अक्सर हम ये सुनते हैं की हमारे शास्त्रों में कहा गया है की शादी के बाद
अपनी बेटी के घर (ससुराल) जाकर कुछ नहीं खाना चाहिए . यहाँ तक की बेटी के
घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए. उसका कारण ये है की माँ-बाप ने अपनी कन्या
का दान कर दिया है और दान की हुई किसी भी वास्तु पर दाता का कोई अधिकार
नहीं होता है. जब तक बेटी की कोई संतान न पैदा हो तब तक उसके घर का अन्न-जल
नहीं लेना चाहिए. जब बेटी के घर संतान पैदा हो जाये तो ये पाबन्दी नहीं
होती है. इसका कारण ये है की उनके दामाद ने अपने पित्रऋण से मुक्त होने के
लिए उनकी बेटी को स्वीकार किया है. उससे संतान होने पर दामाद पित्रऋण से
मुक्त हो जाता है और बेटी पर माँ--बाप का अधिकार हो जाता है. तभी तो
दैहित्र या दोता अपने नाना-नानी का श्राद तर्पण करता है और परलोक में
नाना-नानी अपने दोते का किया हुआ श्राद-तर्पण, पिंड-पानी स्वीकार भी करते
हैं. अगर बेटी के घर पुत्र नहीं होकर पुत्री भी पैदा होती है तो भी दामाद
पर से पित्रऋण का भार समाप्त हो जाता है. बेटी की संतान पुत्र हो या पुत्री
उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. एक बार संतान होने के बाद बेटी के घर का
अन्न-जल ग्रहण करने में कोई मनाही नहीं है.
साभार- नेहा घई
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