Sunday, August 12, 2012

"तुरीय" क्या है ?

Samarpan Trivedi
उपनिषदों में और खास कर अद्वैत वेदान्त परंपरा में इश्वर व उसकी एक अवस्था को "तुरीय" संज्ञा दी गई हे, अतः यह "तुरीय" क्या हे? विद्वतजन कृपया प्रकाश डाले...

Pralayshankar Sharma agar ham AUM se 4 avastha ka varnan kare toh A hai jagrat, U hai swapna aur M hai Sushupti.... aur uske baad jo ardha matra ka anuranan hota hai wo tureeya hai....

Samarpan Trivedi वाह. बहोत सुन्दर प्रलय जी, :) साधुवाद... और एक प्रश्न मन में उद्भवित होता हे की क्या यह तुरीय अवस्था का संबंध केवल ओम के साथ हे या इससे किसी अन्य अवस्था/स्थिति/तत्त्व को जोड़ा जा सकता हे?

Sahil Parveen Kakkar भैया एक अवस्था मैंने सूनी है जब व्यक्ति देखता हुआ भी नहीं देखता, सूंघता हुआ भी नहीं सूंघता !
अपनी सुरति को ब्रह्म में लगाकर वह व्यक्ति ग्रहण करता हुआ भी ग्रहण नहीं करता.उदाहरण : शुकदेव जी. यही निग्रह है. शायद इसी को तुरीय अवस्था कहते हैं........पक्का नहीं पता !

Pralayshankar Sharma turiya state is pure consciousness....brahm ki anubhuti.... nirvikalpa samadhi.... ahaam brahmasmi ka aparoksha anubhuti.... there are no thought in this state..... it is beyond other 3 states

Samarpan Trivedi ‎//turiya state is pure consciousness....//
pralay ji, in above comment you already told A hai jagrat, U hai swapna aur M hai Sushupti.... aur uske baad jo ardha matra ka anuranan hota hai wo tureeya hai....so i think turiya is beyond consciousness... :)

Pralayshankar Sharma it is beyond consciousness.... beyond anything....

Sunil Kumar Trivedi Savikalpa samadhi ki awastha turiya awastha hoti hai.yah nirvikalp samadhi ke poorva ki awastha hoti hai.isme kuch thought aur sences active bana rahta hai jabki nirvikalp samadhi me sences aur thought poorn roop se anupasthit rahete hai.mundakopnisad me turiya awastha aur samadhi ke baarik antar ko spast kiya gaya hai.

Samarpan Trivedi ‎//Savikalpa samadhi ki awastha turiya awastha hoti hai.//
lekin sunil ji vedant to kehta he ki turiya avastha jaagrut, svapna aur sudhupti se pare he.ab savkilp samaadhi me man jaagrut hota hi he.

Sunil Kumar Trivedi In turiya there is the awarness that the mind has merged in its source. Aur yahi awareness use savikalp samadhi se nirvikalp ki ore le jatee hai. Turiya awastha me brahm roopi udesya ka dhayaan hota hai.Samarpan jee mujhe vedant ke bare me koi gyaan nahi hai atah aap ispar prakash daalen.

Kalki Sharma from the avashtha trayee perspective , turiya is not an avastha  from the yoga perspective we must look at samprajnita and asamprajnita samdhi and there again even after asamprajnita samskaras remain ..so its not turiya.

Samarpan Trivedi so what is exactly meaning of turiya Kalki Ji... :)

Kalki Sharma silence :)

Sunil Kumar Trivedi Kalki jee what is samprajnita and asampranjita.is it savikalp and nirvikalpa samadhi????

Kalki Sharma sunil ji ..savikalpa, savitarka , nirvikalpa, sabikalpa all these are samdhi states ..patanjali yoga sutras describe them in detail

Sunil Kumar Trivedi Kya savikalp samadhi ka sambandh turiya sthiti se hai???

