Friday, October 19, 2012

नवरात्र

»»»»»»»»»»»»»»»»नवरात्र«««««««««««««««
नवरात्र शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवानां रात्रीणां समाहारः ---ऐसा विग्रह करके तद्धितीय अच् प्रत्यय, द्विगु समास होने पर एकवद्भाव तथा " स नपुंसकम्" -पाणिनिसुत्र--2/4/17. से नपुंसक लिंग होकर "नवरात्रम्" शब्द बनता है । यह शब्द पुल्लिंग नही है और नवरात्रि या नवरात्रा अथवा नवरात्री कहना व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है । "नवरात्र" कहना ही शास्त्रसम्मत है। यह शब्द विशेषरूप से " आश्विन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी" तक किये जाने वाले माँ दुर्गा के व्रतविशेष में रूढ है।
प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है।
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक । ठीक इसी प्रकार आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी अर्थात् विजया दशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से दोनो नवरात्रों का विशेष महत्व होने पर भी शारदीय नवरात्र की प्रधानता देवी उपासना के लिए अधिक महत्व है । इस समय साधक अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन आदि विविध प्रकार की साधनायें करते हैं। विशिष्ट साधक इस समय रात्रि 9बजे से2 के बीच बैठकर भगवती महाशक्ति कुण्डलिनी के जगाने का अथक प्रयास करते हैं।
विशेषकर इस नवरात्र में शक्ति के 51 महापीठों पर भक्तजन बड़े उत्साह से भगवती की उपासना के लिए एकत्र होते हैं। जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने आवास पर ही शक्ति का आवाहन करके उपासना सम्पन्न कर लेते हैं
रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।
वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रि में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्य अवश्य सिद्ध होता है।

»»»»»»»»» नवरात्र की आवश्यकता«««««««««««
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली सारी क्रियाओं के लिए "नवरात्र" परमावश्यक है। हमारे शरीर में 9 द्वार है जिससे हम सब कार्य करते हैंऔर उसके लिए जो ऊर्जा तथा दृढ़संकल्प आदि आवश्यक हैं। उनका समूह ही दुर्गा माँ हैं । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की संचालिका एक मात्र यही महाशक्ति है । जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इनकी उपासना से हम सभी इन्द्रियों में अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के लिए तथा शरीर रूपी यन्त्र को सुव्यवस्थित क्रियाशील रखने के लिए 9 द्वारों की शुध्दि 9 दिनों में 9 दुर्गाओं की उपासना के रूप में करते हैं। शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

»»»»»»»»» नव दुर्गा««««««««
9द्वार वाले शरीर को पूर्ण क्रियाशील बनाकर अपने परम लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचने में ही इन 9 स्वरूपों की उपासना का तात्पर्य है । सांसारिक फल तो माँ विना मांगे ही दे देंगी जो हमें आवश्यक होगा । अपना हित अपने से अधिक इष्ट देवता को
होता है केवल विश्वास की कमी से ही भटकाव है। इनके 9 स्वरूप हैं ----
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघण्टा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दिदात्री
इनका 9 जड़ी बूटी या विशेष व्रत की वस्तुओं से भी सम्बंध है, जिन्हे नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है-
1. कुट्टू (शैलान्न)
2. दूध-दही,
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला(सिध्दिदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं।
नवरात्र में कन्यापूजन का बड़ा महत्व है। पहले दिन 1,2रे दिन --2, 3रे दिन 3,इस प्रकार तिथि के अनुसार एक एक कन्या की संख्या बढ़ाते हुए 9वें दिन 9 कन्याओं का पूजन करने से माँ भगवती अधिक प्रसन्न होती है। अथवा प्रतिपदा (पड़वा) को 1 कन्या की पूजा पुनः द्वितीया को उससे दुगनी या तिगुनी संख्या में कन्यापूजन करें । 3रेदिन 6 या9,4थेदिन 24या 36 इस तररह संख्या बढ़ायें ।
अथवा प्रतिपदा से नवमी तक प्रत्येक तिथि को 9--9 कन्यायों की पूजा की जाय। 2वर्ष से लेकर 10 वर्ष की कन्या का पूजन करना चाहिए । 1वर्ष की या 10 वर्ष से अधिक का नही ।
एक वर्ष की कन्या को गन्ध पुष्प आदि में प्रेम नही होता और 10 वर्ष के बाद वाली को रजस्वला में गिना गया है । ---हेमाद्रि में स्कन्दपुराण का वचन ।
आज हम जिनकी पूजा से भगवती की पूजा पूर्ण होती है उन्ही का गर्भ में हत्या कर रहे हैं । अरे मानवों यदि तुम कन्यापूजन न कर सको तो न करो । कन्या भ्रूण की सुरक्षा करो इसी से तुम्हे कन्यापूजन का फल भगवती दे देगी और यदि इस कुकृत्य से नही रुके तो हे महिषासुरों तुम्हारे विनाश को कोई भी शक्ति नही रोक सकती ।


