Tuesday, July 10, 2012

गुरु से सिम्बल


प्रभु को जिसने भी जाना, उसने स्वयं ही जाना !हा यह भी सत्य है क़ि कुछ साहसी लोग अकेले ही प्रभु को जान सके व् उपलब्ध हो पाए थे! लेकिन अधिकतर को गुरु के सहारे जी जरुरत होती है, हालाकि वे भी प्रभु को उपलब्ध तो अकेले ही होते है! सहारा निमित मात्र है! सहारा सत्य के मिलने में सह्यागी नहीं है, सहारा सिर्फ हिम्मत बढ़ता है!
तुम पानी में उतरने से यदि डरे और तुम्हे कोई यह कहने वाला मिल जाये क़ि डरो मत मै हू, तो आप पानी में उतर जायोगे! वहा डूबने या मरने का डर आपका निकल जायेगा! लेकिन प्रभु के मार्ग में आपको यह जरुरत कभी नहीं पड़ेगी. क्योकि यह गहरे आपकी अपनी है! गुरु आपके डर को दूर कर देता है! गुरु यदि सच्ची और सत्य बात कहे क़ि डूबना सौभाग्य है तो तुम भाग खड़े हो जायोगे! सत्य यह है क़ि आप गुरु के पास मिटने नहीं आये आप तो होने आये हो! और होने क़ी प्रक्रिया मिटना है!
लेकिन गुरु इन बातो को छिपाकर रखता है! गुरु के आश्वासन पर यदि एक बार आप पानी में डूबने को उतर गए तो लगेगा क़ी बचने क़ी जरुरत ही नहीं थी इसमें तो डूबने में ही आनंद है! आपको जब डूबने का स्वाद लग जाता है तो कहते हो क़ि गुरु ने तो कुछ भी नहीं किया? लेकिन गुरु ने उस समय सहारा ना देकर भी बहुत बड़ा सहारा दिया जब आपको सहारे की जरुरत थी! बेसहारा छोड़ना ही गुरु की कला है ! अगर गुरु ने सच में सहारा दिया तो आप प्रभु से वंचित रह जायोगे!
सोखने की जरुरत ही नहीं है क्योकि हर व्यक्ति सत्य के साथ ही जन्मता है! सत्य जीव का सवभाव है, आपको सिर्फ अपने सवभाव को पहचानना है! हालाकि सत्य को पहचानने की क्षमता भी आपमें है लेकिन उसे जानने की जरुरत है और जानने में मार्गदर्शक और सहारा गुरु बनता है! साटी सिखाया नहीं जा सकता क्योकि जो भी सिखाया जायेगा वह बाहर से आया हुआ होगा? और आपको बाहर नहीं खोजना अपितु अन्दर जाना है! असली गुरु वही है जो सिखाता नहीं अपितु बाहर का कचरे को भुलाता है, बाहर के कचरे को छोड़ना है मात्र! क्योकि जैसे ही बाहर से आये हुए को बाहर फैंकते हो तो जो शेष रह जाता है वही तो ज्योतिर्मय है! वही सत्य है!
साधारण बुद्धि के व्यक्ति को यह बात समझ आती है क़ि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होगा ? कुछ तो परोक्ष रूप से कहते है क़ि मुझे गुरु बनाओ! बाकि गुरु ठीक नहीं है और कुछ ने अपनी दुकान चलाने के लिए अपने एजेंट तक छोड़ रखे है! गुरु को चाँद दिखने वाली ऊँगली समझो, चाँद को देखो और ऊँगली को भूल जायो! इसका अर्थ यह मत लगा लेना क़ि गुरु ने धोखा दिया अपितु चाँद को देखकर अंगुली के रूप में गुरु के प्रति अनुग्रह से भर जाना! 
----(स्वामी सरस्वती

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