Monday, October 8, 2012

संसार में चार प्रकार के भक्त हैं:

जिज्ञासु, आर्त, अथार्थी और ज्ञानी | जिज्ञासु ब्रह्म की रचना एवं इसके संचालन के रहस्य को जाना कहते हैं | राम-नाम के अभ्यास से इनका आंतरिक विकास हो जाता है जिसके द्वारा इनको ब्रह्म के रहस्य की जानकारी हो जाती है | वे स्थूल, सूक्ष्म और कारण जगत की जानकारी हासिल करके ब्रह्म के प्रपंच यानी माया के खेल को समझ लेते हैं | इस ज्ञान के कारण ये संसार से विरक्त हो जाते हैं और ब्रह्म से इनका अनुराग पैदा हो जाता है | वे संसार के बीच रहते हुए भी अनुपम सुख का अनुभव करते हैं | आर्त वे हैं जो सांसारिक विपत्ति से पीड़ित या घबराकर राम- नाम के भजन में लगते हैं | उन पर भी परमात्मा की कृपा होती है और उनकी दुःख और पीड़ा ख़त्म हो जाती है | अर्थार्थी वो हैं जो अपनी किसी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रभु की भक्ति करते हैं | राम-नाम के अभ्यास से उनकी ,मनोकामना पूरी हो जाती है पर वो फि
र भी चौरासी के कैदी ही रहते हैं | इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है | ये तो अंधे कुएं के सामान है, एक पूरी हो तो दस खडी हो जाती हैं | ज्ञानी वो हैं जिनके अन्दर संसार की कोई कामना नहीं होती है | वे सच्चे परमार्थी ज्ञान की प्राप्ति करके मोक्ष पाना चाहते हैं | ऐसे भक्तजन भी राम-नाम के अभ्यास से गूढ़ परमार्थी ज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं | चारों प्रकार के भक्तों को राम-नाम के अभ्यास द्वारा मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है |

तुलसीदास जी समझाते हैं कि इन सब भक्तों में ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष प्रिय होते हैं, क्योंकि उनके अन्दर कोई सांसारिक कामना नहीं होती | वे भक्ति द्वारा अपने परमपिता का ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं | इसी लिए प्रभु के प्यारे होते हैं | जो भक्त सभी सांसारिक कामनाओं को छोड़ कर केवल प्रेम और भक्ति के वश में होकर राम-नाम का अभ्यास करता है, उसका मछली रूपी मन मानों राम-नाम रूपी अमृत-कुंद में निवास करता है | आत्मा शरीर के आवरणों मन के बन्धनों से मुक्त होकर राम-नाम रूपी मानसरोवर में प्रवेश करती है |

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