महाशिव रात्री : शून्य रूप/ अंधकार रूप /
अगोचर रूप शिव को समझने का दिन : शिव ( शून्य ) रूप होकर शिव की श्रृष्टि
मे उत्पत्ति ,स्थिति व लय के लिए प्रेरित होने का
दिन ........................................................
शिव- सती विवाह का दिन .. त्रिगुणात्मक शक्ति के आश्रय/ सहयोग से पञ्च भूत सृष्टि- पुत्र प्राप्त करना अर्थात शिव विवाह शून्य अर्थात जिसका परिणाम नहीं ...जो परिणाम का कारण नहीं ..जो शाश्वत नहीं व शाश्वत का कारण नहीं ..जो ना बदले ...शून्य बदलता नहीं है पर शिव ऐसा शून्य है जो बदलता है त्रिगुणात्मक श्रृष्टि को उत्पन्न करने के लिए ...सती से विवाह करके (( शून्य शिव की एक स्थिति है ...अनेक स्थितियों मे ..पर वही निज स्थिति है .......और शिवपुत्रश्रृष्टि मिथ्य भी नहीं है क्योकि वह सत्य से उत्पन्न हुआ है ...सत्य से उत्पन्न मिथ्य नहीं हो सकता ..अविद्या के कारण प्रपंच मिथ्य दीखता है पर वह नहीं है ..))
श्रृष्टि की उत्पत्ति का दिन एवँ यही है श्रृष्टि के विनाश का भी दिन ( भगवान शिव के तृतीय नेत्र की ज्वाला द्वारा) (प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख.. अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है...इसके अतिरिक्त दोनो ही स्थितियों मे शिव भक्ति ही समाधान दायक है )
भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रकट होने का दिन लिंग भी शून्य रूप शिव का प्रतीक है ...लीयते गम्यते यत्र येन सर्वम चराचरम. तदेत लिंग इत्युक्तम लिंगात्वाम परायनै:..सब कुछ जिसमे बसा है छुपा है ..और सब कुछ उससे उत्पन्न होकर पुनः उसमे लय होता है वही शून्य का स्थान है ..लिंग शब्द के तीन अलग अलग अवयव लि, विन्दु (.), और ग भी उक्त उपरोक्त व्याख्या मे सहायक हैली --- शून्य , विन्दु( .) --- लीला , ग --- चित्त/ अंतःकरण तीनो का समन्वय अर्थात लिंग ...शून्य( शिव ) की लीला अर्थात अंतः करण सहित श्रृष्टि की उत्पत्ति
यहां रात्रि शब्द अज्ञान- अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है. परमात्मा (शिव) ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं..इस लिए शिव रात्रीशिव मूलतः शून्या कार हैं ...वे ओमकार के भी मूल हैं ..सिद्धांत शिखामणि मे कहा गया है सर्वम च युज्यते तस्य शून्यता यस्य युज्यते सर्वम न युज्यते तस्य शून्यम न युज्यते (दसम परिच्छेद ..श्लोक ७३ )जो शून्य को जो ग्रहण करता है उसे सभी वस्तुओं मे पूर्णता दीखती है ,,,और जिसने ग्रहण नहीं किया उसे ही सर्वत्र द्वेत दीखता है ..(मै पूर्ण हूँ ऐसा समझना ही शून्य का अनुभव है ...शून्य होने से ही सच्चा पूर्णत्व मिलता है ....अन्धकार मिटता है ... अविद्या सम्पूर्णतः मिटना ही शून्य होना है ...जो शून्य है वही परम प्रकाशित है ...
ऋतू परिवर्तन का समय -- सूर्य भगवान उत्तरायण मे आ चुके होते हैं )-- सच्चा बसंत तभी आयेगा ...-- युगादी/ गुडी पाडवा एक माह पूर्व आता है ...महाशिवरात्री अर्थात त्रयोदसी (माघ, कृष्ण पक्ष ) को चन्द्रमा नहीं दीखता ..पूर्ण अन्धकार (३ दिन चन्द्रमा नहीं दीखता त्रयोदसी चतुर्दसी और अमावस्या )शून्य मे लय ...यह श्रृष्टि के पूर्व अगोचर , अविछिन्न ...पूर्ण शून्य का द्योतक ....(इस समय शून्य अंतरिक्ष मे सारा ब्रह्माण्ड समाहित ही रहता है )अर्थात शून्य की लीला से ही सच्चा बसंत , और युगादी ( जीवन मे नए युग का प्रारम्भ) संभव है
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं. (बलहीन चंद्रमा की सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थता ). चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है( चन्द्रमा मनसो जातः ).. मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है.. इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है. चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है. अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है. ( संक्षेप मे कहना हो तो विषाद पूर्व ही शिव आराधना विषाद से दूर रखने के लिए उचित है ..और विषाद दूर करने मे सक्षम है...शिव भक्ति शीतलता प्रदायी है.. )
शिव लीला की इच्छा प्रकट करना ..अर्थात शिव रात्री ...शून्य, परिपूर्ण ब्रम्ह की योग लीला का दिन अर्थात शिव रात्री ...(अभी किया नहीं) ...हम पूर्णत्व को धारण करने वाला शून्य बने ...इच्छा/ संकल्प शक्ति.... क्रिआ/ धारणा शक्ति ...इस दिन सतोगुनात्मक इच्छा प्रकट किया शिव जी ने उसके बाद राजोगुनात्मक कामना के फलस्वरूप उन्होंने तमोगुनात्मक क्रिया शक्ति से संलग्नता के फलस्वरूप त्रिगुणात्मक श्रृष्टि उत्पन्न की
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
शिव- सती विवाह का दिन .. त्रिगुणात्मक शक्ति के आश्रय/ सहयोग से पञ्च भूत सृष्टि- पुत्र प्राप्त करना अर्थात शिव विवाह शून्य अर्थात जिसका परिणाम नहीं ...जो परिणाम का कारण नहीं ..जो शाश्वत नहीं व शाश्वत का कारण नहीं ..जो ना बदले ...शून्य बदलता नहीं है पर शिव ऐसा शून्य है जो बदलता है त्रिगुणात्मक श्रृष्टि को उत्पन्न करने के लिए ...सती से विवाह करके (( शून्य शिव की एक स्थिति है ...अनेक स्थितियों मे ..पर वही निज स्थिति है .......और शिवपुत्रश्रृष्टि मिथ्य भी नहीं है क्योकि वह सत्य से उत्पन्न हुआ है ...सत्य से उत्पन्न मिथ्य नहीं हो सकता ..अविद्या के कारण प्रपंच मिथ्य दीखता है पर वह नहीं है ..))
