शिव तत्व :जो सत् चित् आनन्द नित परिपूर्ण रहते हुए( शून्य
स्थिति ) सृष्टि स्थिति लय कार्य करते हैं ...वही
शिव................................................................................................
>>शून्य अर्थात अवर्णनीय ,अपरिमित , अविरल ( दुर्लभ ),अखंड , शाश्वत चित्त( चित्त -ज्ञान), ,शक्ति विशिष्ट शिव का अव्यक्त रूप ,अनिर्वचनीय ( वाचा जिसे ना पकड़ पाए) , ,अगोचर , सिद्धांत शिखा मणि मे इस तत्व के लिए वर्णन आता है .."अपरप्रत्यम( जो दूसरों को न दिखाया जा सके )शान्तम( शांत रूप ) प्रपंचैर अप्रपंचितम( रूप रस आदि प्रपंचैर गुणों की तरह जिसका वर्णन ना किया जा सके...वह इनसे नहीं जुड़ा है ... ) निर्विकलाप्म( कल्पना से परे ..जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ) अनानार्थम( अनेकानेक अर्थों से भी हम जिसका अर्थ ना कर सकें ) एततत्वश्च लक्षणं ( यह उस तत्व का लक्षण है)" .यह शिव तत्व ( शून्य तत्व ) बौद्ध दर्शन के शून्य तत्व जैसा नहीं है..यह कर्तुं अकर्तुम अन्यथा कर्तुं समर्थ है ...यह पूर्ण का जन्म दाता है ...अनंत पूर्नों को समाहित करने वाला है ) यह इच्छा कर सकता है ...कामना कर सकता है ..और क्रिया करके त्रिगुणात्मक श्रृष्टि उत्पन्न कर सकता है .
>>दो शक्तियों से विवाह १. इच्छा/ संकल्प शक्ति अर्थात दाक्षायनी / सती २. क्रिया / धारणा शक्ति अर्थात उमा / पार्वती महाशिवरात्री को शून्य रूप शिव जी ने संकल्प किया ...अर्थात दक्ष सुता (अहंकारके कारण उत्पन्न इच्छा शक्ति ) से विवाह किया ( शिव जी ऐसे शून्य हैं जिसमे पूर्ण भी समाहित है ...तथा यह शून्य स्वयं को बदल भी सकता है ..इच्छा करके )...
>>दक्ष यज्ञ मे दाक्षायनी का हवन कुंड मे भस्मीभूत होना अर्थात शून्य रूप शिव जी की इच्छा को तप / साधना से और बल मिलना ( तपः द्वंद् सह्नम ) ...दक्ष अहंकार(जो महाकारण शरीर मे है /व्याप्त है) के प्रतीक हैं... उनकी कन्या इच्छा शक्ति / संकल्प शक्ति का भस्म होना अर्थात उसे साधना के माध्यम से क्रिया के लिए प्रेरित होना ...क्रिया स्थूल शरीर का द्योतक है
>>इच्छा दक्ष यज्ञ मे भष्म होकर कामना रूप मे प्रकट हुई
>>इच्छा >>कामना >>क्रिया इच्छा >>>कामना( बलवती इच्छा , जो गुणात्मक रूप से बाल पूर्वक क्रिया करने की इच्छा ,,,जो इन्द्रियों को अपनी ओर खीचता है....इन्द्रियों को बल पूर्वक कर्म करने की प्रेरणा देती है ) >>>क्रिया
>>शिव जी द्वारा काम दहन अर्थात क्रिया शक्ति के लिए उत्प्रेरक प्रयत्न..काम शिव जी का सहयोगी है लीला के लिए ..क्रिया के लिए तत्पश्चात क्रिया / धारणा शक्ति अर्थात पार्वती से विवाह अर्थात क्रिया शक्ति के साथ संलग्नता ...व पञ्च भूत की उत्पत्ति ... स्थूल शरीर
>>अहंकार ---महाकारण शरीर इच्छा करना ( अहंकार के फलस्वरूप )----कारण शरीर कामना---सूक्ष्म शरीर क्रिया रूप मे बदलना --स्थूल शरीर
