पिता
एक ऐसा शब्द जिसके साथ रहने पर शेर के बच्चे सुरक्षित रहते है , भालू के
बच्चे दुसरे नर भालू से बेखौफ होकर खेलते है | न तो शेरनी को यह चिंता
रहती है कि उसके बच्चो का क्या होगा जब तक दूसरा बलशाली शेर आकर नर पिता को
परास्त न कर दे और न ही मादा भालू को भोजन ढूंढ़ते समय बच्चो के मार दिए
जाने का भय रहता है क्यों कि नर पिता बच्चो के पास है | मई यह भी जनता हूँ
कि जब मादा पैन्गुइन अंडे देती है तो बर्फ से जमे प्रदेश में उस बहार आये
अंडे को गर्मी उस अंडे का जैविक पिता ही देता है और एक दो दिन नही पूरे ३
महीने , तब खी जाकर बच्चा बहार दुनिया में कदम रख पाता है यानि अगर हम
बच्चे के जन्म और पालन का सारा श्रेय माँ को ही दे दे तो यह एक तरफ़ा फैसला
होगा और हम पीर सही ढंग से पिता के दायित्व को रख नही पाएंगे | यह बात और
है कि अन्य सभी जीव जन्तुओ में जैविक परिवार की भूमिका ही होती है और उसके
बाद माता पिता से अलग बच्चा आना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र होता है जैसी
कुछ परछाई हमें पश्चिम सभ्यता में देखने को मिलता है | लेकिन मानव की बात
आते ही एक शब्द जो सबसे ज्यादा उसके जीवन को १०००० साल से प्रबह्वित करता
रहा है , वो है संस्कृति - जिसके सहारे मानव ने न सिर्फ अपने को प्रकृति से
सुरक्षित किया बल्कि आज पूरी दुनिया का रावन( एक राजा जिसने सभी कुछ अपने
कब्जे में करने की कोशिश जीवन पर्यंत की ) ज्यादा बन बैठा है | और इसी
संस्कृत का परिणाम यह रहा की अन्य जन्तुओ में पाए जाने वाले जैविक परिवार
और नर पिता की भूमिका को सांस्कृतिक परिवार और सांस्कृतिक पिता की भूमिका
बढ़ाने का मिला और इसी लिए मानव ने विवाह , परिवार , नातेदारी को स्थापित
किया जो आज भी जारी है | मानव संस्कृति में जिस मानव समूह को सबसे नीचे
स्तर पर रखा गया वह है जनजाति ( एक ऐसा समूह जो अभी आधुनिकता सेदूर,
प्रकृति के सहारे , और अपनी विशिष्ट संस्कृति के कारण अलग है और भारत में
इनको सर्कार द्वारा आरक्षण देकर संरक्षित किया जा रहा है )| भारत में आज
इनकी संख्या ७०० के आस पास है और इनमे भी इत का महत्त्व देखा जा सकता है |
मध्य प्रदेश के देवास और मंसूर जिलो में रहने वाली बछेड़ जनजाति में पहली
बड़ी लड़की को वैश्यावृति ही करनी पड़ती है और वह खेलवाड़ी कहलाती है पर अगर
वह गर्भवती हो जाती है तो जनजाति के ही किसी पुरुष को उसका प्रतीकात्मक
पिता घोषित कर दिया जाता है और वह ही उस बच्चे का पिता मान लिया जाता है |
यही नही उत्तराखंड के देहरादून में रहने वाली जौनसार बावर जनजाति में
बहुपति विबाह है और जब लड़की पाने मइके में आती है तो धयन्ती कहलाती है और
उस समय वह किसी के साथ यौन सम्बन्ध बना सकती है और ऐसी स्थिति में अगर
बच्चा ठहर गया तो विवाहित व्यक्ति ही उसका पिता कहलाता है | इस जनजाति में
एक तीर धनुष सेरेमनी होती है और जो व्यक्ति गर्भवती स्त्री को महुआ सी टहनी
से बना तीर धनुष दे देता है वही उस बच्चे का जैविक पिता कहलाता है और जब
तक कोई दूसरा इस सेरेमनी को नही करता तब तक उस स्त्री से पैदा होने वाले
बच्चे उसी पहले व्यक्ति के मने जायेंगे जो यह बताता है कि पिता का होने
जनजाति में कितना जरुरी है | यह एक गंभीर मुद्दा है कि ७०० से ज्यादा
जनजाति भारत में होते हुए भी ना तो कोई बच्चा अवैध कहलाता है और ना ही