Kalki Sharma ji nahi

Chandan Priyadarshi समाधी का महत्व उस सत्य पर आधारित है जिसे आधुनिक ज्ञान नए सिरे से खोज रहा है पर जिसे भारतीय मनोविज्ञान ने कभी दृष्टि से ओझल ही नहीं होने दिया है ! वह सत्य यह है कि जगत का या हमारी अपनी सत्ता का एक छोटा सा भाग ही हमारे ज्ञान व्यवहार में आता है ! शेष सारा भाग पीछे की ओर सत्ता के प्रच्छन्न विस्तारों में छिपा हुआ है ! ये प्रच्छन्न विस्तार निचे अवचेतन की गहनतम गहराइयों में पहुंचे हुए हैं और ऊपर अतिचेतना की उच्चतम चोटियों तक उठे हुए हैं, अथवा ये हमारी जाग्रत आत्मा के छोटे से क्षेत्र को एक विशाल परिचेतन सत्ता के द्वारा चरों ओर से घेरे हुए है ! हमारे मन और हमारी इन्द्रियों को इस विशाल परिचेतन सत्ता के केवल कुछ संकेत ही प्राप्त होते हैं ! प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान ने इस तथ्य को प्रकट करने के लिए चेतना को जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति नमक तीन क्षेत्रों में विभक्त किया था; उससे मनुष्य में जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति पुरुष कि कल्पना की थी, इनके साथ ही वह सत्ता के एक परमोच्च या निरपेक्ष 'पुरुष' को भी मानता था जों "तुरीय" एवं इन तीनो से परे है; उक्त तीनों पुरुष इस जगत में सापेक्ष अनुभव का आनंद लेने के लिए इस तुरीय पुरुष में से ही आविर्भूत होते हैं !

Sunil Kumar Trivedi Kalki jee kripya spast karen ???

Chandan Priyadarshi तुरीय अवस्था हमारी शुद्ध स्वयंभू या निरपेक्ष सत्ता की चेतना है जिसके साथ हमारा किसी प्रकार का सीधा सम्बन्ध बिलकुल नहीं है, चाहे अपनी स्वप्न या जाग्रत अथवा यहाँ तक कि सुषुप्त चेतना में भी हम उसके कोई भी मानसिक प्रतिबिम्ब क्यों ना ग्रहण कर लें ; हाँ, इनमें से सुषुप्ति में ग्रहण किये हुए प्रतिबिम्ब तो हमारी स्मृति में भी नहीं आ सकते ! चार अवस्थाओं की यह श्रंखला सत्ता की सीढ़ी के उन क्रमिक सोपानों से साम्य रखती है जिनके द्वारा हम निरपेक्ष भगवान् की ओर आरोहण करते हैं ! - श्री अरविन्द

Pralayshankar Sharma Kalki ji kya nirvikalp samadhi aur turiya ek hai?

Kalki Sharma nahi Pralay ji , Sunil ji ..nirvikalpa samadhi , asamprajnta samadhi Turiy nahi hai ..isme sanskaar shesh rehte hain

Sunil Kumar Trivedi Chandan jee turiya awastha me kuch thought aur sense bacha rahta hai.kya yah nirvikalp samadhi hai ya uske poorv kh awastha hai.

Pralayshankar Sharma Kya nirvikalp samadhi me atyantya shunyata hota hai?

Pralayshankar Sharma Turiya avastha me mann ka astitva rehta hai?  Kya turiya avastha mayateet nehi hai?

Chandan Priyadarshi ‎Sunil Kumar Trivedi ji, समाधी या योगलीनता की स्थिति जैसे-जैसे सामान्य जाग्रत अवस्थाओं से अधिकाधिक दूर हटती जाती है तथा चेतना की ऐसी भूमिकाओं में प्रवेश करती है जिनका जाग्रत मन के प्रति वर्णन करना अधिकाधिक अशक्य होता है ! अतः , कदाचित इसका विश्लेषण मैं नहीं कर सकता हूँ ! आप श्री अरविन्द की एक पुस्तक "योग-समन्वय" का अध्यन करें आपको समुचित उत्तर प्राप्त होगा , अथवा आप उनका ही एक अन्य पुस्तक "Record of Yoga" ( पता नहीं इसका हिंदी संस्करण प्रकाशित हुआ है या नहीं ) का अध्ययन करें !

