Tuesday, October 30, 2012

आधिपत्य

हम प्रत्येक अच्छी ,आकर्षक ,नई ,आधुनिक , सुविधा जनक या सुन्दर वस्तु ,स्थान या मनुष्य साथी को देखते हैं , तब सहज मानवीय प्रवृत्ति के वशीभूत उसे पाने , आधिपत्य करने या उस पर अपने नाम जोड़ने की इक्छा करने लगते हैं .अन्य शब्दों में कहें तो उसका पीछा करते हैं या पीछे भागते हैं. हम इसलिए भी करते हैं क्योंकि अपने बचपने से ऐसा करते लगभग सभी को देखते हैं. अतः ऐसा करना सही मानते हैं. हम ऐसा इसलिए भी करते हैं क्योंकि ऐसा होने पर हम स्वयं भी प्रसन्नता अनुभव करते हैं. अधिकांश पूरा जीवन ऐसा ही करते बिता देते हैं. या अधिकांश अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा ऐसे व्यतीत करते हैं . अपवाद हुए हैं , जिन्होंने जैसा सब करते हैं उससे अलग ढंग से जीवन जिया है . या प्रारंभिक जीवन सब जैसा जिया फिर अपने अनुभव से ,विवेक से समझदारी से जीवन उत्तरार्ध्द में अपना जीवन पथ परिवर्तित कर लिया . बाद के जीवन में वे किसी की पीछे नहीं भागे . तब उनमें से कुछ के पीछे शेष विश्व भागने लगा . उनके पदचिन्हों पर
चलने लगा उनको आदर्श मान उनका अनुकरण करने लगा .
सब अच्छा से अच्छा संभव है वस्त्र पहनना चाहते हैं . सबसे अच्छा और स्वादिष्ट अधिक खाना चाहते हैं . अपना बंगला सबसे बेहतर करना चाहते हैं . अपनी मान प्रतिष्ठा और प्रशंसा सर्वत्र चाहते हैं. अधिकतम सुविधा से रहना चाहते हैं. जीवन में अमर हो जाना चाहते हैं . सफलता शीघ्र और अधिकतम पाना चाहते हैं. अपना ज्ञान और सूझबूझ सर्वाधिक कहलवाना चाहते हैं. अपने परिवार में सुन्दर ,सुशील पत्नी ,बच्चे ,भाई-बहन होना पसंद करते हैं . अपनों पर कोई विपत्ति न आये यह चाहते हैं.ऐसा नहीं है तो इसके उपाय ,इस हेतु छीना-झपटी और उचित अनुचित प्रयत्न करते हैं. हासिल कर सके तो और अधिक चाहने लगते हैं. नहीं होता है तो बेचैन होते हैं. इन क्रमों और कर्मों में जीवन का प्रारंभ कब जीवन संध्या पर आ पहुँचता है . पता नहीं पड़ता और फिर चौंकते हैं और भयभीत होते हैं .भ्रमों में कभी सबसे खुशहाल और कभी लाचार मानते अभिमान और हीनता बोध के बीच दोलन करते रहते हैं .
वस्त्र धारण यानि बाह्य स्वरूप और मर्यादा के लिए ,उन्होंने जो सहज , सरलता से मिला उसे धारण किया , इस पर विशेष महत्त्व नहीं दिया . उनका ध्यान इस बात पर ज्यादा रहा कि उनके मन और ह्रदय में धारण किये गए विवेक विचार श्रेष्ठ रहें . भोजन आम तौर पर शाकाहारी , और सात्विक रखा जिसमें मात्रा भी उदर पूर्ती के लिए जितनी आवश्यक है उस पर ध्यान दिया . अन्य भोज्य यदि ग्रहण किये भी तो उस पर ध्यान रखा कि उसकी व्यवस्था न्यायोचित ढंग से की गयी हो . उन्होंने इस पर विशेष ध्यान दिया कि जिनके बीच वे रह रहे हैं. उनको भी उदर पूर्ती के लिए आवश्यक मात्रा मिल पा रही अथवा नहीं. अगर आवश्यक हुआ तो उन्होंने अपनी थाली में से बाँट कर अन्य को आवश्यक मात्रा मिल सके यह सुनिश्चित करने की चेष्टा रखी.
रहने के लिए अपने निवास को जीवन में उन्होंने अस्थायी ही माना , क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान पूरे जीवन में रहा कि जीवन बाद धरती पर एक छोटे से टुकड़े पर उसका कोई अधिकार नहीं रह जाता है. यह अवश्य कोशिश रही कि मिले आवास को साफ़ सुथरा रख आसपास भी अन्य साफ़ सुथरे तरीके से जीवन यापन करें. सुविधा उन्हें क्या उपलब्ध है ? इस पर विचार में व्यर्थ समय गंवाने के उन्होंने इस का चिंतन और उपाय किया कि दूसरों को आवश्यक सुविधा कम से कम जो पर्याप्त मानी जाती है वह उपलब्ध हो सके. मान ,प्रतिष्ठा और प्रशंसा पर उनका मन कभी आकुल-व्याकुल नहीं रहा . यद्यपि उनके कर्मों और आचरण ने धीरे -धीरे अन्य के बीच स्वतः ही मान, प्रतिष्ठा और प्रशंसा में क्रमशः वृध्दि दिलवाई .
जीवन कि दीर्घता कितनी है इस पर नियंत्रण किसी का नहीं है, यह ज्ञान रखा . जितने उपाय संभव हैं उस अनुसार जीवन बचाव किया . और फिर जितना जीवन मिला उसे सद्कर्मों , सदाचार और परहित में लगाया . इसे ही स्वहित भी माना और जीवन सार्थकता इसी में देखी. अगर गृहस्थ रहे तो पत्नी ,बच्चे ,भाई-बहन और अन्य परिवार जन दैहिक रूप से सुन्दर हैं या नहीं इस पर चिंता न कर उनके गुण विचार और व्यवहार सुन्दर हो इसे प्रमुख किया और उसके उपाय और प्रेरणा दी. प्रतिकूलताओं को विपत्ति मानने के स्थान पर कभी अनुकूलता और कभी प्रतिकूलता को जीवन स्वरूप माना .
गगन में उड़ रहे हवाई जहाज , तारों में दौड़ रही बिजली , विश्व के एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकने वाले सन्देश और चित्र विज्ञान में , और सदाचार को प्रेरित करते साहित्य और धर्म महान दार्शनिकों ,विचारकों और साहित्यकार का अनूठापन ही है . जिनसे मानव संस्कृति और विकास को दिशा और गति मिली .इन महा मानवों ने यह सब विश्व को सबसे अलग तरह सोच ,कर्म और आचरण से दिया . उन्होंने इसकी चिंता नहीं की दूसरे क्या कहते और करते हैं . अपने बारे में क्या कहा जा रहा है ,इससे भी उदासीन रहते हुए ही उन्होंने जीवन सार्थक कर विशेष योगदान इस विश्व और समाज को दिया .
 
 
 
 
 

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