- जब ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा ऋषि स्त्रियां और शूद्र हो सकते हैं, तो उनको अध्ययन के अधिकार का निषेध करना मेरी दृष्टि से कभी समयविशेष की आवश्यकता रही होगी, आज इस बात की आवश्यकता नहीं, सो अधिकतर आश्रमों में मातायें वेदाध्ययन भी कर रही हैं, और प्रणवजाप भी..........
- इसके अतिरिक्त 'यथेमां वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः' इत्यादि यजुर्वेद मन्त्र में शूद्रों का जिक्र होने से स्पष्ट है कि वेदवाणी शूद्रपर्यन्त सभी के लिये कही गयी थी.....
- ऋग्वेद के एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि कवष ऐलूष शूद्र थे, ये शायद बहुत कम लोग जानते हैं. इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के ही एक दूसरे मन्त्रद्रष्टा ऋषि कक्षीवान् दैर्घतमस ब्राह्मण पिता और शूद्रा माता की सन्तान थे
- सबसे प्राचीन उपनिषद् ऐतरेयोपनिषद् तथा 'प्रज्ञानं ब्रह्म' इस प्राचीनतम महावाक्य के द्रष्टा ऋषि महिदास ऐतरेय भी संभवतः शूद्र ही थे........
- कुछ अपेक्षाकृत आधुनिक धर्मशास्त्रों में और पुराणों में स्पष्ट निषेध है........ मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जब विदेशियों के आक्रमण के परिणाम स्वरूप स्त्रियों का जीवन भारत में असुरक्षित होता चला गया है, तभी घूंघट से ले कर सारे सीमित करने वाले नियम उनकी सुरक्षा के लिये वैसे ही बनाये गये हैं......... जैसे आज से कुछ वर्ष पहले तक फिलिस्तीन की मुसलमान लड़कियां कभी अपने बाल और सिर नहीं ढकती थी, पर अब इतने अधिक अत्याचार के उपरान्त अधिकतर अपनी सुरक्षा के लिये उन्हें ढकने लगी हैं..........॥
- अपशूद्राधिकरण पर भाष्य लिख कर ब्रह्मविद्या में शूद्रों का अनधिकार सिद्ध करने वाले भगवान् शङ्कराचार्य तक ने भी ब्रह्मज्ञानी चाण्डाल के पैरों में अपना सिर ही रखा है और मनीषापञ्चरत्नम् स्तोत्र में ऐसे ज्ञानी चाण्डाल को अपना गुरु ही स्वीकार किया है...........
- अधिकतर सनातनी इन तथ्यों से अवगत नहीं है, वे सोचते हैं कि यह सब आर्य समाज की विचार धारा है, इसलिये उनका विरोध अज्ञान पर आधारित है...... प्रमाणों पर नहीं............
- शृङ्गेरी के १२ वें शंकराचार्य तथा दक्षिण के महान् हिन्दु साम्राज्य विजय नगर के संस्थापक तथा वेदों के भाष्यकर्ता सायणाचार्य के बड़े भाई स्वामी विद्यारण्य मुनि जी ने अपने किसी ग्रन्थ में स्त्रियों के लिये भी सन्यास दीक्षा स्वीकार की है; फिर संन्यास दीक्षा तो प्रणव दीक्षा पूर्वक ही होती है...........
- वर्तमान में भी अद्वैत वेदान्त का प्रचार प्रसार करने वाली सर्वोत्कृष्ट दोनों संस्थायें - आर्ष विद्या गुरुकुलम् तथा चिन्मय मिशन - माताओं को वेद पाठ भी सिखाता है और संन्यास भी देता है.......... मैंने कहीं ऐसा भी नहीं सुना, कि वे लोगों को स्वीकार करने से पूर्व उनकी जाति पूछते हों...........सो मुझे नहीं लगता कि इसमें आज के युग में किसी को कोई दिक्कत होनी चाहिये
- ऋग्वेद १०:८५ के सम्पूर्ण मन्त्रों की ऋषिकाएँ " सूर्य सावित्री" हैं!
- मैं चाहूंगा कि कुछ अच्छे विद्वान बैठ कर उन शास्त्रवाक्यों का मन्थन करें जिनका संकलन मैंने किया है.......फिर इस सन्दर्भ में कोई निष्कर्ष निकाला जाये......... मनु कहते हैं धर्म के विषय में शंका होने पर १० वेदज्ञ ब्राह्मण जो निष्कर्ष निकाल दे, उसे ही धर्म स्वीकार करना चाहिये.......... समय के साथ इस नीति को अपना कर पुराने विचारों से छुटकारा पाना बहुत आवश्यक हो गया है....... हमें यह खोजना होगा कि वैदिक सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिये सबसे अच्छी नीति क्या होगी यदि मनु ने कहा है तो किसी समयविशेष व देशविशेष की दृष्टि से कहा है, आज के युग की आवश्यकता क्या है, यह देखना चाहिये.........
- पुराणों ने भी शूद्रों या स्त्रियों के लिये परम गन्तव्य को कभी बन्द नहीं किया........ वे दोनों को ब्रह्मज्ञान और मुक्ति की पूर्ण स्वीकृति देते हैं, क्योंकि वह प्रत्येक मानव का जन्म सिद्ध अधिकार है.......... ऐसा स्कन्दपुराण की सूत संहिता में मैंने स्पष्ट देखा पर पुराणों की समस्या मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें वेदों का अध्ययन करने देने में हैं............ और मैं एक बात अवश्य कहना चाहुंगा कि वेदाध्ययन का मार्ग कोई आसान मार्ग नहीं है, बहुत ही कठिन मार्ग है.......... ब्रह्मचर्य जीवन के नियम बहुत ही कठिन हैं और बहुत ही समय लगता है....... सो इन दोनों के लिये यह बहुत कठिन होगा, ऐसा सोच कर शायद ये नियम बना दिये हों, मुझे नहीं पता.............
- ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची ब्रह्म देवता के २४ अध्याय में इस प्रकार है -
घोषा गोधा विश्ववारा अपालोपनिषन्नित !
ब्रह्म जाया जहुर्नाम अगस्तस्य स्वसादिती !!८४!!
इन्द्राणी चेन्द्र माता चा सरमा रोमशोर्वशी !
लोपामुद्रा च नद्यस्य यमी नारी च शाश्वती !!८५!!
श्री लक्ष्मिः सार्पराज्ञी वाक्श्रद्धा मेधाच दक्षिण !
रात्रि सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरितः !!८६!!
Friday, August 3, 2012
क्या स्त्रिया और शुद्रो को को वेदों और प्रणव का अधिकार नहीं हे?
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