Wednesday, July 18, 2012

शिव बोध

शिव कहते है: ‘’हे देवी, बोध के मधु-भरे दृष्टि पथ में संस्‍कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहल अक्षरों की भांति, फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति, फिर सूक्ष्‍म तम भाव की भांति.. और जब उन्‍हें छोड़कर मुक्‍त होओ.‘’आज अचानक इस लाइन को पढ़कर मन यह लिखने को उत्सुक हो उठा की मंत्र,यन्त्र , तंत्र का प्रचार प्रसार करने वाले तथा चमत्कारिक दावे करने वाले लोग बहुत से हैं लेकिन क्या वास्तव में मंत्र का कोई आधार है यह वह चमत्कारिक लोग जानते हैं या नहीं मुझे नहीं पता , लेकिन मन्त्रों के बारें जहां तक जाना समझा और अनुभव किया वह यह है की , हम दर्शनशास्त्र तथा विचार तंत्रों में जीते है, और वे हमारे लिए इतने महत्‍वपूर्ण हो गए है कि हम उनके लिए अपनी जान दे सकते है, आदमी शब्‍दों के लिए मर सकता है, मात्र शब्‍दों के लिए, कोई उसके धर्मं को उसके धर्मं की धारणा को गलत कह दे और वह लड़ पड़ेगा, कोई राम या ईसा, या अल्लाह, या किसी ऐसी धारणा को गलत कह दे और वह लड़ पड़ेगा, मनुष्‍य महज शब्‍द के लिए लड़ सकता है, हत्‍या कर सकता है,शब्‍द इतना महत्‍वपूर्ण हो गया है और शब्‍द क्‍या है? शब्‍द वे घ्वनियां है जिनके बारे में आम सहमति है कि उनका मतलब यह या वह होगा,ध्‍वनि बुनियादी है, आधारभूत है, मन की बुनियादी संरचना में ध्‍वनि है, दर्शनशास्त्र उसका शिखर है, लेकिन जिन ईंटों से पूरी इमारत बनी है वे घ्वनियां है,अर्थ हमारा दिया हुआ है, अर्थ आम सहमति से तय होता है, अन्‍यथा ध्‍वनि का कोई अर्थ नहीं है,अर्थ हमारा दिया हुआ है, प्रक्षेपण है, अन्‍यथा राम शब्‍द मात्र ध्‍वनि है—अर्थहीन ध्‍वनि- अर्थ हम उसे देते है, और वह शब्‍द बहुत महत्‍वपूर्ण हो जाता है. और तब हम उसके इर्द-गिर्द विचारों का तंत्र निर्मित करते है, अन्यथा अपने आप में किसी शब्‍द का कोई अर्थ नहीं है, वह महज ध्‍वनि है..फिर ध्‍वनि से भी ज्‍यादा बुनियादी चीज है भाव, जो कहीं मानव मस्तिक की अनंत गहराइयों में छुपी होती है ,आदमी शब्‍द का उपयोग करता है शब्‍द का मतलब कुछ अक्षरों का समूह या ऐसी ध्‍वनि है जिसको सहमति से अर्थ मिला हुआ है, पशु-पक्षी भी ध्‍वनि का प्रयोग करते है, लेकिन उनकी ध्‍वनि में कोई भाषा नहीं होती, उनकी कोई भाषा नहीं है, लेकिन वे मात्र भाव के साथ ध्‍वनि करते है, कोई पक्षी गाता है, उसके गाने में भाव है, वह किसी भाव को प्रकट कर रहा है, हो सकता है कि वह अपनी प्रेमिका को पुकार रहा हो, या मां को पुकार रहा हो,या हो सकता है, बच्‍चा भूखा हो, और अपनी पीड़ा जता रहा हो, वह ध्‍वनि भाव-बोधक है,ध्‍वनि के ऊपर शब्‍द है, विचार है, दर्शनशास्‍त्र है; ध्‍वनि के नीचे भाव है, और जब हम भाव के नीचे नहीं उतरते तब तक मन के नीचे नहीं उतर सकते हैं , सारा जगत ध्‍वनियों से भरा है, सिर्फ मनुष्‍य का जगत शब्‍दों से भरा है,मनुष्‍य का बच्‍चा भी जब तक भाषा नहीं सीखता है, ध्‍वनियों का ही प्रयोग करता है..