वेदों
में कहा गया है कि नदी के किनारे लगे वृक्ष को जिस तरह सभी तरह के पोषक
तत्व मिलते रहते हैं उसी तरह सुख और दुख सभी अवस्था में जो व्यक्ति
परमेश्वर (ब्रह्म) को पकड़कर रखता है वह कभी मुर्झाता नहीं है। हम देखते
हैं कि किस तरह हमारे दुख दूर हो सकते हैं। दुखों को दूर करने की एक ही
औषधि है- 'कायम रहना काम पर और पक्का रहना परमेश्वर पर।'
लोगों को
तथाकथित साधु, ज्योतिष या भ्रमित करने वाली पुस्तकें अनेकों मंत्र, देवता
आदि के बारे में बताते और डराते रहते हैं किंतु यह सभी भटकाव के रास्ते
हैं। भ्रम-द्वंद्व, डर में जीने वाला या भटका हुआ व्यक्ति कभी भी कहीं भी
नहीं पहुँच पाता। वह कभी किसी मंत्र या देवता का सहारा लेता है तो कभी किसी
दूसरे मंत्र या देवता का। ऐसा व्यक्ति किनारे से दूर होता जाता है और
हमेशा द्वंद्व और दुविधा में रहकर जीवन नष्ट कर लेता है।
1.मंत्र
की माया : वेदों में बहुत सारे मंत्रों का उल्लेख मिलता है, लेकिन जपने के
लिए सिर्फ प्रणव और गायत्री मंत्र ही कहा गया है बाकी मंत्र किसी विशेष
अनुष्ठान और धार्मिक कार्यों के लिए है। वेदों में गायत्री नाम से छंद है
जिसमें हजारों मंत्र है किंतु प्रथम मंत्र को ही गायत्री मंत्र माना जाता
है। उक्त मंत्र के अलावा किसी अन्य मंत्र का जाप करते रहने से समय और ऊर्जा
की बर्बादी है। गायत्री मंत्र की महिमा सर्वविदित है। दूसरा मंत्र है
महामृत्युंजय मंत्र, लेकिन उक्त मंत्र के जप और नियम कठिन है इसे किसी
जानकार से पूछकर ही जपना चाहिए।
2.ईश्वर और देवता : ईष्ट एक होना
चाहिए दूसरा नहीं। ईश्वर ही परमश्रेष्ठ परमेश्वर है जिसे 'ब्रह्म' कहा गया
है और उसे ही ईष्ट कहा गया है। गायत्री मंत्र उसी की प्रार्थना के लिए है।
इसके अलावा किसी भी एक देवता या देवी को चुन सकते हैं और जीवन पर्यंत तक
उसी पर कायम रहें। उक्त देवी, देवता या गुरु के माध्यम से परमेश्वर की
आराधना करें।
3.वेद और अन्य ग्रंथ : वेदों का सार है उपनिषद और
उपनिषदों का सार है गीता। उक्त को छोड़कर जो अन्य किसी पुस्तक या ग्रंथ पर
विश्वास करता या उसके अनुसार चलता है वह धर्म से भटका हुआ व्यक्ति माना
जाता है। ऐसे व्यक्ति का वेद भी साथ छोड़ देते हैं। माना कि सभी ग्रंथों
में अच्छी बातों का उल्लेख मिलता है, किंतु सभी धर्मग्रंथों का मूल है वेद।
4.मंदिर और अन्य पूजा स्थल : कुछ लोगों को देखा है कि वे मंदिर, दर्गा और
चर्च सभी जगह जाते हैं, लेकिन यह उनके दिमाग के द्वंद्व को ही दर्शाता है।
सभी में श्रद्धा रखना अच्छी बात है, किंतु इससे आपकी उर्जा का क्षय और
बिखराव होगा। यह बिखराव व्यक्ति को जीवन के हर मोड़ पर असफल कर देता है।
'एक साधे सब सधे और सब साधे तो कोई ना सधे' अर्थात सभी गँवाए कि कहावत तो
सुनी ही होगी। सभी को साधने के चक्कर में रहने वाले सभी को खो देते हैं।
5.नियम और अभ्यास : वेद कहते हैं कि नियम ही धर्म है और अभ्यास ही सफलता
का सूत्र है। नियम पर कायम रहना और अभ्यास करते रहने से सभी तरह के सुखों
की प्राप्ती तो होती ही है साथ ही मनचाही सफलता भी मिलती है। भाग्य भी
कर्मवादियों का साथ देता है। कर्म सधता है सतत अभ्यास से।
धर्म के
नियम को समझों और उसका पालन करो और सतत संत्संग तथा अभ्यास में रहो। जैसे
भैस चारे को तब तक चबाती रहती है जब तक की उसमें मिठापन पैदा नहीं हो जाता
और फिर सब कुछ नियम से ही होता है। तो यह मान लो कि नियम और अभ्यास ही
धर्म है। 100 डीग्री पर पानी गर्म होगा तो स्वत: ही भाप बनने लगेगा।
6.त्योहार और मजा : कुछ लोग मजे के लिए त्योहार मनाते हैं जैसे होली,
दीपावली, दशहरा और अन्य त्योहार। देखा गया है कि होली, दशहरा और
नवदुर्गोत्सव में लोग शराब पीते हैं और दीपावली पर जुआ खेलते हैं। जबकि ये
त्योहार आपको हर तरह की बुराई से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। ये कुछ
महत्वपूर्ण दिन होने हैं जबकि पवित्र रहना जरूरी है जो ऐसा नहीं करता है वह
धर्म विरुद्ध माना जाता है। जानें हिंदुओं के खास त्योहर को जिसमें मकर
संक्रांति शामिल है।
7.सुखी होने के नियम : वेद, उपनिषद और गीता
का पाठ करना चाहिए। घर में तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन धूप
देना चाहिए। चतुर्थी, ग्यारस और अन्य प्रमुख तिथियों को व्रत रखना चाहिए।
प्रात: और संध्या के समय संध्यावंदन करना चाहिए।
धर्म, देवी,
देवता, पिता, गुरु और पितरों का अपमान ना तो करना चाहिए और ना ही सुनना
चाहिए। श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए। समय और सुविधानुसार
चार धाम और तीर्थाटन करना चाहिए। समय-समय पर दान-पुण्य करते रहना चाहिए।
किसी भी प्रकार के कटु वचन से दूर रहना चाहिए तथा सकारात्मक विचारों का
संग्रह कर सोच-समझकर बोलना चाहिए।
मनमाने (जो धर्म सम्मत नहीं है)
त्योहार, व्रत, दान, यज्ञ, अनुष्ठान, मंदिर, देवता, ज्योतिष, गुरु घंटाल,
पंडित, पंडों, तथाकथित प्रवचनकार, कथावाचक, धर्म पर बहस करने वाले आदि से
दूर रहना चाहिए। रात्रि के सभी कर्म-अनुष्ठान को राक्षस और निशाचरों के
धर्म का माना गया है। जो वेद सम्मत हो उसे ही मानें।
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