Wednesday, September 26, 2012

एकता

 पौराणिक कथाओं में यह प्रसंग आता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र द्वारा की जाने वाली तेज बरसात से गोकुलवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। हालांकि उन्होंने गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठिका अंगुली से उठाया था, इसके बावजूद उन्होंने उस पर सभी गोकुलवासियों का हाथ भी लगवाया था। वे चाहते तो गोवर्धन पर्वत को अकेले ही उठा सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रश्न उठता है कि उन्होंने गोकुलवासियों का हाथ क्यों लगवाया?
दरअसल, श्रीकृष्ण यह संदेश देना चाहते थे कि एकता में बहुत बल है। बचपन में भी हम अक्सर ऐसी ढेर सारी कहानियां पुस्तकों में पढते रहे हैं। जिस समाज में, जिस देश में अथवा संगठन में एकता होती है, वह निश्चित ही उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हम एकता का अर्थ जानें।
सामूहिक एकता का मतलब भीड इकट्ठा कर लेना नहीं होता। कुछ लोगों के एकत्रित भर हो जाने से एकत

ा नहीं आती। भीड को कई बार हम एकता की डोर में इसलिए नहीं बांध पाते, क्योंकि उनमें वैचारिक रूप से कोई तालमेल नहीं होता। एकता के लिए वैचारिक तालमेल महत्वपूर्ण है। एकता विलय का प्रतीक नहीं, वरन आपसी प्रेम, भाई-चारे, श्रेष्ठता और जागरूकता का प्रतीक है। जो वृक्ष एक साथ मिलकर खडे होते हैं, वे बडी से बडी आंधी की मार भी झेल जाते हैं। पांच अंगुलियां भी एक साथ मिलकर मजबूत मुट्ठी बन जाती हैं। एकता का मतलब है-हमारे एक से उद्देश्य हों, हमारी सोच एक दूसरे की मदद करने वाली हो, हमारा चिंतन-मनन सबके कल्याण के लिए हो। हमारा ध्येय मानव जगत और विश्व का कल्याण हो, हम सुख-दुख में एक हों। एकता का तात्पर्य है मन-मन के भेद को मिटाकर एक राह में आगे बढना। यही कारण है कि कई लोगों द्वारा मिलकर गलत काम करने को हम एकता नहीं कहते।
कई बार तुच्छ स्वार्थो और अहंकार के बीच परिवार टूट जाते हैं, पार्टियां बिखर जाती हैं। एकता कायम रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपने अंदर कुछ त्याग की भावना लाएं, स्वयं को विराट बनाएं, संकीर्णताओं से ऊपर उठें। एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और सम्मान दें। कहा भी गया है, संघे शक्ति: कलियुगे। संगठन की वीणा तभी सुंदर बजती है, जब उसके सभी तारों में तालमेल हो।

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