शारीरिक रोगों के निवारण करने के अतिरिक्त हवन की वायु से मानसिक रोगों के निवारण की अपूर्व क्षमता है ,,,
अभी तक केवल पागलपन और विक्षिप्तता के ही इलाज एलोपैथ में निकले हैं ,,,पर
पूर्ण पागलों की अपेक्षा आधे पागलों की संख्या संसार मे शारीरिक रोगियों
से भी अधिक है . मनोविकारों से ग्रसित लोग अपने लिए तथा सम्पूर्ण समाज के
लिए अनेकानेक समस्याएं उत्पन्न करते हैं . शारीरिक रोगों की तो दवा दारू भी
है पर मनोविकारों की कोई चिकित्सा अभी तक नहीं निकल सकी है ,,,परिणाम
स्वरुप सनक , उद्वेग , आवेश , संदेह , कामुकता , अहंकार , अविश्वास ,
निराशा , आलस्य , विस्मृति ....आदि अनेक मनोविकारों से ग्रस्त लोग स्वयं
उद्विग्न रहते हैं और सम्बंधित सभी लोगों को खिन्न बनाए रहते हैं ....
इन् सभी मनोविकारों की एक मात्र चिकित्सा हवन है
हवन सामग्री की सुगंध के साथ साथ दिव्य वेदमंत्रों के प्रभावशाली कंपन
मस्तिष्क के मर्म स्थलों को छूते और प्रभावित करते हैं ..फलतः मनोविकारों
के निवारण मे इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है
भारतीय संस्कृति मे जन्म
से लेकर मृत्यु तक षोडश संस्कारों मे हवन को अनिवार्य रूप से जोड़ा गया है
ताकि उसके प्रभावों से मनोविकारों की जड़ें कटती रहें
मनुस्मृति मे
यज्ञ के संपर्क से ब्राह्मणत्व के उदय की बात कही गयी है कारण है हवन व
यज्ञ के संपर्क से मनुष्य विचारवान और चरित्रवान दोनो ही विशेषताओं से
युक्त बनता है ,,
रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए यज्ञ धूम्र की
शक्ति को प्राचीनकाल मे भली भांति परखा गया था इसका उल्लेख शास्त्रों मे
स्थान स्थान पर मिलता है ...यथा...
यजु. २ -२५ मे वर्णन आता है कि
अग्नि मे प्रक्षिप्त जो रोगनाशक , पुष्टिप्रदायक और जल आदि संशोधक हवन
सामग्री है , वह भष्म होकर वायु द्वारा बहुत दूर तक पहुचती है और वहाँ
पहुचकर रोगादिजनक वस्तुओं को नष्ट कर देती है , इस हेतु वेद मे कहा गया है
कि जो वस्तु हम लोगों से द्वेष करती है एवँ जिससे हम लोग द्वेष करते हैं वह
वस्तु यज्ञ के द्वारा नष्ट हो जाती है ,,,अर्थात यज्ञ से इहलौकिक एवँ
पारलौकिक कल्याण दोनो ही होते हैं
अथर्व का० ३ सूक्त११ मन्त्र २
मे वर्णन आता है कि रोग के कारण यदि रोगी न्यून आयु वाला हो अथवा इस संसार
के सुखों से दूर हो , चाहे मृत्यु के निकट आ चूका हो , ऐसे रोगी को भी मै (
हवन ) महारोग के पाप से छुडाता हूँ ,,,और रोगी को सौ ऋतुओं तक जीने के लिए
प्रबल करता हूँ
शतपथ ब्राह्मण २ / ४,३ / २-२ मे आया है कि अन्न
वनस्पतियों मे प्रविष्ट हुई स्थूल और सूक्ष्म असुरता का , विकृति ,रुग्णता
एवँ दुष्टता का शमन करने के लिए यज्ञ अमोघ उपाय है
भारतीय संस्कृति मे जन्म से लेकर मृत्यु तक षोडश संस्कारों मे हवन को अनिवार्य रूप से जोड़ा गया है ताकि उसके प्रभावों से मनोविकारों की जड़ें कटती रहें
मनुस्मृति मे यज्ञ के संपर्क से ब्राह्मणत्व के उदय की बात कही गयी है कारण है हवन व यज्ञ के संपर्क से मनुष्य विचारवान और चरित्रवान दोनो ही विशेषताओं से युक्त बनता है ,,
रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए यज्ञ धूम्र की शक्ति को प्राचीनकाल मे भली भांति परखा गया था इसका उल्लेख शास्त्रों मे स्थान स्थान पर मिलता है ...यथा...
यजु. २ -२५ मे वर्णन आता है कि अग्नि मे प्रक्षिप्त जो रोगनाशक , पुष्टिप्रदायक और जल आदि संशोधक हवन सामग्री है , वह भष्म होकर वायु द्वारा बहुत दूर तक पहुचती है और वहाँ पहुचकर रोगादिजनक वस्तुओं को नष्ट कर देती है , इस हेतु वेद मे कहा गया है कि जो वस्तु हम लोगों से द्वेष करती है एवँ जिससे हम लोग द्वेष करते हैं वह वस्तु यज्ञ के द्वारा नष्ट हो जाती है ,,,अर्थात यज्ञ से इहलौकिक एवँ पारलौकिक कल्याण दोनो ही होते हैं
अथर्व का० ३ सूक्त११ मन्त्र २ मे वर्णन आता है कि रोग के कारण यदि रोगी न्यून आयु वाला हो अथवा इस संसार के सुखों से दूर हो , चाहे मृत्यु के निकट आ चूका हो , ऐसे रोगी को भी मै ( हवन ) महारोग के पाप से छुडाता हूँ ,,,और रोगी को सौ ऋतुओं तक जीने के लिए प्रबल करता हूँ
शतपथ ब्राह्मण २ / ४,३ / २-२ मे आया है कि अन्न वनस्पतियों मे प्रविष्ट हुई स्थूल और सूक्ष्म असुरता का , विकृति ,रुग्णता एवँ दुष्टता का शमन करने के लिए यज्ञ अमोघ उपाय है
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