यह उस समय की बात है जब समुद्र-मंथन हुआ था! और सभी को अमृत बांटा जा
रहा था! अमृत पाने के लिये सभी देवता एक पंक्ति में बैठे थे! उसी पंक्ति
में एक राक्षस राहु भी बैठा था! राहु ने ज्यों ही अमृत पीने की इच्छा की,
सूर्य और चन्द्रमा ने अमिततेजस्वी भगवान विष्णु को सूचना दे दी! तब भगवान
ने विकृत एवं विकराल शरीरवाले राहु का मस्तक काट डाला! उसका कटा हुआ मस्तक
आकाश में उड़ गया और घड पृथ्वी पर गिर पडा!
उस समय सौ करौड़ मुख्य-मुख्य दैत्य गर्जते तथा महान बल-पराक्रम वाले देवताओं को युद्ध के लिये ललकारते हुए आगे बढे! महाकाय राहु चन्द्रमा को अपना ग्रास बनाकर इंद्र के पीछे दौड़ा ! वह सम्पूर्ण देकाताओं पर ग्रास लगाता जा रहा था! राहु यद्यपि एक ही था, तथापि वह सर्वत्र पहुंचा हुआ दिखायी देता था! वह देख देवता भय से विहल हो चन्द्रमा को आगे करके बड़ी उतावली के साथ भागे और पृथ्वी छोड़ कर स्वर्ग लोक में चले गये! वे स्वर्ग में ज्यों ही पहुंचे, त्यों ही राहु भी महान वेग से उनके आगे आकर खडा हो गया! वह चन्द्रमा को निगल जाना चाहता था! यह देख चन्द्रमा ने भय से व्याकुल होकर भगवान शंकर की शरण में जाने का विचार किया! वे मन-ही-मन शिवजी का स्मरण करके स्तुति करने लगे-----"देवेश! आप हमारे रक्षक हो, वृषभध्वज ! मुझे संकट से उबारें! शरणागति की रक्षा करनेवाले श्रीपार्वतीते ! अपनी शरण में आये हुए मेरी रक्षा करें!
उनके इस प्रकार स्तुति करने पर सबका कल्याण करनें वाले भगवान सदाशिव वहीँ प्रकट हो गये और चन्द्रमा से बोले---डरो मर! यों कहकर उनहोंने चन्द्रमा को अपने जता-जूट के ऊपर रख लिया! तब से चन्द्रमा उनके मस्तक पर श्वेत कमल पुष्प की भांती शोभा पा रहा है! चन्द्रमा की रक्षा होने के पश्चात राहु भी वहाँ आ पहुंचा और भगवान शिव की स्तुति करने लगा----शांत स्वरुप भगवान शिव को नमस्कार है! आप ही ब्रह्म और परमात्मा हैं! आपको नमस्कार है! लिंगरूपधारी महादेव ! जगत्पते ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ! आप सम्पूर्ण भूतों के निवास स्थान, दिव्य प्रकाश स्वरुप तथा सब भूतों के पालक हैं! आपको नमस्कार है! महादेव् ! आप समस्त जगत की आनंद प्राप्ती के कारण हैं! आपको प्रणाम है! मेरा भक्ष्य चन्द्रमा इस समय आपके समीप आया है! उसे मुझे दे दीजिये!
राहु की इस प्रार्थना से भगवान सोमनाथ बहुत सतुष्ट हुए और उनहोंने राहु से कहा ---मैं सम्पूर्ण भूतों का आश्रय हूँ, देवता और असुर सब को मैं प्रिय हूँ! भगवान शिव के यों कहने पर राहु भी उन्हें प्रणाम करके भगवान शिव के मस्तक में स्थित हो गया! तब चन्द्रमा ने भय के मारे अमृत स्त्राव किया! उस अमृत के संपर्क से राहु के अनेक सिर हो गये! भगवान शंकर ने उन सब को देखा! देवकार्य की सिद्धि के लिये भगवान शिव ने राहु के मुंडों की माला बना कर गले में धारण कर ली !