Pralayshankar Sharma Chandan ji ki comment se mujhe jitna samajhme aaya uske adhar par ye pratit hota hai k turiyavastha me mann k astitva nehi rehta hai.. Aur nahi koyi object of meditation rehta hai.. Kyun ki jahan mann nehi waha mann me pratibimba v ho nehi shakta hai.. Aur sushupti me mann ka astitva rehta hai kyunki ham jab nind se jagte hain tab hame ye pata hota hai k nind me kuch samay bit gaya.. yani ki samay ka chetna mann me rehta hai.. Magar bite huye samay ka smriti nehi rehta hai.. Aur turiya me shayad samay ka koyi gyan nehi rehta hai... Mere samajh me jo jo truti ya bichyuti hai use pls correct kijiye kalki ji aur chandan ji..

मोहित भारद्वाज तुरीय = तीन से परे | इसलिये संस्कृत सीखने की आवश्यकता है | प्रकृति के तीनों गुणों से परे होना ऐसा अभिप्राय वेदान्त में तुरीय अवस्था का है | लोग सत्य खोजना है , धर्म्म जानना है इत्यादि इत्यादि बातें बहुत करते हैं परन्तु संस्कृतसम्भाषण तक नहीं सीखते ..

Govardhan Bhat good discussion... Turiya means no attachment of Karma,i. e. sanchita, prarabdha and kriyamana.... it is a true state of samadhi... which is exactly Poorna roopa( No relativity)

Chandan Priyadarshi जी हाँ "तुरीय" निरपेक्ष सत्ता की चेतना है ! " निरपेक्ष " ! स्वयं स्वप्न - अवस्था में अनंत प्रकार की गहराइयाँ हैं, कम गहरी स्वप्न-अवस्था से चेतना को बुलाना आसन होता है और स्थूल इन्द्रियों का जगत अत्यंत निकट होता है,, यद्यपि कुछ समय के लिए यह बहिष्कृत रहता है; अधिक गहरी स्वप्नावस्था में यह बहुत दूर चला जाता है और अंतर्मग्नता की अवस्था को भेदने में अपेक्षाकृत अधिक समर्थ होता है, क्योंकि मन समाधी की सुरक्षित गहराइयों में प्रवेश पा चूका होता है ! समाधी और सामान्य निद्रा में अर्थात योग की स्वप्नावस्था में जरा भी समानता नहीं है ! इनमें पिछली तो स्थूल मन की एक अवस्था है; पहली में वास्तविक एवं सूक्ष्म मन, स्थूल मन के मिश्रण से मुक्त होकर कार्य करता है ! स्थूल मन के स्वप्न कई वस्तुओं का एक असम्बद्ध मिश्रण होते हैं वे वस्तुएं ये हैं - एक तो स्थूल जगत के अस्पष्ट संपर्कों के प्रति की गयी प्रतिक्रियाएं, संकल्प-शक्ति और बुद्धि से विच्छिन्न हुई मन की निम्नतर शक्तियां इन संपर्कों के चारों ओर एक विश्रृंखल कल्पना का जाल बुन डालती है; दुसरे, मस्तिश्क्गत स्मृति में से उठनेवाले अव्यवस्थित संस्कार; तीसरे, मानसिक स्तर पर विचरती हुई आत्मा से मन पर पड़ने वाले प्रतिबिम्ब, ये प्रतिबिम्ब साधारणतः बिना समझे या सुसंगत किये ग्रहण कर लिए जाते हैं, ग्रहण करते समय प्रबल रूप से विकृत हो जाते हैं तथा स्वप्न के अन्य तत्वों अर्थात मस्तिश्क्वर्ती स्मृतियों के साथ एवं स्थूल जगत से आनेवाले किसी भी इन्द्रिय-स्पर्श के प्रति मनमौजी प्रतिक्रियाओं के साथ अव्यवस्थित रूप से मिश्रित हो जाते हैं! इसके विपरीत, योग की स्वप्नावस्था में मन स्थूल जगत से ना सही पर अपने-आपसे स्पष्ट रूप से सचेतन होता है , सुसंगत रूप से कार्य करता है और या तो अपने साधारण संकल्प एवं बुद्धि का एकाग्र शक्ति के साथ प्रयोग कर सकता है या फिर मन के अधिक उन्नत स्तरों के उच्चतर संकल्प और बुद्धि को उपयोग में ला सकता है !

