Saturday, July 28, 2012

मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य का विधाता है

मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य का विधाता है। गुरु रूपी मांझी को अपनी जीवन रूपी नौका सौंप दें, तो भवसागर सरलता से पार हो जाएंगे। यदि व्यक्ति ऐसा करने का प्रयत्न नहीं करता तो वह अपना ही नाश करता है। भगवान को मन से कहना चाहिए कि है भगवान्‌! मैं आपकी शरण हूं। आप ही मुझे संभालना। और तो सांसारिक कार्य जैसे करते हैं, करें।

गुरु मंत्र का जप मन में करते रहें। कहीं कुछ छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। भगवान उसकी सार संभाल अपने आप करेंगे। औरों की निंदा न करना, अपने आपको ही सुधारना, जगत्‌ को सुधारने का भी व्यर्थ प्रयत्न करना। जगत को प्रसन्न करना उतना कठिन नहीं है।

भगवान को अपना मन दे दें। मन ही तो सब कुछ है, मन सुधरा रहा तो हमारा कल्याण हो जाएगा। कलियुग से बचने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है- नाम संकीर्तन। मृत्यु के बाद जीवात्मा अन्तःकरण के साथ जाता है। शरीर की अपेक्षा मन की चिंता अधिक करनी है। मन को मनमोहन में लगा दें तो बेड़ा पार हो जाएगा।

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मन को ईश्वर के चिंतन, ध्यान, मनन में लगाए रखना चाहिए। यदि किसी को पता चले कि यह लड्डू कड़वा है तो कोई नहीं खाएगा। इसी प्रकार जो बुरे कर्म हैं, उनका परिणाम तो बुरा ही होगा। इसलिए उनका परित्याग करके शुभ कर्मों की तरफ ध्यान देना चाहिए। उन्नति का बीज मंत्र सेवा और प्रेम है, सद्गुरु और संतों की सेवा करें।

किसी को किसी भगवान में प्रेम रहता है, किसी को और किसी में। जिस प्रकार पतिव्रता नारी अपने पति में प्रेम रखते हुए घर के अन्य सदस्यों से प्रेम रखती है, उसी प्रकार हमें इष्ट भगवान में प्रेम रखते हुए सभी देव-देवताओं से प्रेम रखना चाहिए। अपने पति और संतानों की अपेक्षा करके कथा कीर्तन करने या मंदिर जाने वाली स्त्री की सेवा कभी सफल नहीं होती क्योंकि भगवान कहते हैं कि मुझे धर्म की मर्यादा बड़ी प्रिय है।

मनुष्य के जीवन में तीन चीजों संपत्ति, सन्मति और सद्गति का बड़ा महत्व है। संपत्ति मनुष्य को प्रतिष्ठा प्रदान करती है। सन्मति प्रभाव और सद्गति परलोक सुधारती है। दृष्टि, ट्रस्टी, सृष्टि इनका कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाए। इसलिए आप यदि डॉक्टर, व्यापारी या वकील हैं तो जब शाम को घर में प्रवेश करें, तब अपने प्रोफेशन को घर के बाहर ही छोड़कर भीतर जाना चाहिए। श्रद्धा एक नाव है, जिससे तुम भवसागर पार उतर सकते हो।
--- श्री कमल अग्रवाल

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