Monday, October 8, 2012

सच्चा धर्म

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि सच्चा धर्म वह है जो विज्ञान की कसौटी पर खरा साबित हो। अरविंद घोष ने भी कहा है कि भविष्य में जो भी विश्व धर्म होगा उसका नाम होगा साइंटिफिक रिलीजन। धर्म के चार चरण हैं-सत्य, तप, दान एवं निष्काम कर्म। सत्य की शिक्षा राजा हरिश्चंद्र की कहानी से, तप की श्रीराम के जीवन चरित्र से, दान की शिक्षा महाभारत के राजा कर्ण से और निष्काम कर्म की शिक्षा भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा देकर ऋषियों ने भारतीय संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ धरोहर बनाया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि योग की शिक्षा मैंने सर्वप्रथम सूर्य को दी। योग का अर्थ है प्राकृतिक नियम। इन नियमों को जीवन में धारण करना अर्थात ईश्वर में सदा-सदा के लिए मिल जाना मोक्ष कहलाता है। संपूर्ण प्रकृति सूर्य का अनुसरण करती है। धर्म के ये चार मुख्य ऐसे प्राकृतिक सिद्धांत हैं जो सार्वभौमिक हैं। धर्म के कुछ और भी सिद्धांत हैं ज
ो मात्र व्यक्ति के कर्तव्य हैं जैसे अहिंसा, क्षमा आदि। ये सार्वभौमिक नहीं हैं। ये व्यक्तिगत हैं। अज्ञानतावश इन्हें भी धर्म की सूची में मिला दिया गया है। इससे निश्चित रूप से भ्रम फैला है। मानवता एक है, प्रकृति एक है और परमात्मा एक है अतएव धर्म को भी एक ही होना होगा। धर्म दो या इससे अधिक नहीं हो सकते। संस्कृतियों को धर्म का दर्जा देने से देश-दुनिया में वैमनस्य बढ़ा है। संस्कृति का अर्थ है मन पर छाप डालना विशेष प्रकार का स्वभाव अथवा आदत का निर्माण करना।यह संस्कार किसी कार्य को बार-बार करने से बनता है। भारतीय संस्कृति मानव को श्रेष्ठ संस्कार प्रदान कर उसे सार्वभौमिक धर्म को समझने और उस पर चलने की पे्ररणा प्रदान करती है। अज्ञानतावश धर्म एवं संस्कृति का घालमेल हो गया है अत: यह भाव गहराई से घर कर गया है कि पूजा करना, कथा सुनना धर्म है। यह सोच गलत है। पूजा करना,श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत कथा सुनना तो संस्कृति का हिस्सा हैं।

No comments:

Post a Comment