता है!
प्रेम के कारण ही वह देश और समाज को प्रेम क़ी
परिधि में रखता है! अस्पताल और स्कुलो का निर्माण करवाता है! गरीबो को दान
बाटता है गर्मियों में पेयजल औत सर्दियों में कम्बल आदि क़ी व्यवस्था गरीबो
और जरुरतबन्दों के लिए करता है! कभी- कभी यह देश के लिए सुख- सुविधाओ को
त्याग कर सीमा पर अपने प्राणों का बलिदान तक कर देता है! कभी वह अपने प्रेम
को अभिव्यक्त करने के लिए
पशुओ से भी
प्रेम करने लगता है और उनके संरक्षण का प्रयास भी करता है! सर्वव्यापी
पर्यत्नो के बावजूद भी मानुषी को जिस संतोष और शांति क़ी जरुरत है वह उसे
नहीं मिलती!
इसका कारण यह है क़ि मनुष्य अपने प्रेम को सही स्थान पर
स्थापित नहीं कर पाता! हमारी प्रेम तृष्णा तब तक पूर्ण नहीं होगी , जब तक
हम अपना प्रेम प्रभु से या प्रभु के बनाये जीवो से बिना शर्त नहीं करेंगे
!प्रभु ही प्रेम का सर्वोत्तम विषय है ! प्रभु के साथ हमारा प्रेम अनश्वर
है, जो कभी नहीं टूटेगा! प्रभु हमें हमारे प्रेम के बदले अनंत प्रेम प्रदान
कर हमारा आस्तित्व प्रदान करते है ! जब मनुष्य भगवान से प्रेम क़ि चाह
करता है तो भगवान मनुष्य का खुली बाहो से स्वागत करते है! मनुष्य प्रभु की
और एक पग बढ़ता है एम् तो प्रभु मनुष्य की और नंगे पाँव दोड कर आते है!
चूकि प्रभु आनद स्वरूप है इसीलिए उनका प्रेम हमारे भीतर परम आनद का संचार
करता है!
ऐसे में मनुष्य का आपसी मन मुटाव समाप्त हो जाता है और मनुष्य
प्रत्येक जीव को भगवान का अंश मानकर प्रेम करता है! जिस प्रकार वृक्ष की
जड़ को सीचने से सम्पूर्ण फलता और फूलता है, उसी प्रकार भगवान को प्रेम
करने से मनुष्य समस्त जीवो के प्रति प्रेममय हो जाता है! लेकिन यदि वृक्ष
की जड़ो को छोड़कर अन्य सभी भागो को सीचते रहोगे और वृक्ष की जड़ो में ही
पानी डालना भूल जाओगे, तो वह वृक्ष नहीं टिकेगा! वह वृक्ष सूख जायेगा! आज
स्वतंत्र दिवस प्रतिज्ञा करे की आज के बाद हम सभी मनुष्य में परमात्मा का
ही रूप देखेंगे ! सच्ची आजादी का अर्थ यही है की प्रत्येक जीव को जीने का
सामान अधिकार है और सभी में उसी प्रभु का अंश है जो हममे है , क्योकि सभी
एक ही प्रभु की संतान है इसीलिए कोई भी हमसे अलग जाति, गोत्र या धर्म का
नहीं है! आज के बाद हम किसी भी मनुष्य को उसके रंग - रूप, गरीब और अमीर और
छोटे या बड़े के भेद से व्यवहार नहीं करेंगे !
--- स्वामी स सरस्वती
इसका कारण यह है क़ि मनुष्य अपने प्रेम को सही स्थान पर स्थापित नहीं कर पाता! हमारी प्रेम तृष्णा तब तक पूर्ण नहीं होगी , जब तक हम अपना प्रेम प्रभु से या प्रभु के बनाये जीवो से बिना शर्त नहीं करेंगे !प्रभु ही प्रेम का सर्वोत्तम विषय है ! प्रभु के साथ हमारा प्रेम अनश्वर है, जो कभी नहीं टूटेगा! प्रभु हमें हमारे प्रेम के बदले अनंत प्रेम प्रदान कर हमारा आस्तित्व प्रदान करते है ! जब मनुष्य भगवान से प्रेम क़ि चाह करता है तो भगवान मनुष्य का खुली बाहो से स्वागत करते है! मनुष्य प्रभु की और एक पग बढ़ता है एम् तो प्रभु मनुष्य की और नंगे पाँव दोड कर आते है! चूकि प्रभु आनद स्वरूप है इसीलिए उनका प्रेम हमारे भीतर परम आनद का संचार करता है!
ऐसे में मनुष्य का आपसी मन मुटाव समाप्त हो जाता है और मनुष्य प्रत्येक जीव को भगवान का अंश मानकर प्रेम करता है! जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को सीचने से सम्पूर्ण फलता और फूलता है, उसी प्रकार भगवान को प्रेम करने से मनुष्य समस्त जीवो के प्रति प्रेममय हो जाता है! लेकिन यदि वृक्ष की जड़ो को छोड़कर अन्य सभी भागो को सीचते रहोगे और वृक्ष की जड़ो में ही पानी डालना भूल जाओगे, तो वह वृक्ष नहीं टिकेगा! वह वृक्ष सूख जायेगा! आज स्वतंत्र दिवस प्रतिज्ञा करे की आज के बाद हम सभी मनुष्य में परमात्मा का ही रूप देखेंगे ! सच्ची आजादी का अर्थ यही है की प्रत्येक जीव को जीने का सामान अधिकार है और सभी में उसी प्रभु का अंश है जो हममे है , क्योकि सभी एक ही प्रभु की संतान है इसीलिए कोई भी हमसे अलग जाति, गोत्र या धर्म का नहीं है! आज के बाद हम किसी भी मनुष्य को उसके रंग - रूप, गरीब और अमीर और छोटे या बड़े के भेद से व्यवहार नहीं करेंगे !
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