क्या हम सिर्फ एक भौतिक शरीर हैं ? ये बहुत ही
स्पष्ट और ज़ाहिरी प्रतीत होता है जब हम अपने आप को शीशे में देखते है |
में टाईप करते हुए अपनी उँगलियाँ देखता हूँ और मेरे वो हाथ जो बाँहों से
जुडें हैं और वो पूरा शरीर जिसका संचालन कोई मेरे मस्तिष्क के अन्दर बैठकर
कर रहा है जो शायद "मैं" हूँ. ये हम सब लोगों के लिए सही है बशर्ते हमारे
शरीर कुछ अन्तर रख सकते हैं | हममे से कुछ ऐसे भी है जो कुछ शारीरिक रूप
से कुछ अपूर्णता रखते हैं - जैसे शरीर का कोई अंग-भंग किसी बीमारी,
दुर्घटना या जन्म विकार |
लेकिन
हमारे शरीर से अगर मष्तिस्क गायब या मृत हो जाता है तो डॉक्टर समझ लेते
हैं कि हम मर चुकें हैं | मस्तिष्क की अपरिवर्तनशील क्षतिग्रस्त अवस्था
ज़िंदगी का अंत समझी जाती है चाहे हमारे फेफड़े, दिल और कुछ अहम अंग काम
कर रहे हों | इसलिए दिमाग स्पष्टतया शरीर का बहुत ही अहम हिस्सा है |
अब
सवाल ये उठता है "क्या हम सिर्फ भौतिक शरीर ही हैं या फिर भौतिक जड़
जिससे हमारा शरीर बना है उससे कुछ और ? दूसरे शब्दों में वह क्या है जो
हमें इंसान बनता है जो कि सिर्फ भौतिक जड़ नहीं है अपितु कुछ और ही है |
भौतिक विज्ञान इस प्रश्न का ज़बाब नहीं दे सकता है
क्योंकि वो सिर्फ प्रत्यक्ष प्रमाण पर जाता है कि जब हम मरते हैं तो शरीर
के साथ सब कुछ ही इस धरती से गायब हो जाता है जिसे हम अपना अस्तित्व या
वजूद कहते हैं | इसलिए तार्किक दृष्टिकोण से ये सही है कि जब हमारा शरीर
नहीं रहता तो हमारी हस्ती नेस्तनाबूद हो जाती है कम से कम इस धरती के
सापेक्ष में | फिर तो ये स्वाभाविक है कि हम मौत से डरें और उसका स्वागत न
करें |
संयोगवश और
सौभाग्य से संत कहते हैं कि हम सिर्फ एक भौतिक जड़ या रसयानिक तत्वों का
समिश्रण नहीं है जो तरतीबी से जोड़कर हमें चलने, महसूस करने और सोचने की
शक्ति एक सीमित अवधि तक देता है और फिर हम शून्य में विलीन हो जाते हैं |
वे कहतें है कि हमारा वजूद सिर्फ जड़ पदार्थ नहीं है, ये शरीर तो मात्र
अल्पकालिक खोखला आवरण है जो हमें इस संसार में कार्य करने के लिए मिला है |
इसके अन्दर बहुत कुछ चेतन सामग्री है जो इस जड़ पदार्थ से ज्यादा
स्थायित्व और चैत्यनता रखता है |
हमारे
स्थूल देह के ख़त्म होने के बाद हम सूक्ष्म देह में सूक्ष्म देश में
प्रवेश करते हैं | योगी जन इस देश में जीते जी रोज़ आते-जाते हैं | ये देश
हमारे स्थूल जगत से बहुत ही उम्दा और लतीफ है | इसमें हमारा वजूद तो
हमारी इंसानी शक्ल जैसा ही होता पर उससे ज्यादा चैतन्य, चमकदार और सुन्दर |
शरीर वाली गंदगी यहाँ कहाँ और फिर न किसी तरह की बीमारी | पिंडी मन की
बजाय अंडी मन यहाँ रहता है | वैसे इस मन में पिंडी मन से ज्यादा निर्मलता
होती है पर मन तो मन ही ठहरा, पांच विकार तो अभी भी आत्मा को परेशान करते
हैं | हाँ ये ज़रूर है कि अब ये स्थूल जगत से मुहँ मोड़ लेता है | जिसने
जीते जी यह देश देख लिया उसे पूरी दुनिया एक शौचालय लगती है और संसार की
सुंदर से सुंदर स्त्री अब सिर्फ गंदगी की कोठरी प्रतीत होती है |
चेतनता
की अगली सीढ़ी कारण क्षेत्र है जब हम अपने सूक्ष्म आवरण को उतार देते हैं
और कारण शरीर में रह जाते हैं | अब हमारी रूहानियत प्रकृति पर सिर्फ कारण
शरीर का आवरण ही सिर्फ शेष रहता है | यह मन की सबसे उच्च और निर्मल
अवस्था है जो सार्वभौमिक मन का हिस्सा है जो इस संसार का कारण है और जिसने
इस संसार की रचना की है \ यही वह स्रोत या नींव है जिसके द्वारा सब कुछ
मनुष्य की ज़िन्दगी में घटित होता है और इसको 'अहम् का कारण' कहा जा सकता
है | ये मुकाम सूक्ष्म क्षेत्र से बहुत ही लतीफ़ और उम्दा है जैसे कि