कुछ समय तक राहु भी भगवान शंकर जी के मस्तक पर रहा और अंत में ईश कृपा से भगवान सदाशिव जी के गले की माला बन गया! सत्यं शिवम् सुन्दरम!
---- श्री अनुराग मिश्र
उस समय सौ करौड़ मुख्य-मुख्य दैत्य गर्जते तथा महान बल-पराक्रम वाले देवताओं को युद्ध के लिये ललकारते हुए आगे बढे! महाकाय राहु चन्द्रमा को अपना ग्रास बनाकर इंद्र के पीछे दौड़ा ! वह सम्पूर्ण देकाताओं पर ग्रास लगाता जा रहा था! राहु यद्यपि एक ही था, तथापि वह सर्वत्र पहुंचा हुआ दिखायी देता था! वह देख देवता भय से विहल हो चन्द्रमा को आगे करके बड़ी उतावली के साथ भागे और पृथ्वी छोड़ कर स्वर्ग लोक में चले गये! वे स्वर्ग में ज्यों ही पहुंचे, त्यों ही राहु भी महान वेग से उनके आगे आकर खडा हो गया! वह चन्द्रमा को निगल जाना चाहता था! यह देख चन्द्रमा ने भय से व्याकुल होकर भगवान शंकर की शरण में जाने का विचार किया! वे मन-ही-मन शिवजी का स्मरण करके स्तुति करने लगे-----"देवेश! आप हमारे रक्षक हो, वृषभध्वज ! मुझे संकट से उबारें! शरणागति की रक्षा करनेवाले श्रीपार्वतीते ! अपनी शरण में आये हुए मेरी रक्षा करें!
उनके इस प्रकार स्तुति करने पर सबका कल्याण करनें वाले भगवान सदाशिव वहीँ प्रकट हो गये और चन्द्रमा से बोले---डरो मर! यों कहकर उनहोंने चन्द्रमा को अपने जता-जूट के ऊपर रख लिया! तब से चन्द्रमा उनके मस्तक पर श्वेत कमल पुष्प की भांती शोभा पा रहा है! चन्द्रमा की रक्षा होने के पश्चात राहु भी वहाँ आ पहुंचा और भगवान शिव की स्तुति करने लगा----शांत स्वरुप भगवान शिव को नमस्कार है! आप ही ब्रह्म और परमात्मा हैं! आपको नमस्कार है! लिंगरूपधारी महादेव ! जगत्पते ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ! आप सम्पूर्ण भूतों के निवास स्थान, दिव्य प्रकाश स्वरुप तथा सब भूतों के पालक हैं! आपको नमस्कार है! महादेव् ! आप समस्त जगत की आनंद प्राप्ती के कारण हैं! आपको प्रणाम है! मेरा भक्ष्य चन्द्रमा इस समय आपके समीप आया है! उसे मुझे दे दीजिये!
राहु की इस प्रार्थना से भगवान सोमनाथ बहुत सतुष्ट हुए और उनहोंने राहु से कहा ---मैं सम्पूर्ण भूतों का आश्रय हूँ, देवता और असुर सब को मैं प्रिय हूँ! भगवान शिव के यों कहने पर राहु भी उन्हें प्रणाम करके भगवान शिव के मस्तक में स्थित हो गया! तब चन्द्रमा ने भय के मारे अमृत स्त्राव किया! उस अमृत के संपर्क से राहु के अनेक सिर हो गये! भगवान शंकर ने उन सब को देखा! देवकार्य की सिद्धि के लिये भगवान शिव ने राहु के मुंडों की माला बना कर गले में धारण कर ली !
कुछ समय तक राहु भी भगवान शंकर जी के मस्तक पर रहा और अंत में ईश कृपा से भगवान सदाशिव जी के गले की माला बन गया! सत्यं शिवम् सुन्दरम!
---- श्री अनुराग मिश्र
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