नवरात्र की प्रत्येकतिथि के लिए कुछ साधनज्ञानियो द्वारा नियतकिये गये है .....
प्रतिपदा - इसेशुभेच्छा कहते है । जो प्रेमजगाती है प्रेम बिना सबसाधन व्यर्थ है , अस्तुप्रेम को अबिचल अडिगबनाने हेतुशैलपुत्री का आवाहन पूजनकिया जाता है ।
अचलपदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।
द्वितीया - धैर्यपूर्वकद्वैतबुद्धि का त्याग करकेब्रह्मचर्य का पालन करतेहुएमाँ ब्रह्मचारिणी का पूजनकरना चाहिए ।
तृतीया - त्रिगुणातीत(सत , रज ,तम से परे)होकरमाँ चन्द्रघण्टा का पूजनकरते हुए मनकी चंचलता को बश मेँकरना चाहिए ।
चतुर्थी - अन्तःकरणचतुष्टय मन ,बुद्धि ,चित्त एवं अहंकारका त्याग करते हुए मन,बुद्धि को कूष्माण्डा देवी केचरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।
पंचमी - इन्द्रियो के पाँचविषयो अर्थात् शब्द रुपरस गन्ध स्पर्श का त्यागकरते हुएस्कन्दमाता का ध्यान करेँ ।
षष्ठी - काम क्रोध मदमोह लोभ एवं मात्सर्यका परित्याग करकेकात्यायनी देवी का ध्यानकरे ।
सप्तमी - रक्त , रस माँसमेदा अस्थि मज्जा एवंशुक्र इन सप्त धातुओ सेनिर्मित क्षण भंगुर दुर्लभमानव देह को सार्थककरने के लिएकालरात्रि देवी की आराधना करेँ ।
अष्टमी - ब्रह्मकी अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जलअग्नि वायु आकाश मनबुद्धि एवं अहंकार से परेमहागौरी के स्वरुपका ध्यान करता हुआब्रह्म से एकाकार होनेकी प्रार्थना करे ।
नवमी -माँ सिद्धिदात्री की आराधना सेनवद्वार वाले शरीरकी प्राप्ति को धन्यबनाता हुआ आत्मस्थहो जाय ।.......

पौराणिक दृष्टि सेआठ लोकमाताएँ हैंतथा तन्त्रग्रन्थोँ मेँ आठशक्तियाँ है...,

1 ब्राह्मी -सृष्टिक्रिया प्रकाशितकरती है ।
2 माहेश्वरी - यह प्रलयशक्ति है ।
3 कौमारी -आसुरी वृत्तियोँ का दमनकरके दैवीयगुणोँ की रक्षा करती है ।
4 वैष्णवी -सृष्टि का पालन करती है।
5 वाराही - आधारशक्ति है इसे कालशक्ति कहते है ।
6 नारसिंही - ये ब्रह्मविद्या के रुप मेँ ज्ञानको प्रकाशित करती है|
7 ऐन्द्री - ये विद्युतशक्ति के रुप मेँ जीव केकर्मो को प्रकाशितकरती है ।
8 चामुण्डा -पृवृत्ति (चण्ड)निवृत्ति (मुण्ड)का विनाश करने वाली है।...

आठ आसुरी शक्तियाँ -

1 मोह - महिषासुर
2 काम - रक्तबीज
3 क्रोध - धूम्रलोचन
4 लोभ - सुग्रीव
5 मद मात्सर्य - चण्डमुण्ड
6 राग द्वेष - मधु कैटभ
7 ममता - निशुम्भ
8 अहंकार - शुम्भ,...

