Monday, October 8, 2012

Note 2

परमात्मा परम प्रेम के
स्वरुप हैँ । सामान्य प्रेम
और परम प्रेम मेँ अन्तर है,
पुत्र , माता-

पिता आदि के साथ
जो प्रेम है , वह सामान्य
है । जगत् के सभी पदार्थ
और जीवोँ के
प्रति जो निःस्वार्थ
प्रेम होता है वह है परम
प्रेम ........ ....... जीव
बडा अयोग्य है , अपात्र
है । वह मन मेँ , आँखो से
हमेशा पाप
ही करता रहता है । फिर
भी ईश्वर तो उससे प्रेम
ही करते हैँ, ईश्वर जीव से
प्रेम करते है , उस पर प्रेम
बरसाते है और उससे प्रेम
की अपेक्षा करते है ।वे
प्रेम से ही वश मे हो सकते
है । वे धन से वश मेँ
नही हो सकते क्योँकि वे
स्वयं लक्ष्मीपति हैँ ........
.....,.. जब शारीरिक बल ,
द्रव्यबल , ज्ञानबल ,
आदि सब हार जाते हैँ , तब
प्रेमबल ही जीतता है ।
प्रेमबल सर्वश्रेष्ठ है ।
प्रेमबल परमात्मा को बस
मे करने का साधन है ।
.... सबसे ऊँची प्रेम सगाई ....
यदि परमात्मा के नाम
का बार - बार स्मरण
किया जाय तो प्रभुजी से
प्रेम हो जायेगा ..

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