श्रृष्टि की उत्पत्ति का दिन एवँ यही है श्रृष्टि के विनाश का भी दिन ( भगवान शिव के तृतीय नेत्र की ज्वाला द्वारा) (प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख.. अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है...इसके अतिरिक्त दोनो ही स्थितियों मे शिव भक्ति ही समाधान दायक है )
भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रकट होने का दिन लिंग भी शून्य रूप शिव का प्रतीक है ...लीयते गम्यते यत्र येन सर्वम चराचरम. तदेत लिंग इत्युक्तम लिंगात्वाम परायनै:..सब कुछ जिसमे बसा है छुपा है ..और सब कुछ उससे उत्पन्न होकर पुनः उसमे लय होता है वही शून्य का स्थान है ..लिंग शब्द के तीन अलग अलग अवयव लि, विन्दु (.), और ग भी उक्त उपरोक्त व्याख्या मे सहायक हैली --- शून्य , विन्दु( .) --- लीला , ग --- चित्त/ अंतःकरण तीनो का समन्वय अर्थात लिंग ...शून्य( शिव ) की लीला अर्थात अंतः करण सहित श्रृष्टि की उत्पत्ति
यहां रात्रि शब्द अज्ञान- अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है. परमात्मा (शिव) ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं..इस लिए शिव रात्रीशिव मूलतः शून्या कार हैं ...वे ओमकार के भी मूल हैं ..सिद्धांत शिखामणि मे कहा गया है सर्वम च युज्यते तस्य शून्यता यस्य युज्यते सर्वम न युज्यते तस्य शून्यम न युज्यते (दसम परिच्छेद ..श्लोक ७३ )जो शून्य को जो ग्रहण करता है उसे सभी वस्तुओं मे पूर्णता दीखती है ,,,और जिसने ग्रहण नहीं किया उसे ही सर्वत्र द्वेत दीखता है ..(मै पूर्ण हूँ ऐसा समझना ही शून्य का अनुभव है ...शून्य होने से ही सच्चा पूर्णत्व मिलता है ....अन्धकार मिटता है ... अविद्या सम्पूर्णतः मिटना ही शून्य होना है ...जो शून्य है वही परम प्रकाशित है ...
ऋतू परिवर्तन का समय -- सूर्य भगवान उत्तरायण मे आ चुके होते हैं )-- सच्चा बसंत तभी आयेगा ...-- युगादी/ गुडी पाडवा एक माह पूर्व आता है ...महाशिवरात्री अर्थात त्रयोदसी (माघ, कृष्ण पक्ष ) को चन्द्रमा नहीं दीखता ..पूर्ण अन्धकार (३ दिन चन्द्रमा नहीं दीखता त्रयोदसी चतुर्दसी और अमावस्या )शून्य मे लय ...यह श्रृष्टि के पूर्व अगोचर , अविछिन्न ...पूर्ण शून्य का द्योतक ....(इस समय शून्य अंतरिक्ष मे सारा ब्रह्माण्ड समाहित ही रहता है )अर्थात शून्य की लीला से ही सच्चा बसंत , और युगादी ( जीवन मे नए युग का प्रारम्भ) संभव है
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं. (बलहीन चंद्रमा की सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थता ). चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है( चन्द्रमा मनसो जातः ).. मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है.. इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है. चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है. अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है. ( संक्षेप मे कहना हो तो विषाद पूर्व ही शिव आराधना विषाद से दूर रखने के लिए उचित है ..और विषाद दूर करने मे सक्षम है...शिव भक्ति शीतलता प्रदायी है.. )
शिव लीला की इच्छा प्रकट करना ..अर्थात शिव रात्री ...शून्य, परिपूर्ण ब्रम्ह की योग लीला का दिन अर्थात शिव रात्री ...(अभी किया नहीं) ...हम पूर्णत्व को धारण करने वाला शून्य बने ...इच्छा/ संकल्प शक्ति.... क्रिआ/ धारणा शक्ति ...इस दिन सतोगुनात्मक इच्छा प्रकट किया शिव जी ने उसके बाद राजोगुनात्मक कामना के फलस्वरूप उन्होंने तमोगुनात्मक क्रिया शक्ति से संलग्नता के फलस्वरूप त्रिगुणात्मक श्रृष्टि उत्पन्न की
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
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