अष्टावक्र
अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि
हैं।.................पिता के शास्त्र में हार जाने के बाद अष्टावक्र राजा
जनक के दरबार में पहुचे .............................................राजा
जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस
अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी
है? राजा जनक के प्रश्न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस
पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला
संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर
प्रश्न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता?
जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है?
और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि
हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के
उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली
नदी होती है।....................फिर बंदी के साथ शास्त्रथ करने की आज्ञा
दी ...................और बंदी भी हार गए .................इस प्रकार
शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार
गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज!
मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के
पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के
इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के बाद जल में डुबोये गये
सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।
अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा
कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप
से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान
किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।
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