आज जहां महाकाल मंदिर है वहां प्राचीन समय में वन हुआ करता था, जिसके
अधिपति महाकाल थे। इसलिए इसे महाकाल वन भी कहा जाता था। स्कंदपुराण के
अवंती खंड, शिव महापुराण, मत्स्य पुराण आदि में महाकाल वन का वर्णन मिलता
है। शिव महापुराण की उत्तराद्र्ध के 22वे अध्याय के अनुसार दूषण नामक एक
दैत्य से भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ज्योति के रूप में यहां
प्रकट हुए थे। दूषण संसार का काल थे और शिव ने उसे नष्ट किया अत: वे महाकाल
के नाम से पूज्य हुए। तत्कालीन राजा राजा चंद्रसेन के युग में यहां एक
मंदिर भी बनाया गया, जो महाकाल का पहला मंदिर था। महाकाल का वास होने से
पुरातन साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम भी कहा गया है।
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अकाल मृत्यु वो मरे, जो काम करे चण्डाल का।
काल उसका क्या करे, जो भक्त हो महाकाल का॥
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12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर कई कारणों से अलग हैं। महाकाल के
दर्शन से कई परेशानियों से मुक्ति मिलती है। खासतौर पर महाकाल के दर्शन के
बाद मृत्यु का भय दूर हो जाता है क्योंकि महाकाल को काल का अधिपति माना
गया है।
सभी देवताओं में भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं
जिनका पूजन लिंग रूप में भी किया जाता है। भारत में विभिन्न स्थानों पर
भगवान शिव के प्रमुख 12 शिवलिंग स्थापित हैं। इनकी महिमा का वर्णन अनेक
धर्म ग्रंथों में लिखा है। इनकी महिमा को देखते हुए ही इन्हें ज्योतिर्लिंग
भी कहा जाता है। यूं तो इन सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग महत्व है लेकिन
इन सभी में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार-
आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्
मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।।
यानी आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर
महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को
पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है अर्थात वे ही संपूर्ण पृथ्वी के एकमात्र
राजा हैं।
एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
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महाकालेश्वर की एक और खास बात यह भी है कि सभी प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों
में एकमात्र महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी हैं अर्थात इनकी मुख दक्षिण की ओर
है। धर्म शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज
हैं। इसलिए यह भी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के
दर्शन व पूजन करता है उसे मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं
से मुक्ति मिल जाती है।
संपूर्ण विश्व में महाकालेश्वर ही
एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव की भस्मारती की जाती है।
भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। मान्यता है
कि प्राचीन काल में मुर्दे की भस्म से भगवान महाकालेश्वर की भस्मारती की
जाती थी लेकिन कालांतर में यह प्रथा समाप्त हो गई और वर्तमान में गाय के
गोबर से बने उपलों(कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है। यह
आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे की जाती है। जिसमें भगवान को स्नान के
बाद भस्म चढ़ाई जाती है।
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12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर कई कारणों से अलग हैं। महाकाल के दर्शन से कई परेशानियों से मुक्ति मिलती है। खासतौर पर महाकाल के दर्शन के बाद मृत्यु का भय दूर हो जाता है क्योंकि महाकाल को काल का अधिपति माना गया है।
सभी देवताओं में भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका पूजन लिंग रूप में भी किया जाता है। भारत में विभिन्न स्थानों पर भगवान शिव के प्रमुख 12 शिवलिंग स्थापित हैं। इनकी महिमा का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में लिखा है। इनकी महिमा को देखते हुए ही इन्हें ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यूं तो इन सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग महत्व है लेकिन इन सभी में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है। धर्म ग्रंथों के अनुसार-
आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्
मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।।
यानी आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है अर्थात वे ही संपूर्ण पृथ्वी के एकमात्र राजा हैं।
एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
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महाकालेश्वर की एक और खास बात यह भी है कि सभी प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी हैं अर्थात इनकी मुख दक्षिण की ओर है। धर्म शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं। इसलिए यह भी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के दर्शन व पूजन करता है उसे मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है।
संपूर्ण विश्व में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव की भस्मारती की जाती है। भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में मुर्दे की भस्म से भगवान महाकालेश्वर की भस्मारती की जाती थी लेकिन कालांतर में यह प्रथा समाप्त हो गई और वर्तमान में गाय के गोबर से बने उपलों(कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है। यह आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे की जाती है। जिसमें भगवान को स्नान के बाद भस्म चढ़ाई जाती है।
बहुत सुन्दर, अति सुन्दर
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