अष्टमी तिथि तक इनदुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहारकरकेनवमी तिथि को प्रकृति पुरुषका एकाकारहोना ही नवरात्रका आध्यात्मिक रहस्य है ।
नवरात्रि (नव + रात्रि ) (अर्थार्त नौ दिव्य रात्रियों ) का पावन पर्व प्रतिवर्ष दो बार आता है - चैत्र और आश्विन मास में | नवरात्रि में हम "शक्ति" की आराधना करते हैं , जिनको हम 'देवी' या 'दुर्गा' भी कहते हैं | माना जाता है कि यह "शक्ति" वह ऊर्जा हैं , जो भगवान को सृजन, संरक्षण और विनाश के कार्य को आगे बढ़ाने में मदद करती हैं |
सच कहूँ तो, शक्ति की पूजा एक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो पुष्टि करता है कि " समस्त ऊर्जा अविनाशी है, उसे न तो बनाया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है. यह हमेशा वहीँ विद्यमान है " |

हम क्यों देवी माँ की पूजा करें ?

हमें लगता है कि इस ऊर्जा का मूर्त रूप, एक दिव्य माँ के समान है , जो कि जगतजननी है और जिसकी हम सब संताने हैं | यहाँ आप यह भी पूँछ सकते हैं कि "माँ ही क्यों, पिता क्यों नहीं ?" इस पर मुझे बस यह कहना है कि परमेश्वर भगवान की महिमा, उनकी दिव्य ऊर्जा, उसकी महानता और उनका वर्चस्व; सबसे उत्तम प्रकार से केवल और केवल माँ कि मम्मत्व के रूप में ही दर्शाया जा सकता है | जब कभी भी हमको भगवान के इन गुणों कि आवश्यकता होती है , हम भगवान को एक माँ के रूप में देखते हैं | वास्तव में, हिंदू धर्म दुनिया का एकमात्र धर्म है, जो भगवान के मम्मत्व रूप को इतना महत्व देता है, क्योंकि हम मानते हैं कि केवल माँ ही इतनी रचनात्मक हो सकती हैं |

हमें शक्ति की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

विश्व में किसे किसी न किसी रूप में शक्ति की आवश्यकता नहीं होती है ? माँ हमें उचित मात्रा में धन, सुख-समृद्धि, ज्ञान, और अन्य शक्तियों प्रदान करें , जिससे हम जीवन की हर बाधा को पार कर सकें | इसलिए हमें अपने माता पिता, बंधू बांधवों के साथ नवरात्रि में माँ की पूजा करनी चाहिए |
नौ ही क्यो ?
........... भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च । अहंकार इतीयं मे प्रकृतिरष्टधा ।
कहकर भगवान ने आठ प्रकृतियोँ का प्रतिपादन किया है इनसे परे केवल ब्रह्म ही है अर्थात् आठ प्रकृति एवं एक ब्रह्म ये नौ हुए जो परिपूर्णतम है -

नौ देवियाँ ,
शरीर के नौ छिद्र , नवधा भक्ति , नवरात्र ये सभी पूर्ण हैँ

नौ के अतिरिक्त संसार मे कुछ नहीँ है इसके अतिरिक्त जो है वह शून्य (0) है ।

इसीलिए तुलसी जी ने नौ दोहो चौपाईयो मे नाम वन्दना की है ..

किसी भी अंक को नौ से गुणाकरने पर गुणन फल का योग नौ ही होता है .,....

अतः नौ ही परिपूर्ण है ।
 
  

1 comment:

  1. ज्ञान का दीपक हो आप। आभार आपका कि, आपने ''नवरात्र'' शब्द का विष्लेशण बहुत ही उत्तम प्रकार से कर के हम लोगों के समक्ष प्रस्तुत किये।
    आपके लेख में वैज्ञानिक तथ्यों के साथ-साथ आध्यात्मिक एवं वैदिक प्रमाण भी है।
    आज समाज में आप जैसे लोगो की बहुत आवश्यकता ताकि समाज के सामने इन वैदिक तथ्यों को उचित प्रकार से प्रस्तुत करें।

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