Kalki Sharma ye orakriya ke bina turiya samjhane waale kaun aa gaye mahanubhav turiya to teen se pare hai ye sab jaante hai kin teen se pare , ye prakriya par nirbhar hai teen sharrero ke pare bhi haiteen avasthaon ke pare bhi haiteen guno ke pare bhi hai sanksrit sambhashan se dabh ki dundubhi bajanae se accha hai ..pali mein samman ke saath paksh rakhna

भारद्वाज भारद्वाज यम्,नियम,आसान,प्राणायाम,प् रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि ,सिद्धि, तृप्ति, तुष्टि शांति तुरीयावस्था.....श्रीहरी श्रीहरी .वस्तुत: योगदर्शन की बात करें तो चित् वृत्तियों का पूर्ण निरोध ही तुरीयावस्था है ...हालांकि योगदर्शन प्रकृति को हि सृष्टि का मूल उपादान कारण मानता है और वेदान्त इससे थोडा और आगे जाकर ब्रह्म को प्रकृति का भी मूल उपादान कारण मानता है परन्तु लक्ष्मण रेखा अत्यधिक क्षीण है .....श्रीहरी श्रीहरी

Somadatta Sharma Nirvikalp samadhi ko turiya avastha bhi kahte hein.

Kalki Sharma ji haan usay turiya avastha bhi kehte hain ..turiya jis sandarbh mein yahaan kahi jaa rahi hai usay avastha nahi keh sakte yoga ki turiya ek avastha hai ..yahaan turiya avasthaon ke pare hai .  isiliye aavhshyak hai ki hum darshan aur prakriya ke anusaar hi turiya ko samajhne ka prayatn karein

Somadatta Sharma Nirvikalp Samadhi me nadi aur hriday ki gati ruk jaati he jis se ki shwash ki gati itni dhimi ho jati he ki man sharir me sthit baikunth ya usse thodi upar sthit ho jati he......agyan chakra se upar aur shahasrar chakara ke bich ke 10 anguli sthan ko sharir me baikunth ki akhya di gayi he.....is sthiti me man Ista dev jo ki Agyan chakra me haote hein unse bhi upar jake parambramha me leen ho jaata he ya phir leen hone ki koshish me laga rahta he.....ishi avastha me itni shanti milti he ki sansarik sukh tuccha gyant hote hein......ise turiya avastha kahte hein......is se upar uth kar man jab pura sahasrar me pahuch jata he aur us se upar uth jata he to jivatma brahma randhra ke marg se sharir chhod deti he....is avastha ko turiyateet avastha kehte hein......