सूक्ष्म क्षेत्र स्थूल जगत से बेहतर है | इसके बारे में समझाना बहुत ही
मुश्किल है क्योंकि इस स्थूल जगत में ऐसा कुछ है ही नहीं जिससे इसका
उदाहरण दिया जा सके, बस ये ही कहा जा सकता है कि ये बहुत ही सूक्ष्म और
प्रकाशवान है | हमारे सब संचित कर्म यहाँ जमा होते हैं | ये वो कर्म हैं
जो एक सावधि जमा खाते में जमा रहते हैं | उदाहरणत अगर एक आदमी ने एक जन्म
में १०० आदमियों को मारा है तो फिर उसे इस कर्म को चुकाने के लिए १०० जन्म
लेने पड़ेंगे और तब वो एक सही जन्म ले पायेगा | परमात्मा उसे दया बख्शता
है और उसके सारे बुरे कर्म संचित खाते में जमा कर देता है और फिर कुछ
मिश्रित कर्मों (कुछ अच्छे और कुछ बुरे ) के साथ फिर से इंसानी देह के साथ
भेजता है जिससे वो अपना असली लक्ष्य को पा सके | इसलिए मनुष्य जन्म बहुत
ही कीमती है और उसका मुख्य लक्ष्य मोक्ष पाना है | हमें पता नहीं हमारे
कितने बुरे कर्म संचित है | अगर परमात्मा हमसे हमारे कर्मों का हिसाब करने
लगे तो हम किसी को मुहँ दिखाने के लिए नहीं रहेंगे | इसलिए मालिक से
अरदास करनी चाहिए कि मालिक भूलनहार हैं, बख्श ले |
कारण
शरीर को छोड़ कर, मन और आत्मा अलग हो जाते हैं | अब ब्रह्माण्डी मन आत्मा
को अलविदा कहता है क्योंकि वो अपने घर पर पहुँच चुका है | आगे आत्मा को
अकेले ही सफ़र करना है | अब रूह के अन्दर असली तड़प और विरह जागती है |
असली प्यार यहाँ से चालू होता है | अब मन आत्मा का सबसे अच्छा दोस्त बन
जाता है | पहले यह आत्मा का सबसे बड़ा दुश्मन था | अब चैतन्य और निर्मल
आत्मा जो हमारा अपने असली स्वरुप और चमक में आती है और इसका अपना प्रकाश
बारह सूर्य का होता है जब हमारी चेतनता स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर को
त्याग चुकी होती है | ये हमारा सनातन और विशुद्ध रूहानियत रूप है | ये
हमारा असली अस्तित्व है, एक परम चेतनता की बूँद, विशुद्ध चेतनता, स्वयं
आत्मा बिना जड़ और मन के प्रभाव से मुक्त | इसलिए ये ज़रूरी हो जाता है कि
हम अपने निज अस्तित्व को जड़ और मन के आवरण से मुक्त करके ही जान सकते
हैं |
अभी आत्मा कई
मोटे आवरणों से ढकी हुई है जैसे एक अन्तरिक्ष यात्री एक मोटी अन्तरिक्ष
पोशाक पहनता है और फिर अन्तरिक्ष यान के आवरण से ढका होता है | जब लोग उसको
देखते हैं तो वह जानते हैं कि कोई चेतन नाविक इस यान पर सवार है पर धरती
से देखने पर ये बस एक निष्क्रिय धातु का एक टुकड़ा सा प्रतीत होता है |
हम
साधारणतया इस हकीकत से अनभिज्ञ रहते हैं कि हमारा असली अस्तित्व आत्मा है
क्योंकि हमारा ध्यान हमारे शरीर और मन पर केन्द्रित रहता है | संत कहते
हैं कि ये आन्तरिक ध्यान ही इस आत्मा का हिस्सा है | हम अक्सर बाहर
ढूँढ़ते हैं कि हम क्या हैं , कभी किताब पढ़ कर, कभी दोस्तों से
तर्क-वितर्क कर के, कभी धर्म के रीति-रिवाजों को निभा कर | हम समुन्द्र के
बीच मैं खड़े होकर पूछ्तें हैं कि पानी कहाँ पर है ? मुझे तो पानी कहीं
महसूस ही नहीं होता !
दरअसल
समस्या यह है कि हमने धातु का गोताखोरी सूट पहन लिया है और सिर पर एक
हेलमेट और पुरे पैरों के बूट पहन लिए हैं | अब पानी की ठंडक कैसे महसूस हो
? पानी की ठंडक तो नंगे बदन को महसूस होगी | सिर्फ नंगी आत्मा ही
परमेश्वर का सौहार्द और प्यार को महसूस कर सकती है | हम सभी अपने शरीर की
चर्बी को कम करने के लिए जिम्नेजियम और तरन ताल जाते हैं, सौना और स्टीम
बाथ लेते हैं जिससे से हमारा जिस्म फैशन मॉडल की तरह साइज़ जीरो हो जाए |
पर असली चर्बी तो आत्मा की हटानी है उसके विभिन्न आवरण उतार कर | आत्मा
रूपी चिड़िया शरीर और मन के पिंजरे से आज़ाद होना चाहती है |
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