भाषा का सारा विकास उन ध्‍वनियों के आधार पर हुआ है जो दुनियाभर में बच्‍चें बोलते है, उदाहरण के लिए किसी भी भाषा में मां के लिए शब्‍द किसी न किसी रूप में मां ध्‍वनि से जुड़ा है,चाहे वह मातृ, मदर, मां; सब कमोवेश मां ध्‍वनि से जुड़ा है,बच्‍चा मां ध्‍वनि अत्‍यंत सरलता से बोल सकता है, यह वह पहली ध्‍वनि है जो बच्‍चा बोल सकता है फिर सारी इमारत मां ध्‍वनि पर उठती है, बच्‍चा मां कहना शुरू करता है; क्‍योंकि यह पहली ध्‍वनि है जिसे बच्‍चा आसानी से बोल सकता है, यह नियम सब देश और सब समय के लिए लागू है,मानव शरीर और गले की संरचना ही ऐसी है कि मां बोलना उसके लिए सबसे आसान है, और बच्‍चे के लिए उसकी मां निकटतम व्‍यक्‍ति होता है, सबसे महत्‍वपूर्ण होता है, इसलिए पहली ध्वनि पहले अर्थपूर्ण व्‍यक्‍ति के साथ जुड़ गई और उससे ही मातृ, मदर, मादर, मां शब्‍द बने.लेकिन बच्‍चा जब पहली दफा ‘मां’ कहता है तो उसमे कोई भाषागत अर्थ नहीं होता, पर भाव अवश्‍य रहता है,और उसी भाव के कारण यह ध्‍वनि मां का पर्याय बन गयी, वह भाव ध्‍वनि से ज्‍यादा बुनियादी है,जो भाव-विशेष से संबंधित है, इन विज्ञान के कारण ही मंत्र का विकास हुआ, एक खास ध्‍वनि एक खास भाव के साथ जुड़ी है; इसके अन्‍यथा नहीं हो सकता, तो तुम अपने भीतर वह ध्‍वनि पैदा करो तो उससे उस विशेष भाव का जन्‍म होगा,तुम एक मंत्र के द्वारा उससे संबंधित भाव पैदा कर सकते हो, मंत्र से वह वातावरण पैदा होता है,जिसमे वह विशेष भाव जन्‍म लेता है, इसलिए यूं ही किसी मंत्र का उपयोग नहीं करना चाहिए, वह हमारे लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है अगर हम नहीं जानते हो या वह व्‍यक्‍ति नहीं जानता है जिससे हम मंत्र लेते हैं की किस ध्‍वनि से कौन-कौन भाव निर्मित होता है, या अगर हम नहीं जानते हो कि हमें उस भाव की जरूरत है या नहीं, तो मंत्र का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि कुछ ऐसी घ्वनियां है जिनके सतत उच्‍चारण से हमारे भीतर एक विशेष कामना का जन्‍म होगा, हम उस कामना में समां जाना चाहेंगे, अब हम जैसी घ्वनियां को पैदा करेंगे तो उनसे संबंधित भाव हमें अभिभूत कर देंगे,ऐसी घ्वनियां है जिनसे मौन और शांति प्राप्‍त होती है और ऐसी घ्वनियां भी है जिनसे क्रोध का जन्‍म होता है, इसलिए जब तक किसी जानकर गुरु से मंत्र न मिले तब तक मंत्र का प्रयोग करना ठीक नहीं है. किसी साधक को एक खास मंत्र दिया जाता है,और अगर वह उसका ठीक प्रयोग करता है तो यह बात गुरु उसके चेहरे से जान लेता है,चेहरा देखकर ही गुरु जान जाता है कि साधक ठीक प्रयोग कर रहा है या नहीं,क्‍योंकि ठीक प्रयोग से एक भाव विशेष का उदय होता है,अगर ध्‍वनि ठीक से पैदा की जाए तो भाव का आविर्भाव निशचित है,और यह भाव चेहरे पर प्रकट होगा; हम गुरु को धोखा नहीं दे सकते वह हमारे चेहरे से जान लेगा कि हमारे भीतर क्‍या घट रहा है,चेहरा भाव को प्रकट कर देता है. वह ध्‍वनि को नहीं प्रकट कर सकता, लेकिन भाव को प्रकट कर देता है, और हम जितने ही भाव में गहरे जायेंगे, हमारा चेहरा अभिव्‍यक्‍ति के योग्‍य, नमनीय और तरल होता जाएगा, वह तुरंत बता देता है कि भीतर क्‍या हो रहा है, अभी जो तुम्‍हारा चेहरा वह नहीं रहेगा, वह तो मुखौटा है, यह साधना का मार्ग क्या विज्ञानं के अतिरिक्त कुछ और है , क्या विज्ञानं इसे नकारता है , अब मंत्र विज्ञानं से क्या संभव नहीं है , जीवन का आधारं ही मंत्र है , लेकिन इस विज्ञानं का सदुपयोग किया जाए तब .. दुरूपयोग किया जाए तो परिणाम बहुत ही भयानक हो सकता है|
---श्री  विनोद तिवारी  

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