Chandan Priyadarshi Samadhi or Yogic trance retires to increasing depths according as it draws farther and farther away from the normal or waking state and enters into degrees of consciousness less and less communicable to the waking mind, less and less ready to receive a summons from the waking world. Beyond a certain point the trance becomes complete and it is then almost or quite impossible to awaken or call back the soul that has receded into them; it can only come back by its own will or at most by a violent shock of physical appeal dangerous to the system owing to the abrupt upheaval of return. There are said to be supreme states of trance in which the soul persisting for too long a time cannot return; for it loses its hold on the cord which binds it to the consciousness of life, and the body is left, maintained indeed in its set position, not dead by dissolution, but incapable of recovering the ensouled life which had inhabited it. Finally, the Yogin acquires at a certain stage of development the power of abandoning his body definitively without the ordinary phenomena of death, by an act of will, or by a process of withdrawing the pranic life-force through the gate of the upward life-current (udana), opening for it a way through the mystic brahmarandhra in the head. By departure from life in the state of Samadhi he attains directly to that higher status of being to which he aspires.

Kalki Sharma aur somdatta ji ..yoga ka turiyateet advait ka nirvikalpa ek hi hai ..jabki yoga ka nirvikalpa , advait ka nirvikalpa nahi ..is baat pe bal dene ki chestha thi wahaan 

Somadatta Sharma nadi shodhan kaa abhyas , khechari mudra aur shambhavi mudra agar guru ke sannidhya ya kisi yogya yoga sikshak ke under me kiya jaye to i challenge any one can reach this state.  kyun ki kehte hein naa bina abhyase bisham bidya ;)

Lovy Bhardwaj 
सरल शब्दों में तुरीय अवस्था से अभिप्राय जीव की चैतन्यता की अवस्थाओं में निम्न अवस्थाएं होती हैं ..
तुरीय का अर्थ संस्कृत में "तीन से परे" से है, संस्कृत के शब्दों को कभी कभी यदि संधि-विच्छेद कर लिया जाए तो अर्थों का ज्ञान सरलता से हो जाता ... 
 from the avashtha trayee perspective , turiya is not an avastha from the yoga perspective we must look at samprajnita and asamprajnita samdhi and there again even after asamprajnita samskaras remain ..so its not turiya

सरल शब्दों में तुरीय अवस्था से अभिप्राय जीव की चैतन्यता की अवस्थाओं में निम्न अवस्थाएं होती हैं ..

तुरीय का अर्थ संस्कृत में "तीन से परे" से है, संस्कृत के शब्दों को कभी कभी यदि संधि-विच्छेद कर लिया जाए तो अर्थों का ज्ञान सरलता से हो जाता है l
१. जीव जागृत होता है l२. जीव स्वप्न अवस्था में जाता है l३. जीव सुषुप्ती की अवस्था में जाता है lये तीनो अवस्थाएं तो सभी आम मनुष्यों को भी अनुभव हो जाती हैं, लेकिन तुरीय अवस्था योग की ऐसी परम अवस्था है जिसमे जो जागृत जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्ती यानी की इन तीनो अवस्थाओं से परे है lयह समाधी की वह अवस्था है जिसको केवल सिद्ध योगी ही अनुभव कर पाते हैं lक्यूंकि यह अवस्था परमात्मा के ज्ञान और आनन्द का अनुभव करवाती है इसलिए योगियों का तुरीय अवस्था में जाना कहा जाता है, और परमात्मा भी तुरीय अवस्था में ही जानने का विषय है l