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
>>शून्य अर्थात अवर्णनीय ,अपरिमित , अविरल ( दुर्लभ ),अखंड , शाश्वत चित्त( चित्त -ज्ञान), ,शक्ति विशिष्ट शिव का अव्यक्त रूप ,अनिर्वचनीय ( वाचा जिसे ना पकड़ पाए) , ,अगोचर , सिद्धांत शिखा मणि मे इस तत्व के लिए वर्णन आता है .."अपरप्रत्यम( जो दूसरों को न दिखाया जा सके )शान्तम( शांत रूप ) प्रपंचैर अप्रपंचितम( रूप रस आदि प्रपंचैर गुणों की तरह जिसका वर्णन ना किया जा सके...वह इनसे नहीं जुड़ा है ... ) निर्विकलाप्म( कल्पना से परे ..जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ) अनानार्थम( अनेकानेक अर्थों से भी हम जिसका अर्थ ना कर सकें ) एततत्वश्च लक्षणं ( यह उस तत्व का लक्षण है)" .यह शिव तत्व ( शून्य तत्व ) बौद्ध दर्शन के शून्य तत्व जैसा नहीं है..यह कर्तुं अकर्तुम अन्यथा कर्तुं समर्थ है ...यह पूर्ण का जन्म दाता है ...अनंत पूर्नों को समाहित करने वाला है ) यह इच्छा कर सकता है ...कामना कर सकता है ..और क्रिया करके त्रिगुणात्मक श्रृष्टि उत्पन्न कर सकता है .
>>दो शक्तियों से विवाह १. इच्छा/ संकल्प शक्ति अर्थात दाक्षायनी / सती २. क्रिया / धारणा शक्ति अर्थात उमा / पार्वती महाशिवरात्री को शून्य रूप शिव जी ने संकल्प किया ...अर्थात दक्ष सुता (अहंकारके कारण उत्पन्न इच्छा शक्ति ) से विवाह किया ( शिव जी ऐसे शून्य हैं जिसमे पूर्ण भी समाहित है ...तथा यह शून्य स्वयं को बदल भी सकता है ..इच्छा करके )...
>>दक्ष यज्ञ मे दाक्षायनी का हवन कुंड मे भस्मीभूत होना अर्थात शून्य रूप शिव जी की इच्छा को तप / साधना से और बल मिलना ( तपः द्वंद् सह्नम ) ...दक्ष अहंकार(जो महाकारण शरीर मे है /व्याप्त है) के प्रतीक हैं... उनकी कन्या इच्छा शक्ति / संकल्प शक्ति का भस्म होना अर्थात उसे साधना के माध्यम से क्रिया के लिए प्रेरित होना ...क्रिया स्थूल शरीर का द्योतक है
>>इच्छा दक्ष यज्ञ मे भष्म होकर कामना रूप मे प्रकट हुई
>>इच्छा >>कामना >>क्रिया इच्छा >>>कामना( बलवती इच्छा , जो गुणात्मक रूप से बाल पूर्वक क्रिया करने की इच्छा ,,,जो इन्द्रियों को अपनी ओर खीचता है....इन्द्रियों को बल पूर्वक कर्म करने की प्रेरणा देती है ) >>>क्रिया
>>शिव जी द्वारा काम दहन अर्थात क्रिया शक्ति के लिए उत्प्रेरक प्रयत्न..काम शिव जी का सहयोगी है लीला के लिए ..क्रिया के लिए तत्पश्चात क्रिया / धारणा शक्ति अर्थात पार्वती से विवाह अर्थात क्रिया शक्ति के साथ संलग्नता ...व पञ्च भूत की उत्पत्ति ... स्थूल शरीर
>>अहंकार ---महाकारण शरीर इच्छा करना ( अहंकार के फलस्वरूप )----कारण शरीर कामना---सूक्ष्म शरीर क्रिया रूप मे बदलना --स्थूल शरीर
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
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