अनाथालय है | यानि जनजाति पिता कि भूमिका को लेकर ज्यादा संवेदन शील है पर
इससे उलट आधुनिकता की दौड़ में शहरों में रहने वाले यौन संबंधो में आगे
निअलते दिखाई देते है पर पिता के रूप में आने ज्यादा तर कतराते दिखाई दे
रहे है और इस लिए सड़क के किनारे भ्रूणों की बहरी संख्या नालो में पड़ी खाई
पड़ने लगी है |और अगर देर हो गई तो औरत के पास यही विकल्प है की बच्चा पैदा
करके सड़क और झाड़ी में फ़ेक दे और उस के कारण अनाथालय में बच्चो की संख्या
बढती ही जा रही है पर इन सब में यह बात तो साफ़ है की समाज में यौन संबंधो
में तो खुलापन आ गया पर बच्चे के पिता की भूमिका को समाज नही नकार सका है
और ना ही सम्बन्ध बनाने वाले लड़का लड़की इस से अपने को बचा पाए है और पिता
के निर्धारण की शुन्यता ने गर्भपात और अनाथालय को संस्कृति के एक नए
पायेदान के रूप में स्थापित किया है जो पिता के स्थान और महता को अभी
दर्शाता है | हिंदी में एक कहावत है बाढे पूत पिता के
धर्मा..................यां पिता के कृत्य ही बच्चे के भाग्य का निर्धारण
करते है | उद्दालक और श्वेतकेतु ( इन्ही के प्रयास से विवाह के बाद औरत पति
के घर स्थाई रूप से रहने लगी वरना इस से पहले सिर्फ बच्चा पैदा करने के
लिए किसी उरुष के पास भेजी जाती थी और बच्चा पिअदा करके वापस चली जाती थी
|) का प्रकरण हो | या पिता के आदेश पर परशुराम द्वारा पानी माँ के ऊँगली
काटने का प्रकरण हो |या फिर भगवन राम के द्वारा पिता की आज्ञा से वन गमन हो
| पिता की भूमिका हर जगह दिखाई देती है | भले ही न्याय और कानून ने पिताके
नाम के साथ माँ के नाम को भी मानयता दे दी हो पर कोई भी सबसे पहला प्रश्न
यही पूछता है कि तुम किसके लड़के या लड़की हो या फिर तुम्हारे पिता का नाम
क्या है ? अभी भी भारत में पिता कि ही जाती उपनाम लगता है | आज कल स्पर्म
बैंक खुल गए है पर आप अपने स्पर्म दान कर सकते है , बेच सकते है लेकिन आप
यह नही जान सकते कि आपका स्पर्म किस महिला से बच्चा पैदा करने में उपयोग
किया गया है ?? इसका भी सीधा मतलब यही है कि पिता को लेकर विवाद ना हो और
बच्चा उसकी का माना जाये जिस पुरुष के साथ उस महिला का विवाह हुआ यानि किसी
ना किसी रूप में हम भी पिता के महत्व को समझते हुए जनजाति का ही फ़ॉर्मूला
अपना रहेहै | माँ से ज्यादा उचा स्थान पिता को दिया गया है | चाहे वह
हिमालय के रूप में हो या फिर आकाश के रूप में | और ऐसे में फादर डे मानना
मेरे लिए ऐसे ही है जैसे किसी पेड़ पर लटका वो कच्चा फल जो बिना पेड़ के वो
रस और परिपक्वता नही पा सकता जो उसे मिलने चाहिए वैसे तो लोग और तरीको से
भी पका लेते है | पिता के लिए यही कहा जा सकता है बच्चे का सर्जन करने के
लिए एक बार में सिर्फ एक अंडा सामने आता है यानि हर अंडा माँ बनने का गुण
समाहित किये है पर एक अंडे से निषेचन के लिए एक बार में करीब २ करोड़
शुक्राणु बाहर आते है और उसमे से किसी एक में पिता बनने का गुण होता है और
जो अंडे के साथ मिल कर बच्चे का सर्जन करता है और इसी लिए पिता करोडो में
एक
वह पुरुष है जिसने अनुवांशिक रूप से भी और सांस्कृतिक रूप से भी
अपनी महता सिद्ध की है तो ऐसे इत को क्या ना हम सब शत शत नमन करे
...............आप दीर्घायु हो पिता जी .....................डॉ आलोक
चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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