हमारा
शरीर पंच तत्वों ठोस द्रव वायु उर्जा और तरंग ( पृथ्वी जल वायु अग्नि
और आकाश) से बना हुआ है। सूक्ष्म से स्थूल की ओर चलने पर हम शरीर
को निम्न ७ भागों में बांट सकते हैं।
1. परमात्मा अर्थात् ईश्वर (निराकार)
2. आत्मा (तरंग रूप अर्थात आकाश)
3. मन ( चित्त, बुद्धि और अहंकार) (तरंग रूप अर्थात आकाश)
4. प्राण (उर्जा रूप अर्थात अग्नि)
5. वायु (वायु रूप)
6. द्रव (द्रव रूप अर्थात जल)
7. ठोस (ठोस रूप अर्थात पृथ्वी)
क्र्मांक 1 से 4 तक सूक्ष्म शरीर एवं 5 से 7 तक स्थूल शरीर या परमाणुमय
शरीर कहलता है। उपरोक्त क्रमांक 1 से 7 तक के कार्य इस प्रकार हैं।
1. ईश्वर निराकार और सर्व्व्यापी अर्थात संपूर्ण शरीर में व्याप्त है वह
किसी क्रिया में लिप्त नहीं होता वह सिर्फ दृष्टा होता है परंतु उसके बिना
कुछ संभव नहीं।
2. आत्मा शरीर में ज्ञान स्वरूप होती है एवं मनुष्य
इंद्रियों या मन द्वारा किए गए कर्मों का फल भोगती है। यह द्रव्य का प्रथम
साकार कण है यह ईश्वर के चारों ओर प्रभामंडल के रूप में स्थित है हम इसे
द्रव्य का सबसे छोटा रूप कह सकते है यह द्रव्य का तरंग रूप होता है। आत्मा
स्वयं कुछ नहीं करती यह सिर्फ क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया करती है एवं
प्रतिक्रिया से परिणाम प्राप्त होता है। अर्थात मन या इंद्रियां जो भी
करेंगी उसी के अनुसार यह प्रतिक्रिया कर परिणाम देगी और उसे स्वयं भी
भोगेगी।
3. मन मनुष्य के शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है इसे तीसरी आंख
या छठी इंद्रिय भी कहते हैं, इसे अग्रेंजी में माइंड कहते हैं। इसका काम
जानना या ज्ञान प्राप्त करना और निर्णय करना है। मन ही मनुष्य के शरीर का
संपूर्ण बौद्धिक संचालन करता है अर्थात यह शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है।
यह द्रव्य का तरंग रूप है और यह आत्मा के साथ गुथा हुआ रहता है एवं सारे
शरीर में व्याप्त है। इसे हम शरीर की संचार प्रणाली कह सकते हैं यह आत्मा
से संपर्क बनाए हुए ब्रह्मांड में कहीं भी जाने में सक्षम है इसकी गति
असीमित है यह प्रकाश की गति से कई गुना तेज गति से चल सकता है ।
4.
प्राण, इसे जीवनी शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में आक्सीजन को
उर्जा में बदलकर शरीर के स्थाई अवयवों जैसे हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े,
गुर्दा, पाचन तंत्र आदि का संचालन कर शरीर को क्रियाशील बनाए रखना है,
प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है। मनुष्य के शरीर पांच महाप्राण
एवं पांच लघु प्राण होते है महाप्राण को ओजस् एवं लघु प्राण को रेतस् कहते
हैं। ओजस का कार्य उर्जा को ग्रहण करना और रेतस का कार्य अनावश्यक
उर्जा को शरीर से बाहर निकालना है।
5. वायु से शरीर में स्थित
फेफड़े ऑक्सीजन को अवशोषित कर नर्व के माध्यम से संपूर्ण शरीर में
पहुंचाते है जिसे प्राण ग्रहण कर शारीरिक (जैविक एवं रासायनिक)
क्रियाओं के लिए उर्जा उत्सर्जित करता है।
6. द्रव- इसका कार्य
भोजन पेय के माध्यम से आवश्यक तत्वों को ग्रहण कर शरीर में रक्त रस आदि
का निर्माण कर अशुध्द एवं अनावश्यक तत्वों को शरीर से बाहर निकालना है।
7. ठोस – मांस हड्डी आदि। इनका कार्य रक्त प्रवाह एवं स्नायुओं के लिए
सुरक्षित मार्ग बनाना , शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करना तथा
शरीर को स्थिर एवं सुडौल बनाए रखना है।
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