सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के
पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में
लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को
डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई
देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके
मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल
चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण
बढ़ता रहे।
पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित
चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी
विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी
की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।
जटाओं में लिपटे सर्प
के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा
बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से
विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त
हो।
इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की
धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले
प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
इंद्रादि देवताओं का गर्व
नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को
भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित
जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।
जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले
तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने
में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।
नवीन मेघों की
घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ
वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की
कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार
की सम्पत्ति दें।
नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की
रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने
वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ
को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।
कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता
का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर,
विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को
मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः
ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि
के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से
सुशोभित हो रहे हैं।
कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प
और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु
और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के
समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।
कब मैं श्री
गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण
किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में
अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।
देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग
से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त
हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।
प्रचंड बड़वानल की
भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों
तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई
मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों
को नष्ट कर विजय पाएँ।
इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य
प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और
गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में
रहता है।
शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का
प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ
गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
इति शुभम्
---श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
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