सर्वोच्च स्तर की जो समाधि की अवस्था होती है उसमे अद्वैत वेदान्त के अनुसार उसमे जीवात्मा अपने वास्तविक रूप को पहचानता है, वह समाधि की अवस्था तुरीय समाधि की अवस्था है lसमाधि के भी बहुत से स्तर होते हैं और सबसे गहरा स्तर योग के अनुसार असम्प्रज्ञात समाधि होती है, जिसमे जीव को ईश्वर का वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो जाता है, हम उस समाधि की स्वस्था की बात कर रहे हैं, जो की तीनो अवस्थाओं से परे हमे तुरीय अवस्था में अनुभव होती है l
जव घटाकाश महाकाश में लीन होता है, जब बूँद वापिस सागर में मिल जाती है उसे समाधि का सबसे उंचा स्तर कहते हैं l
यह एक दुरूह प्रश्न है। तुरीयातीतोपनिषद् इसकी व्याख्या की गई है।-यह पूर्ण है, वह पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण बनता है l पूर्ण में से पूर्ण लेलेने पर पूर्ण ही शेष रहता है l अपने पिता भगवान नारायाण के पास जाकर पितामहब्रह्मा ने कहा--*तुरीयातीत अवधूत का मार्ग क्या है और उनकी स्थिति कैसी होतीहै ?* तब भगवान नारायण ने कहा-- *अवधूत के मार्ग पर चलने वाले पुरूष दुर्लभहै, वे बहुत नहीं होते l अगर वैसा एक भी हो तो वह नित्य पवित्र, वैराग्य पूर्णमूर्ति, ज्ञानाकार और वेद पुरूष होता है, ऐसी विद्वानों की मान्यता है l ऐसामहापुरूष अपना चित्त मुझमें रखता है और मैं उसके अन्तर में स्थित रहता हूँ lवह आरम्भ में कुटीचक होता है, फिर वहूदक की श्रेणी में आता है l वहूदक से हंसबनते हैं और फिर परमहंस होते है l वे निज स्वरूपानुसन्धान से समस्त प्रपञ्च केरहस्य को जान जाते है और तब दण्ड, कमण्डलु, कटिसूत्र, कौपीन, आच्छादन करनेवाले वस्त्र और विधिपूर्वक की जाने वाली क्रियाओ को जल में त्याग देते हैं lतब वे दिगम्बर ( वस्त्र रहित ) होकर विवर्ण और जीर्ण वल्कल ( छाल का वस्त्र औरअजिन का भी त्यागकर सब प्रकार के विधि-निषेध रहित बनकर रहते हैं l वे क्षौर (बाल बनवाना ), अभ्यंग, स्नान, ऊर्ध्व, पृंड्रादिक का भी त्याग कर देते हैं lवे लौकिक और वैदिक कर्मो का पुण्य और अपुण्य का ज्ञान और अज्ञान का भी त्यागकर देते हैं l उनके लिऐ सर्दी-गर्मी, सुख-दुख, मानापमान नहीं होता l वे तीनोंवासनाओं सहित निन्दा-अनिन्दा, गर्व, मत्सर, दम्भ, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ,मोह, हर्ष, अमर्ष, असूया, आत्म संरक्षण की भावना को आग में झोंक देते हैं औरअपनी देह को मुर्दा के सदृश्य समझ लेते है l वह प्रयत्न, नियम, लाभालाभ कीभावना से शुन्य होते है l गौ की तरह जो कुछ मिल जाता है उसी से प्राण धारणकरते है और सब प्रकार के लालच से रहित होते है l वे विद्या, पांडित्य कोप्रपञ्च समझ कर धूल की तरह त्याग देते है, अपने स्वरूप को छिपाकर रखते है औरइसलिये दिखलाने के लिये छोटे-बड़े की भावना को पूर्ववत्मानते रहते है lसर्वोत्कृष्ट और अद्वैत रूप को कल्पना करते है l वे मानते है कि मेरे अतिरिक्तअन्य कुछ भी नही है' ( अर्थात्मै ही पूर्ण ब्रह्मा हूँ ) वे देव और गुरूरूपीसम्पत्ति का आत्मा में उपसंहार करके न तो दुःख से दुखी होते है और न सुख सेप्रसन्न होते है l वे राग से पृथक रहते है और शुभाशुभ किसी बात से कभी स्नेहनही रखते l उनकी सब इन्द्रियाँ उपराम को प्राप्त होती है l वे अपने पूर्व-जीवनके आश्रम, विद्या, धर्म, प्रभाव आदि का स्मरण नही करते और वर्णाश्रम के आचारका त्याग कर देते है l उनको दिन तथा रात समान होता है, इसलिये सोते नहीं ( कभीअसावधान नही होते ) सदा विचरण करते है l उनका देहमात्र ही अवशिष्ट रहता है lजल और स्थल ही उनको कमण्डलु का काम देता है l वे सदैव उन्मत्तता से रहित होतेहै पर बाहर से बालक, उन्मत्त अथवा पिशाच के समान बनकर एकाकी रहते है l किसी सेसंभाषण नही करते वरन्सदैव स्वरूप के ध्यान में ही रहते है l वे निरालम्ब काअवलम्बन करके आत्मनिष्ठा के अतिरिक्त और सब का ध्यान भुला देते है l इस प्रकारका तुरीयातीत अवधूत के वेष वाला सदैव अद्वैत-निष्ठा में तत्पर रहता है औरप्रणव के भाव में निमग्न होकर देहत्याग करता है l *
mushkil kuch nahi Saurab ji ..ye sab alag alag prakriyan aur darshan ke anusar Turiya ki vyakhya hai 
mushkil ye tab lagta hai jab hum ye maan baithte hain ki sankrit ka teen se pare (turiya ) ek hi arth rakta hai .
wo teen shareeron ke pare bhi hota hai , teen guno ke pare bhi ho sakta hai , wo teen avasthopn ke pare bhi hota hai .
darshan aur prakriya saath rahe to virodhabhaas ki gunjaish hi nahi.
जीव की तुरीयावस्था भेदज्ञान शून्य शुद्धावस्था है! इस अवस्था में भेद का लेश भी नहीं है क्योंकि भेद द्वैत में होता है!
jahaan bhi avashta hogi ..whaaan jeev hona asvabhavik to nahi.
"turiya" ."turiya avastha" "turiyateet avastha" in sabpar darshanausar manan karna aavashyak hai .
ek hi shabd alag alag prakriyon ya siddhanton mein alag tarah se uplabdh hota hai.
 वस्तुत: तुरीयावस्था निराकार अवस्था ही है जिसे मांडूक्य उपनिषद् में अ उ म् इन तीनों को साकार / जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति बताया है और इसी ओम् के निराकार स्वरूप चौथे पाद को निराकार / तुरीयावस्था बताया है प्रभुजी ...श्र्हरी
शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थ स आत्मा स विज्ञेयः...मांडूक्य ७ प्रभुजी स्पष्ट कहता है यह आत्मा की अपनी अवस्था है जिसे चेतना का चौथा स्तर भी कहाजाता है !अमात्रश्चतुर्थोऽव्यवहार्यः प्रपञ्चोपशमः शिवोऽद्वैत एवमोङ्कार आत्मैव संविशत्यात्मनात्मानं य एवं वेद य एवं वेद.
तैत्तरीय उपनिषत् में आत्मा या चैतन्य के पाँच कोशों की चर्चा की गयी प्रथम अन्नमय कोश, मनोमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश तथा आनन्दमय कोश। आनन्दमय कोश से ही आत्मा के स्वरूप की अभिव्यक्ति की गयी है यही तुरीयावस्था है प्रभुजी.
अवस्था - शब्द को संकेत समझे प्रभुजी जिस प्रकार शास्त्रों में कई कई बार आत्मा को जीवात्मा और परमात्मा आदि के लिए प्रयुक्त किया जाता है ...यह तो विदित ही है प्रभुजी तुरीयावस्था में - नेति नेति आएगा .
bharadwaj ji ..jaisa maine kahaa ..prakriya aur darshan ke anusar hum is shabd ka vivechan karte hain .
Yog ka turiya advait ka turiya nahi hai ..yog mein wo ek avastha hai , advait mein avastha se pare





1 comment:

  1. Vastavik mein Turiyaa avastha Brahm avastha mein pahuchne ke dear hai,jab koi saadhak Apne aantrik kundlini ke teen avastha Ko jagrit kar leta hai tav woh chaturthi chakra artahrth Anahad mein pahuchne ke liye tayar Ho jata hai,yanhi se turiya avastha ka suruaat hone lagta hai.

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